Friday, March 29, 2024

i-सक्षम के मुंगेर ऑफिस से- अमन

 क्या हो जब हम ही हमारे गुरु बन जाएं!

अक्सर हम सीखने के लिए, अपने से किसी बड़े ज्ञानी की खोज में होते है, जो हमसे ज्यादा जानता हो। और हम यह सोचते हैं कि वैसे लोग ही हमें सिखा सकते हैं, जो हमसे ज्यादा जानते हों।

मुंगेर में अचानक से टीम के पुराने साथियों का चयन एक संस्था में हुआ। हमारे साथी अब DIET के साथ मिलकर शिक्षक प्रशिक्षण में अपना योगदान दे रहें हैं। एक ओर जहाँ खुशी थी वहीं दूसरी ओर प्रशक्षित टीम का चला जाना, एक संघर्षपूर्ण चुनौती रहा। इस वर्ष हमारे जिले में कार्यक्रम विस्तार की भी योजना थी। हम 60 एडु-लीडर्स के साथ कार्य करने की बजाय 100 एडु-लीडर्स के साथ आगे बढ़ने वाले थे।

जिसकी पूर्ति के लिए तुरंत नए साथियों का चुनाव किया गया और अपने कार्यक्रम की संख्या और गुणवत्ता दोनों को ही बेहतर रखना आसान काम नहीं था। एक मेंटर के रूप में, मुझसे अपेक्षाएं भी अधिक थी। एक समय था जब टीम के लगभग हर व्यक्ति को लगातार सपोर्ट की आवश्यकता थी।

मुझे जो टास्क सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी, वो थी सभी साथियों को नियमित रूप से समय दे पाना और उनके साथ बने रहना। यह न कर पाने में, एक अधूरापन सा रहता था। और ऐसा लगता था जैसे कि हर समस्या का समाधान मुझे ही देना है। मेरी अनुपस्थिति में लोग परेशान भी रहते थे।

एक टीम के रूप में बेहतर कार्य कर पाना, हमेशा ही संघर्षपूर्ण रहता है। हमारी दूसरों से अपेक्षा भी ज्यादा रहती है। वैसे में एक ऐसे समूह का निर्माण करना जो एक दूसरे के सीखने और सिखाने की जिम्मेदारी ले, एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। हमने ऐसे ही समूह का निर्माण किया। जहाँ एक साथी दूसरे साथी के सीखने की जिम्मेदारी ले और उसकी गुणवत्ता में भी भागीदार बनें।

यह कर पाना काफी लाभदायक रहा। जहाँ साथियों ने इसे एक मौके के रूप में लिया। तुरंत में हुए सुधार के रूप में जहाँ टीम अपने कार्य को 60 से 75 प्रतिशत पूरा करने में ही परेशान हो जाती थी। वहीं इस प्रक्रिया से कार्य के पूरा होने में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

ऐसे प्रयोग ने साथियों को बेहतर सहयोग प्रदान किया और सीखने-सिखाने के नए मौके भी बनाएं।

अब यह देख कर मुझे खुशी होती है कि समस्याओं की लिस्ट अब कम हुई है। लोगों का एक दूसरे पर भरोसा बढ़ा है। जो हमें आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त है।

अमन
टीम सदस्य, मुंगेर

Thursday, March 7, 2024

आइये इस महिला दिवस समझते हैं- क्या है i-सक्षम संस्था की मुहिम "Voice & Choice"?

 राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

प्रिय पाठकों, सीखें सीखाएं।। के जनवरी-फरवरी अंक में आपने ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के बारे में तो जाना ही होगा। राष्ट्रीय महिला दिवस, 13 फरवरी को भारत की प्रसिद्ध महिला राजनीति कार्यकर्ता सरोजिनी नायडू जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू जी एक कवियित्री भी थी उनकी कविताओं की कला और गीतात्मक गुणवत्ता के लिए उन्हें गांधी जी द्वारा ‘भारत की कोकिला’ का उपनाम भी दिया गया

साथियों, 8 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ है हमारी संस्था महिलाओं के अधिकारों, अपने निजी मुद्दे, घर-परिवार के मुद्दे, समाज में परस्पर भागीदारी, Voice & Choice पर कार्य कर रही है तो आप अवश्य ही न सिर्फ इस दिन को बल्कि इस माह में अलग-अलग तरीकों से जागरूकता का कार्य कर ही रहें होंगें।

