Sunday, April 21, 2024

मैं सक्षम हूँ

अव्वल, अवगत, आत्मनिर्भर आधुनिक युग की नारी हूँ।

मत समझो अब अबला नारी, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।

चली गई वो कल की शाम, जहाँ जीती थी लेकर कल की आस।

कुछ न कहती, सब कुछ करती, सुनती थी मैं सबकी बात।


आज बनी मैं युगारंभ की निर्माता, हर बाधा मुझसे हारी है।

खुद घर, समाज में मैंने अपनी जगह बनाई है।


ऊंचे-नीचे पद पर बैठी, सम्मान की मैं इख़्तियार हूँ।

मत मानो अब निर्बल, विवश और लाचार आज की नारी है।


स्नेह, लगाव और करुणा की भंडार, आज की मैं नारी हूँ।

हर संग्राम पर विजय पाऊं, यह मुहिम अभी भी जारी है।


मत समझो अब अबला नारी, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।

मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।


आँचल, एलुमनाई


स्कूल मैं भी जाउँगा(कविता )

स्कूल मैं भी जाऊंगा,

किताबे पढूंगा

प्रार्थना करूँगा,

अच्छा बच्चा बनूँगा

जाऊंगा मैं जाऊंगा।

स्कूल मैं भी जाऊंगा।।

डॉक्टर जैसा बनूँगा

कलेक्टर जैसा बनूँगा

डीएम जैसा बनूँगा

PM जैसा बनूँगा

जाऊंगा मैं जाऊंगा।

स्कूल मैं भी जाऊंगा।।

आलोक कुमार

बडी, मुज्ज़फ्फरपुर


 


        


 

मैं(कविता )

मुझे नहीं बनना, किसी के समान

नहीं बने रहना भैया और सैंया की मेहमान!


मैंने खुद में अपना एक अलग अस्तित्व पाया है,

जैसे अपनी आजादी का झंडा अपनी चुनरी से लहराया है।


हाँ! बिंदिया, कंगना और यूं सजना-संवरना मुझे भाया है,

पर वक्त आने पर आतिश, बंदूक और तलवारें भी मैंने उठाया है।

मेरी आवाज़ मीठी जरूर है लेकिन,

अपनी चीख से खुद के अधिकार और सम्मान को भी बचाया है।

तारीख गवाह है,  हमारी ताकत से

मौत के मुंह में जाकर तुम्हें इस दुनिया में लाने का जज्बा,  एक नारी ने ही तो दिखाया है।


हमनें खुद भूखे रहकर, तुम्हें अपना खून पिलाया है।

इसलिए मैं कहती हूँ, मैंने खुद में अपना एक अस्तित्व पाया है।


तानिया, एलुमनाई

 


अजी वाह वाह!(कविता )

एक बिल्ली हमारी,

कैसी बैठी बेचारी,

अजी वाह वाह!

 

लगे हमको वो प्यारी

अजी वाह वाह!

 

छुपके छुपके वो जाती

चूहा झट से पकड़ती

वो तो कुत्ते से डरती

अजी वाह वाह!

 

कुत्ता हमारा कैसे बैठा?

बेचारा लगे हमको प्यारा

अजी वाह वाह!

 

छुपके छुपके वो जाता,

बिल्ली झट से पकड़ता,

अजी वाह वाह!

 

वो तो डंडे से डरता,

अजी वाह वाह!

अजी वाह वाह!! 

  

कुमारी सोनम

बैच- 10 (a), मुंगेर


 


 


 

मुंबई यात्रा से समझ आया कि “अंग्रेजी सीखना है कितना महत्वपूर्ण”!

