Thursday, April 18, 2024

बैठने के लिए दरी माँगी थी, मिले बेंच

 
साथियों, आपने पिछले माह, रीतू (बेगूसराय) का अनुभव- “दरी की व्यवस्था” तो पढ़ा ही होगा। अब पढ़िए काजल (जमुई) द्वारा दरी की व्यवस्था की माँग का अनुभव।

नमस्ते साथियों,


मैं अपने स्कूल का अनुभव साझा करने जा रही हूँ। मैं बहुत दिनों से अपने स्कूल के प्रधानाध्यापक से दरी मँगाने के लिए अनुरोध कर रही थी। मैंने उन्हें बहुत बार  रिक्वेस्ट की कि सर, बच्चों के लिए दरी की व्यवस्था करा दीजिये, बहुत सर्दी है।

सर कुछ नहीं बोलते थे।
 
जब मैं फरवरी के अंतिम सप्ताह में स्कूल गयी तो मैंने अपनी क्लास में बेंच लगे हुए देखे। बच्चे भी खुश थे।
मैं तुरंत सर के पास दौड़कर गयी और उन्हें प्रणाम किया। सर ने पूछा कि अब तो तुम खुश हो न? क्योंकि मैंने तुम्हारी बात मान ली है। बच्चों के लिए दरी नहीं, बेंच ला दियें हैं।


मैंने उन्हें हाँ में उत्तर दिया।




और साथियों ये ख़ुशी मेरे फेस पर पूरे दिन रही। मुझे अच्छा लगा कि मैं बच्चों के लिए कुछ कर पायी।
 

  काजल कुमारी, बैच-10, जमुई

 

जाना था मुगराईन और मैं पहुँची मुगराईयां

 नमस्ते दोस्तों,

आज मैं, माधुरी की क्लास विजिट का छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूँ। मैं घर से जल्दी निकली (पौने नौ बजे)। क्योंकि माधुरी का स्कूल, पक्की सड़क से दो किलोमीटर अंदर हैं। मुझे मुगराईन जाना था और मैं मुगराईयां पहुँच गयी। ये एक जैसे नाम के दो गाँव और दो स्कूल थे। यह भी करीब दो किलोमीटर अन्दर ही था।

 
अब मैं गलत गाँव में पहुंचकर सोच में पड़ गयी कि क्या करूँ? यहाँ तो ऑटो भी नहीं मिल रहा। अब तो समय पर स्कूल पहुँच पाना असंभव सा लग रहा था। तभी रस्ते में एक वृद्ध महिला मिली। मैंने उन्हें अपनी परेशानी साझा  की। तभी वहाँ से एक बाइक सवार भैया जा रहे थे। शायद इन (वृद्ध महिला) के जानने वाले होंगे।
इन्होने उस भैया से कहा कि इस लड़की को मुगराईन स्कूल तक छोड़ आओ। भैया, तुरंत मान गए।
पर उनकी बाइक पर बैठने से पहले मेरे मन में सौ सवाल घर कर रहे थे। मम्मी-पापा और समाज से लेकर पता नहीं क्या-क्या चल रहा था। मुझे डर भी लग रहा था और बहुत टेंशन भी हो रही थी।
 
मेरे पास और आप्शन नहीं थे, इस कारण मैंने बाइक पर बैठना सही समझा। भैया ने मुझे स्कूल तक ड्राप किया और मेरी टेंशन खत्म हुई। मैंने उन्हें धन्यवाद किया।
 
जब मैं स्कूल में अन्दर गयी तो थोड़ा नर्वस फील हो रहा था। क्योंकि मैं सेण्टर पर पढ़ाती हूँ और ये अनुभव मेरे लिए नया था। मैं पहली बार स्कूल विजिट करने गयी थी। मुझे यहाँ बच्चों का असर टेस्ट कंडक्ट कराना थामुझे विद्यालय के टीचर्स बहुत अच्छे और सहायक लगे। उन्होंने मुझे बहुत आदर भी दिया और मेरे काम में मदद भी की


 
रीमा शर्मा
बडी, गया

 

अब पहले से ज्यादा सशक्त महसूस करती हूँ।

यह लेख बैच-10 की काजल के बारे में हैं। जब वो i-सक्षम से जुड़ी उन्हें बिलकुल नहीं लगा था कि वो ये 2 वर्ष की फ़ेलोशिप को पूरा कर पाएंगी।

लगातार सेशंस में जुड़ने पर उन्हें लगा कि मैं सही में यहाँ से हर बार कुछ नया सीख रही हूँ। तो मुझे फ़ेलोशिप तो पूरी करनी ही चाहिए।

