एक भीड़, दौड़ते-खेलते उत्साह से भरे बच्चे जो हर गतिविधि में भाग लेने के लिए पूरे जोश से भरे है और अपनी बारी के इंतज़ार में लगे हैं |
स्कूल के हर थोड़ी दूर पर बनी अलग-अलग गतिविधि के काउंटर पर अपना रजिस्ट्रेशन कराने के लिए लाइन में खड़े बाल उत्सव का आनंद ले रहे |
उस भीड़ में एक बच्ची सामने आकर बोलती है “भैया, हम भी भाग लेंगे”, मैंने पूछा “किसमें भाग लोगे?” तब तक पास खड़े एक बच्चे ने कहा “सर ई पागल है, आप जाइये” मुझे लगा ये मजाक कर रहा है या इसे चिढ़ा रहा है “मैंने फिर उससे पूछा “बोलो किस्में भाग लोगे?” फिर उस बच्चे ने बोला “सर इसका दिमाग ख़राब है, इसको रहने दीजिये” मुझे थोडा गुस्सा सा आया “मैंने उससे कहा, तुम ठीक हो ना-जाओ अपने काउंटर पर जाओ” | फिर जब मैंने उससे अलग-अलग गतिविधि के बारे में पूछा तो उसने चित्रकारिता में भाग लेने में अपनी रूचि दिखाई, उसे उस रूम में ले गया जिसमें चित्रकारिता हो रही थी | जब मैंने शिक्षिका से उसका नाम लिखने को कहा, वहां भी उपस्थित 4-5 बच्चे एक साथ उसे पागल-पागल कहने लगे और मुझे सलाह देने लगे की “सर ई तो पागल है इसका दिमाग ख़राब है- ये नहीं बना पायेगी इसको नहीं आता है|” मुझे बहुत गुस्सा आया मैंने सब को शांत रहने को और अपना पेंटिंग पर ध्यान देने को कहा | फिर उसे पेंटिंग बनाने के सारे-साधन दिए और मैं वहां से अपने गतिविधि के काउंटर पर चला आया|
मुझे आश्चर्य तो तब हुआ जब प्रदर्शनी के समय सब बच्चे अपना-अपना चित्र दिखा रहे थे मैं भी देख रहा था और जो बच्चे उसे पागल और न जाने क्या-क्या कह रहे थे उन सबसे उस बच्चे की पेंटिंग अच्छी दिख रही थी (तुलना एक सोच मात्र का था) और वहां पर भी उसके पेंटिंग को देख वे बच्चे हंस रहे थे |
इस पूरे दृश्य ने मुझे बहुत सोचने पर मजबूर किया, बच्चे जो आगे चल कर समाज की एक मजबूत कड़ी बनते है उनमें ये कैसी भावना जागृत हो रही है, कैसे समाज में सहभागिता की सोच को विकसित किया जायगा, कैसे हम बच्चों में फर्क न कर सभी के अन्दर की प्रतिभा को सराहा जा सकेगा | इसमें कोई शक नहीं की हर बच्चे के अन्दर अपनी एक अलग प्रतिभा है जिसे बस मौका देने की जरुरत है उसकी भागिता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है |
पंचायत सरारी गाँव में “i -Saksham द्वारा कराये जा रहे बाल उत्सव के अनुभव पर आधारित
अमन प्रताप सिंह
सदस्य I-Saksham