इतिहास के पन्नो से

“हम महिलाओं को मताधिकार दो”। यह नारा महिला दिवस, 8 मार्च 1914 को जर्मनी में दिया गया था। कारण था कि वहाँ महिलाओं को पूर्ण नागरिक अधिकार से वंचित रखा हुआ था। वो महिलायें जिन्होंने श्रमिकों, माताओं और नागरिकों की भूमिका पूरी निष्ठा से निभायी थी एवं जिन्हें नगर पालिका के साथ-साथ राज्य के प्रति भी करों का भुगतान करना होता था। इस हक़ की माँग के साथ, सभी महिलाएँ और लडकियाँ आयीं। रविवार, 8 मार्च 1914 को, शाम 3 बजे, जर्मनी की 9वीं महिला सभा में शामिल हुई।

परन्तु साथियों, यह पहली बार नहीं था जब पश्चिमी देशों की महिलायें अपनी voice रख रही थी। इससे पहले भी 1909 में अमेरिका में इस तरह का दिवस मनाया गया था। हम कह सकते हैं कि बीसवीं सदी के शुरूआती समय में महिलाओं के लिए एक विशेष दिन हो, वैश्विक पटल पर इस प्रकार की सोच का उद्गार हुआ।

भारत की बात करें तो प्राचीन भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। हालाँकि मध्यकालीन भारत में महिलाओं की दशा बहुत अच्छी नहीं थी। इसी काल में सती, परदा, जौहर, देवदासी व बाल-विवाह का प्रचलन था। जो अंग्रेजी शासन काल के दौरान राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फ़ुले, आदि जैसे कई सुधारकों ने प्रयासों से थोड़ी बेहतर हुई।

भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। भिकाजी कामा, डॉ॰ एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुना आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख और कस्तूरबा गाँधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी।

एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं।

महिलायें और Voice & Choice

तो साथियों अब तक आप जान गए होंगें कि ये Voice & Choice का कांसेप्ट कोई नया नहीं है। यदि आप इसके बारे में i-सक्षम में जुड़ने से पहले नहीं जानते थे तो जागरूकता की कमी इसका एक कारण हो सकता है। चलिए एक बार और प्रयास करते है Voice & Choice को समझने का।

जब हम Voice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है कि हम अपनी पसंद-नापसंद, जरूरतों, महत्वाकांक्षाओं, सपनों और अपने से रिलेटेड (related) विषयों में अपनी बात को रख सकें।

और इसी प्रकार जब हम अपनी choice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है- कि जिस भी बारे में हमने आवाज़ उठायी है, क्या उसे चुनने का, उस कड़ी में आगे बढ़ने का हक़ हमें हो।

उदाहरण के लिए-

  1. जैसे आप आगे पढ़ना चाहती हैं, कम्पटीशन की तैयारी या जॉब करना चाहती हैं।
  2. आप अभी विवाह करना चाहती हैं या पढ़ाई या कोई और अन्य कौशल अर्जित करना चाहती हैं।
  3. आप अपने घर और गाँव से बाहर किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए ‘अकेले’ जा सकती हैं या नहीं?

Choice से हमारा अभिप्राय यही है कि इस तरह के निर्णय लेने की क्षमता और अधिकार आपके पास हों।

जो महिला साथी i-सक्षम के साथ जुड़ गयीं हैं, उनके बारे में एक बात तो तय है कि वो Voice & Choice के कांसेप्ट को अच्छे से जानती हैं। समय आने पर अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए, अपने समाज के लिए सही निर्णय के लिए voice उठायेंगी ही।

लेकिन साथियों उनका क्या, जो इस कांसेप्ट को जानती ही नहीं हैं?

जिन्होंने कभी नहीं सोचा कि पापा, भैया, पति या किसी अन्य पुरुष की बात सुनकर, अपनी बात भी रखने का अधिकार उनको है!  वो अपनी पसंद-नापसंद शेयर कर सकती हैं।

उनके लिए सोचिये और आगे बढ़िये। अभी हमें बहुत काम करना है।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम Invest in Women: Accelerate Progress है। आप जानते हैं कि महिलाएं और लड़कियाँ पहले से ही घरों में बिना वेतन के काम करती हैं, खासकर पुरुषों की तुलना में। तो यदि हम शुरुआत से लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान दे तो यह एक इन्वेस्टमेंट ही होगा। जो उन्हें भविष्य में आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने में मददगार सिद्ध हो सकता है। इस महिला दिवस की थीम बस यही कहती है कि समाज को आगे बढ़ाना है तो लड़कियों और महिलाओं को आगे बढ़ाओ

साथियों इस लेख के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप लैंगिक समानता और महिलाओं द्वारा नेतृत्व किये गए आन्दोलनों के बारे में जानें। 

प्रत्येक क्षेत्र में सफल महिलाओं द्वारा लिखी गयी कविताओं तथा पुस्तकों को पढ़ें, उनके बारे में खोजबीन कर अपना मत बनाएं। जरुरत पड़ने पर अपनी क्लस्टर मीटिंग में अपने साथियों के साथ डिस्कस करें। संभव हो सके तो हमें लिखकर भेजें।