Thursday, March 30, 2023

पीटीएम में अभिभावकों ने गया लोकगीत


नमस्ते साथियों, मैं इन्दिरा बैच 9 की एडूलीडर हूं और मैं मुजफ्फरपुर की रहने वाली हूं। इस लेख के जरिए मैं आप लोगों से आज के हुए पीटीएम का अनुभव साझा कर रही हूं। 

आज के पीटीएम में अभिभावकों की उपस्कथिति कम थी और छठ पूजा की वजह से बच्चे भी कम आ रहे थे। हालांकि कम अभिभावकों में भी पीटीएम का अनुभव अच्छा रहा। सभी अभिभावक गतिविधि में भाग ले रहे थे। साथ ही उन्हें लोकगीत गाने का भी मौका मिला।

इसके बाद गणित में ठोस, चित्र और संकेत के माध्यम से बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं, इस पर उनकी समझ बन पाई। इस गतिविधि को करके भी अभिभावक काफी खुश हुए कि उन्हें नए तरीके सीखने के मौके मिले। 

हालांकि पीटीएम और भी अच्छा हो सकता था। जैसे  अभिभावक समय से आते और अधिकांश अभिभावक मौजूद रहते। मुझे एक चीज जो सबसे अच्छी लगी, वो थी कि मैंने आज उन्हें कुछ नई चीज सीखा सकी। साथ ही उन्होंने भी खुद के अंदर आत्मविश्वास जगाया और लोकगीत गाकर माहौल को हल्का किया। लोकगीत के जरिए हमने समझ बनाई कि अपनी संस्कृति से जुड़ाव होना अत्यंत आवश्यक है और साथ ही इसे जीवित रखना भी हमारा कर्तव्य है। 

अभिभावकों ने दी जानकारी कि घर पर पाठ दोहराते हैं बच्चे


नमस्ते साथियों, मैं मिसा भारती बैच 9 की एडुलीडर जमुई से हूं। आज मैं आप लोगों के साथ अपने पीटीएम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। 

आज के पीटीएम में 11 अभिभावक शामिल हुए। पीटीएम में आने वाले अभिभावकों को मैंने धन्यवाद कहा कि वे अपना कीमती समय निकालकर आए। इसके बाद हम लोगों ने मेडिटेशन किया और मेडिटेशन करके उन्हें भी काफी अच्छा लगा। 

इसके बाद हम लोगों ने ठोस चित्र और संकेत के माध्यम से पढ़ाई पर बातचीत की। अभिभावकों से यह बात निकलकर सामने आई कि हम यानी की एडुलीडर्स और शिक्षक जो भी विषय और पाठ बच्चों को स्कूल में पढ़ाते हैं, उसे वे घर जाकर अपने घर वालों के साथ साझा करते हैं। यह बात मुझे काफी अच्छी लगी। 

पीटीएम एक जरिया है, जिससे संवाद हीनता समाप्त होती है और बातचीत का दायरा विकसित होता है। देखा जाए बातचीत करने और एक दूसरे की परेशानियों को समझने से ही कई परेशानियों के हल निकल कर सामने आते हैं क्योंकि स्कूल में बच्चे शिक्षक के सामने होते हैं और घर पर ज्यादातर वक्त वे अपने अभिभावकों के साथ बिताते हैं। ऐसे में बच्चों के बारे में अभिभावकों को जानना और शिक्षकों को जानकारी देना एक दूसरे के लिए बहुत जरूरी है। ‌

अभिभावकों ने दिया बच्चों को नियमित स्कूल भेजने का वादा


पीटीएम द्वारा हमारे एडुलीडर्स बच्चों और अभिभावकों तथा शिक्षकों के बीच की दूरी को कम करने का प्रयास करते हैं साथ ही उन मुद्दों पर भी खुलकर बातचीत करने का वातावरण विकसित करते हैं, जो बच्चों के विकास के लिए आवश्यक है। इस कड़ी में एक अनुभव आपके लिए पेश है, जिसके जरिए आप जानेंगे हमारे एडुलीडर्स की मेहनत के बारे में। 

नमस्ते साथियों, मैं संचिता कुमारी बैच 9 की एडुलीडर हूं। मैं आज आप लोगों के साथ अपने पीटीएम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज के पीटीएम में कुल 8 लोग शामिल हुए। 

पीटीएम की शुरुआत में मैंने सभी अभिभावकों को धन्यवाद किया कि आप सभी अपना कीमती समय निकाल कर यहां आए। इसके बाद हमलोगों ने मेडिटेशन किया और उसके बाद हमने बच्चों की उपस्थिति पर बातचीत की, तो सभी अभिभावकों ने कहा कि हम अपने बच्चों को रोज स्कूल भेजेंगे और समय से भेजेंगे। 


इसके साथ ही अभिभावकों ने कहा, "आप हमारे बच्चों के लिए इतना कुछ करते हैं। छुट्टी के दिन भी इतना मेहनत करते हैं। इतनी दूर से आते हैं, तो हम सब एक कदम तो बड ही सकते हैं ताकि आपकी मेहनत रंग ला सके।"

यह सब बातें सुनकर मुझे बहुत ही खुशी मिली और सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि सभी अभिभावकों ने यह कहा, "आपके आने से हमारे बच्चों में बदलाव आया है। आप रहते हैं, तभी हमारे बच्चे स्कूल जाना चाहते हैं।" 

आज सभी अभिभावकों ने अपनी दिल की बात मुझसे साझा की। साथ ही उन सभी ने मेरे काम की भी तारीफ की। पीटीएम के द्वारा उम्मीद है कि आने वाले समय में हम सबने जिन मुद्दों पर चर्चा की है और जिस विषय पर अपनी समझ बनाई है, उसके बदलाव सामने निकल कर आएंगे।

Tuesday, March 28, 2023

जब पीटीएम के लिए अभिभावकों ने जुटाए लोग



अपने पीटीएम के अनुभवों को कलमबद्ध करते हुए हमारी एडुलीडर ने अपना एक अनुभव साझा किया है। इस अनुभव के जरिए उन्होंने बताने का प्रयास किया है कि अभिभावक किस प्रकार अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हो रहे हैं। 

मैं प्रियंका कुमारी, बैच 9 की एडुलीडर हूं। आज मैं पीटीएम का अनुभव साझा कर रही हूं। आज मेरे स्कूल में पीटीएम था। जैसे की सभी जान रहे हैं कि अभी काम का समय है, तो सभी अभिवावक अपने अपने काम करने के लिए चले जाते हैं। 

ऐसे में मुझे बहुत ज्यादा मुश्किल हुई। सभी आभिवावकों को पीटीएम में स्कूल लाना। इसके लिए हम दोनों एडुलीडर सभी के घर-घर जाकर सभी को बुलाना पड़ा लेकिन कोई अभिभावक नहीं आए। अब ऐसे में हम बहुत उदास हो गए। 

सभी शिक्षक हम पर हंस रहे थे। वे सब बोलने लगे कि अभी काम का समय है इसलिए कोई नहीं आयेंगे। मैंने देखा कि एक अभिवासक आए और उन्हें भी 30 मिनट तक सभी का इंतजार करना पड़ा। कुछ देर के बाद उन्होंने कहा, "हर महीने पीटीएम करने की क्या जरूरत है? इससे क्या होता है? तुम मुझे बताओगी?" 

उनके इस सवाल पर मैंने उन्हें पीटीएम की जानकारी दी। जैसे बच्चों के स्कूल आने के बारे में जानकारी देना, उनके पढ़ाई से संबंधित जानकारी देना, बच्चों , अभिभावक और शिक्षक के बीच की दूरी को कम करना। मेरे इतना कहने के बाद उन्होंने कहा, "हमारे बच्चे के लिए तुम सब इतना करती हो और हम एक घंटा नहीं रहेंगे? हम जरूर रहेंगे।" इसके बाद उन्होंने कहा, "रुको हम सबको बुलाते हैं और देखते हैं कि कैसे सब नहीं आयेंगे।"

इसके बाद उन अभिभावक ने 8 महिला और 2 पुरुष को बुलाकर ले आए और फिर पीटीएम शुरू हुआ। मैंने उन्हें दिल से शुक्रिया कहा कि उन्होंने पीटीएम के लिए मेरी इतनी मदद की। 


Monday, March 27, 2023

जब मुझ पर लगा निजी जानकारी बेचने का आरोप

निजता का अधिकार हर किसी को है और इसके प्रति जागरूक रहना तथा अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहना भी बेहद जरूरी है। हालांकि अब ऐसा हो गया है कि लोग एक दूसरे पर शक करने लगे हैं। हमारे एडुलीडर्स का काम जितना चुनौतीपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा उनकी तैयारी भी चुनौतीपूर्ण है। इसी कड़ी में हमारी एडुलीडर प्रीति कुमारी ने अपना अनुभव साझा किया है।
                      
मेरा नाम प्रीती कुमारी है और मैं गया की रहने वाली हूं। आज मैं आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं सिंगपुर में सर्वे करने गई थी, तो वहां मुझे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। 

