Thursday, September 19, 2019

रिमझिम बरसात - कनक की कलम से

          रिमझिम बरसात -   कनक की कलम से 



आज का मौसम कुछ अनोखा सा महसूस हो रहा है.
झांकी जब खिड़की से बाहर तो ऐसा लगा बचपन खड़ा है.
ये सोचने वाला बात है ना आखिर क्या था खिड़की के बाहर जिसे देख बचपन याद आने लगी.
वो रिमझिम सी बरसात जो पिछले दो घंटों से हो रही थी.
अगर हम होते बच्चे तो अभी पानी में छप - छपा रहे होते,
अगर हम होते बच्चे तो अभी कीचड़ में खेल रहे होते,
अगर हम होते बच्चे तो कागज की कश्ती बना कर बहा रहे होते,
और अगर हम होते बच्चे तो अभी तक माँ से दो - चार चमाटे खा चुके होते.
इतनी बातें खिड़की के पास खड़े होकर सोचती रह गई और ये रिमझिम बरसात कब खत्म हो गई पता भी ना चला..... 

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