Monday, June 29, 2020

"बाबू आज तुम्हारा एक अलग रूप देखने को मिल रहा है। तुम एकदम अलग हो!"





मेरा नाम प्रिया है और मैं एक edu-लीडर के रूप में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की बच्चियों के साथ उनकी शिक्षा पर कार्य करती हूँ| मार्च  माह से लॉकडाउन के कारण विद्यालय बंद हैं| ऐसे में पिछड़े इलाकों के बच्चों की शिक्षा बहुत प्रभावित हुई है| आई-सक्षम के edu-leaders जहाँ पहले अपने गाँव के सरकारी विद्यालयों में जा कर दो से ढाई घंटा बच्चों को पढ़ाया करते थे, आज फ़ोन के माध्यम से बच्चों तक पहुँच रहे हैं| परन्तु गाँव में आज भी हर परिवार के पास फ़ोन की सुविधा नहीं है| ऐसे में बच्चियों के साथ मिल कर सीखने-सीखाने का हमारा प्रयास दिल को छू जाने वाले रहा|

लॉक डाउन होने के कारण सभी edu-leaders बच्चों को घर से फ़ोन पर पढ़ा रहे थे| इसी बीच हमारे मन में एक विचार आया कि क्यों न कस्तूरबा की बच्चियों को भी फ़ोन के माध्यम से पढाया जाए जिससे वे कुछ नया और अधिक सीख पाएं?  तभी एक दिन टीम में बात हुई और हमने सुझाव दिया कि कस्तूरबा में जाने वाली edu-leaders भी बच्चों को फ़ोन के माध्यम से पढ़ा सकती हैं| सभी लोगों ने थोड़ा सोचा और हाँ बोल दिया। उसके अगले ही दिन हम सभी ने मिलकर बच्चों के नंबर ढूंढ़ निकाले और बच्चों के माता- पिता से बात की। हमने उन्हें बताया कि हम लोग बच्चों को फोन द्वारा पढ़ाना चाहते हैं, आपकी क्या राय है आप भी बताएं । सभी के माता- पिता भी मान गए और हमने 4 दिन के अंदर ही क्लास शुरू कर दी। सब बहुत जल्दी - जल्दी हो रहा था। हर रोज़ प्लान बनाना फिर उसी प्लान से बच्चियों को पढ़ाना । शुरुआत में हम केवल 8 ही बच्चों से जुड़ पाए थे लेकिन जब लगातार कॉल करते रहे और सेशन चलते रहे तो हमसे और भी बच्चे जुड़ने लगे| हमे मालूम ही नहीं चला कि कब बच्चों की संख्या इतनी बढ़ गयी|  अच्छी बात ये रही कि कक्षा 7 में 30 बच्चियां हैं और हम लोग 20 बच्चियों तक पहुंच पाए। 

सप्ताह में पूरे 5 दिन सेशन होते हैं । बच्चों को कॉल करने का समय 10 बजे है । अगर किसी दिन 10 बजे कॉल नहीं कर पाते हैं तोबच्चियां खुद कॉल कर लेती हैं और कॉल उठाते ही सवालों की एक रेल सी शुरू हो जाती है| दीदी 10 बज गए आपने कॉल क्यो नहीं किया ? क्या आपकी तबीयत खराब है? क्या आज कॉल नहीं होगा? और ना जाने कितने ऐसे सवाल| बात तो बहुत छोटी सी है पर बहुत बड़ी खुशी देती है कि बच्चियों में सीखने की कितनी उत्सुकता है| यही उत्सुकता हमारे धैर्य व् प्रोत्साहन को बनाए रखती है।

 कॉल के ज़रिए पढ़ाने से एक ऐसा काम भी हो पाया जो हमे कक्षा में पढ़ाते हुए असंभव सा लगता था। आज वो बच्चियां भी कॉल करती हैं और पढ़ने के लिए उत्सुक हैं, जो पहले क्लास में रहना पसंद नहीं करती थी| जब उन्हें गृहकार्य मिलता है तो वो उसको पूरा कर के भेजती  हैं, पर उनके गृहकार्य पूरा करने के बाद व्हाट्सएप से उसे भेजने की कहानी बहुत मजेदार होती है । हर बच्ची की एक छोटी- सी कहानी होती है, सब एक दूसरे को अपनी कहानी सुनाती हैं कि उन्होंने आज का होमवर्क कैसे भेजा था। कभी - कभी कुछ दिक्कतें भी होती हैं क्योंकि हर बच्ची के घर पर फ़ोन नहीं है| इसके बावजूद सब  एक दूसरे  के घर जा कर पढ़ती हैं, social distancing और साफ़ सफाई का ध्यान रखती हैं| बच्चियों के एक दुसरे को सहयोग कर साथ में सीखने के इस कदम ने हमे ऐसे समय में भी अनेकों घरों तक पहुँचा दिया| अब हम सिर्फ 8 बच्चियों को कॉल करते हैं जिससे 19-20 बच्चियों से जुड़ पाते हैं। मुझे लगता था कि कॉल पर पढ़ने से बच्चियों के पढ़ाई के स्तर को कैसे जांच पाऊंगी पर शायद वह भी खुद ब खुद आसान हो गया| 

