Thursday, March 30, 2023
पीटीएम में अभिभावकों ने गया लोकगीत
अभिभावकों ने दी जानकारी कि घर पर पाठ दोहराते हैं बच्चे
अभिभावकों ने दिया बच्चों को नियमित स्कूल भेजने का वादा
Tuesday, March 28, 2023
जब पीटीएम के लिए अभिभावकों ने जुटाए लोग
Monday, March 27, 2023
जब मुझ पर लगा निजी जानकारी बेचने का आरोप
मुझे एहसास हुआ कि चुप रहना है कितना मुश्किल
सभी साथियों ने वापस से ‘लड़का कौन-लड़की कौन’ कहानी पढ़ी, जिसे कमला भसीन ने लिखा है। हमने जेन्डर के सेशन में बार-बार कमला भसीन की लेखनी का इस्तेमाल किया है। वो चाहें उनकी लिखी कहानियां 'सतरंगी लड़कियां' हो या उनके स्वर में बोली गई कविताएं 'मुझे पढ़ना है,' हर बार वो आपको सोचने के लिए जैसे न्योता देती हैं।
इसका असर एडु-लीडर्स के छोटे-छोटे समूह में भी दिखा, जहां सभी मानों सभी गहरे उतर कर खुद को, परिवार को और समाज को वापस से समझने की कोशिश में जुटी थी, जिस समूह का मैं हिस्सा बना वहां यह बिल्कुल स्पष्ट दिख रहा था। राखी ने अपने विद्यालय का परिचय दिया कि कैसे "मेरे स्कूल में पहले लड़का और लड़की अलग-अलग बैठते थे। मैंने प्रिन्सपल सर से बात कि और बताया कि सर मुझे इस तरीके को बदलना है और आज यह हो पा रहा है।"
खेल में भी भेदभाव
रोजी ने भी अपने अनुभव में इस भिन्नता को सामने रखा और एक घटना साझा कि "खेलने के समय जब लड़कियों ने कैरम बोर्ड पर खेलने से मना कर दिया क्योंकि वहां लड़के पहले से खेल रहे थे। मैंने कहा चलो उनके साथ ही खेलते हैं, तो सबने शुरुआत में तो मना कर दिया मगर जब मैंने कहा कि मैं भी चलूंगी तो सब तैयार हो गई।"
निकिता ने बहुत विश्वास से कहा, "मैं अपने गांव की अकेली लड़की हूं, जो घर से बाहर निकल कर सारा काम करती है और आज गाँव के भी बहुत सारे लोग अपना काम करवाने के लिए मेरे पास आते हैं।" एक और सुखद अनुभव रहा। दो साथियों के एक ही विषय पर अलग-अलग विचार को देखकर आया। यह विश्वास और गहरा हुआ कि हम मिलकर एक ही विषय पर अलग-अलग सोच रखने और इसे सामने लाने का माहौल बना पा रहे हैं।
क्षमता का अभाव नहीं
एजेंसी पर निभा दी ने कहा, "मैं बोलती कम हूं मगर मुझे पूरा विश्वास है कि मैं अपने जीवन के लक्ष्यों को पा सकूंगी।" वहीं किसी ने इतिहास विषय तो किसी ने घर से निकल कर आज सेशन में शामिल होने की बात को अपने एजेंसी से जोड़ी। मेरी बारी आई कि एजेंसी की और पांच साथी अपने सफर की शुरुआत को एक साथ शुरू किए।
कुछ समय में ही धर्म, जाति, शिक्षा, काम, परिवार, आय, स्थान और दूसरे अन्य कारणों ने कुछ साथियों को बहुत आगे तो कुछ साथियों को बहुत पीछे खड़ा कर दिया। मन में खयाल आया ये यही तो आस-पास हो रहा है। क्षमता का अभाव नहीं है बल्कि इस क्षमता को प्रदर्शित करने के मौके कम है।
और मुझे बोलना पड़ा
साथ ही एक अवलोकन स्वयं को लेकर भी हुआ। आज जब सेशन में बैठा तो मन में यह ख्याल था कि आज मैं केवल सुनूंगा, कुछ बोलूंगा नहीं चाहे कुछ भी हो। कुछ समय तक मैं यह करता भी रहा। मन में जब भी ख्याल आते कि कुछ बोलूं तो एक बार स्वयं को समझाता "नहीं आज चुप रहना है।" मगर बहुत देर तक यह हो नहीं सका।
एजेंसी की बात आई और मैं वापस से बोलने लगा। कुछ ऐसा जिसके लिए मैं अपने आपको लगातार मना कर रहा था। एजेंसी का विषय है, तो इसी से जोड़ना सही होगा और मुझे वाकई लगता है कि मैं यह कर फसिलटैटर की एजेंसी को प्रभावित करता हूं और इससे बचना चाहिए। मेरे लिए आगे बढ़ने को लेकर अगली बार यही एक सीख होगी और आशा होगी कि मैं बेहतर कर पाऊं।
श्रवण ने अपने दो दोस्तों के साथ वर्ष 2015 में i-Saksham संस्था की शुरुआत की । यह वर्ष 2016 के Acumen फ़ेलो और वर्ष 2012-15 तक प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो रहे हैं , जहां इन्होंने जमुई (बिहार) मे जिला प्रशासन के साथ मिलकर विभिन्न योजनाओं मे अपना योगदान दिया है । इससे पहले इन्होंने 4 साल विभिन्न स्तर पर microfinance संस्थानों मे कार्य किया है । इन्होंने Symbiosis Institute of International Business से स्नातकोत्तरऔर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से कृषि विषय मे स्नातक की पढ़ाई की है ।
Saturday, March 25, 2023
हर काम को फायदे के तराजू में तौलना गलत है
जमालपुर में आई सक्षम ने मनाया आठवां स्थापना दिवस
आई सक्षम |
आई सक्षम स्वयं सेवी संस्था ने शुक्रवार, 24 मार्च 2023 को जमालपुर स्थित राजकमल हॉल में आठवां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया। इस कार्यक्रम में धरहरा और जमालपुर प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र से पहुंची लड़कियां एवं महिलाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। मंच का संचालन साक्षी कुमारी ने की।