एक घर में जब मैं सर्वे करने गई, तो उन्होंने डाटा मतलब कुछ जानकारी देने से मना कर दिया। इसके उलट उन्होंने मुझसे बहुत तरह के सवाल किए। जैसे आप लोगों की निजी जानकारियां बेच देते हैं, इससे पैसे कमाते हैं इत्यादि।

मैंने किया समझाने का प्रयास 

हालांकि मैंने उन्हें बताया कि आप जो कुछ भी बोल रहे हैं, उसमें बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है। हम बच्चों की शिक्षा पर काम करते हैं, जो बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ पा रहे हैं या जिनकी पढ़ाई बीच में छूट गई है, वैसी बच्चियों को स्कूल में नामांकन करवाते हैं। 

मेरे इतना कहने के बाद वे बोलने लगे कि ऐसा नहीं हो सकता है कि आप लोगों की निजी जानकारियां नहीं बेचे। मैंने उन्हें बार बार समझाया, कई बार अपने काम की जानकारी दी, बच्चियों के नामांकन के बारे में बताया मगर उन पर कोई असर नहीं हुआ। 

अन्य अभिभावक ने की सहायता 

कुछ देर तक हमारी बात चलती रही कि तभी कुछ दूरी पर खड़े एक अभिभावक ने कहा, "ये सभी लोग बच्चियों का नामांकन कराते हैं। ये किसी की निजी जानकारियां नहीं बेचते इसलिए इन पर भरोसा किया जा सकता है।"  

इसके बाद जिस अभिभावक से मेरी बात हो रही थी, उन्होंने हमारी पहल के बारे में जाना और समझा। इसके बाद उन्होंने अपनी जानकारी हमारे साथ साझा की। 

उस दिन मुझे अहसास हुआ कि अगर दूसरे अभिभावक ने उस दिन हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो शायद पहले अभिभावक ने हमारे साथ जानकारी नहीं साझा की होती। 

साथ ही उस दिन मुझे अहसास हुआ कि भरोसे का मतलब क्या होता है क्योंकि कहीं न कहीं आजकल लोगों के अंदर शक का बीज रह गया है। ख़ैर, मेरी मेहनत का ही फल रहा कि मेरा काम नहीं रुका। इसके अलावा इससे लोगों की जागरूकता के बारे में भी समझ आया कि अब वे अपनी निजी जानकारी को लेकर भी कितने जागरूक हो चुके हैं। 


मुझे एहसास हुआ कि चुप रहना है कितना मुश्किल

सभी साथियों ने वापस से ‘लड़का कौन-लड़की कौन’ कहानी पढ़ी, जिसे कमला भसीन ने लिखा है। हमने जेन्डर के सेशन में बार-बार कमला भसीन की लेखनी का इस्तेमाल किया है। वो चाहें उनकी लिखी कहानियां 'सतरंगी लड़कियां' हो या उनके स्वर में बोली गई कविताएं 'मुझे पढ़ना है,' हर बार वो आपको सोचने के लिए जैसे न्योता देती हैं।

इसका असर एडु-लीडर्स के छोटे-छोटे समूह में भी दिखा, जहां सभी मानों सभी गहरे उतर कर खुद को, परिवार को और समाज को वापस से समझने की कोशिश में जुटी थी, जिस समूह का मैं हिस्सा बना वहां यह बिल्कुल स्पष्ट दिख रहा था। राखी ने अपने विद्यालय का परिचय दिया कि कैसे "मेरे स्कूल में पहले लड़का और लड़की अलग-अलग बैठते थे। मैंने प्रिन्सपल सर से बात कि और बताया कि सर मुझे इस तरीके को बदलना है और आज यह हो पा रहा है।"

खेल में भी भेदभाव 

रोजी ने भी अपने अनुभव में इस भिन्नता को सामने रखा और एक घटना साझा कि "खेलने के समय जब लड़कियों ने कैरम बोर्ड पर खेलने से मना कर दिया क्योंकि वहां लड़के पहले से खेल रहे थे। मैंने कहा चलो उनके साथ ही खेलते हैं, तो सबने शुरुआत में तो मना कर दिया मगर जब मैंने कहा कि मैं भी चलूंगी तो सब तैयार हो गई।"   


निकिता ने बहुत विश्वास से कहा, "मैं अपने गांव की अकेली लड़की हूं, जो घर से बाहर निकल कर सारा काम करती है और आज गाँव के भी बहुत सारे लोग अपना काम करवाने के लिए मेरे पास आते हैं।" एक और सुखद अनुभव रहा। दो साथियों के एक ही विषय पर अलग-अलग विचार को देखकर आया। यह विश्वास और गहरा हुआ कि हम मिलकर एक ही विषय पर अलग-अलग सोच रखने और इसे सामने लाने का माहौल बना पा रहे हैं।

 

क्षमता का अभाव नहीं 


एजेंसी पर निभा दी ने कहा, "मैं बोलती कम हूं मगर मुझे पूरा विश्वास है कि मैं अपने जीवन के लक्ष्यों को पा सकूंगी।" वहीं किसी ने इतिहास विषय तो किसी ने घर से निकल कर आज सेशन में शामिल होने की बात को अपने एजेंसी से जोड़ी। मेरी बारी आई कि एजेंसी की और पांच साथी अपने सफर की शुरुआत को एक साथ शुरू किए। 


कुछ समय में ही धर्म, जाति, शिक्षा, काम, परिवार, आय, स्थान और दूसरे अन्य कारणों ने कुछ साथियों को बहुत आगे तो कुछ साथियों को बहुत पीछे खड़ा कर दिया। मन में खयाल आया ये यही तो आस-पास हो रहा है। क्षमता का अभाव नहीं है बल्कि इस क्षमता को प्रदर्शित करने के मौके कम है। 


और मुझे बोलना पड़ा


साथ ही एक अवलोकन स्वयं को लेकर भी हुआ। आज जब सेशन में बैठा तो मन में यह ख्याल था कि आज मैं केवल सुनूंगा, कुछ बोलूंगा नहीं चाहे कुछ भी हो। कुछ समय तक मैं यह करता भी रहा। मन में जब भी ख्याल आते कि कुछ बोलूं तो एक बार स्वयं को समझाता "नहीं आज चुप रहना है।" मगर बहुत देर तक यह हो नहीं सका। 


एजेंसी की बात आई और मैं वापस से बोलने लगा। कुछ ऐसा जिसके लिए मैं अपने आपको लगातार मना कर रहा था। एजेंसी का विषय है, तो इसी से जोड़ना सही होगा और मुझे वाकई लगता है कि मैं यह कर फसिलटैटर की एजेंसी को प्रभावित करता हूं और इससे बचना चाहिए। मेरे लिए आगे बढ़ने को लेकर अगली बार यही एक सीख होगी और आशा होगी कि मैं बेहतर कर पाऊं।



श्रवण ने अपने दो दोस्तों के साथ वर्ष 2015 में i-Saksham संस्था की शुरुआत की । यह वर्ष 2016 के Acumen फ़ेलो और वर्ष 2012-15 तक प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो रहे हैं , जहां इन्होंने जमुई (बिहार) मे जिला प्रशासन के साथ मिलकर विभिन्न योजनाओं मे अपना योगदान दिया है । इससे पहले इन्होंने 4 साल विभिन्न स्तर पर microfinance संस्थानों मे कार्य किया है ।  इन्होंने Symbiosis Institute of International Business से स्नातकोत्तरऔर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कृषि विषय मे स्नातक की पढ़ाई की है ।

Saturday, March 25, 2023

हर काम को फायदे के तराजू में तौलना गलत है

"मुझे क्या लाभ होगा?" मैं जब भी बच्चियों के एडमिशन के लिए बात करने जाता हूं, तो यह सवाल मुझसे अकसर पूछा जाता है। इस सवाल को केंद्र में रखते हुए, आज मैं आपसे अपने अनुभव के सहारे कुछ साझा करना चाहता हूं। 

मेरा नाम धर्मराज कुमार है और मैं जमुई जिले का रहने वाला हूं। मैं आई सक्षम में कार्यरत हूं और हमारी संस्था का उद्देश्य वैसे बच्चों की पहचान करना और उन्हें स्कूल से जोड़ना है, जिन्होंने किसी कारणवश स्कूल जाना बंद कर दिया है।

इस क्रम में मैं उनके माता-पिता से स्कूल न जाने का कारण पता करता हूं और उस समस्या का समाधान करके उन बच्चों को स्कूल भेजने के लिए उनके माता-पिता को प्रेरित करता हूं। 

नामांकन है हमारा उद्देश्य

इसी दौरान यदि वैसे बच्चे मिलते हैं, जो सात-आठ साल के हैं और अभी तक उनका स्कूल में नामांकन नहीं हुआ है, तो उस बच्चे का उनके माता-पिता से मिलकर नामांकन करवाना ही हमारा उद्देश्य है और उद्देश्य लाभ या हानि से परे होते हैं, इसलिए इसमें लाभ या हानि की कोई बात नहीं है। 

अगर आपके बच्चे स्कूल जा रहे हैं, तो आपसे हमारी संस्था विनती करती है कि आप हमारे इस मिशन में सहयोग करें। सर्वे के दौरान माता पिता का नाम, बच्चों का नाम और वे किस वर्ग में पढ़ रहे हैं या नहीं इतनी सी जानकारी हमें दे दिया करें ताकि उन बच्चों का स्कूल में दाखिला हो सके। 

