Wednesday, March 22, 2023

धन्यवाद केवल शब्द नहीं बल्कि एक भावना है

हमारे एडुृलीडर्स हर रोज कुछ नया करने का प्रयास करते हैं और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं। इसी कड़ी में बैच-9 की सपना ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि धन्यवाद देने का अनुभव कैसा हो सकता है? साथ ही उनके अनुभव को पढ़ते हुए, आप भी महसूस कर पाएंगे कि धन्यवाद केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक अनुभव है। वे लिखती हैं-


"हेल्लो दोस्तों , आज मैं आपको आज का फील्ड वर्क का अनुभव बताना चाहती हूं। आज मुझे उन अविभावकों को धन्यवाद  बोलना था, जो अपने बच्चों को एवं आई-सक्षम  पर भरोसा करतेे हैं। सच बताऊंं तो मुझे काफी अच्छा महसूस हुआ और ये इस तरह का अनोखा अनुभव था क्योंकि सामान्यतः लोग धन्यवाद करते तो हैं, लेकिन उसे महसूस या उसके भाव को समझ नहीं पाते हैं।" 


अभिभावक करते हैं प्रोत्साहित 


"मैंने जितना हो सके, उतने अभिभावकों से मिल कर उन्हें धन्यवाद दिया। अभिभावक अकसर कहते हैं, आप इतने अच्छे से पढ़ाते हैं एवं बच्चों को अच्छे संस्कर देते हैं। आज के समय में जब शिक्षा एक व्यपार बन गया है, ऐसे में एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के लिए इतनी मेहनत करना वाकई सराहनीय है।" 


दिव्यांशु की मम्मी का कहना था, "आपके यहां मरा बच्चा अच्छे से पढ़ता है। पहले तो इतना बदमाशी करता था कि मैं तंग आ जाती थी लेकिन अब मेरा बेटा अच्छे से रहता है। मेरी बात भी सुनता है एवं घर के बड़े-बुजुर्गों की इज्जत भी करता है। साथ ही घर में भी किताब निकाल कर पढ़ता है। मुझे बहुत  खुशी होती है कि मेरे बच्चे में बदलाव आ रहा है।" 


बच्ची करती है आपकी नकल 


प्रियांशु की मम्मी का भी कहना था कि मेरी बेटी आपकी नकल करके, आपकी तरह पढ़ाने की कोशिश करती है कि मैडम ऐसे पढ़ाती हैं, मैडम ऐसे समझाती हैं इत्यादि। 


अब अगर किसी भी व्यक्ति को इतना सराहा जाए, तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह भी अपनी तरफ से कृतज्ञता व्यक्त करे। यही कारण था कि मैं सभी अविभावकों  को धन्यवाद पत्र दिया। मेरी इस पहल से वे काफी खुश हुए। साथ ही अब हमारे बीच ऐसा रिश्ता बन गया है कि ऐसा लगता है कि मैं भी उनके परिवार की सदस्य हूं। 


किसी को प्यार और सम्मान से अगर धन्यवाद बोला जाए, तो एक ऐसे रिश्ते का निर्माण होता है, जिससे रिश्तों की डोर मजबूत हो जाती है। साथ ही मन में भी एक खुशी का भाव उतपन्न होता है, जो आपको और ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे ना  केवल दूसरों को बल्कि स्वयं को भी अच्छा महसूस हो सके।


खुशियां बड़ी या छोटी नहीं बल्कि 'खुशी' होती है

 



हेलो दोस्तों, आज मैं आपके सामने छोटी सी कहानी साझा करना चाहती हूं। आज मुझे पता चला कि अगर दृढ़ विश्वास हो, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

मेरी मुलाकात एक 15 साल के बच्चे से हुई है, जो पूर्ण रूप से दिव्यांग है। एक बार फील्ड विजिट के द्वारा उससे मुलाकात करने का मौका मिला। उसकी मम्मी ने मुझे बताया कि दीदी हम बहुत गरीब हैं। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि एक व्हीलचेयर खरीद सकूं। 

साथ ही अभी तक सरकारी योजना का लाभ तक नहीं मिला है। अगर आप कुछ कर पाए तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी। 

और शुरू हुआ कुर्सी का संघर्ष 

यह सब देखने के बाद मैंने सोचा कि कम से कम मैं इस बच्चे को कुर्सी तो दिला कर ही रहूंगी। मैं हर जगह गई, जहां से मुझे कुर्सी मिल सकती थी या कोई संभावना बन जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हो सका। 

इसके बाद मैंने आदित्य सर से बात की। हर लोगों से मदद मांगी मगर अंततः सर के बताए हुए मार्ग पर चल कर हमारे i-saksham के एक साथी मनोज जी की मदद से आज साथ महीनों बाद कुर्सी मिल ही गई। कुर्सी मिलने के बाद बच्चे की खुशी देखते ही बन रही थी। 

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि अपने प्रयास को सही दिशा में करना चाहिए। साथ ही हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और जितना हो सके लोगों को जागरूक करना चाहिए। साथ ही मुझे भी बहुत सुकून मिला कि मैंने अपने तरफ से प्रयास किया और उसका फल भी मिला। 


Monday, March 20, 2023

रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता


नकारात्मक खबरें हर जगह से मिल जाती हैं लेकिन शोध बताता है कि सकारात्मक खबरों को जानने से ना केवल मनुष्य का आंतरिक विकास होता है बल्कि उसे अच्छा भी महसूस होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में विकास होता है। 


आज हमारे एडुलीडर जमीनी हकीकत को सामने लाते हुए एक बदलाव और सकारात्मक खबर भी साझा कर रहे हैं, जो ना केवल आपको बल्कि हर उस बच्ची के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जिनके लिए पढ़ पाना एक चुनौती है। 


मैं धर्मराज कुमार, आप सभी के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। मैं जमुई जिले में स्थित लठाणे नाम के एक गांव में बच्चे के शैक्षणिक स्थिति के बारे में जांच करने गया था। उसी दौरान मेरी मुलाकात कुछ महिलाओं से हुई। जब मैंने उनसे उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछताछ की तो कुछ बातें निकल कर सामने आई, जिसे सुनकर मुझे काफी आनंद आया और थोड़ी मायूसी भी हाथ लगी। बातचीत में पता चला कि उनकी एकमात्र पुत्री हैं, जिनका नाम संजना है।


उन महिला ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है। उनका घर खपरैल का है और वह भी टूटा फूटा हुआ है। जब मैंने पूछा "क्या आपकी लड़की स्कूल पढ़ने जाती है?" मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, "यह सब मत पूछिए। मेरी बेटी तो बोलती है कि अगर रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता।” 


मैं स्कूल नागा नहीं करुंगी


उन्होंने आगे कहा कि आप जाकर स्कूल में सभी शिक्षक से पूछ सकते हैं कि मेरी बेटी एक भी दिन क्लास से अनुपस्थित नहीं रहती है। हालांकि मैं ही किसी-किसी दिन बोलती हूं कि आज स्कूल नहीं जा। घर में बहुत काम है। तो मेरे इतना कहने पर वह बोलती है कि “मां, मैं स्कूल से जाऊंगी। आपका सारा काम भी कर दूंगी। अगर मैं नागा कर दूंगी तो आगे फिर मुझे विषय समझने में दिक्कत होगी।”  


अपनी बेटी की ऐसी लगन देखकर मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं बोलती हूं। मैं भी सोचती हूं कि ठीक है, जब तुम्हारा मन पढ़ाई में है, तो पढ़ो। 


मां को है भविष्य की चिंता 


अपनी बेटी के लिए एक मां की ऐसी सोच जानकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कहीं ना कहीं बदलाव की बयार बह रही है। हालांकि जाते-जाते मैंने उन्हें कहा, "आपकी बेटी हीरा है। इसे खूब पढ़ाइए।" मेरे इतना कहने पर उस महिला ने फिर मुझसे कहा, "मुझे दुविधा है कि पता नहीं कि मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा पाऊंगी भी या नहीं।" 


"तब मैंने उनकी आशंका को कम करते हुए कहा, "मेरा विश्ववास है कि अभी आपको मैट्रिक तक इसके पढ़ाई के खर्चे  के बारे में नहीं सोचना होगा।  स्कूल से पोशाक, किताब, छात्रवृत्ति यह सभी मिलते रहेंगे। इसके अलावा थोड़ा बहुत कॉपी-कलम की जरूरत होगी, जिसे आप जुटाने में सक्षम होंगे। साथ ही समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।" 


कुल मिलाकर मुझे अपनी पहल और मेहनत पर बहुत नाज हुआ कि कम से कम लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। हालांकि अभी भी ऐसे कई हिस्से होंगे, जहां बदलाव की दरकार है लेकिन मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर इसे भी हासिल किया जा सकता है। 


Saturday, March 18, 2023

प्रियंजलि: साप्ताहिक सेशन में हमने अपनी ऊर्जा को मापा, एडुलीडर एवं बड्डी के आशाओं पर भी हुई बातचीत

नमस्ते साथियों, 

मैं प्रियंजलि कुमारी, बैच 8 की एडु लीडर हूं। मैं आशा करती हूं कि सभी साथी स्वस्थ होंगे। 

आज मैं दिनांक 17 /3/2023 दिन शुक्रवार को सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा करने जा रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी साथी समय से पहुंचे और सही समय से सेशन की शुरुआत हुई। मैं आज के सेशन के उद्देश्य को अच्छी तरह से जान पाई और Buddy के stakeholder के बारे में भी जान पाई। 

साथ ही मैंने एडु लीडर और बड्डी की उस कड़ी को भी महसूस किया कि एक दूसरे से हमारी क्या आशा हो सकती है। इस बारे में मैं निम्नलिखित बिंदु साझा करना चाहती हूं। 

 1. बड्डी एडु लीडर के अभिभावकों से मिले।
 2. बड्डी एडू लीडर्स को प्रोत्साहित करें।
 3. व्यक्तित्व विकास पर बातचीत।

एक बड्डी की एडु लीडर्स से आशा 

1.एडू लीडर समय से कार्य करें।
2. मानसिक विकास पर बात करें।
3. अनुभव साझा करें।
   
इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों उस रंग में थे, इस पर भी बातचीत हुई जैसे कि सभी साथी ने पीले रंग में थे। जिसका अर्थ है, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद।

उसके बाद ग्रुप में बैठकर एक समूह के रूप में हमें क्या करना चाहिए इसके बारे में बातचीत हुई। आज का सेशन हमारे लिए बहुत अच्छा रहा, बहुत कुछ सीखने को मिला। 

कोमल: जब मैंने पहली बार डिब्रीफ कराया और ब्लैक बोर्ड पर लिखा

 हमारी एडु लीडर कोमल ने अपने साप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि उनकी समझ और सोच किस प्रकार विकसित हुई। इतना ही नहीं उन्होंने हमारे साथ यह भी साझा किया है कि उन्होंने जब पहली बार डिब्रीफ कराया और पहले बार ब्लैक बोर्ड पर लिखा तब उनका अनुभव कैसा था? 