वहीं मुख्य अतिथि जामालपुर प्रखंड, मुंगेर जिला जीविका की बी पी एम बबिता कुमारी ने कहा कि जिस तरह से संस्था महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से लोगों में जीवन जीने का कौशल विकसित कर रही है, वो दिन दूर नहीं जब सामाज की हर एक नारी अपने पैरों पर खड़ा होगी।
वहीं मोना दीदी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए काफी भावुक हो गई। उन्होंने कहा कि 22 वर्षों से उनकी पढ़ाई छूटी हुई थी लेकिन आई सक्षम के प्रयास से वे पुनः अपनी पढ़ाई शुरू कर पाईं और प्रथम श्रेणी से उतीर्ण हुई। वहीं बबिता, प्रेरणा और मनीषा द्वारा नृत्य प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर समाज को जागरूक करने वाले नाटक का मंचन भी किया गया। कार्यक्रम के दौरान वहां मौजूद शिक्षक आई सक्षम की गतिविधियों को देखकर मंत्रमुग्ध रह गए। गौरतलब है कि आई सक्षम एक ऐसी स्वयं सेवी संस्था है, जो महिलाओं तथा लड़कियों में नेतृत्व गुणों को निखारता है और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में सहयोग करता है।
एडुलीडर अपने चिन्हित विद्यालय में जाकर तीन घंटे बच्चों को शिक्षा देने में सहयोग करती हैं। आई सक्षम बच्चों को गुणवत्तापूर्ण एवं गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ युवाओं को रोजगार के प्रति सक्षम बनाती है।
वहीं आई सक्षम की वर्षगांठ के अवसर पर सेवा संस्था से आई पूजा ने कहा कि संस्था जिस तरह से निराश हो चुकी ग्रामीण महिलाों में आशा का किरण जगा रही है और उनके अंदर विश्ववास जगा रही है, इससे यह बात तो साफ है कि आई सक्षम द्वारा आने वाले समय में कई एडुलीडर तैयार होंगे।
आई सक्षम की वर्षगांठ के अवसर पर टीक लिंक प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर चयनित ग्रामीण बच्चों को तानिया द्वारा पुरस्कृत किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित कनक, रोजी, राजमणी, निधि, आयुष आनंद, राहुल, इशिका और रश्मि ने बच्चों को शिक्षित किए जाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी।
Friday, March 24, 2023
स्कूल जाने से क्या होगा फायदा?
Wednesday, March 22, 2023
धन्यवाद केवल शब्द नहीं बल्कि एक भावना है
हमारे एडुृलीडर्स हर रोज कुछ नया करने का प्रयास करते हैं और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं। इसी कड़ी में बैच-9 की सपना ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि धन्यवाद देने का अनुभव कैसा हो सकता है? साथ ही उनके अनुभव को पढ़ते हुए, आप भी महसूस कर पाएंगे कि धन्यवाद केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक अनुभव है। वे लिखती हैं-
"हेल्लो दोस्तों , आज मैं आपको आज का फील्ड वर्क का अनुभव बताना चाहती हूं। आज मुझे उन अविभावकों को धन्यवाद बोलना था, जो अपने बच्चों को एवं आई-सक्षम पर भरोसा करतेे हैं। सच बताऊंं तो मुझे काफी अच्छा महसूस हुआ और ये इस तरह का अनोखा अनुभव था क्योंकि सामान्यतः लोग धन्यवाद करते तो हैं, लेकिन उसे महसूस या उसके भाव को समझ नहीं पाते हैं।"
अभिभावक करते हैं प्रोत्साहित
"मैंने जितना हो सके, उतने अभिभावकों से मिल कर उन्हें धन्यवाद दिया। अभिभावक अकसर कहते हैं, आप इतने अच्छे से पढ़ाते हैं एवं बच्चों को अच्छे संस्कर देते हैं। आज के समय में जब शिक्षा एक व्यपार बन गया है, ऐसे में एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के लिए इतनी मेहनत करना वाकई सराहनीय है।"
दिव्यांशु की मम्मी का कहना था, "आपके यहां मरा बच्चा अच्छे से पढ़ता है। पहले तो इतना बदमाशी करता था कि मैं तंग आ जाती थी लेकिन अब मेरा बेटा अच्छे से रहता है। मेरी बात भी सुनता है एवं घर के बड़े-बुजुर्गों की इज्जत भी करता है। साथ ही घर में भी किताब निकाल कर पढ़ता है। मुझे बहुत खुशी होती है कि मेरे बच्चे में बदलाव आ रहा है।"
बच्ची करती है आपकी नकल
प्रियांशु की मम्मी का भी कहना था कि मेरी बेटी आपकी नकल करके, आपकी तरह पढ़ाने की कोशिश करती है कि मैडम ऐसे पढ़ाती हैं, मैडम ऐसे समझाती हैं इत्यादि।
अब अगर किसी भी व्यक्ति को इतना सराहा जाए, तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह भी अपनी तरफ से कृतज्ञता व्यक्त करे। यही कारण था कि मैं सभी अविभावकों को धन्यवाद पत्र दिया। मेरी इस पहल से वे काफी खुश हुए। साथ ही अब हमारे बीच ऐसा रिश्ता बन गया है कि ऐसा लगता है कि मैं भी उनके परिवार की सदस्य हूं।
किसी को प्यार और सम्मान से अगर धन्यवाद बोला जाए, तो एक ऐसे रिश्ते का निर्माण होता है, जिससे रिश्तों की डोर मजबूत हो जाती है। साथ ही मन में भी एक खुशी का भाव उतपन्न होता है, जो आपको और ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे ना केवल दूसरों को बल्कि स्वयं को भी अच्छा महसूस हो सके।
खुशियां बड़ी या छोटी नहीं बल्कि 'खुशी' होती है
हेलो दोस्तों, आज मैं आपके सामने छोटी सी कहानी साझा करना चाहती हूं। आज मुझे पता चला कि अगर दृढ़ विश्वास हो, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
