Saturday, October 5, 2024

क्या हम सभी 21वीं सदी में हैं या सिर्फ कुछ चुनिन्दा लोग?

नमस्ते साथियों,

मैं पायल, 17 अगस्त 2024 का फील्ड कार्य का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस दौरान मैंने किशोरियों और उनके अभिभावकों से मुलाकात की और उनके साथ संवाद स्थापित किया। इस संवाद के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए, जिन पर विचार-विमर्श करना आवश्यक है।

अनुपस्थित किशोरियों से मुलाकात:

एक विशेष सत्र के दौरान, मैंने उन 19 किशोरियों से मिलने का प्रयास किया जो सत्र में उपस्थित नहीं हो पायी थीं। जब मैंने उनसे उनकी अनुपस्थिति का कारण पूछा तो उन्होंने खुद ही बताया कि उनमें से आठ किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और इस कारण वो मंदिर के अंदर प्रवेश जा सकती थीं। जहाँ हमारा सत्र आयोजित किया गया था। 

यह सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ कि हमारे समाज में आज भी मासिक धर्म को पाप या अपवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यह धारणा न केवल रुढ़िग्रस्त है, बल्कि अत्यंत हानिकारक भी है।

19 किशोरियों में से कुछ किशोरियाँ स्कूल गयी थीं। कुछ रोपा (कृषि पद्धति) के लिए गयी थीं और कुछ मासिक धर्म के कारण सत्र में नहीं आ सकी। पहले दो कारण तो हम समझ सकते हैं, परन्तु तीसरे कारण से यह स्पष्ट होता है कि हमारे समाज में मासिक धर्म के प्रति जागरूकता की कितनी कमी है। मुझे यह देखकर फिर से बहुत निकृष्ट महसूस हुआ।


मैंने पहले भी एक सत्र में ऐसी ही स्थिति का सामना किया था। रायपुरा में 8 अगस्त को आयोजित सत्र के दौरान तीन किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और वे भी मंदिर में जाने से मना कर रही थीं। लेकिन एक किशोरी जिसका नाम राधा था, ने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया। 

उसने कहा, "दीदी, हम रोज़ शाम को देखते हैं कि मंदिर में कुछ लोग दारू पीते हैं, गांजा जैसे तरह-तरह के नशे करते हैं, गाली देते हैं, गंदी बातें करते हैं। 

तो क्या हम लोग इनसे भी बड़ा पाप कर रहे हैं जो मंदिर में नहीं जा सकते?"

यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए विचारणीय है, जो मासिक धर्म को पाप मानता है। जो मासिक धर्म को अछूत की दृष्टि से देखता है। 

ध्यान देने की बात तो यह है कि ये व्यक्ति कोई और नहीं अधिकतर महिलाएँ ही हैं।


राधा के इस सवाल ने वहाँ उपस्थित सभी किशोरियों को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद हम सभी मंदिर के अंदर गए, और इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि यदि सही तरीके से संवाद किया जाए, तो समाज की धारणाएं बदल सकती हैं।

मासिक धर्म: एक नई सोच 

मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो महिलाओं के जीवन में सामान्य है। इसे लेकर समाज में अनेक प्रकार की गलत धारणाएं और मिथक व्याप्त हैं। इन्हें तोड़ने के लिए जागरूकता की बहुत आवश्यकता है। मासिक धर्म को अपवित्र या पाप मानने की मानसिकता न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

हमारे समाज में ऐसी कई प्रथाएं हैं, जो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के अधिकारों और उनके स्वाभिमान को प्रभावित करती हैं। मंदिर में प्रवेश न कर पाना, खाना न बना पाना, या अन्य धार्मिक गतिविधियों में भाग न ले पाना, इत्यादि। ये सभी समाज की उन धारणाओं का हिस्सा हैं जो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करती हैं।

हमें इन धारणाओं को बदलने की जरूरत है। मासिक धर्म के प्रति समाज की सोच को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि मासिक धर्म न तो कोई पाप है और न ही कोई अपवित्रता। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे 21वीं सदी में सम्मान और संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।