नमस्ते साथियों,

मैं आप सभी के साथ जमुई से मुंबई के एक लर्निंगफुल सफर साझा कर रही हूँ। इस सफर में मैं, आदित्य सर, रवि सर और रनिता दीदी साथ थे।
 
मैं और आदित्य सर पहले कोलकाता गए। हमारी फ्लाइट में कुछ समय था तो हमने विक्टोरिया मेमोरियल और साइन सिटी घूमने का प्लान बनाया। यहाँ मुझे बहुत सी बातें ऐसी पता चली, जो इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी। मेरे अन्दर और इतिहास को जानने की लालसा जगी।
 
घूमने के बाद हम दोनों सीधे एयरपोर्ट के लिए निकले। मुझे थोड़ा-थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि मैं पहली बार फ्लाइट पर बैठने वाली थी। परन्तु मेरे साथ आदित्य सर थे तो मुझे हिम्मत मिली। और मज़े की बात ये हुई कि जब फ्लाइट टेकऑफ कर रही थी तब मेरा डर गायब हो गया और मैं आराम से इस उड़ान के मज़े लेने लगी। मुझे ख़ुशी भी हो रही थी कि अब मैं मुंबई पहुँचने वाली हूँ।
 
जब मैं मुंबई पहुंची तो वहाँ का नजारा कुछ अलग ही दिखा।

जमुई से बहुत ही अलग और रिच दिखा लोगों के बात करने का तरीका, पहनावा और मौसम सब बहुत अलग था।
 
फिर 26 फरवरी से The NUDGE की तरफ से चार दिन का सेशन शुरू हुआ। जिसमें मैं बहुत सारी आर्गेनाईजेशन के लोगों से मिली, उनके काम के बारे मे जाना। इन संस्थाओं ने अपनी सफलताएं और चुनौतियाँ साझा की।

मुझे इस सेशन को समझने में एक बड़ी चुनौती भी आ रही थी कि पूरा सेशन इंग्लिश में था और मुझे कुछ बातें समझ आ रही थी और कुछ ऊपर से जा रही थी
। रवि सर ने मुझसे कहा कि कोई बात नहीं, हम लोग बाद में डीब्रीफ कर लेंगें। आदित्य सर ने भाषिनी ऐप के बारे में बताया, जिससे मेरी दुविधा थोड़ी आसान हुई।
इस सब के बीच मैं 4 ऐसी मीटिंग्स में भी हिस्सा बनी, जो i-सक्षम के साथ पार्टनरशिप करने के बारे में सोच रहीं थी। रवि सर ने अपने कार्यों को उनके साथ साझा किया और मैं भी अपना अनुभव साझा कर पायी। इस शेयरिंग को होने वाले पार्टनर्स ने काफी सराहा भी।
 
सारी मीटिंग्स के बाद, हम सभी लोग फिर से घूमने गए। मैं हाजी अली दरगाह और गेटवे ओफ इण्डिया गयी। मैंने बहुत सारी तस्वीरें ली और समुन्दर को बिलकुल पास से देखा।



डिनर पर हमारी मुलाकात तीनो सर के मेंटर से हुई। उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मेरे अनुभव को सुना और अपनी बातें भी खुलकर साझा की।



फिर मैं मुंबई से जमुई अकेले ही आयी। इस बार की यात्रा से मैं अपने अकेले कहीं जाने में लगने वाले डर को खत्म कर पायी। मुझे बहुत कॉंफिडेंट भी फील हुआ। मैं, संस्था को इस विजिट के लिए, इस मौके के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ।
 
और अंत में मेरी एक सीख जो मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ वो यह है कि हम सभी के लिए अंग्रेजी भाषा सीखना बहुत जरुरी है।
 
मैं कोशिश करुँगी कि मैं दैनिक जीवन में अधिक से अधिक अंग्रेजी भाषा के शब्दों का चयन कर सकूँ। मैं इस काम को सीरियसली एक्शन प्लान बनाकर, बिना समय गवाए, टॉप प्रायोरिटी पर रखकर शुरू करना चाहती हूँ। अब लग रहा है कि जितने महत्वपूर्ण अन्य काम हैं, उतना ही अंग्रेजी सीखना भी है।