मेरी मुलाकात एक 15 साल के बच्चे से हुई है, जो पूर्ण रूप से दिव्यांग है। एक बार फील्ड विजिट के द्वारा उससे मुलाकात करने का मौका मिला। उसकी मम्मी ने मुझे बताया कि दीदी हम बहुत गरीब हैं। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि एक व्हीलचेयर खरीद सकूं।
साथ ही अभी तक सरकारी योजना का लाभ तक नहीं मिला है। अगर आप कुछ कर पाए तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी।
और शुरू हुआ कुर्सी का संघर्ष
यह सब देखने के बाद मैंने सोचा कि कम से कम मैं इस बच्चे को कुर्सी तो दिला कर ही रहूंगी। मैं हर जगह गई, जहां से मुझे कुर्सी मिल सकती थी या कोई संभावना बन जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हो सका।
इसके बाद मैंने आदित्य सर से बात की। हर लोगों से मदद मांगी मगर अंततः सर के बताए हुए मार्ग पर चल कर हमारे i-saksham के एक साथी मनोज जी की मदद से आज साथ महीनों बाद कुर्सी मिल ही गई। कुर्सी मिलने के बाद बच्चे की खुशी देखते ही बन रही थी।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि अपने प्रयास को सही दिशा में करना चाहिए। साथ ही हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और जितना हो सके लोगों को जागरूक करना चाहिए। साथ ही मुझे भी बहुत सुकून मिला कि मैंने अपने तरफ से प्रयास किया और उसका फल भी मिला।
Monday, March 20, 2023
रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता
नकारात्मक खबरें हर जगह से मिल जाती हैं लेकिन शोध बताता है कि सकारात्मक खबरों को जानने से ना केवल मनुष्य का आंतरिक विकास होता है बल्कि उसे अच्छा भी महसूस होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में विकास होता है।
आज हमारे एडुलीडर जमीनी हकीकत को सामने लाते हुए एक बदलाव और सकारात्मक खबर भी साझा कर रहे हैं, जो ना केवल आपको बल्कि हर उस बच्ची के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जिनके लिए पढ़ पाना एक चुनौती है।
मैं धर्मराज कुमार, आप सभी के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। मैं जमुई जिले में स्थित लठाणे नाम के एक गांव में बच्चे के शैक्षणिक स्थिति के बारे में जांच करने गया था। उसी दौरान मेरी मुलाकात कुछ महिलाओं से हुई। जब मैंने उनसे उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछताछ की तो कुछ बातें निकल कर सामने आई, जिसे सुनकर मुझे काफी आनंद आया और थोड़ी मायूसी भी हाथ लगी। बातचीत में पता चला कि उनकी एकमात्र पुत्री हैं, जिनका नाम संजना है।
उन महिला ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है। उनका घर खपरैल का है और वह भी टूटा फूटा हुआ है। जब मैंने पूछा "क्या आपकी लड़की स्कूल पढ़ने जाती है?" मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, "यह सब मत पूछिए। मेरी बेटी तो बोलती है कि अगर रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता।”
मैं स्कूल नागा नहीं करुंगी
उन्होंने आगे कहा कि आप जाकर स्कूल में सभी शिक्षक से पूछ सकते हैं कि मेरी बेटी एक भी दिन क्लास से अनुपस्थित नहीं रहती है। हालांकि मैं ही किसी-किसी दिन बोलती हूं कि आज स्कूल नहीं जा। घर में बहुत काम है। तो मेरे इतना कहने पर वह बोलती है कि “मां, मैं स्कूल से जाऊंगी। आपका सारा काम भी कर दूंगी। अगर मैं नागा कर दूंगी तो आगे फिर मुझे विषय समझने में दिक्कत होगी।”
अपनी बेटी की ऐसी लगन देखकर मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं बोलती हूं। मैं भी सोचती हूं कि ठीक है, जब तुम्हारा मन पढ़ाई में है, तो पढ़ो।
मां को है भविष्य की चिंता
अपनी बेटी के लिए एक मां की ऐसी सोच जानकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कहीं ना कहीं बदलाव की बयार बह रही है। हालांकि जाते-जाते मैंने उन्हें कहा, "आपकी बेटी हीरा है। इसे खूब पढ़ाइए।" मेरे इतना कहने पर उस महिला ने फिर मुझसे कहा, "मुझे दुविधा है कि पता नहीं कि मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा पाऊंगी भी या नहीं।"
"तब मैंने उनकी आशंका को कम करते हुए कहा, "मेरा विश्ववास है कि अभी आपको मैट्रिक तक इसके पढ़ाई के खर्चे के बारे में नहीं सोचना होगा। स्कूल से पोशाक, किताब, छात्रवृत्ति यह सभी मिलते रहेंगे। इसके अलावा थोड़ा बहुत कॉपी-कलम की जरूरत होगी, जिसे आप जुटाने में सक्षम होंगे। साथ ही समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।"
कुल मिलाकर मुझे अपनी पहल और मेहनत पर बहुत नाज हुआ कि कम से कम लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। हालांकि अभी भी ऐसे कई हिस्से होंगे, जहां बदलाव की दरकार है लेकिन मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर इसे भी हासिल किया जा सकता है।
Saturday, March 18, 2023