समाज को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान किसी भी प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाओं का सामना न करना पड़े। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ मासिक धर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण हो, और महिलाएँ सम्मान और स्वाभिमान के साथ अपने जीवन को जी सकें।


अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी (APU), भोपाल Chapter 1- डर और आशंकाएँ

नमस्ते साथियों,


मैं आरती कुमारी i-सक्षम संस्था में एडु-लीडर रह चुकी हूँ। आज मैं आप सभी के साथ अपनी शुरूआती यात्रा और अनुभव को साझा करना चाहती हूँ।  


मेरी इस यात्रा में कई उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन यह एक ऐसा अनुभव साबित हुआ जिसने मेरी सोच और आत्मविश्वास को हमेशा के लिए बदल दिया। APU में आने से पहले मेरे मन में बहुत सी आशंकाएँ थीं। पहली बार अपने घर, और शहर से बाहर निकलना मेरे लिए बहुत बड़ा कदम था। 

मुझे हमेशा से यह चिंता सताती रहती थी कि क्या मैं इस नए माहौल में खुद को ढाल पाऊंगी?

क्या मैं नए लोगों के साथ तालमेल बिठा पाऊंगी? 

क्या मैं इस नई शिक्षा को समझ पाऊंगी?



जब APU में एडमिशन मिला, तो मुझे खुशी तो हुई लेकिन इसके साथ ही एक अनजाना सा डर भी मन में था। यह डर और चिंता मेरे मन में तब तक घर किये रहा, जब तक कि मैंने APU में कदम नहीं रखा। 


APU में नया माहौल और नए व्यक्तियों से मिलने के बाद मेरी सारी आशंकाएँ धीरे-धीरे दूर होने लगीं। मैंने महसूस किया कि यह एक ऐसा स्थान है, जहाँ सभी को समान रूप से देखा जाता है। चाहे उनकी जाति, भाषा, या विचारधारा कुछ भी हो। 


यहाँ के लोगों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जिससे मेरे अंदर का डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा। यहाँ, सहपाठियों ने भी मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। सभी छात्र यहाँ सीखने के लिए उत्सुक और खुले दिमाग (open-minded) वाले हैं। मैंने देखा कि हर किसी के पास अपनी एक कहानी और अनुभव है और वे सभी एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने को तैयार हैं। मेरी भी कोशिश रहती है कि उनसे कुछ नया सीखूं।


यहाँ के फैकल्टी मेंबर्स (faculty members) न केवल विषय के विशेषज्ञ हैं, बल्कि वे छात्रों के साथ जिस तरीके से बात करते हैं वो भी है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि वो सिर्फ हमें पढ़ाते नहीं हैं, बल्कि हमें सोचने, सवाल करने और खुद से उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके पढ़ाने का तरीका बाकी जगहों से बिल्कुल भिन्न है। 

शिक्षक हमें सिर्फ जानकारी नहीं देते, बल्कि हमें उन जानकारियों को अपने जीवन और समाज के संदर्भ में समझने और लागू करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने मुझे यह सिखाया कि शिक्षा का असली मतलब केवल किताबों तक सीमित नहीं होता बल्कि किताबें हमें जीवन और समाज के बारे में भी समझाती हैं। शिक्षकों के साथ संवाद करना भी बेहद आसान है। वो हमेशा हमारी समस्याओं को सुनने और उनके समाधान में मदद करने के लिए तैयार रहते हैं।


APU में आए हुए मुझे एक महीने से अधिक समय हो चुका है, लेकिन यह समय इतनी जल्दी बीत गया कि मुझे इसका अहसास भी नहीं हुआ। इस एक महीने में मैंने न केवल अपने विषयों के बारे में बहुत कुछ सीखा है बल्कि खुद के बारे में भी मैंने कुछ बातें जानी हैं। मैंने यहाँ सीखा कि असली शिक्षा केवल किताबों में नहीं होती, बल्कि हमारे आस-पास के लोगों, हमारे अनुभवों और हमारे विचारों में भी होती है। APU ने मुझे यह सिखाया है कि शिक्षा का मतलब केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि उस ज्ञान को समझना और उसका सही उपयोग करना भी है।


