Saturday, February 25, 2023

कभी मां ने मना किया तो कभी हेडमास्टर नहीं हुए तैयार, दो घंटे की मेहनत के बाद हुआ अनम का नामांकन

मेरे नाम काजल है। मैं मुंगेर जिला, बिहार की रहने वाली हूं। मैं आज आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। मैं आज से कुछ महीने पहले आपने पास के ही गांव में सर्वे कर रही थी, जब मैं महमदपुर सर्वे करने के लिए पहुंची, तो मैं अनम नाम की एक लड़की के घर गई थी। 

वहां मैंने देखा कि उसकी मां पापड़ बना रही थी, जब मैंने आवाज लगाई तो उसकी भाभी बाहर आई। उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे। मैं जब उन्हें अपने बारे में बताई तो वे बोलने लगी कि मेरी एक ननद है और हम चाहते हैं कि वह भी पढ़ें लेकिन घर की हालत इतनी बिगड़ी हुई है कि हम बेबस हैं लेकिन फिर भी पढ़ाना चाहते हैं। 

यह सुनकर मैं सहम सी गई कि आज के जमाने में भी माता-पिता से भी ज्यादा सोचने बाली उनकी भाभी है। उन्होंने बताया कि पूरे घर के 13 सदस्यों में से एक वही है, जो पढ़ी है और 10th पास है लेकिन उनकी मां तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी पढ़ें। 

मां नहीं चाहती थी कि पढ़े बेटी 

मां का कहना था कि 12 साल की हो गई है, क्या पढ़ेगी लेकिन मैंने भी देखा कि वह बच्ची पढ़ना चाहती है। उस समय मैं उसकी मां को ज्यादा कुछ नहीं बता सकी लेकिन जब मैं उनके घर से बाहर निकली तो वह लड़की, उसकी भाभी और उसका भाई भी साथ में बाहर निकल आए और उन्होंने कहा कि अगर आप कुछ किजिएगा तो बताइए। हम अनम को पढ़ाना चाहते हैं। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई, तभी हंसते हुए अनम बोली, “दीदी मेरी सारी दोस्त पढ़ती है। मैं भी पढूंगी।” मैंने भी हंसते हुए जवाब दिया और कहा, “तुम भी जरुर पढ़ोगी।” इसके बाद मैं वहां से निकल गई।

भाभी और भाई को आना पड़ा आगे 

कुछ समय बाद दोबारा नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई। मैं कुछ दिनों बाद फिर अनम के घर पहुंची। थोड़ी देर बाद ही अनम की मां बाहर निकली। वे बिल्कुल तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी का नामांकन हो इसलिए मैंने उन्हें बहुत समझाया कि नामांकन करवा लिजिए लेकिन उसकी मां पर कोई असर नहीं हो रहा था। उसकी भाभी भी समझाई, तभी उनके भाई घर आए और वे भी समझाए और तब अनम की मां तैयार हुई। 

इसके बाद मेरे साथ और भी अलग वाकया हुआ। जब परिवार वाले नामांकन के लिए तैयार हुए तो विद्यालय में शिक्षक तैयार नहीं हुए। वहां भी बहुत कोशिशों के बाद वे तैयार हुए। इसके बाद पता चला कि हेडमास्टर ही मौजूद नहीं है, तो अब दूसरे दिन दोबारा आना होगा। दूसरे दिन जब हेडमास्टर नामांकन के लिए तैयार हुए तो अनम की मां तैयार नहीं हुई क्योंकि अनम की मां को किसी ने कह दिया कि इतने बड़ी, 12 साल की हो गई है, अब क्या जाएगी विद्यालय पढ़ने? 

मुझे हाथ लगी मायूसी 

उस दिन अनम की मां उसे पहाड़ी पर लकड़ी लाने लेकर चली गई। मैं लगभग ढाई घंटे तक उनका इंतजार किया लेकिन वे नहीं आए, तभी अनम की भाभी ने चले जाने को कहा और आगे बताया कि अब वे दोनों शाम को आएंगी फिर उस दिन भी मुझे वापस आना पड़ा। मैं बहुत परेशान थी कि किस तरह से अनम का नामांकन करवाया जाए।

इस बात को मैं साक्षी दी को बोली तब उन्होंने कुछ बताया और कुछ सलाह निखत दी से भी मिली। मैं फिर तीसरी दिन भी उनके ही घर गई। रोज की तरह आज भी वही जवाब मिला। इसके बाद मैं बहुत मायूस हो गई थी। अब लग रहा था कि घर वापस लौट आना ही सही होगा लेकिन अनम की बात भी याद आ रही थी। 

दो घंटे के बाद सुना हां शब्द 

मैंने फिर उसके भाई को बुलाया और बहुत प्रयास के बाद लगातार दो घंटे के बाद हां शब्द सुनाई दिया। मेरे लिए यह मौका गंवाना संभव नहीं था। मैं तुरंत निखत दी को कॉल की और पूछी कि हेडमास्टर सर आएं हैं या नहीं। मुझे पता चला कि वे आ चुके हैं, तब मैं तुरंत अनम और उसके भाई को साथ लेकर विद्यालय पहुंची, जब तक वे दुकान से पेपर लिए तब तक मैं हेडमास्टर से बात करके रखी। 

अनम जब विद्यालय पहुंची तो अनम बस चारों तरफ देखे जा रही थी, जब मैं पूछी तो उसके भाई बताए कि वह पहली बार विद्यालय आई है। यह सुनकर मैं रो पड़ी क्योंकि अनम कि आंखों से आंसू निकल पड़ा। 

अनम के विद्यालय जाने की स्थिति को जानने के लिए मैं कुछ दिन बाद फिर विद्यालय गई। वहां मैंने देखा कि अनम रोज विद्यालय आ रही है। यह जानकर बहुत खुशी हुई कि मेरी मेहनत रंग लाई। 


No comments:

Post a Comment