प्रियंजलि: साप्ताहिक सेशन में हमने अपनी ऊर्जा को मापा, एडुलीडर एवं बड्डी के आशाओं पर भी हुई बातचीत
कोमल: जब मैंने पहली बार डिब्रीफ कराया और ब्लैक बोर्ड पर लिखा
मात्र 9 साल की शिक्षिका जो पढ़ाने के नहीं लेती है पैसे, पूछने पर देती है ये जवाब
Friday, March 17, 2023
स्मृतिः सुझावों को सकारात्मकता से स्वीकारना आपके व्यक्तित्व को निखारता है
फोटो क्रेडिट- आई सक्षम |
स्मृति कुमारी ने अपनी कक्षा का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने महसूस किया है कि बच्चों को सही दिशा दी जाए तो वे जरुर अच्छा करते हैं। इतना ही नहीं स्मृति का अनुभव पढ़ कर आप जानेंगे कि सुझावों को किस प्रकार सकारात्मकता से लिया जा सकता है क्योंकि कई बार लोगों को सुझाव लेना पसंद नहीं आता मगर सुझावों को सहर्ष स्वीकारना स्मृति बता रही हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सुझाव आपको बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे लिखती हैं-
मैं स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आज आप सबके साथ आज के सेशन का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज साक्षी दी मेरे स्कूल में आई हुई थीं इसलिए मेरा अनुभव एक ओर जहां उत्साह से भरा है, वहीं दूसरी ओर मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा भी दे रहा है।
नियमानुसार मैंने सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर कल जो हमने पढ़ा था, उसकी पुनरावृत्ति की फिर उसके बाद आज के पाठ्य की चर्चा की। मैंने आज बच्चों को गणित पढ़ाया और गणित में पहले बढ़ते क्रम और घटते क्रम को बच्चों को सिखाया। साथ ही गणित की बेहतर समझ बनाने के लिए हम सबने एक एक्टिविटी भी किया।
इसके बाद मैंने बच्चों से विषय से जुड़े सवाल करने को कहा, जिसमें बच्चों ने प्रश्न पूछे और अपनी समझ को बेहतर किया। उसके बाद साक्षी दी ने पूछा, “क्या मैं बच्चों को किताब पढ़ाऊं?” फिर उन्होंने बच्चों को किताब पढ़ाया और जब दी ने किताब पढ़ाने से पहले यह पूछा, बच्चों, कुछ पन्नों को पढ़कर मैं शुरुआत करूंगी लेकिन मेरे बाद सबको बारी-बारी से पढ़ना होगा।" इतना सुनते ही बच्चों का उत्साह दोगुना हो गया।
सभी बच्चे हाथ ऊपर करके अपनी बारी का इंतजार करने लगे। इसके बाद साक्षी दी ने बच्चों को पढ़ाया। साथ ही वे बच्चों की उत्सुकता और उनके सवालों के जवाब भी देती रही। बच्चों के बीच काफी उत्साह था और सीखने की जिज्ञासा भी झलक रही थी, जो उनके बेहतर कल के लिए वरदान साबित हो सकती है।
सुझावों का दिल से स्वागत
कक्षा के अंत में साक्षी दी ने मुझे कुछ सुझाव भी दिए, जैसे- मैं अपनी कक्षा को और बेहतर कैसे बना सकती हूं, इत्यादि। मुझे दी द्वारा जो फिडबैक मिला है, मैं उस पर जरुर काम करूंगी और अपनी कक्षा को और बेहतर करूंगी।
आज मैं लंच टाइम तक स्कूल में ही रूकी थी, तो एक चीज जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी वो थी कि बच्चे एक दूसरे की मदद कर रहे थे। वे एक-दूसरे को TLM द्वारा समझा रहे थे। साथ ही बच्चे लाइब्रेरी का भी प्रयोग कर रहे थे और किताबों को उनकी जगह पर रख रहे थे। मुझे ये सब अपनी कक्षा में देख कर बहुत अच्छा लगा और प्रेरणा भी मिली कि अगर सकारात्मक भाव से पहल की जाए, तो अनुशासन द्वारा बहुत कुछ बदला जा सकता है।
साथ ही मैंने अनुभव किया कि बच्चों के अंदर असीमित ऊर्जा है, क्योंकि जिस प्रकार वे हाथ को खड़ा करके पढञने की ललक दिखा रहे थे, उससे एक बात साफ है कि उन्हें अगर सही मार्गदर्शन दिया जाए, तो वे जरुर अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं अपनी ओर से कोई कमी ना रहने दूं।
Thursday, March 16, 2023
शालूः संतोष और खुशी की परिभाषा बदल देगा यह अनुभव
फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम |
बैच-9 की एडु-लीडर शालु ने अपना क्लासरुम का अनुभव साझा किया है। उनका अनुभव पढ़ने के बाद आप महसूस करेंगे कि किसी के चेहरे पर खुशी के भाव देखने के लिए महंगे तोहफे या दिखावे की जरुरत नहीं होती है बल्कि छोटी-छोटी खुशियां ही संतोष देने वाली होती हैं।
आज जब मैं क्लास रूम में गई तब बच्चों ने मुझे गुड मॉर्निंग विश किया और मैंने भी बच्चों को गुड मॉर्निंग विश किया। इसके बाद बच्चों से हाल-समाचार पूछा क्योंकि मेरा मानना है कि अचानक से पढ़ाई-लिखआई की बातें करना बच्चों को बोर कर सकता है इसलिए पहले हल्की-फुल्की बातें होनी चाहिए।
बातचीत के दौरान एक बच्चे अंशु कुमार ने कहा, मिस आज अपने स्कूल के बगल में पेड़ वितरण हो रहा है। दूसरे बच्चे ने बताया कि कल से कुछ कक्षाओं में परीक्षा शुरु होने वाली है। कुल मिलाकर सभी बच्चों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए।
इसके बाद मेडिटेशन की प्रक्रिया शुरु हुई। बच्चे पहले मेडिटेशन करने से हिचकते थे लेकिन अब बच्चे स्वयं ही उत्साह से एक-दूसरे को मेडिटेशन कराते हैं, जो मेरे लिए खुशी की बात है।