इस यात्रा को संभव बनाने के लिए मैं i-सक्षम के सभी सदस्यों की आभारी हूँ। जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुँचाने में सहायता की। आपके समर्थन और मार्गदर्शन के बिना यह संभव नहीं हो पाता। आप सभी का सहृदय धन्यवाद।


आरती कुमारी

बैच-10 (बी), बेगूसराय 

 

एडु-लीडर ने विद्यालय में बदलाव, प्रधानाध्यापक को किया प्रभावित

“रौशनी के विद्यालय में आने से बच्चों की उपस्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है”। प्रधानाध्यापक उमेश सर ने रौशनी के कार्यों की काफी सराहना की। उन्होंने बताया कि जब भी रौशनी को किसी प्रकार की दिक्कत होती है, तो वह हमेशा उनके साथ रहते हैं। रौशनी ने विद्यालय में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं, जैसे:

  • बच्चों को समूह में पढ़ने के लिए प्रेरित करना।

  • गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को सीखने से जोड़ना।

  • बच्चों को यूनिफॉर्म में आने के लिए प्रेरित करना।

  • जो बच्चे अनुपस्थित रहते थे, उन्हें स्कूल में वापस लाना।

प्रधानाध्यापक उमेश सर ने यह भी कहा कि रौशनी की नियमितता और अनुशासन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जो बच्चे पहले कक्षा में बोलते नहीं थे, अब वे अधिक आत्मविश्वास से बोलने लगे हैं। कक्षा का माहौल अब अधिक उत्साही है, और बच्चे पढ़ाई में रुचि दिखाने लगे हैं, जो विद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

रौशनी ने बच्चों में साफ-सफाई की आदतें भी विकसित की हैं, जैसे खाना खाने से पहले और वाशरूम से आने के बाद हाथ धोना। यह देख प्रधानाध्यापक काफी खुश हैं। रौशनी समय पर विद्यालय आती हैं और अपने अनुशासन से एक मिसाल कायम कर रही हैं। उमेश सर ने कहा कि रौशनी के इन प्रयासों को देखना उन्हें बेहद खुशी देता है।

राधा कुमारी
बडी, मुजफ्फरपुर


पहली बार प्राइम बुक का उपयोग किया

मेरे क्लस्टर का नाम “हौसलों की उड़ान” है। मुझे जब मेरे क्लस्टर से प्राइम बुक मिलने वाली थी तब मैं बहुत खुश थी, बहुत उत्सुक भी थी। साथ ही साथ थोड़े असमंजस में भी थी क्योंकि मुझे पता नहीं था कि इसमें क्या करना है? इसका उपयोग कैसे होगा

इसकी समझ बनाने के लिए मैंने अपनी बडी (राधा दीदी) से मदद ली। उन्होंने मुझे बताया कि मैं इसमें अपना परिचय, टूल्स में से रंग भरना, चित्र बनाना, कहानी इत्यादि चीजों के बारे में जान सकती हूँ।


दस-बारह दिन लगातार उपयोग करने के बाद मैंने प्राइम बुक में अपना परिचय लिखना सीख लिया है। शब्दों को बोल्ड, इटैलिक, हैडिंग देना, फ़ॉन्ट्स में रंग भरना, टेक्स्ट को कॉपी-पेस्ट करना, फॉन्ट्स की भाषा और साइज़ छोटा-बड़ा करना भी सीखा है। 


मुझे नहीं लगा था कि मैं इतना जल्दी प्राइम बुक का उपयोग करना सीख जाउंगी और मुझे यह भी पता चला कि प्राइम बुक एक छोटा सा कंप्यूटर टाइप ही है।



नुसरत खातून 

बैच-10, मुज़फ्फरपुर


नीतू की कोशिशों को शिक्षिका ने सराहा

जब मैं मनिका मुर्रा विद्यालय में गई, तो मेरी मुलाकात संजना मैडम से हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि पहले नीतू अपने कक्षा में बच्चों से गतिविधियों के माध्यम से कम जुड़ पाती थीं। लेकिन अब नीतू बच्चों को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से जोड़ रही हैं। गतिविधियों में कुछ बालगीत अहम हैं, जैसे "बारिश आई छम-छम," "हाथी राजा बहुत बड़े," "मम्मी मुझसे प्यार करती, कितना गहरा" जैसी कविताओं के माध्यम से बच्चों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं।