लड़कियों की शिक्षा महत्वपूर्ण 

उदाहरण स्वरूप मान लिया जाए मैंने इस गांव के 100 बच्चों का सर्वे किया, जिसमें हमने पाया कि 90 बच्चे स्कूल जा रहे हैं। केवल 10 ऐसे बच्चे हैं, जो किसी परेशानी के कारण स्कूल नहीं जा रहे हैं। बस मुझे उन 10 बच्चों पर काम करना है और उनमें भी खासकर लड़कियों के लिए काम करना है। 

क्या आप नहीं चाहते हैं कि आपके गांव के सभी बच्चे स्कूल जाए? वे भी पढ़े लिखे और अपने जीवन में अपना नाम कमाएं? अगर इसके लिए मैं थोड़ी सी जानकारी आपसे मांग रहा हूं ताकि मैं उन बच्चों को आसानी से पहचान कर सकूं और स्कूल में नामांकित करा सकूं, तो मुझे विश्वास है कि अब आप मेरी बातों को अच्छी तरह से समझ सकेंगे और जानकारी साझा करेंगे। 

न तौलें किसी तराजू से

इन सबके बावजूद यदि आपको लगता है कि इससे मुझे कुछ फायदा होगा तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि इससे मुझे केवल आत्मसंतोष मिलेगा कि मैंने बच्चियों को स्कूल से जोड़ा और उन्हें स्कूल तक पहुंचाने में सहयोग किया। 

मैं केवल आपसे विनती ही कर सकता हूं कि आप सर्वे के दौरान मेरा सहयोग करें और हर काम को फायदे के तराजू में तौलना बंद कर दें।

जमालपुर में आई सक्षम ने मनाया आठवां स्थापना दिवस

आई सक्षम


आई सक्षम स्वयं सेवी संस्था ने शुक्रवार, 24 मार्च 2023 को जमालपुर स्थित राजकमल हॉल में आठवां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया। इस कार्यक्रम में धरहरा और जमालपुर प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र से पहुंची लड़कियां एवं महिलाओं ने  सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। मंच का संचालन साक्षी कुमारी ने की। 

वहीं मुख्य अतिथि जामालपुर प्रखंड, मुंगेर जिला जीविका की बी पी एम बबिता कुमारी ने कहा कि जिस तरह से संस्था महिलाओं  को शिक्षा के माध्यम से लोगों में जीवन जीने का कौशल विकसित कर रही है, वो दिन दूर नहीं जब सामाज की हर एक नारी अपने पैरों पर खड़ा होगी।


वहीं मोना दीदी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए काफी भावुक हो गई। उन्होंने कहा कि 22 वर्षों से उनकी पढ़ाई छूटी हुई थी लेकिन आई सक्षम के प्रयास से वे पुनः अपनी पढ़ाई शुरू कर पाईं और प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हुई। वहीं बबिता, प्रेरणा और मनीषा द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया गया। 

इस अवसर पर समाज को जागरूक करने वाले नाटक का मंचन भी किया गया। कार्यक्रम के दौरान वहां मौजूद शिक्षक आई सक्षम की गतिविधियों को देखकर मंत्रमुग्ध रह गए। गौरतलब है कि आई सक्षम एक ऐसी स्वयं सेवी संस्था है, जो महिलाओं तथा लड़कियों में नेतृत्व गुणों को निखारता है और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में सहयोग करता है। 


एडुलीडर अपने चिन्हित विद्यालय में जाकर तीन घंटे बच्चों को शिक्षा देने में सहयोग करती हैं। आई सक्षम बच्चों को गुणवत्तापूर्ण एवं गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ युवाओं को रोजगार के प्रति सक्षम बनाती है। 

वहीं आई सक्षम की वर्षगांठ के अवसर पर सेवा संस्था से आई पूजा ने कहा कि संस्था जिस तरह से निराश हो चुकी ग्रामीण महिलाों में आशा का किरण जगा रही है और उनके अंदर विश्ववास जगा रही है, इससे यह बात तो साफ है कि आई सक्षम द्वारा आने वाले समय में कई एडुलीडर तैयार होंगे। 


आई सक्षम की वर्षगांठ के अवसर पर टीक लिंक प्रतियोगिता में  राष्ट्रीय स्तर पर चयनित ग्रामीण बच्चों को तानिया द्वारा पुरस्कृत किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित कनक, रोजी, राजमणी, निधि, आयुष आनंद, राहुल, इशिका और रश्मि ने बच्चों को शिक्षित किए जाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी।


Friday, March 24, 2023

स्कूल जाने से क्या होगा फायदा?

हमारे एडुलीडर्स हर रोज चुनौतियों का सामना करते हैं। कभी कभी चुनौती इतनी बड़ी हो जाती है कि उसे संभालना और उससे लड़ना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इस कड़ी में आप जानेंगे कि एक एडुलीडर ने किस प्रकार अपने अनुभव साझा किया और एक बच्ची को नामांकन की सीढ़ी से जोड़ा। वे लिखती हैं-

मेरा नाम निभा है और मैं एडुलीडर हूं। मैं जमुई की रहने वाली हूं। मैं आज कुछ बातें आप लोगों के साथ साझा करने जा रही हूं। 

कुछ दिनों पहले मेरे साथ फील्ड में बहुत से सवाल पूछे गए। हालांकि मैं सभी सवालों के जवाब देते गई लेकिन यह मेरे अनुभवों में शामिल हो गया क्योंकि  

स्कूल जाने से क्या होगा फायदा?

मैं अपने दैनिक कामों के सिलसिले में घरों का निरीक्षण करने निकली थी। निरीक्षण में मुझे बच्चों की पढ़ाई लिखाई, उनके नामांकन की स्थिति और स्कूल जाने की स्थिति को जांचना था। हालांकि कुछ घरों में इस दौरान कोई परेशान नहीं हुई मगर एक घर ऐसा था, जहां मुझे काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 

उस घर में सात परिवार थे। तीन दंपति और एक मुखिया। यानी उस घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति। उन तीन दंपति में से 

मैंने पहले तो बच्चे के पिता से बात की और उनको बच्चे की शिक्षा की अहमियत के बारे में बताया। जब हम दोनों बात कर ही रहे थे, तब ही बहु (यानी मैं जिससे बात कर रही थी, उनकी पत्नी) आई और आते ही उन्होंने कहा, "हमको क्या फायदा होगा? मेरे बच्चे पढ़ाई करे या ना करे? अगर पढ़ाई करते हैं, तो हमको कुछ लाभ होगा तो आपको बताऊंगी और तब ही बच्चों को स्कूल भेजूंगी।" 

सरकारी सुविधाओं की दी जानकारी

मैंने उन्हें बहुत समझाया कि हम शिक्षा से जुड़े काम कर रहे हैं लेकिन फिर भी वे नहीं मानी और अपने पति को भी कहने लगी कि इन्हें जाने के लिए कहो। हालांकि कुछ देर बाद ही उन्होंने अपनी बात को पलटते हुए कहा, "घर के बाकी बच्चे पढ़ने जाते हैं लेकिन मुझे इसमें कोई फायदा नजर नहीं आता।" इसके बाद मैंने घर के बाकी सदस्यों से भी बातचीत की ताकि उन्हें समझा सकूं और वे अपनी बच्ची को पढ़ने के लिए भेजे। 

उसके बाद बाकी सदस्यों से भी बातचीत की और घर के मुखिया को भी सम्मलित किया। उसके बाद उनकी सोच में थोड़ा बदलाव हुआ। मैंने उन्हें सरकारी योजनाओं के बारे में भी बताया और बाकी सुविधाओं की जानकारी दी। 

उसके बाद उन्होंने आश्वासन दिया कि वे अपनी बच्ची का नामांकन कराएंगी। उनकी बच्ची अभी 5-6 साल की है और बहुत प्यारी है। उम्मीद है कि अब उसे स्कूल की पोशाक में देखने का मौका मिलेगा। 


Wednesday, March 22, 2023

धन्यवाद केवल शब्द नहीं बल्कि एक भावना है

हमारे एडुृलीडर्स हर रोज कुछ नया करने का प्रयास करते हैं और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं। इसी कड़ी में बैच-9 की सपना ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि धन्यवाद देने का अनुभव कैसा हो सकता है? साथ ही उनके अनुभव को पढ़ते हुए, आप भी महसूस कर पाएंगे कि धन्यवाद केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक अनुभव है। वे लिखती हैं-


"हेल्लो दोस्तों , आज मैं आपको आज का फील्ड वर्क का अनुभव बताना चाहती हूं। आज मुझे उन अविभावकों को धन्यवाद  बोलना था, जो अपने बच्चों को एवं आई-सक्षम  पर भरोसा करतेे हैं। सच बताऊंं तो मुझे काफी अच्छा महसूस हुआ और ये इस तरह का अनोखा अनुभव था क्योंकि सामान्यतः लोग धन्यवाद करते तो हैं, लेकिन उसे महसूस या उसके भाव को समझ नहीं पाते हैं।" 