इसके बाद गणित की कक्षा शुरु हुई और मैंने बच्चों को जोड़-घटाव पढ़ाया। इसके बाद बच्चों को कुछ प्रश्न भी दिए जिसे उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर बनाया और जिन प्रश्नों पर उन्हें दिक्कत हो रही थी, उस पर भी मैंने बच्चों के साथ उसे हल किया।
इसके बाद हेडमास्टर सर क्लास में आए और बच्चों का अटेंडेंस लिया। साथ ही उन्होंने बताया कि आज स्कूल में पढ़ा रहे किन्हीं राकेश सर का जन्मदिन है इसलिए जब वे कक्षा में आएं, तब बच्चे उनका अभिवादन करें। इसके बाद वे चले गए।
शिक्षक और बच्चों के बीच रिश्ता
मैंने बच्चों को राकेश सर को जन्मदिन की बधाई देने के लिए कहा और कुछ बच्चों के कहने पर ग्रीटिंग कार्ड बनाने में उनकी सहायता भी की। जब मेरी कक्षा पूरी हो गई और राकेश सर की घंटी थी, तब बच्चों ने उन्हें वे ग्रीटिंग कार्ड दिए और बधाई दी। मैं वहीं खड़ी सब देख रही थी। यहां मैंने महसूस किया कि सर के चेहरे पर एक अलग ही तेज था और बच्चों के अंदर भी आत्मविश्ववास की भावना झलक रही थी।
इसके बाद मैं फिर कक्षा में गई ताकि बच्चों को आने वाली परीक्षा की तैयारी करा सकूं। हालांकि लाइब्रेरी से किताब लेकर कहानी सुनाने को मैंने परीक्षा होने तक टाल दिया है मगर एक्टिविटी के जरिए उन्हें पढ़ाना जारी रखूंगी।
देखा जाए, तो ग्रीटिंग्स कार्ड बनाना, किसी को बधाई देना बहुत छोटा-सा काम लगता हो। यहां तक कि बहुत लोगों को तो ये सारी चीजें पहाड़ जैसी लगती हैं मगर किसी को बधाई देने से या किसी के चेहरे पर खुशी की बूंद देखने से मन को संतोष मिलता है। आज बच्चों के चेहरों पर भी मुझे वही खुशी और संतोष की झलक दिखाई पड़ी है। उम्मीद करती हूं कि बच्चे ऐसे ही बने रहेंगे और अपनी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
Wednesday, March 15, 2023
रजनीः एक बेहद सकारात्मक दिन था लेकिन अचानक पता चला कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही है?
आजकल लोगों के पास एक-दूसरे के लिए भी वक्त नहीं है। ऐसे में एक एडु-लीडर का घरों तक जाना और बच्चों के नामांकन की जानकारी जुटाना, उनके स्कूल जाने की स्थिति को आंकना और अभिभावकों को जागरुक करना वाकई एक सकारात्मक और जिम्मेदारी से भरपूर पहल की ओर इशारा करती है।
हमारे एडु-लीडर्स ना केवल बच्चियों को स्कूल से जोड़ रहे हैं बल्कि उनकी स्थिति पर भी नियमित नजरें बनाए हुए हैं कि जिन बच्चियों का नामांकन हुआ है, वे नियमित स्कूल तो आ रही हैं, उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है इत्यादि। इसी कड़ी में सर्वे करना भी शामिल है और अपने सर्वे के अनुभव को रजनी ने हमारे साथ साझा किया है।
मेरा नाम रजनी है और मैं आप सबके साथ एक प्यारा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं अभयपुर गांव में सर्वे करने गई थी, जहां मैंने एससी कम्युनिटी से सर्वे करना शुरू किया। वहां सर्वे करके मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि वहां के सभी 6 से लेकर 14 साल तक के बच्चे नियमित स्कूल जा रहे थे। वहीं जिनका हाल ही में 6 साल पूरा हुआ था, उन बच्चों के अभिभावक उनका एडमिशन करवाने के लिए भी तैयार थे।
साथ ही वहां का हर बच्चा प्रतिदिन युनिफॉर्म में स्कूल जाता है। ना केवल माता-पिता बल्कि बच्चे भी साफ सफाई का काफी ख्याल रखते हैं। साथ ही अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर काफी सक्रिय भी थे।
हालांकि जब मैं उस टोली में आगे गई तो मैंने देखा कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही थी। उस मां ने अपनी बच्ची को इतना ज्यादा पीटा था कि उस बच्ची का सिर भी फूट गया था इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां जाकर परिस्थिति को समझने का प्रयास करुंगी। मैंने वहां जाकर बातचीत की कि असल में मसला क्या है?
मेरे पूछने पर उस बच्ची की मां ने बताया कि इसकी परीक्षा चल रही है और यह परीक्षा देने के लिए स्कूल नहीं जा रही है। इस वजह से मैं इसे पीट रही हूं। इसके बाद मैंने उस बच्ची से बात करने की कोशिश की और उसे समझाया भी लेकिन वह बच्ची बहुत रो रही थी। यही कारण था कि वे मुझसे बात करने के लिए भी तैयार नहीं थी।
इसके बाद मैंने बच्ची की मां से बात की और उन्हें समझाया कि बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए क्योंकि मार-पीट करने से बच्चों में गलत संस्कार का विकास हो सकता है, जिससे बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं। मेरे समझाने के बाद उस बच्ची की मां अफसोस करने लगी कि मुझे इस तरीके से बच्ची को नहीं पीटना चाहिए था। इसके बाद मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि बच्ची से मिलने दोबारा आऊंगी और मैं अपने कर्तव्यपथ पर आगे निकल गई।
क्या आपने ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ के बारे में सुना है?