आज की सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा कर रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी समय से पहुंच गए तथा आज के सेशन के उद्देश्य को जाने। साथ ही पिछले सेशन पर बातचीत हुई। जैसे- स्टेकहोल्डर पर और अच्छे से समझ बना पाए तथा ग्रुप में भी स्टेकहोल्डर मैट्रिक बनाएं, जिससे काफी अच्छे समझ बन पाई।

उसके बाद इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों थे, इसपर बातचीत हुई जिसमें मैं पीले रंग में थी। इस पीले रंग का अर्थ हुआ, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद। 

उसके बाद फिर से हम सब ग्रुप में बैठे और एक बड्डी को एडु लीडर से क्या आशा है तथा एक एडु लीडर को बड्डी से क्या आशा है, इसके बारे में समझ बनाने का प्रयास किया गया। 
 
आज के सेशन की सबसे अच्छी बात यह रही कि मुझे डिब्रीफ करने का मौका मिला और बोर्ड पर भी लिखने का मौका मिला यह पहली बार था जब मैं बोर्ड पर लिख रही थी। ब्लैक बोर्ड पर लिखने के दौरान मैं थोड़ी सी नर्वस और डरी हुई थी लेकिन सब के उत्साहवर्धन के कारण मैंने इससे भी बखूबी किया। साथ ही डिब्रीफ कराने के दौरान मैंने भी अपने अंदर कुछ सकारात्मकता को महसूस किया और इससे मेरी संवाद करने की स्थिति में भी सुधार हुआ।

मात्र 9 साल की शिक्षिका जो पढ़ाने के नहीं लेती है पैसे, पूछने पर देती है ये जवाब


हम आए दिन कई खबरें देखते हैं, लेकिन उनमें सकारात्मक और प्रेरणा बहुत कम दिखाई पड़ती है। यहां तक कि आज भी कई खबरें या चीज़ें लोगों के सामने नहीं आ पाती। 

कुछ इसी तरह का उदाहरण आप यहां पढ़ सकते हैं। एक बच्ची जो खुद मात्र 9 साल की है, और उसके खुद के अभी पढ़ने की उम्र है, वह बच्ची अपने गांव के अन्य बच्चों को भी पढ़ा रही है। पूछने पर बड़ी शालीनता से जवाब भी देती है। इसे हमारी बड्डी राजमणि ने साझा किया है। 

आइए अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हैं और राजमणि की कलम से जानते हैं, कुछ करने की जब लगन हो, तब बदलाव को लाया जा सकता है। 

दोस्तों, मैं आप सभी के साथ सपना बैच -9 के क्लासरूम की एक प्यारी सी बच्ची प्रियांशु कुमारी के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूं। 

प्रियांशु चौथी कक्षा में पढ़ती है और वह मात्र 9 साल की है, जगदंबापुर फरदा की रहने वाली है। 

प्रियांशु के अंदर बहुत सारी आशाएं हैं। इस बच्ची को सपना सुबह में 6:30 से 8:30 बजे तक पढ़ाती है। इसके बाद प्रियांशु स्कूल चली जाती है और 3:00 बजे स्कूल से पढ़कर वापस घर आती है। 

घर आकर खाना खाती है और अपने आसपास के बच्चे को घर जाकर बुलाने जाती है। आप सोच रहे 
होंगे कि यह बच्ची सबको खेलने के लिए बुलाती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बच्चे आसपास के बच्चों को पढ़ाने के लिए बुलाती है। 

इसके बाद जब 5 से 6 बच्चे इकट्ठा हो जाते हैं, तो यह प्रतिदिन उन बच्चों को 4:00 बजे से पढ़ाती है। यह सिलसिला हर रोज चलता है।

बच्चों के साथ जमीन पर बैठना 

प्रियांशु के पढ़ाने का तरीका बिल्कुल उसकी शिक्षिका
सपना के जैसा है। साथ ही वह बच्ची बच्चों के साथ जमीन पर बैठती है। 

प्रियांशु सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाती है। बाल गीत या कोई गतिविधि करवाती है। बच्चे को अलग-अलग ग्रुप में बैठा कर उनको क्लास के अनुसार पढ़ाने की कोशिश करती है। साथ में t.l.m. का इस्तेमाल भी करती है। 
चूंकि प्रियांशु के पास चार्ट पेपर और कलर नहीं है इसलिए वह कॉपी के कागज को फाड़ कर उसका t.l.m. बनाती है और घर के दीवार में अलग-अलग जगह लगा देती है। 

प्रियांशु केवल उन्हीं बच्चों को पढ़ाती है, जिसका स्तर उनके स्तर से नीचे हो ताकि उनको पढ़ाने में बहुत आसानी लगे। 

मां को दिया धन्यवाद पत्र

यह जानकारी मुझे उनकी मम्मी से पता चली, जब मैं शनिवार को कमेटी में गई थी। मैंने प्रियांशु की मम्मी को धन्यवाद पत्र भी दिया क्योंकि कहीं न कहीं उन्होंने भी अपनी बेटी की पहचान गढ़ने में भूमिका निभाई है।

इसके बाद मैंने प्रियांशु से भी मुलाकात की और कुछ सवाल पूछे, "प्रियांशु, आप बच्चों को क्यों पढ़ाती हैं? कैसे पढ़ाती हैं?" इस पर प्रियांशु ने कहा, "दीदी, मैं आपके यहां से जो पढ़ कर आती हूं और जो सीखती हूं उसी को मैं अपने घर के आस-पास के छोटे बच्चे को पढ़ाती हूं।"

"जो मुझे समझ में नहीं आता है, तो मैं आपके पास पढ़ने के लिए जाती हूं। वहां क्लास रूम में बहुत सारे चित्र बने हुए हैं और क्लास में जो भी t.l.m लगा हुआ है, उसको मैं अपने कॉपी में बना लेती हूं। उसके बाद मैं घर आकर उसको अच्छे पेज में फिर से बनाकर अपने घर की दीवार में लगा देती हूं।" 

बच्चों से नहीं लेती पैसे

इसके बाद मैंने प्रियांशु से फिर पूछा कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ पैसे भी लेती हैं? तो इस पर प्रियांशु ने कहा, "मैं बच्चों से पैसा नहीं लेती हूं। मैं जहां पढ़ती हूं, वहां मुझसे पैसे नहीं लिए जाते इसलिए मैं भी किसी से पैसे नहीं लेती हूं। मुझे पढ़ना और पढ़ाना पसंद है इसलिए मैं यह करती हूं।"

जब मैं यह कहानी सपना के द्वारा सुनी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैंने उनको बोला कि वह जब पढ़ाती है, तो किसी दिन आप उनके घर जाओ और आप बैठ कर देखो फिर वह कैसे पढ़ाती है। हो सके तो आप उसका वीडियो या फोटो भी ले सकते हैं। 

मेरे इतना कहने के बाद सपना उनके घर गई। वह बिल्कुल एक शिक्षिका की तरह पढ़ा रही थी, जिसमें मेरे भी कुछ अंश सम्मलित थे। यह मेरी अब तक की सबसे प्यारी तस्वीर है और हां, अनुभव भी। यह जानकारी मुझे सपना से मिली है, जिसे मैंने कलमबद्ध किया है। 

अमूमन इस उम्र के बच्चे खेल कूद पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्हें पढ़ने के लिए बोलना पड़ता है। यहां तक कि कई माता पिता इतने जागरूक भी नहीं होते कि वे अपनी बच्ची को पढ़ाए लेकिन यहां की तस्वीर बदलाव और उम्मीदों से भरपूर तस्वीर थी। 
         

Friday, March 17, 2023

स्मृतिः सुझावों को सकारात्मकता से स्वीकारना आपके व्यक्तित्व को निखारता है

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

स्मृति कुमारी ने अपनी कक्षा का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने महसूस किया है कि बच्चों को सही दिशा दी जाए तो वे जरुर अच्छा करते हैं। इतना ही नहीं स्मृति का अनुभव पढ़ कर आप जानेंगे कि सुझावों को किस प्रकार सकारात्मकता से लिया जा सकता है क्योंकि कई बार लोगों को सुझाव लेना पसंद नहीं आता मगर सुझावों को सहर्ष स्वीकारना स्मृति बता रही हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सुझाव आपको बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे लिखती हैं-


मैं स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आज आप सबके साथ आज के सेशन का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज साक्षी दी मेरे स्कूल में आई हुई थीं इसलिए मेरा अनुभव एक ओर जहां उत्साह से भरा है, वहीं दूसरी ओर मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा भी दे रहा है।


नियमानुसार मैंने सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर कल जो हमने पढ़ा था, उसकी पुनरावृत्ति की फिर उसके बाद आज के पाठ्य की चर्चा की। मैंने आज बच्चों को गणित पढ़ाया और गणित में पहले बढ़ते क्रम और घटते क्रम को बच्चों को सिखाया। साथ ही गणित की बेहतर समझ बनाने के लिए हम सबने एक एक्टिविटी भी किया। 


इसके बाद मैंने बच्चों से विषय से जुड़े सवाल करने को कहा, जिसमें बच्चों ने प्रश्न पूछे और अपनी समझ को बेहतर किया। उसके बाद साक्षी दी ने पूछा, “क्या मैं बच्चों को किताब पढ़ाऊं?” फिर उन्होंने बच्चों को किताब पढ़ाया और जब दी ने किताब पढ़ाने से पहले यह पूछा, बच्चों, कुछ पन्नों को पढ़कर मैं शुरुआत करूंगी लेकिन मेरे बाद सबको बारी-बारी से पढ़ना होगा।" इतना सुनते ही बच्चों का उत्साह दोगुना हो गया।


सभी बच्चे हाथ ऊपर करके अपनी बारी का इंतजार करने लगे। इसके बाद साक्षी दी ने बच्चों को पढ़ाया। साथ ही वे बच्चों की उत्सुकता और उनके सवालों के जवाब भी देती रही। बच्चों के बीच काफी उत्साह था और सीखने की जिज्ञासा भी झलक रही थी, जो उनके बेहतर कल के लिए वरदान साबित हो सकती है।

  

सुझावों का दिल से स्वागत 


कक्षा के अंत में साक्षी दी ने मुझे कुछ सुझाव भी दिए, जैसे- मैं अपनी कक्षा को और बेहतर कैसे बना सकती हूं, इत्यादि। मुझे दी द्वारा जो फिडबैक मिला है, मैं उस पर जरुर काम करूंगी और अपनी कक्षा को और बेहतर करूंगी। 


आज मैं लंच टाइम तक स्कूल में ही रूकी थी, तो एक चीज जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी वो थी कि बच्चे एक दूसरे की मदद कर रहे थे। वे एक-दूसरे को TLM द्वारा समझा रहे थे। साथ ही बच्चे लाइब्रेरी का भी प्रयोग कर रहे थे और किताबों को उनकी जगह पर रख रहे थे। मुझे ये सब अपनी कक्षा में देख कर बहुत अच्छा लगा और प्रेरणा भी मिली कि अगर सकारात्मक भाव से पहल की जाए, तो अनुशासन द्वारा बहुत कुछ बदला जा सकता है। 