नीतू अब गणित के पाठ को और अधिक रोचक बनाने के लिए जमीन पर डिब्बे बनाकर बच्चों को गिनती सिखाने का प्रयास करती हैं। संजना मैडम ने बताया कि नीतू अब पहले से कहीं अधिक उत्साहित रहती हैं और उनका जुड़ाव बच्चों से गहरा हुआ है। साथ ही, नीतू और संजना मैडम के बीच भी बेहतर तालमेल बन गया है, जिससे नीतू के प्रयास और अधिक प्रभावशाली हो गए हैं।

स्वाति
बडी, मुजफ्फरपुर 


Thursday, October 3, 2024

"मेरी गांधी फेलोशिप यात्रा"

मेरा नाम अनन्या है और मैं गांधी फेलोशिप की एक छात्रा हूँ। मैं अपने गांव की पहली लड़की हूँ जो मध्यमवर्गीय परिवार से होकर गांव में रहकर ही गांधी फेलोशिप करने के लिए दूसरे राज्य में गई हूँ। मेरे लिए यह रास्ता चुनना आसान नहीं था, लेकिन मैंने हिम्मत की और आज मैं छत्तीसगढ़ में एक गांधी फेलो हूँ।

मैंने गांधी फेलोशिप का फॉर्म भरा और ऑनलाइन इंटरव्यू दिया। मुझे फाइनल राउंड इंटरव्यू के लिए पटना जाना था, जो मेरे लिए थोड़ा मुश्किल लग रहा था। लेकिन मैंने हिम्मत की और इंटरव्यू दिया। कुछ समय बीतने के बाद, मुझे पता चला कि मेरा सिलेक्शन हो गया है और मुझे छत्तीसगढ़ राज्य मिला है।

मैं घर गई और अपने माता-पिता को बताई, लेकिन मेरी मम्मी ने साफ मना कर दिया कि उतना दूर नहीं जाना है। मैं बहुत उदास हो गई, लेकिन मैंने हिम्मत की और अपने पापा को समझाया। पापा तो मान गए, लेकिन मेरे लिए मम्मी को मनाना बहुत मुश्किल हो रहा था। लेकिन आखिरकार, मम्मी भी मान गईं।


मैं श्रवण सर से बात की और उनसे अपने सारे सवालों का जवाब मिल गया। श्रवण सर ने मुझे बहुत हिम्मत दी और कहा कि अगर मन नहीं लगा तो वापस i-सक्षम चली आना। तुम i-सक्षम की सदस्य हो, तुम लिए i-सक्षम हमेशा रहेगा।


अब मुझे इंडक्शन सेशन के लिए राजस्थान जाना था। मैंने i-सक्षम में जो भी चीजें सीखी हैं, उससे मुझे गांधी फेलोशिप के सेशन को समझने में बहुत आसानी हो रही थी। मैं राजस्थान में असेंबली के दौरान 120 लोगों को चेतना गीत और एक्टिविटी करवाई। मुझे एक बात याद आ गई कि जब मैं जमुई में अपने बैच में एक बार मैत्री वाले एडु लीडर  को फैलोशिप के बारे में बताने के लिए सेशन में खड़ी हुई थी, तो तब मेरे हाथ पैर बहुत काप रहे थे और अब मैं 120 लोगों के बीच भी आत्मविश्वास के साथ बोल भी लेती हूँ, एक्टिविटी भी करवा लेती हूँ। मेरे जीवन में यह सारे बदलाव i-सक्षम की वजह से आया हैं। मैं i-सक्षम को दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी।

अनन्या 

बडी इन्टर्न 


Friday, September 6, 2024

अपने परिवार और भविष्य के लिए मेरी योजना- निशा

नमस्ते साथियों, 

मैं, पिछले एक वर्ष से क्या कर रही हूँ और आने वाले तीन-चार वर्षों में अपने आप को कहाँ देखना चाहूँगी- इन विषयों पर अपनी वर्तमान की योजना और मनोभाव साझा कर रही हूँ।