कहते हैं, अगर अच्छी पुस्तकों से दोस्ती की जाए जो आपके व्यक्तित्व में निखार लाती है, आपको जागरुक करती है औऱ एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है, तब उससे एकदम दोस्ताना रिश्ता बना लेना चाहिए। इसके अलावा अगर हर समुदाय में एक पुस्तकालय हो, तब लोगों में जागरुकता आती है और वे पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।
एडु-लीडर्स भी अपने कलस्टर मीटिंग में अनेक मुद्दों को रखते हैं, जो समाज के प्रगति के लिए जरुरी हैं और इसी कड़ी को पकड़ते हुए आंचल ने भी पुस्तकालय की महत्वता को कहानी से जोड़ते हुए बच्चों को जागरुक करने की कोशिश की है।
मैं आंचल बैच 9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ एक कहानी ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ का अनुभव साझा करने जा रही हूं।
यह कहानी मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छा लगी। इस कहानी से आज मैं यह समझ बना पाई कि रास्ते में कोई भी परेशानी आए, हमें हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए। अपने लक्ष्य को पाने के लिए कुछ दिन बहरे बन जाना भी स्वीकार कर लेना चाहिए।
हमारे कलस्टर मीटिंग में यह बात निकल कर सामने आई कि सब मिलकर अपने समुदाय में एक पुस्तकालय खोलना चाहते हैं, जिसमें सभी को बहुत परेशानी आ रही है, लेकिन हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि समुदाय में एक पुस्तकालय खुले और यह एक दिन जरूर पूरा होगा।
इस कहानी के पात्र को अनेक जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन वे अपने लक्ष्य नहीं हटे। अपने लक्ष्य पर ध्यान देकर आगे बढ़ते रहे।
कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा है। हम जब अपने समुदाय में पुस्तकालय खोलना चाह रहे हैं, तब हमें भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है मगर इन सारी परेशानियों का सामना करते हुए हम बच्चे के लिए लाइब्रेरी खोलने का प्रयास कर रहे हैं और अलग- अलग तरह के एक्टिविटी से बच्चे को जोर रहे थे।
एक्टिविटी में हमने बच्चों को बताया कि डाकू ने भी बच्चों की एक कहानी की किताब ले ली और उसे पढ़ने लगे। इससे यही पता चलता है कि बुरे इंसान भी पुस्तकालय का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे एक बदलाव आया। साथ ही साथ धीरे-धीरे लोग जागरुक होने लगे और डाकू भी बुरे कामों को छोड़कर एक अच्छा इंसान बन गया।
Tuesday, March 14, 2023
प्रीतिः बच्चियों के नामांकन के दौरान चला पता, नहीं रखे गए थे उनके रिकॉर्ड
प्रीति कुमारी ने बच्चियों के नामांकन के दौरान अपने अनुभव को साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि नामांकन को लेकर ना केवल अभिभावक बल्कि हेडमास्टर्स का भी रवैया कभी-कभार काफी मुश्किल और मशक्कत में डाल देता है। इन सब चुनौतियों के पार उन्हें केवल बच्चियों का चेहरा दिखाई पड़ता है, जो बैग टांगे स्कूल जा रही हैं और यही चीजें उन्हें प्रेरणा देती है। वे लिखती हैं-
"मैं सैफगंज, फरबिसगंज ब्लॉक अररिया में नामांकन के लिए गई तो वहां पर बहुत ही मुश्किल आ रही थी। पहले हेडमास्टर नहीं मान रहे थे फिर अभिभावक नहीं मान रहे थे, जब हमलोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में जानकारी दी, तब उन्हें हमारी बात समझ आई। उसके बाद वे नामांकन के लिए तैयार हुए।
सबसे ज्यादा मुश्किल यह था कि वहां अधिकांश बच्चियों का कोई डोक्युमेंट नहीं था। केवल 10 बच्चियों के ही डोक्युमेंट्स मिले, जिससे केवल उनका ही नामांकन हो सका। इसका मतलब यही है कि अभिभावक अपनी बेटियों के कागजातों को भी सही से नहीं रख पा रहे थे। शायद इसके पीछे की वजह लड़कियों को लेकर जागरुकता और उदासीनता ही एक कारण है।
हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि आप अच्छा काम रही हैं, तो मुझमें थोड़ी आशा का संचार हुआ। साथ ही मैंने हेडमास्टर से भी बात किया और उन्हें बच्चियों के डोक्युमेंट्स को सही तरीके से रखने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद हेडमास्टर ने मुझे लिखित में आश्वासन दिया कि वे बच्चियों के जमा किए डोक्युमेंट्स को सही से रखेंगे।"
देखा जाए, तो यह कार्य हर रोज चुनौतियों से भरा हुआ होता है लेकिन क्या किया जाए अगर दिल में शोला हो, और वह शोला बार-बार कहे कि एक भी बच्ची को शिक्षा से वंचित नहीं रखना है। हर कोमल हाथों में कलम हो, हर बच्ची के कंधे पर बैग हो ना कि उनके कोमल कंधे पर जिम्मेदारी या जलावन का भार हो। मैं रोज मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची शिक्षित हो सके।
चट्टानों से हौसले हमारे,
आसमान से ऊंचे इरादे,
बच्चियों को शिक्षा की महिमा दिखाकर,
मुसीबतों में दम नहीं की मुझे हरा दे।
एडुलीडर शालू के प्रयासों से सामने आई समस्याएं, अब वे कर रही हैं समाधान की पहल
फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम |
बैच-9 की एडु-लीडर शालू ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे ना केवल अपना अनुभव साझा कर रही हैं बल्कि बच्चों के साथ हुई एक्टिविटी के महत्वों पर भी चर्चा कर रही हैं, जो उनके व्यक्तित्व निर्माण की एक अहम कड़ी साबित होगा। वे लिखती हैं-
आज मैं आप सबके साथ अपने क्लासरुम का अनुभव शेयर करने जा रही हूं। बाहर के कुछ कामों के कारण आज मैं 15 मिनट की देरी से स्कूल पहुंची लेकिन तब भी मुझे क्लास खाली ही लगी। हालांकि मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बच्चों को आने में देरी कैसे हुई क्योंकि एक तो मैं देर थी इसलिए मुझे लगा था कि मुझे सारे बच्चे क्लास में ही मिलेंगे। बच्चे क्लास में मौजूद तो थे लेकिन उनकी संख्या थोड़ी कम लग रही थी।
मैंने क्लास में उपस्थित बच्चों को गुड मार्निंग विश किया और उन्होंने भी बड़े प्यार से मेरा अभिवादन किया। इसके बाद मैंने हेडमास्टर सर से कम उपस्थिति के बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया। जिसमें मुझे पता चला कि आज कक्षा छठी से लेकर आठवीं तक के बच्चों की परीक्षा है इसलिए बच्चों के बैठने की स्थिति में थोड़ा अंतर किया गया है। उन्होंने मुझे बताया कि पांचवीं कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा में बैठे हैं इसलिए मैं दूसरी कक्षा में चली गई।
वहां मैंने कक्षा में मौजूद बच्चों को मेडिटेशन कराया फिर चहक किताब से कक्षा की शुरुआत की गई। सभी बच्चों ने जोड़ों में बैठ कर और LFW की किताब से एक्टिविटी को किया। इसके बाद हेडमास्टर सर ने कक्षा में आकर वार्षिक परीक्षा की रूटिंग को ब्लैकबोर्ड पर लिखवाया, जिसे बच्चों ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया। इसके बाद सभी बच्चों ने बातचीत हुई कि उन्होंने होली के त्योहार को कैसे मनाया इत्यादि क्योंकि मेरा मानना है कि जब तक आप बच्चों से पूरी तरह नहीं जुड़ेगे, तब तक बच्चे भी आपसे पूरी तरह नहीं जुड़ पाएंगे इसलिए छोटी-छोटी पहल और एक्चिविटी करते रहना चाहिेए।
इसके बाद बच्चों से परीक्षा को लेकर बातचीत हुई कि उनका पाठ पूरा है या नहीं है, किस विषय में दिक्कत आ रही है, सिलेबस पूरा है या नहीं है इत्यादि। साथ ही बाकी बच्चों को भी सूचित करने के लिए कहा गया जो बच्चे कक्षा में अनुपस्थित थे ताकि उनकी परीक्षा ना छूटे।
कुल मिलाकर काफी अच्छा अनुभव रहा। चहक और LFW के जरिए बच्चों में बेहतर समझ नहीं और बच्चों से एक स्तर और जुड़ने का मौका मिला।
Friday, March 10, 2023
सीमाः अभिभावकों को राजी करने में लगा काफी वक्त, चार बच्चियों का हुआ नामांकन
बिहार के गया जिले की रहने वाली सीमा ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि जब बुनियादी सुविधाएं ना हो, अभिभावकों के अंदर शिक्षा को लेकर जागरुकता का अभाव हो, तब बच्चियों का नामांकन कराना किसी चुनौती से कम नहीं होता। कई बार उन्हें मनाने में ही पूरा दिन निकल जाता है और नतीजा शून्य ही रहता है मगर इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी एडु-लीडर्स के कदम नहीं रुकते।
“दिनांक 31/1/2023 को बड़की सांव का मलरवाडीह टोला में चार अनामांकित बच्चियों का नामांकन करवाया गया। नामांकन करवाने में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि जिन बच्चियां का नामांकन करवाना था, उनका घर एक-दूसरे से एवं स्कूल से भी काफी दूरी था।
यही कारण था कि जब दो अभिभावकों को समझाकर तैयार करते इतने में दूसरे अभिभावक कोई-ना-कोई बहाना बना देते। दिनभर लगभग अभिभावकों को मनाने का ही सिलसिला चलते रह गया फिर भी मैं हार नहीं मानने वाली थी क्योंकि मेरा काम बच्चियों को स्कूल से जोड़ना है।”
अंत में तैयार हुए अभिभावक
“मेरा मानना है कि ऐसी कठिनाइयां तो हरेक मोड़ पर आते रहेंगी इसलिए जीवन में सफलता पाने के लिए हरेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तभी आगे चलकर सफलता का मार्ग प्राप्त होता है। इस प्रकार अभिभावकों को प्रत्येक दिन स्कूल जाने वाली बच्चियों के बारे में कुछ जानकारी दी और उन्हें शिक्षा के महत्व को बताया, जिस कारण धीरे-धीरे अभिभावकों में कुछ सुधार हुआ। यही कारण था कि अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन करवाने के लिए तैयार हो गए और हमारे साथ अपने बच्चों को ले्कर स्कूल में आएं।
इसके बाद मैं टीचर से बात कर नामांकन करवाया गया। अभिभावकों ने भी अपने हस्ताक्षर किए। इस प्रकार अनेक मुसीबतों का सामना करते हुए आखिरकार चार बच्चियों ने अपने कदम स्कूल में रखे। इन बच्चियों का नाम इस प्रकार है- 1. सम्पत कुमारी 2. प्रियंका कुमारी 3. चांदनी कुमारी 4.सुनैना कुमारी।