साथ ही मैंने अनुभव किया कि बच्चों के अंदर असीमित ऊर्जा है, क्योंकि जिस प्रकार वे हाथ को खड़ा करके पढञने की ललक दिखा रहे थे, उससे एक बात साफ है कि उन्हें अगर सही मार्गदर्शन दिया जाए, तो वे जरुर अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं अपनी ओर से कोई कमी ना रहने दूं।


Thursday, March 16, 2023

शालूः संतोष और खुशी की परिभाषा बदल देगा यह अनुभव

फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम

बैच-9 की एडु-लीडर शालु ने अपना क्लासरुम का अनुभव साझा किया है। उनका अनुभव पढ़ने के बाद आप महसूस करेंगे कि किसी के चेहरे पर खुशी के भाव देखने के लिए महंगे तोहफे या दिखावे की जरुरत नहीं होती है बल्कि छोटी-छोटी खुशियां ही संतोष देने वाली होती हैं।


आज जब मैं क्लास रूम में गई तब बच्चों ने मुझे गुड मॉर्निंग विश किया और मैंने भी बच्चों को गुड मॉर्निंग विश किया। इसके बाद बच्चों से हाल-समाचार पूछा क्योंकि मेरा मानना है कि अचानक से पढ़ाई-लिखआई की बातें करना बच्चों को बोर कर सकता है इसलिए पहले हल्की-फुल्की बातें होनी चाहिए। 


बातचीत के दौरान एक बच्चे अंशु कुमार ने कहा, मिस आज अपने स्कूल के बगल में पेड़ वितरण हो रहा है। दूसरे बच्चे ने बताया कि कल से कुछ कक्षाओं में परीक्षा शुरु होने वाली है। कुल मिलाकर सभी बच्चों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। 


इसके बाद मेडिटेशन की प्रक्रिया शुरु हुई। बच्चे पहले मेडिटेशन करने से हिचकते थे लेकिन अब बच्चे स्वयं ही उत्साह से एक-दूसरे को मेडिटेशन कराते हैं, जो मेरे लिए खुशी की बात है। 


इसके बाद गणित की कक्षा शुरु हुई और मैंने बच्चों को जोड़-घटाव पढ़ाया। इसके बाद बच्चों को कुछ प्रश्न भी दिए जिसे उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर बनाया और जिन प्रश्नों पर उन्हें दिक्कत हो रही थी, उस पर भी मैंने बच्चों के साथ उसे हल किया। 


इसके बाद हेडमास्टर सर क्लास में आए और बच्चों का अटेंडेंस लिया। साथ ही उन्होंने बताया कि आज स्कूल में पढ़ा रहे किन्हीं राकेश सर का जन्मदिन है इसलिए जब वे कक्षा में आएं, तब बच्चे उनका अभिवादन करें। इसके बाद वे चले गए। 


शिक्षक और बच्चों के बीच रिश्ता 


मैंने बच्चों को राकेश सर को जन्मदिन की बधाई देने के लिए कहा और कुछ बच्चों के कहने पर ग्रीटिंग कार्ड बनाने में उनकी सहायता भी की। जब मेरी कक्षा पूरी हो गई और राकेश सर की घंटी थी, तब बच्चों ने उन्हें वे ग्रीटिंग कार्ड दिए और बधाई दी। मैं वहीं खड़ी सब देख रही थी। यहां मैंने महसूस किया कि सर के चेहरे पर एक अलग ही तेज था और बच्चों के अंदर भी आत्मविश्ववास की भावना झलक रही थी। 


इसके बाद मैं फिर कक्षा में गई ताकि बच्चों को आने वाली परीक्षा की तैयारी करा सकूं। हालांकि लाइब्रेरी से किताब लेकर कहानी सुनाने को मैंने परीक्षा होने तक टाल दिया है मगर एक्टिविटी के जरिए उन्हें पढ़ाना जारी रखूंगी।


देखा जाए, तो ग्रीटिंग्स कार्ड बनाना, किसी को बधाई देना बहुत छोटा-सा काम लगता हो। यहां तक कि बहुत लोगों को तो ये सारी चीजें पहाड़ जैसी लगती हैं मगर किसी को बधाई देने से या किसी के चेहरे पर खुशी की बूंद देखने से मन को संतोष मिलता है। आज बच्चों के चेहरों पर भी मुझे वही खुशी और संतोष की झलक दिखाई पड़ी है। उम्मीद करती हूं कि बच्चे ऐसे ही बने रहेंगे और अपनी परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करेंगे।


Wednesday, March 15, 2023

रजनीः एक बेहद सकारात्मक दिन था लेकिन अचानक पता चला कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही है?

आजकल लोगों के पास एक-दूसरे के लिए भी वक्त नहीं है। ऐसे में एक एडु-लीडर का घरों तक जाना और बच्चों के नामांकन की जानकारी जुटाना, उनके स्कूल जाने की स्थिति को आंकना और अभिभावकों को जागरुक करना वाकई एक सकारात्मक और जिम्मेदारी से भरपूर पहल की ओर इशारा करती है। 

हमारे एडु-लीडर्स ना केवल बच्चियों को स्कूल से जोड़ रहे हैं बल्कि उनकी स्थिति पर भी नियमित नजरें बनाए हुए हैं कि जिन बच्चियों का नामांकन हुआ है, वे नियमित स्कूल तो आ रही हैं, उनकी पढ़ाई कैसी चल रही है इत्यादि। इसी कड़ी में सर्वे करना भी शामिल है और अपने सर्वे के अनुभव को रजनी ने हमारे साथ साझा किया है। 

                   

मेरा नाम रजनी है और मैं आप सबके साथ एक प्यारा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं अभयपुर गांव में सर्वे करने गई थी, जहां मैंने एससी कम्युनिटी से सर्वे करना शुरू किया। वहां सर्वे करके मुझे बहुत खुशी हुई क्योंकि वहां के सभी 6 से लेकर 14 साल तक के बच्चे नियमित स्कूल जा रहे थे। वहीं जिनका हाल ही में 6 साल पूरा हुआ था, उन बच्चों के अभिभावक उनका एडमिशन करवाने के लिए भी तैयार थे। 


साथ ही वहां का हर बच्चा प्रतिदिन युनिफॉर्म में स्कूल जाता है। ना केवल माता-पिता बल्कि बच्चे भी साफ सफाई का काफी ख्याल रखते हैं। साथ ही अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर काफी सक्रिय भी थे। 


हालांकि जब मैं उस टोली में आगे गई तो मैंने देखा कि एक मां अपनी बच्ची को पीट रही थी। उस मां ने अपनी बच्ची को इतना ज्यादा पीटा था कि उस बच्ची का सिर भी फूट गया था इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां जाकर परिस्थिति को समझने का प्रयास करुंगी। मैंने वहां जाकर बातचीत की कि असल में मसला क्या है? 


मेरे पूछने पर उस बच्ची की मां ने बताया कि इसकी परीक्षा चल रही है और यह परीक्षा देने के लिए स्कूल नहीं जा रही है। इस वजह से मैं इसे पीट रही हूं। इसके बाद मैंने उस बच्ची से बात करने की कोशिश की और उसे समझाया भी लेकिन वह बच्ची  बहुत रो रही थी। यही कारण था कि वे मुझसे बात करने के लिए भी तैयार नहीं थी। 


इसके बाद मैंने बच्ची की मां से बात की और उन्हें समझाया कि बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए क्योंकि मार-पीट करने से बच्चों में गलत संस्कार का विकास हो सकता है, जिससे बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं। मेरे समझाने के बाद उस बच्ची की मां अफसोस करने लगी कि मुझे इस तरीके से बच्ची को नहीं पीटना चाहिए था। इसके बाद मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि बच्ची से मिलने दोबारा आऊंगी और मैं अपने कर्तव्यपथ पर आगे निकल गई। 




क्या आपने ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ के बारे में सुना है?

 कहते हैं, अगर अच्छी पुस्तकों से दोस्ती की जाए जो आपके व्यक्तित्व में निखार लाती है, आपको जागरुक करती है औऱ एक अच्छा नागरिक बनने के लिए प्रेरित करती है, तब उससे एकदम दोस्ताना रिश्ता बना लेना चाहिए। इसके अलावा अगर हर समुदाय में एक पुस्तकालय हो, तब लोगों में जागरुकता आती है और वे पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं। 


एडु-लीडर्स भी अपने कलस्टर मीटिंग में अनेक मुद्दों को रखते हैं, जो समाज के प्रगति के लिए जरुरी हैं और इसी कड़ी को पकड़ते हुए आंचल ने भी पुस्तकालय की महत्वता को कहानी से जोड़ते हुए बच्चों को जागरुक करने की कोशिश की है। 


मैं आंचल बैच 9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ एक कहानी ’गधे पर सवार पुस्तकालय’ का अनुभव साझा करने जा रही हूं। 


यह कहानी मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छा लगी। इस कहानी से आज मैं यह समझ बना पाई कि रास्ते में कोई भी परेशानी आए, हमें हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए। अपने लक्ष्य को पाने के लिए कुछ दिन बहरे बन जाना भी स्वीकार कर लेना चाहिए। 


हमारे कलस्टर मीटिंग में यह बात निकल कर सामने आई कि सब मिलकर अपने समुदाय में एक पुस्तकालय खोलना चाहते हैं, जिसमें सभी को बहुत परेशानी आ रही है, लेकिन हमलोग कोशिश कर रहे हैं कि समुदाय में एक पुस्तकालय खुले और यह एक दिन जरूर पूरा होगा।


इस कहानी के पात्र को अनेक जगहों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था लेकिन वे अपने लक्ष्य नहीं हटे।  अपने लक्ष्य पर ध्यान देकर आगे बढ़ते रहे। 


कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा है। हम जब अपने समुदाय में पुस्तकालय खोलना चाह रहे हैं, तब हमें भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है मगर इन सारी परेशानियों का सामना करते हुए हम बच्चे के लिए लाइब्रेरी खोलने का प्रयास कर रहे हैं और अलग- अलग तरह के एक्टिविटी से बच्चे को जोर रहे थे।


एक्टिविटी में हमने बच्चों को बताया कि डाकू ने भी बच्चों की एक कहानी की किताब ले ली और उसे पढ़ने लगे। इससे यही पता चलता है कि बुरे इंसान भी पुस्तकालय का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे एक बदलाव आया। साथ ही साथ धीरे-धीरे लोग जागरुक होने लगे और डाकू भी बुरे कामों को छोड़कर एक अच्छा इंसान बन गया।


Tuesday, March 14, 2023

प्रीतिः बच्चियों के नामांकन के दौरान चला पता, नहीं रखे गए थे उनके रिकॉर्ड

प्रीति कुमारी ने बच्चियों के नामांकन के दौरान अपने अनुभव को साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि नामांकन को लेकर ना केवल अभिभावक बल्कि हेडमास्टर्स का भी रवैया कभी-कभार काफी मुश्किल और मशक्कत में डाल देता है। इन सब चुनौतियों के पार उन्हें केवल बच्चियों का चेहरा दिखाई पड़ता है, जो बैग टांगे स्कूल जा रही हैं और यही चीजें उन्हें प्रेरणा देती है। वे लिखती हैं-