अभिभावक करते हैं प्रोत्साहित 


"मैंने जितना हो सके, उतने अभिभावकों से मिल कर उन्हें धन्यवाद दिया। अभिभावक अकसर कहते हैं, आप इतने अच्छे से पढ़ाते हैं एवं बच्चों को अच्छे संस्कर देते हैं। आज के समय में जब शिक्षा एक व्यपार बन गया है, ऐसे में एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के लिए इतनी मेहनत करना वाकई सराहनीय है।" 


दिव्यांशु की मम्मी का कहना था, "आपके यहां मरा बच्चा अच्छे से पढ़ता है। पहले तो इतना बदमाशी करता था कि मैं तंग आ जाती थी लेकिन अब मेरा बेटा अच्छे से रहता है। मेरी बात भी सुनता है एवं घर के बड़े-बुजुर्गों की इज्जत भी करता है। साथ ही घर में भी किताब निकाल कर पढ़ता है। मुझे बहुत  खुशी होती है कि मेरे बच्चे में बदलाव आ रहा है।" 


बच्ची करती है आपकी नकल 


प्रियांशु की मम्मी का भी कहना था कि मेरी बेटी आपकी नकल करके, आपकी तरह पढ़ाने की कोशिश करती है कि मैडम ऐसे पढ़ाती हैं, मैडम ऐसे समझाती हैं इत्यादि। 


अब अगर किसी भी व्यक्ति को इतना सराहा जाए, तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह भी अपनी तरफ से कृतज्ञता व्यक्त करे। यही कारण था कि मैं सभी अविभावकों  को धन्यवाद पत्र दिया। मेरी इस पहल से वे काफी खुश हुए। साथ ही अब हमारे बीच ऐसा रिश्ता बन गया है कि ऐसा लगता है कि मैं भी उनके परिवार की सदस्य हूं। 


किसी को प्यार और सम्मान से अगर धन्यवाद बोला जाए, तो एक ऐसे रिश्ते का निर्माण होता है, जिससे रिश्तों की डोर मजबूत हो जाती है। साथ ही मन में भी एक खुशी का भाव उतपन्न होता है, जो आपको और ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे ना  केवल दूसरों को बल्कि स्वयं को भी अच्छा महसूस हो सके।


खुशियां बड़ी या छोटी नहीं बल्कि 'खुशी' होती है

 



हेलो दोस्तों, आज मैं आपके सामने छोटी सी कहानी साझा करना चाहती हूं। आज मुझे पता चला कि अगर दृढ़ विश्वास हो, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

मेरी मुलाकात एक 15 साल के बच्चे से हुई है, जो पूर्ण रूप से दिव्यांग है। एक बार फील्ड विजिट के द्वारा उससे मुलाकात करने का मौका मिला। उसकी मम्मी ने मुझे बताया कि दीदी हम बहुत गरीब हैं। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि एक व्हीलचेयर खरीद सकूं। 

साथ ही अभी तक सरकारी योजना का लाभ तक नहीं मिला है। अगर आप कुछ कर पाए तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी। 

और शुरू हुआ कुर्सी का संघर्ष 

यह सब देखने के बाद मैंने सोचा कि कम से कम मैं इस बच्चे को कुर्सी तो दिला कर ही रहूंगी। मैं हर जगह गई, जहां से मुझे कुर्सी मिल सकती थी या कोई संभावना बन जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हो सका। 

इसके बाद मैंने आदित्य सर से बात की। हर लोगों से मदद मांगी मगर अंततः सर के बताए हुए मार्ग पर चल कर हमारे i-saksham के एक साथी मनोज जी की मदद से आज साथ महीनों बाद कुर्सी मिल ही गई। कुर्सी मिलने के बाद बच्चे की खुशी देखते ही बन रही थी। 

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि अपने प्रयास को सही दिशा में करना चाहिए। साथ ही हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और जितना हो सके लोगों को जागरूक करना चाहिए। साथ ही मुझे भी बहुत सुकून मिला कि मैंने अपने तरफ से प्रयास किया और उसका फल भी मिला। 


Monday, March 20, 2023

रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता


नकारात्मक खबरें हर जगह से मिल जाती हैं लेकिन शोध बताता है कि सकारात्मक खबरों को जानने से ना केवल मनुष्य का आंतरिक विकास होता है बल्कि उसे अच्छा भी महसूस होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में विकास होता है। 


आज हमारे एडुलीडर जमीनी हकीकत को सामने लाते हुए एक बदलाव और सकारात्मक खबर भी साझा कर रहे हैं, जो ना केवल आपको बल्कि हर उस बच्ची के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जिनके लिए पढ़ पाना एक चुनौती है। 


मैं धर्मराज कुमार, आप सभी के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। मैं जमुई जिले में स्थित लठाणे नाम के एक गांव में बच्चे के शैक्षणिक स्थिति के बारे में जांच करने गया था। उसी दौरान मेरी मुलाकात कुछ महिलाओं से हुई। जब मैंने उनसे उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछताछ की तो कुछ बातें निकल कर सामने आई, जिसे सुनकर मुझे काफी आनंद आया और थोड़ी मायूसी भी हाथ लगी। बातचीत में पता चला कि उनकी एकमात्र पुत्री हैं, जिनका नाम संजना है।


उन महिला ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है। उनका घर खपरैल का है और वह भी टूटा फूटा हुआ है। जब मैंने पूछा "क्या आपकी लड़की स्कूल पढ़ने जाती है?" मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, "यह सब मत पूछिए। मेरी बेटी तो बोलती है कि अगर रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता।” 


मैं स्कूल नागा नहीं करुंगी


उन्होंने आगे कहा कि आप जाकर स्कूल में सभी शिक्षक से पूछ सकते हैं कि मेरी बेटी एक भी दिन क्लास से अनुपस्थित नहीं रहती है। हालांकि मैं ही किसी-किसी दिन बोलती हूं कि आज स्कूल नहीं जा। घर में बहुत काम है। तो मेरे इतना कहने पर वह बोलती है कि “मां, मैं स्कूल से जाऊंगी। आपका सारा काम भी कर दूंगी। अगर मैं नागा कर दूंगी तो आगे फिर मुझे विषय समझने में दिक्कत होगी।”  


अपनी बेटी की ऐसी लगन देखकर मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं बोलती हूं। मैं भी सोचती हूं कि ठीक है, जब तुम्हारा मन पढ़ाई में है, तो पढ़ो। 


मां को है भविष्य की चिंता 


अपनी बेटी के लिए एक मां की ऐसी सोच जानकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कहीं ना कहीं बदलाव की बयार बह रही है। हालांकि जाते-जाते मैंने उन्हें कहा, "आपकी बेटी हीरा है। इसे खूब पढ़ाइए।" मेरे इतना कहने पर उस महिला ने फिर मुझसे कहा, "मुझे दुविधा है कि पता नहीं कि मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा पाऊंगी भी या नहीं।" 


"तब मैंने उनकी आशंका को कम करते हुए कहा, "मेरा विश्ववास है कि अभी आपको मैट्रिक तक इसके पढ़ाई के खर्चे  के बारे में नहीं सोचना होगा।  स्कूल से पोशाक, किताब, छात्रवृत्ति यह सभी मिलते रहेंगे। इसके अलावा थोड़ा बहुत कॉपी-कलम की जरूरत होगी, जिसे आप जुटाने में सक्षम होंगे। साथ ही समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।" 


कुल मिलाकर मुझे अपनी पहल और मेहनत पर बहुत नाज हुआ कि कम से कम लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। हालांकि अभी भी ऐसे कई हिस्से होंगे, जहां बदलाव की दरकार है लेकिन मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर इसे भी हासिल किया जा सकता है। 


Saturday, March 18, 2023

प्रियंजलि: साप्ताहिक सेशन में हमने अपनी ऊर्जा को मापा, एडुलीडर एवं बड्डी के आशाओं पर भी हुई बातचीत

नमस्ते साथियों, 

मैं प्रियंजलि कुमारी, बैच 8 की एडु लीडर हूं। मैं आशा करती हूं कि सभी साथी स्वस्थ होंगे। 

आज मैं दिनांक 17 /3/2023 दिन शुक्रवार को सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा करने जा रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी साथी समय से पहुंचे और सही समय से सेशन की शुरुआत हुई। मैं आज के सेशन के उद्देश्य को अच्छी तरह से जान पाई और Buddy के stakeholder के बारे में भी जान पाई। 

साथ ही मैंने एडु लीडर और बड्डी की उस कड़ी को भी महसूस किया कि एक दूसरे से हमारी क्या आशा हो सकती है। इस बारे में मैं निम्नलिखित बिंदु साझा करना चाहती हूं। 

 1. बड्डी एडु लीडर के अभिभावकों से मिले।
 2. बड्डी एडू लीडर्स को प्रोत्साहित करें।
 3. व्यक्तित्व विकास पर बातचीत।

एक बड्डी की एडु लीडर्स से आशा 

1.एडू लीडर समय से कार्य करें।
2. मानसिक विकास पर बात करें।
3. अनुभव साझा करें।
   
इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों उस रंग में थे, इस पर भी बातचीत हुई जैसे कि सभी साथी ने पीले रंग में थे। जिसका अर्थ है, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद।

उसके बाद ग्रुप में बैठकर एक समूह के रूप में हमें क्या करना चाहिए इसके बारे में बातचीत हुई। आज का सेशन हमारे लिए बहुत अच्छा रहा, बहुत कुछ सीखने को मिला। 

कोमल: जब मैंने पहली बार डिब्रीफ कराया और ब्लैक बोर्ड पर लिखा

 हमारी एडु लीडर कोमल ने अपने साप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि उनकी समझ और सोच किस प्रकार विकसित हुई। इतना ही नहीं उन्होंने हमारे साथ यह भी साझा किया है कि उन्होंने जब पहली बार डिब्रीफ कराया और पहले बार ब्लैक बोर्ड पर लिखा तब उनका अनुभव कैसा था? 