साथियों, मैं एक मिडिल क्लास (middle class) परिवार से हूँ। घर में मेरे माता-पिता के अलावा मेरे दो छोटे भाई और अंकल हैं, कुल मिलाकर घर में 10 लोग हैं। कमाने वाले सिर्फ मेरे पापा ही हैं। दोनों भाई अभी पढ़ाई कर रहे हैं। पापा, जम्मू-कश्मीर में एक गैर-सरकारी जॉब में कार्यरत हैं। अंकल की तबियत खराब रहने से वो कोई जॉब नहीं करते हैं। मैं करीब एक वर्ष से ज्यादा समय से i-सक्षम के साथ जुड़ी हूँ। 

मुझे i-सक्षम के सहयोग से कुछ आर्थिक मदद भी मिलती है और बहुत सारे ऐसे कौशल भी सीखने को मिलते हैं जो मेरे लिए सीखना बहुत आवश्यक है। यहाँ पर सिखाई जाने वाली चीजें मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। जैसे- आत्मनिर्भर बनना, बेझिझक किसी से प्रश्न करना, स्वयं के साथ कुछ गलत हो उससे पहले आवाज़ उठाना आदि। मैंने अपने मम्मी-पापा को भी इतना विश्वास दिला दिया है कि अकेले घर से बाहर आने-जाने पर भी उनके मन में मेरे लिए कोई नकारात्मक विचार ना आये और ना ही कोई उन्हें मेरे विरुद्ध भड़का सके।

मुझे विश्वास है कि जैसे ही मेरे अंकल की तबियत ठीक हो जायेगी तो हमारी आर्थिक दशा थोड़ी सुधरेगी। अभी तो बहुत सारा रुपया उनकी दवाइयों में ही लग जाता है। मैं आगे आने वाले तीन-चार वर्षों में खुद को परिवार में एक अहम भूमिका के रूप में देख रही हूँ। अपने कार्यक्षेत्र में भी मुझे अपनी पहचान बनानी है। मैं सरकारी, गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में अपनी सेवा देने के लिए तैयार हूँ। मैंने घर में ही बहुत स्ट्रगल (struggle) देखा है। मैं अपनी कम्युनिटी की लड़कियों के लिए एक रोल-मॉडल बनना चाहती हूँ, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हूँ। मैं उन सभी लड़कियों को बताना चाहती हूँ कि आपको यदि कुछ आगे बढ़ा सकता है तो वो है सिर्फ और सिर्फ मेहनत और कड़ी मेहनत! बिना मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है। आप जितना मेहनत करेंगे उतना ही आगे बढ़ेंगे।


एक चेतना गीत की पंक्तियाँ भी हैं: 

कड़ी मेहनत से ही इन्सान का चेहरा चमकता है, 

कि सोना आग में तप कर ही कुंदन सा दमकता है 

करें वैसे हीं मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...


कि जैसे चाँद आकर चाँदनी के फूल बरसाता,

के जैसे मेघ आ करके घड़ों में नीर भर जाता

करें वैसे हीं हम मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...

निशा कुमारी 

बैच 10, गया 


अब पापा ने शादी के लिए दबाव बनाना छोड़ दिया है- रूचि

नमस्ते साथियों, 

आज मैं आप सभी के साथ मुंगेर के फरदा गाँव की रहने वाली ‘रूचि’ के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूँ। रूचि, बहुत ही शर्मीली और खुशनुमा लड़की हैं जो वर्तमान में i-सक्षम संस्था में बैच-दस की एडु-लीडर हैं। उनकी पढ़ाई में विशेष रूचि है। 


रूचि के घर में रूचि के अलावा उनके पापा, दो भाई और एक बड़ी बहन है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और पापा शहर में काम करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं।


जब रूचि बारहवीं कक्षा (2022) में थी, तब उनकी माँ का देहावसान हो गया। उनकी माँ का गुज़र जाना उनके लिए असहनीय और भयावह था। अपने अंधेरे भविष्य की कल्पना मात्र से रुचि के रोंगटे खड़े हो जाते और आत्मा थर्रा उठती थी। ऐसी विकट परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति के लिए खुद को संभाल पाना मुश्किल ही होता है। रूचि ने किसी तरह अपना साहस कायम रखा और पढाई को जीवन जीने का हथियार बनाते हुए, बारहवीं की परीक्षा दी। वो प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण भी हुई। 