"मैं सैफगंज, फरबिसगंज ब्लॉक अररिया में नामांकन के लिए गई तो वहां पर बहुत ही मुश्किल आ रही थी। पहले हेडमास्टर नहीं मान रहे थे फिर अभिभावक नहीं मान रहे थे, जब हमलोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में जानकारी दी, तब उन्हें हमारी बात समझ आई। उसके बाद वे नामांकन के लिए तैयार हुए। 


सबसे ज्यादा मुश्किल यह था कि वहां अधिकांश बच्चियों का कोई डोक्युमेंट नहीं था। केवल 10 बच्चियों के ही डोक्युमेंट्स मिले, जिससे केवल उनका ही नामांकन हो सका। इसका मतलब यही है कि अभिभावक अपनी बेटियों के कागजातों को भी सही से नहीं रख पा रहे थे। शायद इसके पीछे की वजह लड़कियों को लेकर जागरुकता और उदासीनता ही एक कारण है। 


हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने मेरा उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि आप अच्छा काम रही हैं, तो मुझमें थोड़ी आशा का संचार हुआ। साथ ही मैंने हेडमास्टर से भी बात किया और उन्हें बच्चियों के डोक्युमेंट्स को सही तरीके से रखने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद हेडमास्टर ने मुझे लिखित में आश्वासन दिया कि वे बच्चियों के जमा किए डोक्युमेंट्स को सही से रखेंगे।" 


देखा जाए, तो यह कार्य हर रोज चुनौतियों से भरा हुआ होता है लेकिन क्या किया जाए अगर दिल में शोला हो, और वह शोला बार-बार कहे कि एक भी बच्ची को शिक्षा से वंचित नहीं रखना है। हर कोमल हाथों में कलम हो, हर बच्ची के कंधे पर बैग हो ना कि उनके कोमल कंधे पर जिम्मेदारी या जलावन का भार हो। मैं रोज मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची शिक्षित हो सके।

 

   चट्टानों से हौसले हमारे,

   आसमान से ऊंचे इरादे,

   बच्चियों को शिक्षा की महिमा दिखाकर,

   मुसीबतों में दम नहीं की मुझे हरा दे।


शालूः एक्टिविटी और बातचीत के जरिए बच्चों से होता है अधिक जुड़ाव

फोटो क्रेडिट- आई-सक्षम


बैच-9 की एडु-लीडर शालू ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे ना केवल अपना अनुभव साझा कर रही हैं बल्कि बच्चों के साथ हुई एक्टिविटी के महत्वों पर भी चर्चा कर रही हैं, जो उनके व्यक्तित्व निर्माण की एक अहम कड़ी साबित होगा। वे लिखती हैं-


आज मैं आप सबके साथ अपने क्लासरुम का अनुभव शेयर करने जा रही हूं। बाहर के कुछ कामों के कारण आज मैं 15 मिनट की देरी से स्कूल पहुंची लेकिन तब भी मुझे क्लास खाली ही लगी। हालांकि मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि बच्चों को आने में देरी कैसे हुई क्योंकि एक तो मैं देर थी इसलिए मुझे लगा था कि मुझे सारे बच्चे क्लास में ही मिलेंगे। बच्चे क्लास में मौजूद तो थे लेकिन उनकी संख्या थोड़ी कम लग रही थी।


मैंने क्लास में उपस्थित बच्चों को गुड मार्निंग विश किया और उन्होंने भी बड़े प्यार से मेरा अभिवादन किया। इसके बाद मैंने हेडमास्टर सर से कम उपस्थिति के बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया। जिसमें मुझे पता चला कि आज कक्षा छठी से लेकर आठवीं तक के बच्चों की परीक्षा है इसलिए बच्चों के बैठने की स्थिति में थोड़ा अंतर किया गया है। उन्होंने मुझे बताया कि पांचवीं कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा में बैठे हैं इसलिए मैं दूसरी कक्षा में चली गई।


वहां मैंने कक्षा में मौजूद बच्चों को मेडिटेशन कराया फिर चहक किताब से कक्षा की शुरुआत की गई। सभी बच्चों ने जोड़ों में बैठ कर और LFW की किताब से एक्टिविटी को किया। इसके बाद हेडमास्टर सर ने कक्षा में आकर वार्षिक परीक्षा की रूटिंग को ब्लैकबोर्ड पर लिखवाया, जिसे बच्चों ने अपनी कॉपी में नोट कर लिया। इसके बाद सभी बच्चों ने बातचीत हुई कि उन्होंने होली के त्योहार को कैसे मनाया इत्यादि क्योंकि मेरा मानना है कि जब तक आप बच्चों से पूरी तरह नहीं जुड़ेगे, तब तक बच्चे भी आपसे पूरी तरह नहीं जुड़ पाएंगे इसलिए छोटी-छोटी पहल और एक्चिविटी करते रहना चाहिेए। 


इसके बाद बच्चों से परीक्षा को लेकर बातचीत हुई कि उनका पाठ पूरा है या नहीं है, किस विषय में दिक्कत आ रही है, सिलेबस पूरा है या नहीं है इत्यादि। साथ ही बाकी बच्चों को भी सूचित करने के लिए कहा गया जो बच्चे कक्षा में अनुपस्थित थे ताकि उनकी परीक्षा ना छूटे। 


कुल मिलाकर काफी अच्छा अनुभव रहा। चहक और LFW के जरिए बच्चों में बेहतर समझ नहीं और बच्चों से एक स्तर और जुड़ने का मौका मिला। 


Friday, March 10, 2023

सीमाः अभिभावकों को राजी करने में लगा काफी वक्त, चार बच्चियों का हुआ नामांकन

बिहार के गया जिले की रहने वाली सीमा ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि जब बुनियादी सुविधाएं ना हो, अभिभावकों के अंदर शिक्षा को लेकर जागरुकता का अभाव हो, तब बच्चियों का नामांकन कराना किसी चुनौती से कम नहीं होता। कई बार उन्हें मनाने में ही पूरा दिन निकल जाता है और नतीजा शून्य ही रहता है मगर इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी एडु-लीडर्स के कदम नहीं रुकते। 

                      

“दिनांक 31/1/2023 को बड़की सांव का मलरवाडीह टोला में चार अनामांकित बच्चियों का नामांकन करवाया गया। नामांकन करवाने में अनेकों प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि जिन बच्चियां का नामांकन करवाना था, उनका घर एक-दूसरे से एवं स्कूल से भी काफी दूरी था। 


यही कारण था कि जब दो अभिभावकों को समझाकर तैयार करते इतने में दूसरे अभिभावक कोई-ना-कोई बहाना बना देते। दिनभर लगभग अभिभावकों को मनाने का ही सिलसिला चलते रह गया फिर भी मैं हार नहीं मानने वाली थी क्योंकि मेरा काम बच्चियों को स्कूल से जोड़ना है।” 


अंत में तैयार हुए अभिभावक 


“मेरा मानना है कि ऐसी कठिनाइयां तो हरेक मोड़ पर आते रहेंगी इसलिए जीवन में सफलता पाने के लिए हरेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तभी आगे चलकर सफलता का मार्ग प्राप्त होता है। इस प्रकार अभिभावकों को प्रत्येक दिन स्कूल जाने वाली बच्चियों के बारे में कुछ जानकारी दी और उन्हें शिक्षा के महत्व को बताया, जिस कारण धीरे-धीरे अभिभावकों में कुछ सुधार हुआ। यही कारण था कि अभिभावक अपने बच्चों का नामांकन करवाने के लिए तैयार हो गए और हमारे साथ अपने बच्चों को ले्कर स्कूल में आएं। 


इसके बाद मैं टीचर से बात कर नामांकन करवाया गया। अभिभावकों ने भी अपने हस्ताक्षर किए। इस प्रकार अनेक मुसीबतों का सामना करते हुए आखिरकार चार बच्चियों ने अपने कदम स्कूल में रखे। इन बच्चियों का नाम इस प्रकार है- 1. सम्पत कुमारी 2. प्रियंका कुमारी 3. चांदनी कुमारी 4.सुनैना कुमारी। 


आज जहां कोरोना के बाद से लड़कियों की शिक्षा में भारी गिरावट दर्ज हुई थी, तो वहीं अभिभावकों की लापरवाही ने इस आंकड़े को और बढ़ा दिया। Unified District Information System for Education (UDISE) Plus 2021-22 रिपोर्ट के अनुसार ड्रापऑउट रेट में भारी बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में लड़कियों का नामांकन कराना वाकई एक चुनौतीपूर्ण काम है लेकिन शिक्षा के अधिकार से किसी व्यक्ति को वंचित करना भी गलत है इसलिए मैं अपनी मेहनत करती रहूंगी ताकि हर एक बच्ची पढ़ सके और आगे बढ़ सके।” 


Monday, March 6, 2023

बाल उत्सव के दौरान निखर कर सामने आई बच्चों की प्रतिभा, अभिभावक भी हुए मंत्रमुग्ध

आज मैं आप सभी के साथ बिहार के गया ज़िले के चौगाई गांव स्थित राजकीय मध्य विद्यालय में हुए बाल उत्सव का अनुभव साझा करने जा रही हूं। इस बाल उत्सव का आयोजन राजकीय मध्य विद्यालय में हुआ था, जिसमें प्राथमिक विद्यालय, भलुहार, चौगाई भी शामिल था।  

SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं  I-Saksham Education and Learning Foundation (i-Saksham) के सहयोग से राजकीय मध्य विद्यालय, चौगाई गांव, गया, बिहार में बाल उत्सव का आयोजन किया गया। इस बाल उत्सव का उद्देश्य बच्चों, विद्यालय और समाज को एक जगह लाकर बच्चों की क्षमता को सबके सामने लाने के लिए एक मंच तैयार करना, बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाना एवं उनकी क्षमता को विकसित करना है। SAVE Solutions Pvt. Ltd एवं  i-Saksham द्वारा चल रहे फैलोशिप प्रोग्राम के तहत बच्चों को एडुलीडर बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे दूर-दराज इलाकों में शिक्षा के प्रति, बाल-विवाह के प्रति और आधारभूत स्तर पर परिवर्तन ला सकें। 


पहला cohort, 18 एडु-लीडर्स के साथ अक्टूबर 2020 में कोविड के दौरान गया जिले के अमास और बांके बाजार ब्लॉक में शुरू किया गया था। इसके बाद साल 2021 और 2022 में दो और cohorts एडुलीडर्स द्वारा शुरू किए गए। अभी तक SAVE Solutions 50 एडु-लीडर्स  अपने CSR कार्यक्रम के अंतर्गत प्रायोजित कर रही है। 


मैं पहली बार किसी स्कूल में हुए बाल उत्सव में भाग ले रही थी इसलिए मैं बहुत उत्साहित थी। साथ ही मेरा उत्साह उस वक्त दोगुना हो गया, जब मैंने अन्य बच्चों को भी उत्साहित देखा। 


किताबों से सजा स्कूल 


पूरा स्कूल ही किताबों से सजा हुआ था। ऐसा लग रहा था मानों होली से पहले ही पूरे स्कूल में किताब के रंग छा गए हो। बच्चे एडुलीडर के साथ मिलकर टीएलएम, एलएफडब्ल्यू की किताब, बाल उत्सव के पोस्टर आदि लगा रहे थे। वहीं कुछ बच्चे अभिभावकों के बैठने के लिए दरी और कुर्सी लगा रहे थे। कुछ बच्चे संगीत की धुन में खोए हुए थे। जब सारी तैयारी लगभग पूरी हो गई, उसके बाद अभिभावकों का आना शुरू हो गया। 