आज की सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा कर रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी समय से पहुंच गए तथा आज के सेशन के उद्देश्य को जाने। साथ ही पिछले सेशन पर बातचीत हुई। जैसे- स्टेकहोल्डर पर और अच्छे से समझ बना पाए तथा ग्रुप में भी स्टेकहोल्डर मैट्रिक बनाएं, जिससे काफी अच्छे समझ बन पाई।

उसके बाद इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों थे, इसपर बातचीत हुई जिसमें मैं पीले रंग में थी। इस पीले रंग का अर्थ हुआ, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद। 

उसके बाद फिर से हम सब ग्रुप में बैठे और एक बड्डी को एडु लीडर से क्या आशा है तथा एक एडु लीडर को बड्डी से क्या आशा है, इसके बारे में समझ बनाने का प्रयास किया गया। 
 
आज के सेशन की सबसे अच्छी बात यह रही कि मुझे डिब्रीफ करने का मौका मिला और बोर्ड पर भी लिखने का मौका मिला यह पहली बार था जब मैं बोर्ड पर लिख रही थी। ब्लैक बोर्ड पर लिखने के दौरान मैं थोड़ी सी नर्वस और डरी हुई थी लेकिन सब के उत्साहवर्धन के कारण मैंने इससे भी बखूबी किया। साथ ही डिब्रीफ कराने के दौरान मैंने भी अपने अंदर कुछ सकारात्मकता को महसूस किया और इससे मेरी संवाद करने की स्थिति में भी सुधार हुआ।

मात्र 9 साल की शिक्षिका जो पढ़ाने के नहीं लेती है पैसे, पूछने पर देती है ये जवाब


हम आए दिन कई खबरें देखते हैं, लेकिन उनमें सकारात्मक और प्रेरणा बहुत कम दिखाई पड़ती है। यहां तक कि आज भी कई खबरें या चीज़ें लोगों के सामने नहीं आ पाती। 

कुछ इसी तरह का उदाहरण आप यहां पढ़ सकते हैं। एक बच्ची जो खुद मात्र 9 साल की है, और उसके खुद के अभी पढ़ने की उम्र है, वह बच्ची अपने गांव के अन्य बच्चों को भी पढ़ा रही है। पूछने पर बड़ी शालीनता से जवाब भी देती है। इसे हमारी बड्डी राजमणि ने साझा किया है। 

आइए अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हैं और राजमणि की कलम से जानते हैं, कुछ करने की जब लगन हो, तब बदलाव को लाया जा सकता है। 

दोस्तों, मैं आप सभी के साथ सपना बैच -9 के क्लासरूम की एक प्यारी सी बच्ची प्रियांशु कुमारी के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूं। 

प्रियांशु चौथी कक्षा में पढ़ती है और वह मात्र 9 साल की है, जगदंबापुर फरदा की रहने वाली है। 

प्रियांशु के अंदर बहुत सारी आशाएं हैं। इस बच्ची को सपना सुबह में 6:30 से 8:30 बजे तक पढ़ाती है। इसके बाद प्रियांशु स्कूल चली जाती है और 3:00 बजे स्कूल से पढ़कर वापस घर आती है। 

घर आकर खाना खाती है और अपने आसपास के बच्चे को घर जाकर बुलाने जाती है। आप सोच रहे 
होंगे कि यह बच्ची सबको खेलने के लिए बुलाती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बच्चे आसपास के बच्चों को पढ़ाने के लिए बुलाती है। 

इसके बाद जब 5 से 6 बच्चे इकट्ठा हो जाते हैं, तो यह प्रतिदिन उन बच्चों को 4:00 बजे से पढ़ाती है। यह सिलसिला हर रोज चलता है।

बच्चों के साथ जमीन पर बैठना 

प्रियांशु के पढ़ाने का तरीका बिल्कुल उसकी शिक्षिका
सपना के जैसा है। साथ ही वह बच्ची बच्चों के साथ जमीन पर बैठती है। 

प्रियांशु सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाती है। बाल गीत या कोई गतिविधि करवाती है। बच्चे को अलग-अलग ग्रुप में बैठा कर उनको क्लास के अनुसार पढ़ाने की कोशिश करती है। साथ में t.l.m. का इस्तेमाल भी करती है। 
चूंकि प्रियांशु के पास चार्ट पेपर और कलर नहीं है इसलिए वह कॉपी के कागज को फाड़ कर उसका t.l.m. बनाती है और घर के दीवार में अलग-अलग जगह लगा देती है। 

प्रियांशु केवल उन्हीं बच्चों को पढ़ाती है, जिसका स्तर उनके स्तर से नीचे हो ताकि उनको पढ़ाने में बहुत आसानी लगे। 

मां को दिया धन्यवाद पत्र

यह जानकारी मुझे उनकी मम्मी से पता चली, जब मैं शनिवार को कमेटी में गई थी। मैंने प्रियांशु की मम्मी को धन्यवाद पत्र भी दिया क्योंकि कहीं न कहीं उन्होंने भी अपनी बेटी की पहचान गढ़ने में भूमिका निभाई है।

इसके बाद मैंने प्रियांशु से भी मुलाकात की और कुछ सवाल पूछे, "प्रियांशु, आप बच्चों को क्यों पढ़ाती हैं? कैसे पढ़ाती हैं?" इस पर प्रियांशु ने कहा, "दीदी, मैं आपके यहां से जो पढ़ कर आती हूं और जो सीखती हूं उसी को मैं अपने घर के आस-पास के छोटे बच्चे को पढ़ाती हूं।"

"जो मुझे समझ में नहीं आता है, तो मैं आपके पास पढ़ने के लिए जाती हूं। वहां क्लास रूम में बहुत सारे चित्र बने हुए हैं और क्लास में जो भी t.l.m लगा हुआ है, उसको मैं अपने कॉपी में बना लेती हूं। उसके बाद मैं घर आकर उसको अच्छे पेज में फिर से बनाकर अपने घर की दीवार में लगा देती हूं।" 

बच्चों से नहीं लेती पैसे

इसके बाद मैंने प्रियांशु से फिर पूछा कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ पैसे भी लेती हैं? तो इस पर प्रियांशु ने कहा, "मैं बच्चों से पैसा नहीं लेती हूं। मैं जहां पढ़ती हूं, वहां मुझसे पैसे नहीं लिए जाते इसलिए मैं भी किसी से पैसे नहीं लेती हूं। मुझे पढ़ना और पढ़ाना पसंद है इसलिए मैं यह करती हूं।"

जब मैं यह कहानी सपना के द्वारा सुनी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैंने उनको बोला कि वह जब पढ़ाती है, तो किसी दिन आप उनके घर जाओ और आप बैठ कर देखो फिर वह कैसे पढ़ाती है। हो सके तो आप उसका वीडियो या फोटो भी ले सकते हैं। 

मेरे इतना कहने के बाद सपना उनके घर गई। वह बिल्कुल एक शिक्षिका की तरह पढ़ा रही थी, जिसमें मेरे भी कुछ अंश सम्मलित थे। यह मेरी अब तक की सबसे प्यारी तस्वीर है और हां, अनुभव भी। यह जानकारी मुझे सपना से मिली है, जिसे मैंने कलमबद्ध किया है। 

अमूमन इस उम्र के बच्चे खेल कूद पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्हें पढ़ने के लिए बोलना पड़ता है। यहां तक कि कई माता पिता इतने जागरूक भी नहीं होते कि वे अपनी बच्ची को पढ़ाए लेकिन यहां की तस्वीर बदलाव और उम्मीदों से भरपूर तस्वीर थी। 
         

Friday, March 17, 2023

स्मृतिः सुझावों को सकारात्मकता से स्वीकारना आपके व्यक्तित्व को निखारता है

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

स्मृति कुमारी ने अपनी कक्षा का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने महसूस किया है कि बच्चों को सही दिशा दी जाए तो वे जरुर अच्छा करते हैं। इतना ही नहीं स्मृति का अनुभव पढ़ कर आप जानेंगे कि सुझावों को किस प्रकार सकारात्मकता से लिया जा सकता है क्योंकि कई बार लोगों को सुझाव लेना पसंद नहीं आता मगर सुझावों को सहर्ष स्वीकारना स्मृति बता रही हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सुझाव आपको बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे लिखती हैं-