 नर्गिस 
 वयं सदस्य

Saturday, April 20, 2024

स्टाइपेंड के पैसों से स्कूटी खरीदना चाहती हैं, तन्नु प्रिया

बेगूसराय के तेघरा ब्लॉक के एक छोटे से गाँव नौनपुर की तन्नु प्रिया ने i-सक्षम के बारे में जब सुना कि यह महिलाओं की Voice & Choice पर काम करने वाली संस्था है। महिलाएँ, युवतियाँ कुछ सीखें और अपने गाँव के विद्यालय और समाज को सहयोग देनें के उद्देश्य से जुड़े, उनके लिए i-सक्षम का फॉर्म भरने के लिए इतना ही जानना काफी था।

जब उन्हें पता चला कि इस कार्य के लिए उन्हें स्टाइपेंड भी मिलेगा तो उनकी ख़ुशी की सीमा नहीं थी। उन्होंने न सिर्फ अपना फॉर्म भरा, उन्होंने अपने आस-पास की तीन अन्य महिलाओं का फॉर्म भरवाया।

तन्नु प्रिया के पिता जी पेशे से किसान हैं और माता जी घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। तन्नु प्रिया वर्तमान में बेगूसराय के जी.डी. कॉलेज से अग्रेज़ी (होनर्स) में मास्टर्स कर रही हैं। उन्हें i-सक्षम से जुड़े हुए मात्र एक वर्ष हुआ है और उन्होंने अपने अभी तक के अनुभवों के कारण आगे सामाजिक क्षेत्र में ही अपना करियर बनाने का मन बनाया है।

कुछ दिन विद्यालय में एक तरफ शिक्षक और एक तरफ एडु-लीडर तन्नु प्रिया को थोड़ा असहज जरुर महसूस हुआ परन्तु समय और तन्नु के बच्चों को पढ़ाने के लिए किए गये प्रयासों के साथ शिक्षकों और तन्नु के बीच एक पुल जरुर बना है। 

हमेशा अनजान लोगों से बात करने में डरने वाली तन्नु अब बेहिचक फील्ड-वर्क पर निकलती है
। अभिभावक शिक्षक बैठक हो या विलेज मैपिंग (village mapping) वो कहीं पीछे नहीं रहती।

स्टाइपेंड से मिले पैसो को वो बैंक से नहीं निकलती, क्योंकि तन्नु प्रिया अपने रुपयों से स्कूटी खरीदना चाहती है।

प्रियंका कौशिक 
 टीम सदस्य, बेगूसराय

गया ऑफिस में हुई अभिभावक-एडुलीडर्स बैठक

मेंरे प्यारे दोस्तों,

मैं आप सभी के साथ 23 फरवरी कोई शेरघाटी ऑफिस, गया जिले में संपन्न हुई i-सक्षम संस्था और अभिभावक बैठक के बारे में अपडेट देना चाहती हूँ। इस बैठक में लगभग 25 अभिभावक उपस्थित हुए। बैठक की शुरुआत एक एक्टिविटी और इंट्रोडक्शन से हुई।

एडु-लीडर्स जिन्होंने अपने दो वर्ष पूरे कर लिए हैं, उन्होंने अपना एक्सपीरियंस गाँव, विद्यालय या स्वयं में जो बदलाव आये, वह सब अभिभावकों के साथ साझा किया

इसके बाद सभी लोग कुछ ग्रुप्स में बटें और ग्रुप्स में कुछ बातचीत हुई। इस बातचीत के विषय इस प्रकार थे-

·       i-सक्षम के साथ जुड़कर एडु-लीडर्स क्या कार्य कर रहीं हैं
·       खुद में क्या बदलाव महसूस कर पा रही हैं
·       परिवार में क्या-क्या बदलाव देख पा रहीं हैं
·       विद्यालय परिवेश में क्या बदलाव आया है




एडु-लीडर्स ने अपनी बात खुल कर रखी और अभिभावकों ने भी अपने-अपने ग्रुप्स में यथासंभव बातें रखीं। एडु-लीडर्स ने voice & choice को भी अच्छे से एक्सप्लेन किया।
 
इस मीटिंग के बाद मैं यह देख पायी कि अभिभावकों को एडु-लीडर्स के कार्यों के परिचित कराना कितना महत्वपूर्ण काम है। अभिभावक भी अपने बच्चों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। 
 