बाल उत्सव

और खुशी की लहर दौड़ गई 


मुझे बहुत अच्छा लगा रहा था कि सारे अभिभावक अपना कीमती समय निकालकर यहां तक आए। जब सारे अभिभावक अपना-अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे फिर स्कूल के कुछ छात्राओं ने स्वागत गान गाकर अभिभावकों का स्वागत किया। स्वागत गान सुनकर अभिभावकों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। 


उसके बाद हमारी एडुलीडर प्रीति और ब्यूटी आर्या ने बेटी और नारी के ऊपर एक बहुत ही अच्छी कविता सुनाई, फिर स्कूल की दो बच्चियों ने सैनिकों के जीवन पर आधारित एक बहुत ही सुंदर गीत सुनाया। उसके बाद कृषक पृष्ठभूमि को दर्शाते हुए बताया गया कि चने की फसल को कैसे बोया जाता है? उस पर एक्शन के साथ एक बाल गीत भी सुनाया गया। 


बचपन की यादों का दरीचा


इन सारे कार्यक्रम के बाद हमारी टीम की तरफ से बच्चों के बीच स्टोरी राइटिंग, ड्राइंग कंपटीशन, इंग्लिश और मैथ के गेम्स आदि कराए गए। सारे बच्चे ना केवल इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए काफी उत्सुक थे बल्कि उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा भी। बच्चों की प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता के प्रति लगन देखकर मुझे भी बहुत अच्छा महसूस हुआ, मानों किसी ने बचपन की याद को आंखों के सामने परोस दिया हो।


पुरस्कार प्राप्त करते बच्चे


प्रतियोगिता के बाद स्कूल की तरफ से म्यूजिकल चेयर गेम का आयोजन हुआ, जिसमें बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बच्चों में एक अलग ही खुशी का माहौल था। जब सारी एक्टिविटी खत्म हो चुकी थी और इनाम बांटने का वक्त आया, तब जिन बच्चों ने प्रतियोगिता में पहला, दूसरा या तीसरा स्थान प्राप्त किया था ना केवल उन्हें बल्कि भाग लेने वाले सभी बच्चों को सांत्वना पुरस्कार से सम्मानित किया गया ताकि उनका मनोबल भी बना रहे।


यह अनुभव अदिबा, बड्डी इंटर्न ने आई-सक्षम के साथ साझा किया है।







Friday, March 3, 2023

आंचलः कलस्टर मीटिंग के जरिए सकारात्मक चर्चा का बना माहौल, लाइब्रेरी पर बनी सहमति

हमारे एडुलीडर्स ने अपने कलस्टर मीटिंग्स को ना केवल योजनात्मक तरीके से किया है बल्कि उसमें शामिल महत्वपूर्ण बिंदूओं पर चर्चा का भी एक अच्छा दायरा विकसित किया है, जिससे सभी की क्षमता में विकास एवं झिझक कम हुई है। अपनी बातों को रखना एवं विभिन्न पहलूओं पर चर्चा करना,  किसी नए विषय को लागू करने के बारे में सोचना और उसे लेकर योजना बनाना भविष्य के लीडर्स के निर्माण की पहली सीढ़ी है और इस सीढ़ी को बनाने में आई-सक्षम एवं एडुलीडर्स प्रतिबद्ध हैं।

मैं आंचल बैच 9, मुंगेर की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के क्लस्टर मीटिंग का अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज के क्लस्टर मीटिंग की शुरुआत ध्यान यानी की मेडिटेशन के साथ हुई,  जिसमें हमने सबको पिछले कलस्टर मीटिंग से लेकर इस क्लस्टर मीटिंग को समझने के लिए समझ बनाई। मेडिटेशन की प्रक्रिया काफी बेहतर तरीके से संपन्न हुई। उसके बाद हमने अपने कलस्टर मीटिंग की शुरुआत की। इसमें हमारी सबसे पहली कड़ी- एक्टिविटी थी। 

याद आए बचपन के दिन 

एक्टिविटी सोचो और खेलो करके सबको बहुत अच्छा लगा। सब अपने बचपन की कहानियां, बचपन की शरारतें सब बता रहे थे। अच्छे से ड्राइंग बनाकर जैसे- इमोजी से अलग-अलग तरह से वे अपने बचपन को दर्शा रहे थे। उसके बारे मुझे भी अपने बचपन याद आ गया। मुझे बहुत अच्छा लगा कि शायद हम अपनी बचपन की सारी बातें नहीं बता पाएं लेकिन थोड़ी-थोड़ी, खट्टी-मीट्ठी यादें ताजा की जा सकती हैं। 

पुस्तकालय पर हुई बहस

हमारे क्लस्टर मीटिंग में तय किया है कि हम अपने समाज में एक पुस्तकालय खोलेंगे, जिसके लिए बहुत चर्चा भी हुई और काफी सेहतमंद बहस भी हुई क्योंकि विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करनी थी। सर ने तय किया कि इसमें हम लोग को क्या करना है, कैसे करना है, क्या अच्छा कर सकते हैं, क्यों करना है, इससे क्या प्रभाव पड़ेगा इत्यादि। 

कलस्टर मीटिंग में शामिल सरिता का कहना था कि बार-बार मीटिंग में जो प्लान होता है, उसमें प्लान बना था कि मिलना है, बात करना है, तो सेशन के वजह से हम बात नहीं कर पाए लेकिन इस ग्रुप में जो अनुभव साझा किया जाता है, उसके द्वारा हम अच्छे से समझ बना पाते हैं। हम लोगों ने अपने बढ़ते कदम पर प्रेजेंटेशन दिया जो सबको अच्छे से समझ आया। 

कलस्टर मीटिंग में जो चीजें बाहर निकल कर सामने आईं- 

  • सब समय पर आए थे।
  • सबने अपनी बातों को अच्छे से रखा और सभी को बोलने का मौका मिला।
  • लाइब्रेरी के महत्व अच्छी समझ बनी।

किन बिंदूओं पर सुधार हो सकता है- 

  • समय का ध्यान रखते हुए, अपनी बातों को बोल सकते थे ताकि समय का उपयोग अन्य कामों में हो पाता।

कलस्टर मीटिंग से लर्निंग क्या रही- 

  • लाइब्रेरी और स्मार्ट गोल्स पर समझ बनी।

नयी चीज़ जो सामने आई- 

  • हमारे मन में कोई भी बात हो, तो हमें ग्रुप में पहले ही साझा कर देना चाहिए ताकि उस पर सब कोई सोच कर आ सके और अच्छे से वह बात समझ में आए और सब अपना योगदान दे सकें।
  • इससे सबको बोलने और सोचने का मौका मिलेगा।

कुल मिलाकर टीम का अनुभव काफी अच्छा रहा और उम्मीद है कि जिन मुद्दों पर चर्चा हुई है, उसके सकारात्मक परिणाम निकल कर सामने आएंगे। 


Thursday, March 2, 2023

आंचलः बच्चों को रुटीन में बांधना एक अनुशासनात्मक शैली का विकास करने वाला है

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

बच्चों को अगर कलात्मक तरीके से समझाया जाए, तो बच्चे आसानी से सीख पाते हैं। इसी बिंदू को फोकस करते हुए हमारी एडुलीडर आंचल ने बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास किया है। इसके अलावा जब कोई चीज दिनचर्या या रुटीन के अनुसार चले, तब बच्चों के अंदर अनुशासन के बीज का उतपन्न होता है, जो उन्हें अपने जीवन के निर्णयों को लेने की क्षमता को विकसित करता है। आंचल अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखती हैं-

मैं आंचल बैच 9 (मुंगेर) की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के क्लास रूम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। हम रोज मेडिटेशन के समय क्लास का रूल्स बच्चों को बताते थे, तो बच्चे शांत भी रहते थे। हम रोज बच्चे को मेडिटेशन करवाने के लिए देते तो शायद झगड़ा हो जाएगा, यह सोच कर मैंने खुद ही बच्चों के बीच मेडिटेशन का रुटीन बांट दिया। इससे अब बच्चों के बीच झगड़ा भी नहीं होता है। उस दिन भी सारे बच्चे रुटिन के अनुसार ही मेडिटेशन करा रहे थे।

पाठ याद कराने का अनोखा तरीका 

क्लास में बहुत शांति भी थी फिर हमने बातचीत किया। उसके बाद पिछले दिन का रिविजन करवाते हुए आज के थीम से बच्चों को जोड़ा। सभी बच्चे होमवर्क करके लाए थे। उन्हें देखकर अच्छा लगा कि हिंदी इंग्लिश में जो कविता मैंने याद करवायी थी, उसे बच्चों ने अच्छे से याद किया था। सभी बच्चों को अच्छे से पाठ याद हो गया और उन्हें कविता का हिंदी अर्थ भी अच्छे से समझ पाए। 


बच्चे अक्षरों को अच्छे से समझ पाए और अल्फाबेट सीख पाए। उसकी आवाज जान पाए। अगले दिन मैं मैथ विषय पढ़ाऊंगी ताकि बच्चे अच्छे से समझ पाए और मेरा थीम भी पूरा हो। आज मैं इतना ही अनुभव साझा कर पाई।  


Wednesday, March 1, 2023

साक्षीः भावनाओं की नकल किए बिना अपने भावों को रखना जरुरी है

मुंगेर से साक्षी चौधरी ने अपना अनुभव साझा करते हुए लिखा है- 

मैं आप लोगों के साथ अपने सेशन का अनुभव साझा करने जा रही हूं। यह सेशन सामाजिक एवं भावनात्मक बुद्धि पर आधारित था, जिसकी शुरुआत हमने पहले हुए सेशन की तरह ही voice and choice for every women से की, जिस पर सभी की अच्छी समझ बन गई है। अब वे खुद से जोड़ कर बता पा रही थीं कि कब उन्होंने अपने लिए आवाज उठाई, जिसमें उन्होंने निम्नलिखित बातों को हमारे साथ साझा किया। हमने सेशन की शुरूआत rainbow walk से की, जिसमें लोगों को बहुत आनंद आया।

  • निभा - जब उन्होंने EG में काम शुरू किया तो उनके आसपास के लोग उन्हें गलत बोल रहे थे लेकिन फिर भी उन्होंने काम नहीं छोड़ा। आज उनके घर वाले भी उनके साथ हैं। अब वे आस पास के लोगों की बात पर ध्यान दिए बिना अपना काम कर रही हैं।

  • काजल - जब उन्हें एक गांव में सर्वे करने जाना था, तो उनके घर वाले मना कर रहे थे लेकिन उन्होंने अपनी आवाज़ उठाई और उस गांव में सर्वे करने के लिए गईं।

सामाजिक एवं भावनात्मक बुद्धि 

हमने सेशन की शुरूआत एक गतिविधि से की जिसमे सभी को आइना बनकर एक दूसरे की नकल करनी थी जिसमे साथियों से निकल कर आया की कैसे खुद का एक्शन करना आसान है लेकिन दूसरे की नकल कर पाना मुश्किल है, क्योंकि हम किसी दूसरे इंसान के भाव को खुद में नहीं दिखा सकते है।