मैं स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आज आप सबके साथ आज के सेशन का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज साक्षी दी मेरे स्कूल में आई हुई थीं इसलिए मेरा अनुभव एक ओर जहां उत्साह से भरा है, वहीं दूसरी ओर मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा भी दे रहा है।


नियमानुसार मैंने सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर कल जो हमने पढ़ा था, उसकी पुनरावृत्ति की फिर उसके बाद आज के पाठ्य की चर्चा की। मैंने आज बच्चों को गणित पढ़ाया और गणित में पहले बढ़ते क्रम और घटते क्रम को बच्चों को सिखाया। साथ ही गणित की बेहतर समझ बनाने के लिए हम सबने एक एक्टिविटी भी किया। 


इसके बाद मैंने बच्चों से विषय से जुड़े सवाल करने को कहा, जिसमें बच्चों ने प्रश्न पूछे और अपनी समझ को बेहतर किया। उसके बाद साक्षी दी ने पूछा, “क्या मैं बच्चों को किताब पढ़ाऊं?” फिर उन्होंने बच्चों को किताब पढ़ाया और जब दी ने किताब पढ़ाने से पहले यह पूछा, बच्चों, कुछ पन्नों को पढ़कर मैं शुरुआत करूंगी लेकिन मेरे बाद सबको बारी-बारी से पढ़ना होगा।" इतना सुनते ही बच्चों का उत्साह दोगुना हो गया।


सभी बच्चे हाथ ऊपर करके अपनी बारी का इंतजार करने लगे। इसके बाद साक्षी दी ने बच्चों को पढ़ाया। साथ ही वे बच्चों की उत्सुकता और उनके सवालों के जवाब भी देती रही। बच्चों के बीच काफी उत्साह था और सीखने की जिज्ञासा भी झलक रही थी, जो उनके बेहतर कल के लिए वरदान साबित हो सकती है।

  

सुझावों का दिल से स्वागत 


कक्षा के अंत में साक्षी दी ने मुझे कुछ सुझाव भी दिए, जैसे- मैं अपनी कक्षा को और बेहतर कैसे बना सकती हूं, इत्यादि। मुझे दी द्वारा जो फिडबैक मिला है, मैं उस पर जरुर काम करूंगी और अपनी कक्षा को और बेहतर करूंगी। 


आज मैं लंच टाइम तक स्कूल में ही रूकी थी, तो एक चीज जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी वो थी कि बच्चे एक दूसरे की मदद कर रहे थे। वे एक-दूसरे को TLM द्वारा समझा रहे थे। साथ ही बच्चे लाइब्रेरी का भी प्रयोग कर रहे थे और किताबों को उनकी जगह पर रख रहे थे। मुझे ये सब अपनी कक्षा में देख कर बहुत अच्छा लगा और प्रेरणा भी मिली कि अगर सकारात्मक भाव से पहल की जाए, तो अनुशासन द्वारा बहुत कुछ बदला जा सकता है। 


साथ ही मैंने अनुभव किया कि बच्चों के अंदर असीमित ऊर्जा है, क्योंकि जिस प्रकार वे हाथ को खड़ा करके पढञने की ललक दिखा रहे थे, उससे एक बात साफ है कि उन्हें अगर सही मार्गदर्शन दिया जाए, तो वे जरुर अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं अपनी ओर से कोई कमी ना रहने दूं।


Thursday, March 16, 2023

शालूः संतोष और खुशी की परिभाषा बदल देगा यह अनुभव

फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम

बैच-9 की एडु-लीडर शालु ने अपना क्लासरुम का अनुभव साझा किया है। उनका अनुभव पढ़ने के बाद आप महसूस करेंगे कि किसी के चेहरे पर खुशी के भाव देखने के लिए महंगे तोहफे या दिखावे की जरुरत नहीं होती है बल्कि छोटी-छोटी खुशियां ही संतोष देने वाली होती हैं।


आज जब मैं क्लास रूम में गई तब बच्चों ने मुझे गुड मॉर्निंग विश किया और मैंने भी बच्चों को गुड मॉर्निंग विश किया। इसके बाद बच्चों से हाल-समाचार पूछा क्योंकि मेरा मानना है कि अचानक से पढ़ाई-लिखआई की बातें करना बच्चों को बोर कर सकता है इसलिए पहले हल्की-फुल्की बातें होनी चाहिए। 


बातचीत के दौरान एक बच्चे अंशु कुमार ने कहा, मिस आज अपने स्कूल के बगल में पेड़ वितरण हो रहा है। दूसरे बच्चे ने बताया कि कल से कुछ कक्षाओं में परीक्षा शुरु होने वाली है। कुल मिलाकर सभी बच्चों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। 


इसके बाद मेडिटेशन की प्रक्रिया शुरु हुई। बच्चे पहले मेडिटेशन करने से हिचकते थे लेकिन अब बच्चे स्वयं ही उत्साह से एक-दूसरे को मेडिटेशन कराते हैं, जो मेरे लिए खुशी की बात है। 


इसके बाद गणित की कक्षा शुरु हुई और मैंने बच्चों को जोड़-घटाव पढ़ाया। इसके बाद बच्चों को कुछ प्रश्न भी दिए जिसे उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर बनाया और जिन प्रश्नों पर उन्हें दिक्कत हो रही थी, उस पर भी मैंने बच्चों के साथ उसे हल किया। 


इसके बाद हेडमास्टर सर क्लास में आए और बच्चों का अटेंडेंस लिया। साथ ही उन्होंने बताया कि आज स्कूल में पढ़ा रहे किन्हीं राकेश सर का जन्मदिन है इसलिए जब वे कक्षा में आएं, तब बच्चे उनका अभिवादन करें। इसके बाद वे चले गए। 


शिक्षक और बच्चों के बीच रिश्ता 


मैंने बच्चों को राकेश सर को जन्मदिन की बधाई देने के लिए कहा और कुछ बच्चों के कहने पर ग्रीटिंग कार्ड बनाने में उनकी सहायता भी की। जब मेरी कक्षा पूरी हो गई और राकेश सर की घंटी थी, तब बच्चों ने उन्हें वे ग्रीटिंग कार्ड दिए और बधाई दी। मैं वहीं खड़ी सब देख रही थी। यहां मैंने महसूस किया कि सर के चेहरे पर एक अलग ही तेज था और बच्चों के अंदर भी आत्मविश्ववास की भावना झलक रही थी। 


इसके बाद मैं फिर कक्षा में गई ताकि बच्चों को आने वाली परीक्षा की तैयारी करा सकूं। हालांकि लाइब्रेरी से किताब लेकर कहानी सुनाने को मैंने परीक्षा होने तक टाल दिया है मगर एक्टिविटी के जरिए उन्हें पढ़ाना जारी रखूंगी।


देखा जाए, तो ग्रीटिंग्स कार्ड बनाना, किसी को बधाई देना बहुत छोटा-सा काम लगता हो। यहां तक कि बहुत लोगों को तो ये सारी चीजें पहाड़ जैसी लगती हैं मगर किसी को बधाई देने से या किसी के चेहरे पर खुशी की बूंद देखने से मन को संतोष मिलता है। आज बच्चों के चेहरों पर भी मुझे वही खुशी और संतोष की झलक दिखाई पड़ी है। उम्मीद करती हूं कि बच्चे ऐसे ही बने रहेंगे और अपनी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करेंगे।


Wednesday, March 15, 2023

रजनीः एक बेहद सकारात्मक दिन था लेकिन अचानक पता चला कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही है?

आजकल लोगों के पास एक-दूसरे के लिए भी वक्त नहीं है। ऐसे में एक एडु-लीडर का घरों तक जाना और बच्चों के नामांकन की जानकारी जुटाना, उनके स्कूल जाने की स्थिति को आंकना और अभिभावकों को जागरुक करना वाकई एक सकारात्मक और जिम्मेदारी से भरपूर पहल की ओर इशारा करती है। 

हमारे एडु-लीडर्स ना केवल बच्चियों को स्कूल से जोड़ रहे हैं बल्कि उनकी स्थिति पर भी नियमित नजरें बनाए हुए हैं कि जिन बच्चियों का नामांकन हुआ है, वे नियमित स्कूल तो आ रही हैं, उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है इत्यादि। इसी कड़ी में सर्वे करना भी शामिल है और अपने सर्वे के अनुभव को रजनी ने हमारे साथ साझा किया है। 

                   

मेरा नाम रजनी है और मैं आप सबके साथ एक प्यारा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं अभयपुर गांव में सर्वे करने गई थी, जहां मैंने एससी कम्युनिटी से सर्वे करना शुरू किया। वहां सर्वे करके मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि वहां के सभी 6 से लेकर 14 साल तक के बच्चे नियमित स्कूल जा रहे थे। वहीं जिनका हाल ही में 6 साल पूरा हुआ था, उन बच्चों के अभिभावक उनका एडमिशन करवाने के लिए भी तैयार थे। 


साथ ही वहां का हर बच्चा प्रतिदिन युनिफॉर्म में स्कूल जाता है। ना केवल माता-पिता बल्कि बच्चे भी साफ सफाई का काफी ख्याल रखते हैं। साथ ही अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर काफी सक्रिय भी थे। 


हालांकि जब मैं उस टोली में आगे गई तो मैंने देखा कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही थी। उस मां ने अपनी बच्ची को इतना ज्यादा पीटा था कि उस बच्ची का सिर भी फूट गया था इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां जाकर परिस्थिति को समझने का प्रयास करुंगी। मैंने वहां जाकर बातचीत की कि असल में मसला क्या है? 


