आज मैं आप सभी के साथ अपने जीवन की कुछ विशेष बातें, जिनका मुझ पर प्रभाव पड़ा है, साझा रही हूँ। कक्षा एक से पाँच तक मेरी बड़ी बहन ने मेरी पढ़ाई में मदद की। जब मैं कक्षा छः में गयी तो मुझे कोचिंग पढ़ने का मौका मिला जो घर से कुछ दूरी पर था।
तीन महीने बाद जब कोचिंग में टेस्ट (test) हुआ तो मैं उसमें टॉप 10 में आयी। जिससे वहाँ के स्टूडेंट मेरे से सही से बातचीत करने लगे और धीरे-धीरे मेरे दोस्त बनने लगे। एक बार मेरी कोचिंग में एक टेस्ट हुआ। जिसमें मैं प्रथम आई और मुझे जूनियर इंग्लिश ग्रामर (English Grammar) की किताब मिली। वहाँ एक लड़की थी जो मुझे पसंद नहीं करती थी, मेरे ऐसे प्रथम आना और पुरस्कार मिलना उसे अच्छा नहीं लगा।
एक दिन मैं कक्षा से बाहर गयी हुई थी। जब वापस आयी तो मैंने देखा कि मेरी चीजें नीचे फेंकी हुई थी। जब मैंने सबसे पूछा कि यह किसने किया है?
वो ज़ोर से चिल्लाने लगी और बोली कि मैंने किया है।
दूसरे दिन उसने अपने पापा को बुलाया और उस कोचिंग के डायरेक्टर से बात करके मुझे कोचिंग से निकलवा दिया। उसके पापा ने इस काम के लिए कुछ पैसे भी दिए। मुझे बहुत बुरा लगा था। कोचिंग से निकाले जाने के बाद मैंने खुद से ही घर में पढ़ाई करना ज़ारी रखा।
मैंने दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की। ग्यारहवीं में मैंने जीवविज्ञान विषय लेने का सोचा और मन बनाया कि किसी अच्छे बाहर के शिक्षक से जीवविज्ञान पढूंगी। इसी बीच मेरी दीदी की शादी हो गयी और मैं अकेले पड़ गयी। पापा की तबियत भी ज्यादा खराब होने के कारण 20 दिन ता क्वो हॉस्पिटल में ही भर्ती रहे।
घर की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गयी कि मैं बाहर जाकर पढ़ना तो दूर, घर में ही पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पायी। इस तरह बिना पढ़े ग्यारहवीं निकल गयी और 2020 में (बारहवीं में) मेरी दीदी और दादी का देहांत कोविड-19 के कारण हो गया था।
उस समय घर में बिना किसी के दिशा-निर्देश के पढ़ाई करना मेरे लिए कठिन हो रहा था। मेरे पास स्मार्ट फ़ोन या इन्टरनेट जैसी सुविधाएँ भी नहीं थी जिसके माध्यम से मैं घर में पढ़ाई कर पाती। फरवरी 2021 में मैंने बारहवीं की परीक्षा अछे अंको से उत्तीर्ण की।
फिर मैंने बीएससी कोर्स में कॉलेज में नामांकन कराया और घर पर ही रहकर पढ़ने लगी। 2022 में i-सक्षम के कुछ लोग मेरे घर आये तब मुझे फ़ेलोशिप के बारे में जानकर बहुत ख़ुशी हुई थी। आज मैंने अपनी फ़ेलोशिप के डेढ़ वर्ष पूरे कर लिए हैं, मुझे इस बात पर भी गर्व है।
पहले मैं अकेले रहना पसंद करती थी। लोगो से बातें करना, हँसना, मिलना-जुलना मुझे पसंद नहीं था। कम्युनिटी में जाकर बात करना तो बहुत बड़ी बात थी। मुझ में आत्म-विश्वास की बहुत कमी थी। मैं अपने लिए आवाज तक नहीं उठा पाती थी।
वहीँ आज मैं अपने लिए तो क्या दूसरों के लिए भी पक्ष ले सकती हूँ। घर से बाहर अकेले जा सकती हूँ। ना सिर्फ तेघरा, बेगूसराय या बाज़ार बल्कि पटना तक अपना डी.एल.एड का एग्जाम देने अकेले ही गयी थी। कम्युनिटी के लोगो से किसी भी टॉपिक पर बात कर सकती हूँ। मैं अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम हुई हूँ और परिवार के लोग भी मेरी बातें मानने लगे हैं।
मुझे बच्चों को सिखाने का भी एक अवसर मिला, जो मुझे बहुत पसंद भी आया।
यह सब बदलाव हो पाए क्योंकि हमारा अलग-अलग तरीकों से क्षमतावर्धन के सेशंस (sessions) होते रहते हैं। जैसे- आइडेंटिटी, ताकत और कमजोरी, आइसबर्ग, एजेंसी आदि। बढ़ते कदम, बडी टॉक और वीकली कॉल्स में छोटे-छोटे गोल बनाकर उनपर आगे बढ़ने से भी मुझे खुद में बहुत सुधार दिख रहे हैं।
अभी फ़ेलोशिप के छ: महीने और बाकी हैं और मैं भी अभी बहुत कुछ सीखने के लिए आतुर हूँ।
निभा
बैच-10, बेगूसराय