जब बात trigger, मूल्यांकन, और एक्शन की आई तो कुछ साथियों से निकल कर आया की वो अपने इमोशन की अच्छी समझ रखते हैं लेकिन जब बात दूसरे के emotion को समझने की आई तो उन्होंने बोला की ज्यादातर वो उस इमोशन को तभी समझ पाते है जब वो घटना उनके साथ पहले हुई हो।

Emotion meter - ऊर्जा और आनंद

Emotional meter के जरिए हमने ऊर्जा और आनंद पर समझ बनाई, जिसमें कुछ साथियों ने अंत में बताया कि अभी वे ऊर्जा और आनंद के किस रंग में हैं। हर रंग के अनुसार ऊर्जा और आनंद के रंग को विभाजित किया गया था, जैसे- लाल रंग असीम ऊर्जा, हरा रंग शांत भाव इत्यादि।

Duolingo और खान एकेडमी

इसके बाद हमने Duolingo और खान एकेडमी पर अपनी समझ बनाई और जो साथी इससे नहीं जुड़ पाए थे, उन्हें इससे जोड़ा गया। कुछ साथियों को इसे लेकर दिक्कत आ रही थीं कि कैसे इसका उपयोग किया जाए? लेकिन एक दूसरे को सीखाते हुए हमने इस परेशानी को भी कम कर दिया। 

मैंने महसूस किया कि कुछ हिस्सों पर सुधार की जरुरत है। अच्छा हो सकता है कि EG के साथियों के लिए उनके प्रश्नों के लिए एक अलग जगह दी जाए, जहां वे अपने फील्ड में आ रही परेशानियों को साझा कर सकें क्योंकि यहां सभी उन परेशानियों में ही उलझे रह जाते हैं और अपनी लर्निंग पर अच्छे से ध्यान नहीं दे पाते हैं।

मेरी लर्निंग- इस सेशन को लेकर मेरी लर्निंग यही रही कि दूसरे की भावना को महसूस कर, उसी तरह भाव दिखा पाना मुश्किल है क्योंकि हम किसी की बाहरी नकल तो कर सकते हैं लेकिन किसी की भावनाओं की नकल नहीं कर सकते हैं।


Tuesday, February 28, 2023

अमनः मुझे विश्वास है कि अनम पढ़ेगी और अपने पंखों के सहारे अपनी मंजिल पाएगी

आज महमदा स्कूल में चल रहे असेसमेंट में शामिल होने गया था। सभी बच्चे टेस्ट दे रहे थे। मौखित और लिखित दोनों परीक्षाएं चल रही थी लेकिन उन सबके बीच में एक लड़की, नई-नई स्कूल ड्रेस पहने, चुपचाप, बहुत सहमी सी, टेस्ट पेपर को निहारे जा रही थी। मानो बहुत डरी हुई हो। 

मैं उसके पास जाकर बैठ गया। यूं ही इच्क्षा हुई उसके टेस्ट पेपर को देखने की। उसका टेस्ट पेपर पूरा खाली था। उसने एक भी सवाल के जवाब नहीं बनाए थे। मुझे लगा अभी-अभी पेपर मिला है। मैंने अपने मन की शांति के लिए पूछा, आपने कुछ लिखा क्यों नहीं? जवाब में सिर्फ सन्नाटा सा छाया था। वह एकदम चुप-चाप नीचे की ओर देखने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया फिर मैंने उससे पूछा "कोई सवाल समझ नहीं आया क्या?" वो फिर भी एक दम चुप ही रही।

जब मुझे यकीन नहीं हुआ कि..

थोड़ी ही दूर पर बैठी निखत, ये सब देख रही थी। उसने बताया, "भैया इसे स्कूल में आए कुछ ही दिन हुए हैं। अभी कुछ नहीं जानती है। धीरे-धीरे सीख रही है।"  

मेरे मन में अनेकों सवाल उमड़ने लगे। जैसे- बच्ची की उम्र लगभग 9-12 वर्ष थी और कुछ दिन से स्कूल आ रही? मतलब क्या वो इसके पहले कभी स्कूल नहीं आई? वह कुछ नहीं जानती? लेकिन क्यों नहीं जानती? अपने मन को शांत करने के लिए मैंने फिर निखत से पूछा, "ऐसा क्यों है कि उस बच्ची को कुछ नहीं आ रहा?" 

इस पर निखत ने कहा, "भैया, आर्थिक तंगी के कारण इसके घर वालों ने अभी तक इसे स्कूल नहीं भेजा था लेकिन ये पढ़ना चाहती है। मैंने इसके बारे में अपने बड्डी से भी बात की थी फिर EG (Every Girl Child In School) द्वारा बच्ची को स्कूल लाया गया। काजल ने बहुत मदद की। उन्हीं लोगों ने इसका नामांकन करवाया। मुझे बहुत खुशी हुई कि इसका स्कूल में नामांकन हो पाया, नहीं तो इसके घर वाले इसे कभी स्कूल नहीं भेजते ही। सर ने इसे मेरे ही कक्षा में रखने को कहा है और मैं धीरे-धीरे सीखा रही हूं।" 

निखत की भावुक आंखों ने खोले राज 

ये सब बोलते-बोलते मानो निखत की आंखे भर आईं हो, जैसे वह बहुत कुछ बताना चाह रही हो। मैंने इस पर अलग से बातचीत करने के लिए कहा क्योंकि आसपास के बच्चे भी बड़े गौर से सुन रहे थे और वो खुद भी ये वाक्या सुन रही थी, जो शायद अनम को असहज कर देता। 

मैं खुद कुछ देर के लिए बहुत ही भावुक हो गया था। मैंने 'अनम' से बात की। उसमें पढ़ने की इच्क्षा जागृत होती महसूस हो रही थी। पूरी बात जानने के बाद मुझे बस एक ही बात महसूस हो रही थी कि अगर हम यह कर पा रहे हैं, तो इससे बड़ी बात कुछ हो नहीं सकती, 'Voice and Choice for every women' जैसे प्रमाणित होता प्रतीत हो रहा था। 

मैं पूरी टीम को हृदय की गहराई से आभार प्रकट करना चाहूंगा, जो आप-हम कर रहे हैं, वह भले ही किसी के लिए बहुत छोटी बात हो लेकिन यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि हमारा प्रयास अतुलनीय है क्योंकि हम संविधान में मौजूद शिक्षा के अधिकार को घर-घर और जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। भले ही राह में चुनौतियां हैं और बहुत कठिन परिस्थितियां भी हैं लेकिन हम अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दे रहे।


Monday, February 27, 2023

आयुषः कलस्टर मीटिंग में दिखाए गए वीडियो से समझ हुई मजबूत, एक्टिविटी लाइब्रेरी का रखा गया लक्ष्य

बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुक करने एवं बच्चियों के स्कूल में नामांकन एवं उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें से एक माध्यम कलस्टर मीटिंग भी है। आज आयुष अपना अनुभव साझा करते हुए बता रहे हैं कि उन्होंने कलस्टर मीटिंग के जरिए क्या कुछ अनुभव प्राप्त किया। 

मेरा नाम आयुष आनंद है। मुझे आज आज़ीमगंज पंचायत गांव (इनरवाटांड़) में क्लस्टर मीटिंग में शामिल होने का सुनहरा मौका मिला। उस मीटिंग में मेरा जो अनुभव रहा, और मीटिंग में हमलोगों ने क्या-क्या सीखा, यह आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं। 

छोटी गिलहरी ने दी सीख 

आज सबसे पहले हम लोगों ने एक वीडियो देखा, जिसमें हम लोगों को "सोचने का मौका मिला" कि  वीडियो से हमें क्या शिक्षा मिल रही है और इससे हम खुद को कैसे जोड़ पा रहे हैं। इस वीडियो में हमने देखा कि कैसे गिलहरी सब मिलकर बड़ी मेहनत से एक गाछ से अनार तोड़ने में सफल हुई थी, जिस अनार को एक गिद्ध लेकर भाग रही थी। 

इस वीडियो को देख कर यह शिक्षा मिली कि यदि हम एक साथ रहें, तो हम बड़ी -बड़ी मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। कुछ साथियों ने बताया कि कॉलेज में या लोगों के सामने हमको डर लगता है लेकिन जब सब साथ-साथ बोलते हैं, या फिर एक साथ किसी काम को पूरा करते हैं, तो हमें हिम्मत मिलती है।

बच्चों को स्कूल से जोड़ना लक्ष्य 

उसके बाद हमलोगों ने कम्युनिटी पर भी चर्चा की। कैसे हम लोग बच्चों को स्कूल से जोड़ें कि सभी बच्चे स्कूल जाएं। मेरे क्लस्टर के साथी कुछ दिन पहले वैसे बच्चों की तलाश में भी गए थे ताकि बच्चों का नामांकन स्कूल में करवाया जा सके। घूमते -घूमते एक जगह तीन अभिभावक भी मिले और उनके बच्चे भी वहीं थे। हमारे साथी उन्हीं बच्चों के साथ गतिविधि करने लगे। 

उसी रास्ते में कई अभिभावक कचिया एवं कुल्हाड़ी लिए जंगल के रास्ते लकड़ी काटने जा रहे थे। अभिभावकों ने भी उन लोगों को देख लगभग 1 घंटे रुककर अपनी बच्चों के बारे में समस्याएं रखीं और अंत तक लगभग 17 अभिभावाक रुके और बच्चों के साथ गतिविधियों में शामिल भी हुए। उसके बाद हम लोगों ने‌ एक लक्ष्य रखा कि 31 मार्च तक 3 बार वैसे 45 बच्चों से एक्टिविटी लाइब्रेरी के माध्यम से जोड़ेंगे जो कि किसी वजह से स्कूल नहीं जाते हैं।

बढ़ते कदम और नयी सीख

हमलोगों ने बढ़ते कदम पर बात की। स्वयं के लिए लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, लक्ष्य पर विजय प्राप्त करने के लिए तो मैंने योजना भी बनाई है। अपने लिए योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए लक्ष्य थे। इस महीने के लिए लोगों के साथ साझा किया। सभी ने अपनी भागीदारी सही तरीके से निभाते हुए अपनी स्मार्ट गोल सभी साथियों ने रखा। जैसे - जीवन में निर्णय स्वयं ले पाना, हर दिन अपना कार्य को नोट कर पाना, समय का महत्व देना और अपने आपको स्वस्थ रखना इत्यादि।

कुल मिलाकर देखें तो कलस्टर मीटिंग से कई चीजें सामने आईं और संवाद का एक बेहतर माध्यम स्थापित हो पाया। अभिभावकों ने हमारी पहल को गंभीरता से लेते हुए एक्टिविटी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जो हमारी लिए काफी उत्साहित करने वाला था। 


स्मृतिः बच्चों की बोरियत का हल निकलकर आया सामने, एक्टिविटी के जरिए सुगम हुआ संवाद