मेरे पूछने पर उस बच्ची की मां ने बताया कि इसकी परीक्षा चल रही है और यह परीक्षा देने के लिए स्कूल नहीं जा रही है। इस वजह से मैं इसे पीट रही हूं। इसके बाद मैंने उस बच्ची से बात करने की कोशिश की और उसे समझाया भी लेकिन वह बच्ची  बहुत रो रही थी। यही कारण था कि वे मुझसे बात करने के लिए भी तैयार नहीं थी। 


इसके बाद मैंने बच्ची की मां से बात की और उन्हें समझाया कि बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए क्योंकि मार-पीट करने से बच्चों में गलत संस्कार का विकास हो सकता है, जिससे बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं। मेरे समझाने के बाद उस बच्ची की मां अफसोस करने लगी कि मुझे इस तरीके से बच्ची को नहीं पीटना चाहिए था। इसके बाद मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि बच्ची से मिलने दोबारा आऊंगी और मैं अपने कर्तव्यपथ पर आगे निकल गई। 




क्या आपने ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ के बारे में सुना है?

 कहते हैं, अगर अच्छी पुस्तकों से दोस्ती की जाए जो आपके व्यक्तित्व में निखार लाती है, आपको जागरुक करती है औऱ एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है, तब उससे एकदम दोस्ताना रिश्ता बना लेना चाहिए। इसके अलावा अगर हर समुदाय में एक पुस्तकालय हो, तब लोगों में जागरुकता आती है और वे पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं। 


एडु-लीडर्स भी अपने कलस्टर मीटिंग में अनेक मुद्दों को रखते हैं, जो समाज के प्रगति के लिए जरुरी हैं और इसी कड़ी को पकड़ते हुए आंचल ने भी पुस्तकालय की महत्वता को कहानी से जोड़ते हुए बच्चों को जागरुक करने की कोशिश की है। 


मैं आंचल बैच 9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ एक कहानी ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ का अनुभव साझा करने जा रही हूं। 


यह कहानी मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छा लगी। इस कहानी से आज मैं यह समझ बना पाई कि रास्ते में कोई भी परेशानी आए, हमें हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए। अपने लक्ष्य को पाने के लिए कुछ दिन बहरे बन जाना भी स्वीकार कर लेना चाहिए। 


हमारे कलस्टर मीटिंग में यह बात निकल कर सामने आई कि सब मिलकर अपने समुदाय में एक पुस्तकालय खोलना चाहते हैं, जिसमें सभी को बहुत परेशानी आ रही है, लेकिन हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि समुदाय में एक पुस्तकालय खुले और यह एक दिन जरूर पूरा होगा।


इस कहानी के पात्र को अनेक जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन वे अपने लक्ष्य नहीं हटे।  अपने लक्ष्य पर ध्यान देकर आगे बढ़ते रहे। 


कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा है। हम जब अपने समुदाय में पुस्तकालय खोलना चाह रहे हैं, तब हमें भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है मगर इन सारी परेशानियों का सामना करते हुए हम बच्चे के लिए लाइब्रेरी खोलने का प्रयास कर रहे हैं और अलग- अलग तरह के एक्टिविटी से बच्चे को जोर रहे थे।


एक्टिविटी में हमने बच्चों को बताया कि डाकू ने भी बच्चों की एक कहानी की किताब ले ली और उसे पढ़ने लगे। इससे यही पता चलता है कि बुरे इंसान भी पुस्तकालय का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे एक बदलाव आया। साथ ही साथ धीरे-धीरे लोग जागरुक होने लगे और डाकू भी बुरे कामों को छोड़कर एक अच्छा इंसान बन गया।


Tuesday, March 14, 2023

प्रीतिः बच्चियों के नामांकन के दौरान चला पता, नहीं रखे गए थे उनके रिकॉर्ड

प्रीति कुमारी ने बच्चियों के नामांकन के दौरान अपने अनुभव को साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि नामांकन को लेकर ना केवल अभिभावक बल्कि हेडमास्टर्स का भी रवैया कभी-कभार काफी मुश्किल और मशक्कत में डाल देता है। इन सब चुनौतियों के पार उन्हें केवल बच्चियों का चेहरा दिखाई पड़ता है, जो बैग टांगे स्कूल जा रही हैं और यही चीजें उन्हें प्रेरणा देती है। वे लिखती हैं-


"मैं सैफगंज, फरबिसगंज ब्लॉक अररिया में नामांकन के लिए गई तो वहां पर बहुत ही मुश्किल आ रही थी। पहले हेडमास्टर नहीं मान रहे थे फिर अभिभावक नहीं मान रहे थे, जब हमलोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में जानकारी दी, तब उन्हें हमारी बात समझ आई। उसके बाद वे नामांकन के लिए तैयार हुए। 


सबसे ज्यादा मुश्किल यह था कि वहां अधिकांश बच्चियों का कोई डोक्युमेंट नहीं था। केवल 10 बच्चियों के ही डोक्युमेंट्स मिले, जिससे केवल उनका ही नामांकन हो सका। इसका मतलब यही है कि अभिभावक अपनी बेटियों के कागजातों को भी सही से नहीं रख पा रहे थे। शायद इसके पीछे की वजह लड़कियों को लेकर जागरुकता और उदासीनता ही एक कारण है। 


हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि आप अच्छा काम रही हैं, तो मुझमें थोड़ी आशा का संचार हुआ। साथ ही मैंने हेडमास्टर से भी बात किया और उन्हें बच्चियों के डोक्युमेंट्स को सही तरीके से रखने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद हेडमास्टर ने मुझे लिखित में आश्वासन दिया कि वे बच्चियों के जमा किए डोक्युमेंट्स को सही से रखेंगे।" 


देखा जाए, तो यह कार्य हर रोज चुनौतियों से भरा हुआ होता है लेकिन क्या किया जाए अगर दिल में शोला हो, और वह शोला बार-बार कहे कि एक भी बच्ची को शिक्षा से वंचित नहीं रखना है। हर कोमल हाथों में कलम हो, हर बच्ची के कंधे पर बैग हो ना कि उनके कोमल कंधे पर जिम्मेदारी या जलावन का भार हो। मैं रोज मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची शिक्षित हो सके।

 

   चट्टानों से हौसले हमारे,

   आसमान से ऊंचे इरादे,

   बच्चियों को शिक्षा की महिमा दिखाकर,

   मुसीबतों में दम नहीं की मुझे हरा दे।


एडुलीडर शालू के प्रयासों से सामने आई समस्याएं, अब वे कर रही हैं समाधान की पहल

फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम


बैच-9 की एडु-लीडर शालू ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे ना केवल अपना अनुभव साझा कर रही हैं बल्कि बच्चों के साथ हुई एक्टिविटी के महत्वों पर भी चर्चा कर रही हैं, जो उनके व्यक्तित्व निर्माण की एक अहम कड़ी साबित होगा। वे लिखती हैं-


आज मैं आप सबके साथ अपने क्लासरुम का अनुभव शेयर करने जा रही हूं। बाहर के कुछ कामों के कारण आज मैं 15 मिनट की देरी से स्कूल पहुंची लेकिन तब भी मुझे क्लास खाली ही लगी। हालांकि मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बच्चों को आने में देरी कैसे हुई क्योंकि एक तो मैं देर थी इसलिए मुझे लगा था कि मुझे सारे बच्चे क्लास में ही मिलेंगे। बच्चे क्लास में मौजूद तो थे लेकिन उनकी संख्या थोड़ी कम लग रही थी।


मैंने क्लास में उपस्थित बच्चों को गुड मार्निंग विश किया और उन्होंने भी बड़े प्यार से मेरा अभिवादन किया। इसके बाद मैंने हेडमास्टर सर से कम उपस्थिति के बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया। जिसमें मुझे पता चला कि आज कक्षा छठी से लेकर आठवीं तक के बच्चों की परीक्षा है इसलिए बच्चों के बैठने की स्थिति में थोड़ा अंतर किया गया है। उन्होंने मुझे बताया कि पांचवीं कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा में बैठे हैं इसलिए मैं दूसरी कक्षा में चली गई।


वहां मैंने कक्षा में मौजूद बच्चों को मेडिटेशन कराया फिर चहक किताब से कक्षा की शुरुआत की गई। सभी बच्चों ने जोड़ों में बैठ कर और LFW की किताब से एक्टिविटी को किया। इसके बाद हेडमास्टर सर ने कक्षा में आकर वार्षिक परीक्षा की रूटिंग को ब्लैकबोर्ड पर लिखवाया, जिसे बच्चों ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया। इसके बाद सभी बच्चों ने बातचीत हुई कि उन्होंने होली के त्योहार को कैसे मनाया इत्यादि क्योंकि मेरा मानना है कि जब तक आप बच्चों से पूरी तरह नहीं जुड़ेगे, तब तक बच्चे भी आपसे पूरी तरह नहीं जुड़ पाएंगे इसलिए छोटी-छोटी पहल और एक्चिविटी करते रहना चाहिेए। 