कुछ बदलाव मेरे घर में भी हुए , मैं पढ़ाती थी ये तो मेरे घर में सभी जानते है पर मैं कैसे पढ़ाती हूँ यह आज सब को पता चल पाया| मेरे पापा भी शिक्षक हैं| पर जब आज इन बच्चों को कॉल पर पढ़ाती हूँ तो पापा बैठ कर सुनते रहते है कि मैं क्या बोलती हूँ और कैसे बोलती हूँ । एक दिन पापा ने मुझे बोला कि - “बाबू आज तुम्हारा एक अलग रूप देखने को मिल रहा है । तुम एक दम अलग हो|”  मुझे यह सुन कर पहले तो थोड़ा दुख हुआ कि मैं पिछले 3-4 सालों से पढ़ा रही हूँ और मेरे पापा अब ध्यान दे रहे हैं, परन्तु इस सबसे ज्यादा इस बात की खुशी हुई कि वो मेरे पढ़ाने के निर्णय व् तरीके पर गर्व कर रहे थे। 

Friday, June 19, 2020

In our previous blog post, we shared how one of our ex-intern from Yale School of Management shared about her experience with i-Saksham. Here is another post capturing one such experience story of a visitor "Vineet Sabharwal" who works at McKinsey and visited i-Saksham a few years ago.

"Meeting the i-Saksham family a couple of years ago was a surreal experience for me. I had heard a lot about the commitment and passion with which the team had been working tirelessly to create a system of education that was still alien to large parts of the country




However, seeing them in action on their Karma Bhoomi was inspirational beyond imagination. They had penetrated the hearts and minds of the local communities in creating and delivering innovative classroom experiences for young students in areas where finding a functional school building was more difficult than finding high-speed internet. Whether it was language or mathematics, the engagement in the classroom was meticulously planned and delivered effectively with the help of technology by young local volunteers who had been trained well by the i-Saksham team. And the result was clearly evident in the eyes of young students, eager to participate at each step of the learning process. It was truly heartwarming and reassuring to know that the future of these kids was in the right hands. Meeting the i-Saksham family a couple of years ago continues to inspire me to support the team in every possible way."

-Vineet Sabharwal
Visitor

Vicki (Ex- Yale Intern) shares about her experience with i-Saksham!

Since the founding of i-Saksham, we have hosted interns, volunteers, researchers etc. both nationally and internationally. It includes interns and guests from Yale, Teach for India, Christ University, America India Foundation etc. Where witnessing the education of children in interior pockets of India adds knowledge to them; the experience also becomes one of its kind for them after being exposed to the rural realities and interactions. Here is a testimonial from one such intern, Vicki who joined us from Yale School of Management in the year 2017

"I was immensely touched by the work that i-Saksham does, and it is directly linked to my fascination with whether curiosity is born from knowledge, the opposite, or a bit of both.  i-Saksham renders this conundrum irrelevant, in that it teaches young adults to introduce grade 1 to 5 children to Hindi, English & math, which unleashes the potential of both these phenomena.  



As a younger sister of a brother 2 years my senior, I convinced my dad to teach me to read and write while preparing him for primary school. I have been a compulsive reader since, and cannot imagine a world without the written word. This (up to now) taken for the granted privilege, augments my absolute awe at the compassionate, sophisticated and intentional manner in which i-Saksham address the education crisis beyond measure.  Especially as they target households where experience like mine is simply not an option.  

The stellar team of i-Saksham founders can do anything that they want on the planet, and they choose to focus their energies on the resource-stricken Bihar.  Individually and collectively, together with their tightly knit, innovative, and industrious team, they inspire awe and gratitude and they compel me to do my part in our unequal world."

-Vicki van der Westhuizen
Ex-Yale Intern