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम 

एडुलीडर्स हर रोज बच्चों को सीखाने-पढ़ाने के तरीके तलाशते हैं ताकि बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षित किया जा सके। आज हमारी एक एडुलीडर ने अपना एक अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि बच्चों से इमोशनल अर्थात भावनात्मक जुड़ाव के फायदे। इसके साथ ही बच्चों द्वारा बताए गए पलों से यह निष्कर्ष सामने आया कि बच्चों को एक्टिविटी जरिए समझने में आसानी होती है।

मैं स्मृति कुमारी बैच- 9, मुंगेर जिला, बिहार की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज की कक्षा का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज मैंने बच्चों से उनके इमोशन के बारे में बातचीत की। 

बच्चों को हो रही थी बोरियत

कक्षा चार के अभिराज ने मेडिटेशेन करवाया फिर मैंने बच्चों के साथ बातचीत करने के बाद सेशन प्लान बनाया। मैंने बच्चों को LFW के किताब से पढ़ाया। उसके बच्चों को समूह में बांट कर बैठाया और बच्चों के बीच हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों अक्षरों का कार्ड दे दिया। हर समूह को अलग-अलग कार्य दिया, जैसे- बच्चों को शब्द जोड़ने, कार्ड से अन्य एक्टिविटी करने के लिए कहा। इसके द्वारा बच्चे इसे बहुत अच्छे से समझ रहे थे फिर मैंने बच्चों को होमवर्क दिया। 

इसके बाद मैंने बच्चों से संवाद द्वारा एक रिश्ता कायम करने का प्रयास किया। उनसे कक्षा कैसी रहीं जाना, कक्षा को लेकर सुझाव मांगे और उसके बाद बच्चों से उनके इमोशन के बारे में जाना-समझा। बच्चों का कहना था कि बच्चों को सुबह बोरियत महसूस हो रही थी लेकिन धीरे-धीरे एक्टिविटी द्वारा बच्चों को आनंद आने लगा। 

अंत में बच्चों ने कार्ड और खेल-खेल में बहुत कुछ जाना-समझा। इस सेशन से मुझे समझ में आया कि बच्चों को एक्टिविटी और कलात्मक तरीकों से समझाया जाए, तो बच्चे आसानी से सीख लेते हैं। 





Saturday, February 25, 2023

क्यों राहुल को महसूस हुआ कि शिक्षक बनना गर्व की बात है?

मेरा नाम राहुल कुमार है। मैं मुंगेर जिला (गांव- पचरुखी) से हूं। मैं आज आप सभी के सामने एक छोटा सा अनुभव साझा कर रहा हूं। मैं आज प्राथमिक विद्यालय दशरथी गया था। मैं वहां बतौर सहयोगी था, जहां बच्चे का बेसलाइन टेस्ट लिया जा रहा था और मेरे लिए सबसे खुशी की बात थी कि मैं पहली बार प्राथमिक विद्यालय गया था और एडुलीडर प्रियंका दीदी और नाजिया दीदी के सहयोग में गया था। 

जाने के बाद मुझे बहुत खुशी हो रही थी। वहां की मैम बहुत अच्छी थी। जब वहां टेस्ट शुरू हुआ तो मुझे टेस्ट कॉपी बच्चों को देने के लिए बोला गया। मैंने सभी बच्चों को कॉपियां दी। नाजिया दीदी मुझे बच्चों का मौखिक टेस्ट लेने भी बोली, उस समय मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने बच्चों का टेस्ट लिया। 

कविता सुनाने का सीखा नया तरीका 

टेस्ट लेते समय मुझे इतना मजा आ रहा था। बच्चों ने अपनी मनपसंद कविताएं सुनाई, वो भी एक्शन के साथ। यह मेरे लिए एकदम नया था। कविता सुनाने का भी एक ऐसा नया और अद्भुत तरीका हो सकता है, ये मुझे सीखने को मिला। इसमें सबसे खास बात थी कि मेरे लिए वो मेरा अनुभव था। 

कविता सुनना, बच्चों का टेस्ट लेने का अनुभव मैं पहली बार कर रहा था। मैंने महसूस किया कि वाकई शिक्षक बनना एक गर्व की बात है। अंततः सारा काम सफलता पूर्वक हुआ। सारे बच्चों ने बहुत सारा प्यार दिया। सभी ने मुझे बाय कहा। इसके बाद मैं वहां से घर चला आया। मेरी कामना है मुझे यह मौका फिर मिले। 

एक एडुलीडर की मेहनत और उनके कामों का ऐसा विशलेष्ण वाकई अच्छी बात है। हम हमेशा समाज में बदलावों की बात करते हैं लेकिन हमें अपने अंदर के बदलावों और विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। बच्चों के अंदर असीम संभावनाएं होती हैं, जिसे तराशना और निखारना स्वयं में एक हूनर है। यह हूनर एक शिक्षक के पास होता है, जो एक पौधे को सींचकर उसे फलदार बनाता है। 

कभी मां ने मना किया तो कभी हेडमास्टर नहीं हुए तैयार, दो घंटे की मेहनत के बाद हुआ अनम का नामांकन

मेरे नाम काजल है। मैं मुंगेर जिला, बिहार की रहने वाली हूं। मैं आज आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। मैं आज से कुछ महीने पहले आपने पास के ही गांव में सर्वे कर रही थी, जब मैं महमदपुर सर्वे करने के लिए पहुंची, तो मैं अनम नाम की एक लड़की के घर गई थी। 

वहां मैंने देखा कि उसकी मां पापड़ बना रही थी, जब मैंने आवाज लगाई तो उसकी भाभी बाहर आई। उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे। मैं जब उन्हें अपने बारे में बताई तो वे बोलने लगी कि मेरी एक ननद है और हम चाहते हैं कि वह भी पढ़ें लेकिन घर की हालत इतनी बिगड़ी हुई है कि हम बेबस हैं लेकिन फिर भी पढ़ाना चाहते हैं। 

यह सुनकर मैं सहम सी गई कि आज के जमाने में भी माता-पिता से भी ज्यादा सोचने बाली उनकी भाभी है। उन्होंने बताया कि पूरे घर के 13 सदस्यों में से एक वही है, जो पढ़ी है और 10th पास है लेकिन उनकी मां तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी पढ़ें। 

मां नहीं चाहती थी कि पढ़े बेटी 

मां का कहना था कि 12 साल की हो गई है, क्या पढ़ेगी लेकिन मैंने भी देखा कि वह बच्ची पढ़ना चाहती है। उस समय मैं उसकी मां को ज्यादा कुछ नहीं बता सकी लेकिन जब मैं उनके घर से बाहर निकली तो वह लड़की, उसकी भाभी और उसका भाई भी साथ में बाहर निकल आए और उन्होंने कहा कि अगर आप कुछ किजिएगा तो बताइए। हम अनम को पढ़ाना चाहते हैं। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई, तभी हंसते हुए अनम बोली, “दीदी मेरी सारी दोस्त पढ़ती है। मैं भी पढूंगी।” मैंने भी हंसते हुए जवाब दिया और कहा, “तुम भी जरुर पढ़ोगी।” इसके बाद मैं वहां से निकल गई।

भाभी और भाई को आना पड़ा आगे 

कुछ समय बाद दोबारा नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई। मैं कुछ दिनों बाद फिर अनम के घर पहुंची। थोड़ी देर बाद ही अनम की मां बाहर निकली। वे बिल्कुल तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी का नामांकन हो इसलिए मैंने उन्हें बहुत समझाया कि नामांकन करवा लिजिए लेकिन उसकी मां पर कोई असर नहीं हो रहा था। उसकी भाभी भी समझाई, तभी उनके भाई घर आए और वे भी समझाए और तब अनम की मां तैयार हुई। 

इसके बाद मेरे साथ और भी अलग वाकया हुआ। जब परिवार वाले नामांकन के लिए तैयार हुए तो विद्यालय में शिक्षक तैयार नहीं हुए। वहां भी बहुत कोशिशों के बाद वे तैयार हुए। इसके बाद पता चला कि हेडमास्टर ही मौजूद नहीं है, तो अब दूसरे दिन दोबारा आना होगा। दूसरे दिन जब हेडमास्टर नामांकन के लिए तैयार हुए तो अनम की मां तैयार नहीं हुई क्योंकि अनम की मां को किसी ने कह दिया कि इतने बड़ी, 12 साल की हो गई है, अब क्या जाएगी विद्यालय पढ़ने? 

मुझे हाथ लगी मायूसी 

उस दिन अनम की मां उसे पहाड़ी पर लकड़ी लाने लेकर चली गई। मैं लगभग ढाई घंटे तक उनका इंतजार किया लेकिन वे नहीं आए, तभी अनम की भाभी ने चले जाने को कहा और आगे बताया कि अब वे दोनों शाम को आएंगी फिर उस दिन भी मुझे वापस आना पड़ा। मैं बहुत परेशान थी कि किस तरह से अनम का नामांकन करवाया जाए।

इस बात को मैं साक्षी दी को बोली तब उन्होंने कुछ बताया और कुछ सलाह निखत दी से भी मिली। मैं फिर तीसरी दिन भी उनके ही घर गई। रोज की तरह आज भी वही जवाब मिला। इसके बाद मैं बहुत मायूस हो गई थी। अब लग रहा था कि घर वापस लौट आना ही सही होगा लेकिन अनम की बात भी याद आ रही थी। 

दो घंटे के बाद सुना हां शब्द 

मैंने फिर उसके भाई को बुलाया और बहुत प्रयास के बाद लगातार दो घंटे के बाद हां शब्द सुनाई दिया। मेरे लिए यह मौका गंवाना संभव नहीं था। मैं तुरंत निखत दी को कॉल की और पूछी कि हेडमास्टर सर आएं हैं या नहीं। मुझे पता चला कि वे आ चुके हैं, तब मैं तुरंत अनम और उसके भाई को साथ लेकर विद्यालय पहुंची, जब तक वे दुकान से पेपर लिए तब तक मैं हेडमास्टर से बात करके रखी। 

अनम जब विद्यालय पहुंची तो अनम बस चारों तरफ देखे जा रही थी, जब मैं पूछी तो उसके भाई बताए कि वह पहली बार विद्यालय आई है। यह सुनकर मैं रो पड़ी क्योंकि अनम कि आंखों से आंसू निकल पड़ा। 

अनम के विद्यालय जाने की स्थिति को जानने के लिए मैं कुछ दिन बाद फिर विद्यालय गई। वहां मैंने देखा कि अनम रोज विद्यालय आ रही है। यह जानकर बहुत खुशी हुई कि मेरी मेहनत रंग लाई। 


Thursday, February 23, 2023

आंचलः जब अभिभावकों ने पीटीएम में गाया बाल गीत और इंज्वॉय की एक्टिविटी

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


पीटीएम करवाना और उसके पहलूओं को अगले पीटीएम में लागू करना एक चुनौती भरा काम है। पीटीएम का अर्थ बच्चों के अभिभावकों अर्थात पैरेंट्स से बात करना है ताकि उन बिंदूओं पर चर्चा हो सके, जहां सुधार की जरुरत है और जिन हिस्सों में सुधार हुआ है, उनका वर्तमान में कैसा असर है? इस बारे में हमारी एडुलीडर आंचल ने अपना अनुभव साझा किया है- 