जैसे- “मैं अपनी बातों को कभी घर में भी नहीं रख पाती थी। न ही घर से बाहर कहीं बोल पाती थी। मैं खुद की पढाई भी सही तरीके से नहीं कर पाती थी। कभी ध्यान नहीं देती थी। PTM के दौरान भी मुझे अपनी बात रखने में थोड़ी समस्या आती थी”।


लेकिन जब मैं सेशन के टॉपिक्स पर अपनी सोच गहरी करती गयी और एक समझ बनायी कि अपनी voice & choice को रखना बहुत जरुरी होता है।

जब मैंने अपनी बातें रखना शुरू किया, तभी मुझे खुद के लिए आवाज़ उठाने का भी मन किया। मैंने अपनी पढ़ाई शुरू की।


अब PTM में भी अपनी भाषा में या गाँव वालो की भाषा में खुलकर बोल पाती हूँ। अब मैं क्लस्टर में भी अपनी बातों को रखती हूँ और गाँव की लड़कियों और महिलाओं को भी अपनी स्टोरी बताकर प्रेरित करने की कोशिश करती हूँ। मुझे i-सक्षम की ये फ़ेलोशिप यात्रा अच्छी लग रही है।

अपनी स्कूटी भी खरीदी:

पहले सेशन में आने के लिए, स्कूल या गाँव जाने के लिए मुझे काफी चलना पड़ता था। ट्रांसपोर्ट ना मिलने के कारण समय खराब होता था।

इसलिए मैंने अपने घरवालों के सामने
स्कूटी खरीदने की बात रखी। मेरे माता-पिता ने मेरी बात मानी और मुझे स्कूटी खरीद कर दी। अब मैं पहले से और ज्यादा सशक्त महसूस करती हूँ।

स्कूटी से ही स्कूल, क्लस्टर और ऑफिस भी जाती हूँ। ऐसा नहीं था कि मुझे स्कूटी चलाना बहुत अच्छे से आता था। परन्तु मैं प्रैक्टिस करती रही और अब अच्छे से सीख गयी हूँ। अब तो आस-पड़ोस के लोग मुझे देखकर अपने बच्चों को आगे बढ़ने और पढ़ाई करने की सलाह देते हैं।

राधा, कम्युनिकेशन बडी, मुज्ज़फ्फरपुर


                           




Voice & Choice: Edu-leaders

 

शादी तय होने के बाद, एडु-लीडर ने किया मना

नमस्ते साथियों,

मैं आज आपलोगों के साथ अपनी एडु-लीडर के बारे में बताना चाहती हूँ। उन्होंने कैसे अपने परिवार में अपनी voice and choice को रखा और अपनी सही बात मनवायी।


ये लेख मेरी एडु-लीडर दीपांजली दीदी के बारे में हैं। जिनकी शादी मई 2023 में उनके मम्मी-पापा ने किसी नज़दीकी रिश्तेदार के लड़के से तय की थी। लड़के का उनके घर आना-जाना शुरू हो गया।

दीपांजली दीदी की लड़के से फ़ोन पर बात होने लगी। कुछ महीने बात करने के बाद दीदी को ऐसा महसूस हुआ कि वो लड़का उन्हें धन-दौलत और बाकी जरुरी चीज़ें तो दे सकता है। परन्तु वो मेरी, मेरी Choices की इज्ज़त नहीं करेगा।


क्योंकि दीदी जब फैलोशिप सेशन के लिए घर से आती थी तो वह लड़का शादी से पहले ही उन्हें मना करने लगा। उनके साथ बत्तमीजी से भी पेश आता था। उनकी बातों को काटता था और उन्हें गाली भी देता था।

जब दीदी ये सब बातें अपनी मम्मी को बतायी तो उनकी मम्मी ने उन्हें अपने पापा से यह सब छुपाने को कहा। क्योंकि उनके पापा हार्ट के मरीज़ हैं |


लेकिन दीदी ने अपने भविष्य के बारे में सोचकर, अपनी आगे की सेहत का ख्याल रखते हुए अपने लिए Voice उठायी।

उन्होंने सारी बातें अपने पापा को बतायी और उनके पापा ने सब कुछ सुनकर एक सही निर्णय लिया। उन्होंने इस रिश्ते में आगे बढ़ने से मना कर दिया। दीदी की शादी को लेकर किये गए निर्णय को जनवरी 2024 में बदला