आज जहां कोरोना के बाद से लड़कियों की शिक्षा में भारी गिरावट दर्ज हुई थी, तो वहीं अभिभावकों की लापरवाही ने इस आंकड़े को और बढ़ा दिया। Unified District Information System for Education (UDISE) Plus 2021-22 रिपोर्ट के अनुसार ड्रापऑउट रेट में भारी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लड़कियों का नामांकन कराना वाकई एक चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन शिक्षा के अधिकार से किसी व्यक्ति को वंचित करना भी गलत है इसलिए मैं अपनी मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची पढ़ सके और आगे बढ़ सके।”
Monday, March 6, 2023
बाल उत्सव के दौरान निखर कर सामने आई बच्चों की प्रतिभा, अभिभावक भी हुए मंत्रमुग्ध
आज मैं आप सभी के साथ बिहार के गया ज़िले के चौगाई गांव स्थित राजकीय मध्य विद्यालय में हुए बाल उत्सव का अनुभव साझा करने जा रही हूं। इस बाल उत्सव का आयोजन राजकीय मध्य विद्यालय में हुआ था, जिसमें प्राथमिक विद्यालय, भलुहार, चौगाई भी शामिल था।
SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं I-Saksham Education and Learning Foundation (i-Saksham) के सहयोग से राजकीय मध्य विद्यालय, चौगाई गांव, गया, बिहार में बाल उत्सव का आयोजन किया गया। इस बाल उत्सव का उद्देश्य बच्चों, विद्यालय और समाज को एक जगह लाकर बच्चों की क्षमता को सबके सामने लाने के लिए एक मंच तैयार करना, बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाना एवं उनकी क्षमता को विकसित करना है। SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं i-Saksham द्वारा चल रहे फैलोशिप प्रोग्राम के तहत बच्चों को एडुलीडर बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे दूर-दराज इलाकों में शिक्षा के प्रति, बाल-विवाह के प्रति और आधारभूत स्तर पर परिवर्तन ला सकें।
पहला cohort, 18 एडु-लीडर्स के साथ अक्टूबर 2020 में कोविड के दौरान गया जिले के अमास और बांके बाजार ब्लॉक में शुरू किया गया था। इसके बाद साल 2021 और 2022 में दो और cohorts एडुलीडर्स द्वारा शुरू किए गए। अभी तक SAVE Solutions 50 एडु-लीडर्स अपने CSR कार्यक्रम के अंतर्गत प्रायोजित कर रही है।
मैं पहली बार किसी स्कूल में हुए बाल उत्सव में भाग ले रही थी इसलिए मैं बहुत उत्साहित थी। साथ ही मेरा उत्साह उस वक्त दोगुना हो गया, जब मैंने अन्य बच्चों को भी उत्साहित देखा।
किताबों से सजा स्कूल
पूरा स्कूल ही किताबों से सजा हुआ था। ऐसा लग रहा था मानों होली से पहले ही पूरे स्कूल में किताब के रंग छा गए हो। बच्चे एडुलीडर के साथ मिलकर टीएलएम, एलएफडब्ल्यू की किताब, बाल उत्सव के पोस्टर आदि लगा रहे थे। वहीं कुछ बच्चे अभिभावकों के बैठने के लिए दरी और कुर्सी लगा रहे थे। कुछ बच्चे संगीत की धुन में खोए हुए थे। जब सारी तैयारी लगभग पूरी हो गई, उसके बाद अभिभावकों का आना शुरू हो गया।
बाल उत्सव |
और खुशी की लहर दौड़ गई
मुझे बहुत अच्छा लगा रहा था कि सारे अभिभावक अपना कीमती समय निकालकर यहां तक आए। जब सारे अभिभावक अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे फिर स्कूल के कुछ छात्राओं ने स्वागत गान गाकर अभिभावकों का स्वागत किया। स्वागत गान सुनकर अभिभावकों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई।
उसके बाद हमारी एडुलीडर प्रीति और ब्यूटी आर्या ने बेटी और नारी के ऊपर एक बहुत ही अच्छी कविता सुनाई, फिर स्कूल की दो बच्चियों ने सैनिकों के जीवन पर आधारित एक बहुत ही सुंदर गीत सुनाया। उसके बाद कृषक पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए बताया गया कि चने की फसल को कैसे बोया जाता है? उस पर एक्शन के साथ एक बाल गीत भी सुनाया गया।
बचपन की यादों का दरीचा
इन सारे कार्यक्रम के बाद हमारी टीम की तरफ से बच्चों के बीच स्टोरी राइटिंग, ड्राइंग कंपटीशन, इंग्लिश और मैथ के गेम्स आदि कराए गए। सारे बच्चे ना केवल इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए काफी उत्सुक थे बल्कि उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी। बच्चों की प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता के प्रति लगन देखकर मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हुआ, मानों किसी ने बचपन की याद को आंखों के सामने परोस दिया हो।
पुरस्कार प्राप्त करते बच्चे |
प्रतियोगिता के बाद स्कूल की तरफ से म्यूजिकल चेयर गेम का आयोजन हुआ, जिसमें बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बच्चों में एक अलग ही खुशी का माहौल था। जब सारी एक्टिविटी खत्म हो चुकी थी और इनाम बांटने का वक्त आया, तब जिन बच्चों ने प्रतियोगिता में पहला, दूसरा या तीसरा स्थान प्राप्त किया था ना केवल उन्हें बल्कि भाग लेने वाले सभी बच्चों को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया गया ताकि उनका मनोबल भी बना रहे।
यह अनुभव अदिबा, बड्डी इंटर्न ने आई-सक्षम के साथ साझा किया है।