मैं आंचल बैच 9 (मुंगेर) की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के पीटीएम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। पिछले शनिवार को जब मैं कम्युनिटी गई थी, तभी सारे अभिभावकों को पीटीएम के लिए आमंत्रण दे दिया था लेकिन उसके बाद मेरी तबीयत खराब हो गई थी, जिसके कारण मैं पीटीएम के लिए अभिभावकों को दोबारा नहीं बुला सकी। 

पैरेंट्स थे कम उत्साहित 

जब मैं आज स्कूल जा रही थी, तो हमारे मन में बस यही चल रहा था कि आज का पीटीएम कैसा होगा? पता नहीं पेरेंट्स आएंगे भी या नहीं। बहुत सारे सवाल मन में चल रहे थे। मैंने अपनी दूविधा को अपनी एक दोस्त सरिता के साथ स्कूल जाते वक्त साझा किया। तभी राजमणि का कॉल आया कि पैरेंट्स लोग आ गए हैं। 

मैं जब स्कूल पहुंची तो देखा कि तीन पैरेंट्स ही आए थे। उन्होंने कहा कि हम जा रहे हैं जबकि मैंने 11:00 का टाइम दिया था। उसके बाद 3 पैरेंट्स जो आए थे , वे भी वापस चले गए। मुझे अच्छा नहीं लगा था। 

शिक्षिकाओं ने की मेरी मदद 

कुछ देर बाद मैं दोबारा पैरेंट्स को बुलाने गई और सबको कॉल भी किया। मेरी तबीयत थोड़ी खराब थी लेकिन विद्यालय की शिक्षिकाओं ने इस बार बहुत ही ज्यादा मदद की, जिस कारण इस बार का पीटीएम हो पाया। उन्होंने पैरेंट्स को बुलाने में बहुत ज्यादा मदद की। इसके बाद 15 पैरेंट्स आए। 

पिक्चर रीडिंग पर हमने उनका अनुभव जाना तो बहुत सारे पैरेंट्स ऐसे थे, जिन्होंने अपने घर पर बच्चों को पिक्चर रिडिंग नहीं करवाया। उनका कहना था कि हम से नहीं हो पाएगा। वहीं कुछ पैरेंट्स ने पिक्चर रिडिंग करवाया था।

पैरेंट्स एक्टिविटी के वक्त खुद को ज्यादा अच्छे से जोड़ पा रहे थे। बाल गीत करवाते समय हमें अच्छा लगा कि पैरेंट्स आगे आकर खुद करवाना चाह रहे थे। हालांकि उन्हें याद नहीं लेकिन फिर भी उन्होंने आगे आकर बालगीत करवाने की कोशिश की। 

अभिभावकों ने कराया बालगीत 

मुझे यह अच्छा लग रहा है कि दो बार से धीरे-धीरे करके ही लेकिन खुद वे आगे आ रहे हैं। आज का पीटीएम बहुत ही अच्छा रहा। हालांकि शुरुआत में बहुत ज्यादा सवाल-जवाब हुए लेकिन अंत में सब अच्छा रहा।

आज के पीटीएम में अगर सारे पैरेंट्स समय पर आते, तो एक साथ अच्छे से तो और बेहतर हो पाता। इसके अलावा सब पिक्चर रिडिंग करवा कर आते तो सबका अनुभव जानकर बहुत अच्छा लगता लेकिन कुछ ही पैरेंट्स आए थे। 

कुल मिलाकर देखें तो पीटीएम का अनुभव अच्छा रहा लेकिन जो खामियां सामने निकलकर आईं, उन पर काम करना जरुरी है। अभिभावकों का उत्साह भी बनते जा रहा है लेकिन अब भी कसक है कि अन्य अभिभावकों को भी पीटीएम एवं अन्य एक्टिविटी में बेहतर तरीके से जोड़ा जाए ताकि उनकी समझ भी बन सके। 

उम्मीद है कि आगे आने वाले पीटीएम में इन बदलावों का असर दिखेगा। पहले दो पैरेंट्स वापस जाने के लिए तैयार थे, शायद उनकी इच्छा नहीं थी लेकिन बाद में उनका उत्साह देखते बना। 


अभिषेकः "जब बच्ची के नामांकन के लिए करनी पड़ी मिन्नतें"

बच्चियों को विद्यालय में नामांकन कराने के दौरान अनेक तरह की स्थिति बनती है। कभी अभिभावक तैयार नहीं होते हैं, तो कभी प्रिंसिपल द्वारा दिक्कते आती है लेकिन कभी-कभी इतनी सकारात्मक चीजें घटित हो जाती है कि मन प्रसन्न हो जाता है। बच्चियों के नामांकन की कड़ी में आज अभिषेक कुमार ने अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया है, जिसमें वे अपने साथ हुआ एक दिलचस्प वाकया साझा कर रहे हैं। 

नमस्ते साथियों मेरा नाम अभिषेक कुमार सिंह है। मैं इस हफ्ते हुई एक घटना को आपके सामने साझा करना चाहता हूं। जब मैं हलिमपुर नानकार विद्यालय में एक बच्ची का नामांकन कराने गया तो वहां के प्रधानाध्यापक पहले तो राजी नहीं हुए फिर बाद में मिन्नतें करने पर मान गए।

गांव से जुड़ा रिश्ता 

वे पहले मेरे गांव रामनगर विद्यालय में शिक्षक के रूप में थे, तब उन्होंने बताया कि रामनगर के लोगों ने उनकी काफी सहायता की है। उन्होंने मुझसे आगे पूछा, “आप रामनगर से हैं?”, तो मैंने कहा, “हां मैं रामनगर से ही हूं। मैं आई सक्षम संस्था में काम करता हूं और मेरा उद्देश्य बच्चों को स्कूल से जोड़ना है, जिन बच्चों की पढ़ाई रुक गई या जो बच्चे प्रतिदिन विद्यालय नहीं जा पाते हैं, उन्हें शिक्षा से जोड़ना ही मेरा उद्देश्य है।” 

मेरी बातों ने किया प्रभावित 

मेरे इस बात से प्रधानाध्यापक काफी प्रभावित हुए और बोले और उन्होंने कहा, आप बच्चों का नामांकन मेरे स्कूल में करवा दिजिए। प्रधानाध्यापक ने बच्ची का नामांकन अपने विद्यालय में किया और कहा कि आप हमारे विद्यालय आते रहिएगा। इसके अलावा उन्होंने मेरे काम की काफी तारीफ भी की। मैं उस समय अपने आप में गौरवान्वित महसूस कर रहा था। साथ ही आई सक्षम संस्था से जुड़कर मैं अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा हूं कि मुझे समाज और समुदाय में काम करने का मौका मिल रहा है।


Wednesday, February 22, 2023

क्या आप कबूतर उड़ लाइब्रेरी के बारे में जानते हैं?

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


हमारे एडुलीडर्स बच्चों के लिए शिक्षा को आसान करने का हर एक तरीका तलाशते हैं, जिसमें से एक TLM  (Teaching/learning materials) भी है। पहले स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडुलीडर ने भी TLM के एक्सपीरियंस को साझा किया था। 

इस बार बैच-9 की एडुलीडर सपना ने भी क्लासरूम में TLM से जुड़ा एक वाकया साझा किया है और इसकी उपयोगिता के बारे में बताया है।

Teacher corner का इस्तेमाल:

जब सपना को कुछ पढ़ाना रहता है, तो वे अपने द्वारा बनाए गए TLM का इस्तेमाल कर बच्चों को पढ़ाती हैं। यदि बच्चे को ग्रुप एक्टिविटी करने के लिए दिया जाता है और उनको कुछ मदद चाहिए होती है, तो वे सपना द्वारा बनाए  TLM की मदद लेते हैं। साथ ही पढ़ाई पूरी होने के बाद भी किसी भी तरह की मदद चाहिए होती है, तो इसकी मदद लेते हैं।   

कैलेंडर का इस्तेमाल:

बहुत बच्चों को यह नहीं पता होता है कि आज कौन सी तारीख है, तो बच्चे कैलेंडर देखकर पता करते हैं लेकिन  TLM के जरिए भी कैलेंडर का इस्तेमाल किया जा सकता है। TLM में ही कैलेंडर की सुविधा होती है, जिसे रोज एक-एक करके हटाया जाता है और परत दर परत तारीख मिल जाती है। 

अनुज नाम का एक बच्चा क्लास में खुद से लीड करता है और रोज TLM में मौजूद कैलेंडर की तारीख बदलता है, जिससे बच्चों के अंदर लीड करने मतलब नेतृत्व करने की भावना जा रही है।

 Library का इस्तेमाल:

लाइब्रेरी का इस्तेमाल आज क्लास में नहीं हुआ लेकिन डिब्रीफ में यह निकल कर आया। फ्री समय में बच्चे खुद से आते हैं और अपने मनपसंद किताब को निकालकर पढ़ते हैं और जो पढ़ना नहीं जानते हैं, वे चित्र देखकर अपनी समझ बनाते हैं।

 जब स्टोरी करवानी रहती है, तो लाइब्रेरी की बुक का इस्तेमाल करते हैं। पुस्तकालय का नाम बच्चों के स्वभाव और उनके गतिविधि के अनुसार रखा गया है, जैसे- कभी भी ओपनहाउस में बोला जाता है कि आपको क्या करना है, तो सभी बच्चे कबूतर के जैसा उड़कर लाइब्रेरी के पास ही जाते हैं वह दृश्य बहुत ही मोहक होता है क्योंकि उनके यही एक भाग है, जहां पर उनको रंग-बिरंगे गतिविधियों एवं चित्रों के माध्यम से पढ़ने और सीखने का मौका मिलता है इसलिए लाइब्रेरी का नाम कबूतर उड़ लाइब्रेरी रखा गया है। पीटीएम मतलब Parents Teachers Meeting में भी इस लाइब्रेरी की किताब की मदद मिली है, जिससे पीटीएम को कराना आसान रहा। 

3D चार्ट का इस्तेमाल:

जब हम बच्चों को सब्जी की थीम पढ़ानी होती है, तो 3D चार्ट की मदद ली जाती है लेकिन उसे भी TLM का हिस्सा बनाने के प्रयास किया गया है।

गांव का समाचार:

पूरे 1 महीने का समाचार इकट्ठा किया जाता है और उससे एक कॉपी पर लिख कर उसे टांग दिया जाता है ताकि बच्चों को भी पता रहे कि पिछले 1 महीने में गांव में क्या-क्या गतिविधि हुई है। 

इससे कुछ नई खबरें भी मिलती हैं। साथ ही बच्चे अपनी इच्छा के अनुसार भी जो बातें साझा करते हैं, उन्हें भी लगा दिया जाता है ताकि बालमन रुठे ना। 


कुल मिलाकर देखा जाए, तो TLM का उपयोग एक तरीका है, जिससे बच्चे स्वयं को जोड़ पाते हैं और बेहतर ढंग से अपनी समझ बना पाते हैं। साथ ही एडुलीडर्स की मेहनत का ही नतीजा है कि बच्चे अब स्वयं आगे आ रहे हैं और सीखने की क्षमता विकसित कर रहे हैं।