दीदी अब खुश हैं कि उन्होंने अपनी बात रखी और उसे सुना गया। अब वो मन-लगाकर अपना कार्य कर रही हैं।

स्वाति सुमन
टीम सदस्य, मुज्ज़फ्फरपुर





पिछले क्लस्टर मीटिंग का गोल मैंने पूरा किया

मैं क्लस्टर मीटिंग का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस बार हमारा क्लस्टर, बारभरारी में था। हमारी क्लस्टर मीटिंग में निक्की दीदी, प्रीतिमाला दीदी, प्रियांजली दीदी, पायल दीदी और धर्मवीर सर आए थे। आज क्लस्टर की शुरुआत माइंडफूलनेस से हुई। जो मैंने करवाया था।
 

इसके बाद हम सभी ने पायल दीदी के साथ परिचय किया। क्योंकि हम सब उनसे पहली बार मिल रहे थे। उनसे मिलकर उनके बारे में जानकर हमें अच्छा लगा। पायल दीदी को तीन एडु-लीडर्स से बात करनी थी, और उन्होंने इसी कस्टर मीटिंग में की।
 
फिर पिछली बार जो PTM को लेकर गोल्स बने थे, उसकी क्या प्रोग्रेस है? कहाँ समस्याएँ आयी? इस पर चर्चा हुई। मुझे उन्हें बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही थी कि पिछली बार मेरा गोल था कि मैं अगली PTM में 20 अभिभावकों को शामिल करुँगी और मैंने 21 अभिभावकों को शामिल किया।
 
सभी सदस्यों ने अपनी PTM में उपस्थित अभिभावकों की संख्या बतायी। फिर सब अपना-अपना बढ़ते कदम प्रेजेंट किए। इस बार हमारा बढ़ते कदम पर अच्छी प्रगति रही। अंत में हमने इस महीने के लिए गोल बनाये।

दीदी यहाँ पहली बार आयी थी और हम सभी बिना झिझक के उनसे बात कर पाये। यह आज हमारे लिए अच्छा रहा। आज का क्लस्टर काफी मजेदार रहा हमारे लिए।
 
ईशा कुमारी
बैच- 10 (b), गया 

Tuesday, April 16, 2024

साक्षरता की पाठशाला

नमस्ते दोस्तों,

मैं आप सभी के साथ क्लस्टर में हुए कार्य का अनुभव साझा करने जा रही हूँ। हमारे क्लस्टर का नाम “जिज्ञासा आओ कुछ कर दिखाएँ” हैं।

जैसा कि आप सभी को पता है कि हम क्लस्टर में वॉइस एंड चॉइस से जुड़ा एजेंडा बनाते हैं। हमारा इस बार का एजेंडा था- अशिक्षित महिलाओं के लिए साक्षरता की पाठशाला खोलने का।


इसी के माध्यम से महिलायें और बच्चों को शिक्षित करेंगेहम सभी साथियों ने मिलकर इस कार्य के लिए एक स्थान खोजा और साक्षरता की पाठशाला का उद्घाटन 3 फरवरी 2024 को किया उद्घाटन कार्य में क्लस्टर साथी और i-सक्षम का परिवार सम्मिलित था।

मुझे काफी ख़ुशी महसूस हो रही थी।मैने इतनी भीड़ में पहली बार बच्चों को एक्टिविटी  करायी और साफ-सफाई का महत्त्व भी समझाया। मुझे यह सब कराते हुए बहुत ख़ुशी महसूस हो रही थी और खुद पर गर्व भी महसूस हो रहा था मेरा डर भी कम हुआ। और मैं यह भी सोच रही थी कि इस प्रकार के कार्य मुझे आगे अपनी बात रखने में बहुत मदद करेंगें। शायद ऐसे ही मैं आगे बढ़ पाऊँगी।


मैंने इतनी भीड़ में पहली बार बच्चों को एक्टिविटी करायी और साफ-सफाई का महत्त्व भी समझाया। मुझे यह सब कराते हुए बहुत ख़ुशी महसूस हो रही थी और खुद पर गर्व भी महसूस हो रहा था मेरा डर भी कम हुआ। और मैं यह भी सोच रही थी कि इस प्रकार के कार्य मुझे आगे अपनी बात रखने में बहुत मदद करेंगें। शायद ऐसे ही मैं आगे बढ़ पाऊँगी।