एडु-लीडर्स को आगे बढ़ने-बढ़ाने में किसी प्रकार की उलझने उनकी राह में रुकावट ना बन सके, इसलिए पेरेंट्स मीटिंग का भी होना बहुत अनिवार्य है। अभिभावक भी अपने बच्चों के प्रयासों के बारे में जान पाए कि हमारे बच्चे किस प्रकार सीख कर, सिखा कर आगे बढ़ रहें हैं।

सीमा
टीम सदस्य, गया

यज्ञ की वजह से पढ़ाई हुई बाधित

साथियों, 1 मार्च से हमारे गाँव प्रतापपुर में यज्ञ होने वाला है तो इसलिए अभिभावक PTM में नहीं आ पा रहे थे

बच्चों से बात करने पर पता चला कि यज्ञ की वजह से ग्रामीण पिछले 15 दिनों से तैयारियों में लगें हैं।

मैंने सोचा कि मैं ही सभी के घर जाकर बच्चे नियमित रूप से स्कूल क्यों नहीं आ रहें हैं? इस विषय पर बात कर लेती हूँ
मैं बच्चों के घर पहुँचीं तो अभिभावक अपने आप ही बोलने लगे कि स्कूल के सामने मेला लगा है। जिस कारण बच्चे क्लास से भाग जातें हैं। बाजा बजने के कारण बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पाती होगी!
 
यज्ञ खत्म होते ही हम खुद बच्चों को स्कूल भेजेंगें। उनकी बात सुनकर मुझे काफी ख़ुशी हुई। हालांकि इस यज्ञ की वजह से बच्चों की 10 से अधिक दिन की पढ़ाई का नुकसान हुआ जिसकी पूर्ती होने में 20 दिन तो लग ही जायेंगें
 
मधु भारती

  जमुई

अभिभावकों को समझाया कि क्या होता है PTM

नमस्ते साथियों,

मैं उत्क्रमित मध्य विद्यालय खरौना मैं पढ़ाती हूँ। शुरू में जब मैंने पढ़ाना स्टार्ट किया था तब मुझे पता चला कि मेरे विद्यालय में कभी PTM ही नहीं हूँई। मैंने प्रधानाध्यापिका से बात करके PTM करवाने का सोचा।

मैं एक-एक बच्चे के घर जाकर अभिभावकों से मिली, उनसे बात की।

वहाँ मुझे पता चला कि इन्हें PTM का मतलब और इस बैठक में क्या-क्या बातचीत होती है, वह भी नहीं पता है। तो मैंने बात करने के साथ, इन्हें जागरूक करने का भी सोचा। उसके लिए मैंने एक बैठक तय की और इस तरह से विद्यालय में पहली PTM प्रधानाध्यापिका की अध्यक्षता में संपन्न हूँई।

अब तक मैंने चार PTM कंडक्ट (conduct) कर ली हैं। इन बैठकों के माध्यम से अभिभावकों को जानकारी हुई है कि उनके बच्चे विद्यालय में क्या पढ़ते हैं? कैसे पढतें हैं? और क्या नयी चीजें सीख रहें हैं?


अब तो अभिभावक खुद ही बच्चों का फीडबैक विद्यालय तक लाते हैं।

जैसे- बच्चे कोई नयी कविता या एक्टिविटी सीखें हैं, पढ़ाई में मन लगने लगा है, अच्छी आदतें अपना रहें हैं आदि।
 
प्रधानाध्यापिका, श्री विभा कुमारी जी और बाकी शिक्षकों ने विद्यालय में हो रहे बदलावों और PTM को रेगुलर करने के लिए मेरी व्यक्तिगत तौर पर प्रशंसा की है। इसलिए मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ।

PTM ही विद्यालय और समुदाय के बीच एक पुल का कार्य करती है। अब विद्यालय परिवार, अपनी बातें अभिभावकों के साथ और अभिभावक, शिक्षकों के साथ रख सकते हैं। इसलिए मैं बहुत अच्छा महसूस कर रही हूँ।