इसके बाद बच्चों से परीक्षा को लेकर बातचीत हुई कि उनका पाठ पूरा है या नहीं है, किस विषय में दिक्कत आ रही है, सिलेबस पूरा है या नहीं है इत्यादि। साथ ही बाकी बच्चों को भी सूचित करने के लिए कहा गया जो बच्चे कक्षा में अनुपस्थित थे ताकि उनकी परीक्षा ना छूटे। 


कुल मिलाकर काफी अच्छा अनुभव रहा। चहक और LFW के जरिए बच्चों में बेहतर समझ नहीं और बच्चों से एक स्तर और जुड़ने का मौका मिला। 


Friday, March 10, 2023

सीमाः अभिभावकों को राजी करने में लगा काफी वक्त, चार बच्चियों का हुआ नामांकन

बिहार के गया जिले की रहने वाली सीमा ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि जब बुनियादी सुविधाएं ना हो, अभिभावकों के अंदर शिक्षा को लेकर जागरुकता का अभाव हो, तब बच्चियों का नामांकन कराना किसी चुनौती से कम नहीं होता। कई बार उन्हें मनाने में ही पूरा दिन निकल जाता है और नतीजा शून्य ही रहता है मगर इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी एडु-लीडर्स के कदम नहीं रुकते। 

                      

“दिनांक 31/1/2023 को बड़की सांव का मलरवाडीह टोला में चार अनामांकित बच्चियों का नामांकन करवाया गया। नामांकन करवाने में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि जिन बच्चियां का नामांकन करवाना था, उनका घर एक-दूसरे से एवं स्कूल से भी काफी दूरी था। 


यही कारण था कि जब दो अभिभावकों को समझाकर तैयार करते इतने में दूसरे अभिभावक कोई-ना-कोई बहाना बना देते। दिनभर लगभग अभिभावकों को मनाने का ही सिलसिला चलते रह गया फिर भी मैं हार नहीं मानने वाली थी क्योंकि मेरा काम बच्चियों को स्कूल से जोड़ना है।” 


अंत में तैयार हुए अभिभावक 


“मेरा मानना है कि ऐसी कठिनाइयां तो हरेक मोड़ पर आते रहेंगी इसलिए जीवन में सफलता पाने के लिए हरेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तभी आगे चलकर सफलता का मार्ग प्राप्त होता है। इस प्रकार अभिभावकों को प्रत्येक दिन स्कूल जाने वाली बच्चियों के बारे में कुछ जानकारी दी और उन्हें शिक्षा के महत्व को बताया, जिस कारण धीरे-धीरे अभिभावकों में कुछ सुधार हुआ। यही कारण था कि अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन करवाने के लिए तैयार हो गए और हमारे साथ अपने बच्चों को ले्कर स्कूल में आएं। 


इसके बाद मैं टीचर से बात कर नामांकन करवाया गया। अभिभावकों ने भी अपने हस्ताक्षर किए। इस प्रकार अनेक मुसीबतों का सामना करते हुए आखिरकार चार बच्चियों ने अपने कदम स्कूल में रखे। इन बच्चियों का नाम इस प्रकार है- 1. सम्पत कुमारी 2. प्रियंका कुमारी 3. चांदनी कुमारी 4.सुनैना कुमारी। 


आज जहां कोरोना के बाद से लड़कियों की शिक्षा में भारी गिरावट दर्ज हुई थी, तो वहीं अभिभावकों की लापरवाही ने इस आंकड़े को और बढ़ा दिया। Unified District Information System for Education (UDISE) Plus 2021-22 रिपोर्ट के अनुसार ड्रापऑउट रेट में भारी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लड़कियों का नामांकन कराना वाकई एक चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन शिक्षा के अधिकार से किसी व्यक्ति को वंचित करना भी गलत है इसलिए मैं अपनी मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची पढ़ सके और आगे बढ़ सके।” 


Monday, March 6, 2023

बाल उत्सव के दौरान निखर कर सामने आई बच्चों की प्रतिभा, अभिभावक भी हुए मंत्रमुग्ध

आज मैं आप सभी के साथ बिहार के गया ज़िले के चौगाई गांव स्थित राजकीय मध्य विद्यालय में हुए बाल उत्सव का अनुभव साझा करने जा रही हूं। इस बाल उत्सव का आयोजन राजकीय मध्य विद्यालय में हुआ था, जिसमें प्राथमिक विद्यालय, भलुहार, चौगाई भी शामिल था।  

SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं  I-Saksham Education and Learning Foundation (i-Saksham) के सहयोग से राजकीय मध्य विद्यालय, चौगाई गांव, गया, बिहार में बाल उत्सव का आयोजन किया गया। इस बाल उत्सव का उद्देश्य बच्चों, विद्यालय और समाज को एक जगह लाकर बच्चों की क्षमता को सबके सामने लाने के लिए एक मंच तैयार करना, बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाना एवं उनकी क्षमता को विकसित करना है। SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं  i-Saksham द्वारा चल रहे फैलोशिप प्रोग्राम के तहत बच्चों को एडुलीडर बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे दूर-दराज इलाकों में शिक्षा के प्रति, बाल-विवाह के प्रति और आधारभूत स्तर पर परिवर्तन ला सकें। 


पहला cohort, 18 एडु-लीडर्स के साथ अक्टूबर 2020 में कोविड के दौरान गया जिले के अमास और बांके बाजार ब्लॉक में शुरू किया गया था। इसके बाद साल 2021 और 2022 में दो और cohorts एडुलीडर्स द्वारा शुरू किए गए। अभी तक SAVE Solutions 50 एडु-लीडर्स  अपने CSR कार्यक्रम के अंतर्गत प्रायोजित कर रही है। 


मैं पहली बार किसी स्कूल में हुए बाल उत्सव में भाग ले रही थी इसलिए मैं बहुत उत्साहित थी। साथ ही मेरा उत्साह उस वक्त दोगुना हो गया, जब मैंने अन्य बच्चों को भी उत्साहित देखा। 


किताबों से सजा स्कूल 


पूरा स्कूल ही किताबों से सजा हुआ था। ऐसा लग रहा था मानों होली से पहले ही पूरे स्कूल में किताब के रंग छा गए हो। बच्चे एडुलीडर के साथ मिलकर टीएलएम, एलएफडब्ल्यू की किताब, बाल उत्सव के पोस्टर आदि लगा रहे थे। वहीं कुछ बच्चे अभिभावकों के बैठने के लिए दरी और कुर्सी लगा रहे थे। कुछ बच्चे संगीत की धुन में खोए हुए थे। जब सारी तैयारी लगभग पूरी हो गई, उसके बाद अभिभावकों का आना शुरू हो गया। 


बाल उत्सव

और खुशी की लहर दौड़ गई 


मुझे बहुत अच्छा लगा रहा था कि सारे अभिभावक अपना कीमती समय निकालकर यहां तक आए। जब सारे अभिभावक अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे फिर स्कूल के कुछ छात्राओं ने स्वागत गान गाकर अभिभावकों का स्वागत किया। स्वागत गान सुनकर अभिभावकों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। 


उसके बाद हमारी एडुलीडर प्रीति और ब्यूटी आर्या ने बेटी और नारी के ऊपर एक बहुत ही अच्छी कविता सुनाई, फिर स्कूल की दो बच्चियों ने सैनिकों के जीवन पर आधारित एक बहुत ही सुंदर गीत सुनाया। उसके बाद कृषक पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए बताया गया कि चने की फसल को कैसे बोया जाता है? उस पर एक्शन के साथ एक बाल गीत भी सुनाया गया। 


बचपन की यादों का दरीचा


इन सारे कार्यक्रम के बाद हमारी टीम की तरफ से बच्चों के बीच स्टोरी राइटिंग, ड्राइंग कंपटीशन, इंग्लिश और मैथ के गेम्स आदि कराए गए। सारे बच्चे ना केवल इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए काफी उत्सुक थे बल्कि उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी। बच्चों की प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता के प्रति लगन देखकर मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हुआ, मानों किसी ने बचपन की याद को आंखों के सामने परोस दिया हो।


पुरस्कार प्राप्त करते बच्चे


प्रतियोगिता के बाद स्कूल की तरफ से म्यूजिकल चेयर गेम का आयोजन हुआ, जिसमें बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बच्चों में एक अलग ही खुशी का माहौल था। जब सारी एक्टिविटी खत्म हो चुकी थी और इनाम बांटने का वक्त आया, तब जिन बच्चों ने प्रतियोगिता में पहला, दूसरा या तीसरा स्थान प्राप्त किया था ना केवल उन्हें बल्कि भाग लेने वाले सभी बच्चों को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया गया ताकि उनका मनोबल भी बना रहे।


यह अनुभव अदिबा, बड्डी इंटर्न ने आई-सक्षम के साथ साझा किया है।