हमने मंदिर के पुजारी से रिबन कट कराया और फिर वहाँ के आस-पास के लोगो ने बच्चों को खाने के लिए कुछ नाश्ता दिया। बच्चे भी बहुत खुश थे। फिर हमने उपस्थित लोगों को इस साक्षरता की पाठशाला का उद्देश्य बताया। उन्हें बताया कि हम लोग शनिवार को यहाँ आपको कुछ नयी चीज़े सिखायेंगे और खेल-खेल में पढ़ायेंगे। आप अगले शनिवार से कॉपी-कलम लेकर आईयेगा।

सभी बच्चों ने खुश होकर बोला कि जरुर आयेंगे, दीदी बच्चे-बूढ़े और आसपास के सभी लोग बहुत खुश थे

इसी तरह यह ओपनिंग समाप्त हुई। हम आशा करते है कि जिस तरह से एक शनिवार को हम सभी बच्चों को थोड़ी सी सीख दे पाए, उसी तरह अगले शनिवार भी वहाँ जाकर बच्चों को पढ़ा पायें।

ताकि बच्चे जल्दी पढ़ाई से जुड़ जाये और धीरे-धीरे स्कूल की तरफ भी उनकी रुचि बढ़ेइसके साथ उनके अभिवाभक भी हस्ताक्षर करने सीखें, जो हम सभी साथियों का लक्ष्य भी है

रागिनी,

बैच-9, मुंगेर

हम

Friday, March 29, 2024

i-सक्षम के मुंगेर ऑफिस से- अमन

 क्या हो जब हम ही हमारे गुरु बन जाएं!

अक्सर हम सीखने के लिए, अपने से किसी बड़े ज्ञानी की खोज में होते है, जो हमसे ज्यादा जानता हो। और हम यह सोचते हैं कि वैसे लोग ही हमें सिखा सकते हैं, जो हमसे ज्यादा जानते हों।

मुंगेर में अचानक से टीम के पुराने साथियों का चयन एक संस्था में हुआ। हमारे साथी अब DIET के साथ मिलकर शिक्षक प्रशिक्षण में अपना योगदान दे रहें हैं। एक ओर जहाँ खुशी थी वहीं दूसरी ओर प्रशक्षित टीम का चला जाना, एक संघर्षपूर्ण चुनौती रहा। इस वर्ष हमारे जिले में कार्यक्रम विस्तार की भी योजना थी। हम 60 एडु-लीडर्स के साथ कार्य करने की बजाय 100 एडु-लीडर्स के साथ आगे बढ़ने वाले थे।

जिसकी पूर्ति के लिए तुरंत नए साथियों का चुनाव किया गया और अपने कार्यक्रम की संख्या और गुणवत्ता दोनों को ही बेहतर रखना आसान काम नहीं था। एक मेंटर के रूप में, मुझसे अपेक्षाएं भी अधिक थी। एक समय था जब टीम के लगभग हर व्यक्ति को लगातार सपोर्ट की आवश्यकता थी।

मुझे जो टास्क सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी, वो थी सभी साथियों को नियमित रूप से समय दे पाना और उनके साथ बने रहना। यह न कर पाने में, एक अधूरापन सा रहता था। और ऐसा लगता था जैसे कि हर समस्या का समाधान मुझे ही देना है। मेरी अनुपस्थिति में लोग परेशान भी रहते थे।

एक टीम के रूप में बेहतर कार्य कर पाना, हमेशा ही संघर्षपूर्ण रहता है। हमारी दूसरों से अपेक्षा भी ज्यादा रहती है। वैसे में एक ऐसे समूह का निर्माण करना जो एक दूसरे के सीखने और सिखाने की जिम्मेदारी ले, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। हमने ऐसे ही समूह का निर्माण किया। जहाँ एक साथी दूसरे साथी के सीखने की जिम्मेदारी ले और उसकी गुणवत्ता में भी भागीदार बनें।

यह कर पाना काफी लाभदायक रहा। जहाँ साथियों ने इसे एक मौके के रूप में लिया। तुरंत में हुए सुधार के रूप में जहाँ टीम अपने कार्य को 60 से 75 प्रतिशत पूरा करने में ही परेशान हो जाती थी। वहीं इस प्रक्रिया से कार्य के पूरा होने में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

ऐसे प्रयोग ने साथियों को बेहतर सहयोग प्रदान किया और सीखने-सिखाने के नए मौके भी बनाएं।

अब यह देख कर मुझे खुशी होती है कि समस्याओं की लिस्ट अब कम हुई है। लोगों का एक दूसरे पर भरोसा बढ़ा है। जो हमें आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त है।

अमन
टीम सदस्य, मुंगेर