Sunday, April 21, 2024

मैं - कविता

"मै"


मुझे नहीं बनना, किसी के समान

नहीं बने रहना भैया और सैंया की मेहमान!


मैंने खुद में अपना एक अलग अस्तित्व पाया है,

जैसे अपनी आजादी का झंडा अपनी चुनरी से लहराया है।


हाँ! बिंदिया, कंगना और यूं सजना-संवरना मुझे भाया है,

पर वक्त आने पर आतिश, बंदूक और तलवारें भी मैंने उठाया है।

मेरी आवाज़ मीठी जरूर है लेकिन,

अपनी चीख से खुद के अधिकार और सम्मान को भी बचाया है।

तारीख गवाह है,  हमारी ताकत से

मौत के मुंह में जाकर तुम्हें इस दुनिया में लाने का जज्बा,  एक नारी ने ही तो दिखाया है।


हमनें खुद भूखे रहकर, तुम्हें अपना खून पिलाया है।

इसलिए मैं कहती हूँ, मैंने खुद में अपना एक अस्तित्व पाया है।


तानिया, एलुमनाई

 


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