आकांक्षा

  बैच-10, मुज्ज़फरपुर

 

मटर के खेत में हुई PTM


नमस्ते साथियों,

जब मैं अभिभावकों के घर उन्हें PTM में बुलाने के लिए गयी तो पता चला कि सब खेत में हैं मुझे उनका समय बर्बाद किये बिना अपना काम बनाना था तो इसलिए मैं खेत में जाकर ही उनके साथ PTM करना सही समझा मैंने उन्हें उनके बच्चों के बारे में अपडेट किया और कुछ उनकी परेशानियाँ सुनी

अगली बार प्रॉपर तरीके से PTM करने के बारे में भी बात की मुझे भी मटर खाने को मिली तो मैं भी खुश थी

रश्मि, बैच- 9, मुंगेर



17 वर्षीय नेहा ने पहली बार कलम पकड़ी

नमस्ते साथियों,

आज मैं आपके साथ फील्ड में हुए मेरे एक अनुभव को साझा करना चाहती हूँ। यह कहानी जमुई के कश्मीर गाँव की है। जहाँ लड़कियाँ पढ़ना तो चाहती हैं, परंतु किसी न किसी कारणवश वे पढ़ाई नहीं कर पाती हैं।

सबसे पहले, मैं आपको बताना चाहती हूँ कि मैं अभी Wayam में एक Coordinator के रूप में जुड़ी हुई हूँ। Wayam का उद्देश्य हमें किशोर-किशोरियों के समूह बनाकर उनकी आकांक्षाओं को जानना और उन्हें शिक्षा से जोड़ना है। इसलिए मैं कश्मीर गाँव गयी थी।

वहाँ मेरी मुलाकात नेहा से हुई। जब मैंने उससे बातचीत की। तो उसने बताया कि वह 17 साल की है, परंतु आज तक वह कभी स्कूल नहीं गई।

हमने उससे पूछा कि ऐसा क्यों है? और क्या हुआ था?

नेहा ने बताया कि उसके माता-पिता बाहर रहते हैं और गाँव में वह अपने दादा-दादी के साथ रहती है। उसे दादा-दादी का ख्याल रखना होता है, उन्हें समय पर खाना-पीना बनाकर देना होता है। इसी काम में वह व्यस्त रहती है और कभी स्कूल नहीं जा पाई।


नेहा की बात सुनकर मैंने उससे पूछा कि क्या उसे कभी स्कूल जाने का मन नहीं करता? उसने कहा कि बहुत मन करता है। तब
मैंने पूछा कि क्या आपको मौका मिलेगा तो आप स्कूल जाना चाहोगी?

नेहा ने तुरंत हाँ में जवाब दिया।

आज नेहा ने 17 साल की उम्र में पहली बार कलम पकड़ी। जैसा कि आप तस्वीर में देख सकते हैं। उसने खुद से एक चित्र भी बनाया। उसने कहा कि उसे कभी नहीं लगा था कि वह भी कभी पढ़ पाएगी और कुछ चित्र जैसी चीजें भी बना पाएगी।

फिर मैंने नेहा से पूछा कि क्या कोई और भी है जो अभी तक स्कूल नहीं गई है? तब पता चला कि 4-5 लड़कियाँ हैं जो अभी तक स्कूल नहीं गई हैं। मैं उनसे भी मिलने गयी और उनके स्कूल नहीं जाने के कारणों को जाना। अब आगे मेरा काम नेहा और बाकी साथियों का नामांकन कराना है।


अभी तक उन सबका आधार कार्ड भी नहीं बना है, तो उनका आधार कार्ड बनवाना भी
मेरा काम है।

यह अनुभव मेरे लिए बहुत प्रेरक था। मैंने देखा कि कैसे शिक्षा की कमी लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। मुझे यह भी महसूस हुआ कि Wayam जैसे संगठन कितने महत्वपूर्ण हैं जो इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने का काम करते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप भी इस कहानी से प्रेरित होंगे और Wayam जैसे संगठनों का समर्थन करेंगे।

रेशमा
वयम कोऑर्डिनेटर, जमुई