रुचि की माँ के गुजर जाने के बाद पूरे घर की जिम्मेवारी रुचि पर आ गई। उन्होंने अपने छोटे भाइयों और घर की देखभाल के साथ अपनी पढ़ाई भी ज़ारी रखी। रूचि वर्तमान में (2024) बी. ए. पार्ट-II की पढ़ाई कर रही हैं। 


घर में बिन माँ की अकेली लड़की होने के कारण समाज, परिवार और सगे-सम्बन्धियों का रूचि की शादी को लेकर दबाव बनाना शुरू हो गया था। लोग तरह-तरह से यही बात रूचि के और उनके पिता जी के सामने रखते थे। जैसे- घर में बिना माँ के लड़की कैसे रहेगी? कौन देखेगा? कैसे सबकुछ हो पाएगा? कुछ हो गया तो? इन्हीं सब बातों का रूचि के मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। जिसके कारण रुचि हमेशा परेशान रहने लगी और अन्दर ही अन्दर रोती भी रहती थी। 


एक दिन रुचि ने सोचा कि अब खुद के लिए निर्णय लेना ही पड़ेगा। उसने मन बनाया कि मैं अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए, अपनी आगे की पढ़ाई को लेकर पापा से खुद बात करूंगी। उनके सामने बात रखूंगी कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है! क्योंकि मेरा मन पढाई में लगता है, मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है, जिसके लिए मुझे दो साल का समय चाहिए ताकि मैं अपने अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ। 


रुचि को इस बात का डर भी था कि मेरी बात तो घर में सुनी नहीं जाती है। मैं पापा के सामने कैसे बोलूँगी? यह सब मन में लेकर रूचि ने ठाना कि यदि अब मैं खुद के हक़ के लिए नहीं बोली तो शायद मैं हमेशा के लिए अपने अधिकारों से वंचित रह जाऊँगी। मुझे हमेशा ही दबाया जाएगा।


कुछ दिनों बाद जब रूचि के पापा शहर से वापस आये तो उसने अपने मन की बात पापा के सामने रखी। पापा उसकी बातों को सुनने से भी मना कर रहे थे। मानना तो बहुत दूर की बात थी। रूचि ने बार-बार अनेकों तरीकों से अपनी बात पापा को समझाने की कोशिश की। 

वो अपने पापा से बोली कि “मैं शादी तो करुँगी पापा, परन्तु आप मुझे दो वर्ष का समय दीजिये। ताकि मैं खुद सक्षम हो पाऊं। और शादी के बाद यह भी हो सकता है कि मुझे पढ़ने ही ना दिया जाए। मेरे छोटे भाइयों, इस घर को देखने का मौका तक भी ना दिया जाए। यदि ऐसा हुआ तो सबकुछ बिखर भी सकता है”! 

रूचि ने यह भी बोला कि, “पापा यदि आप मुझे अभी समय देकर सक्षम होने देंगे तो मैं भविष्य में अपने भाइयों के लिए भी कुछ अच्छा कर पाऊँगी”।

आखिरकार रूचि की ज़िद रंग लायी। उनके पापा ने उनकी बात समझी और पढ़ाई करने की अनुमति दे दी। 

अब यदि उनके पापा से कोई गाँव-समाज का व्यक्ति इस बात को लेकर कुछ बोलता भी है तो पापा खुद उत्तर देतें हैं कि बड़ी बेटी की शादी कर देने से क्या ही हो गया? वो हमारे घर आकर यहाँ की देख-रेख तो नहीं कर सकती है ना अब! 

हालाँकि रूचि की बड़ी बहन उनसे नाराज़ है और फ़ोन पर बात तक नहीं कर रही हैं। कारण साधारण सा है- वो चाहती हैं कि रूचि चुपचाप अपनी पढ़ाई करने की इच्छा को मारकर शादी के लिए हाँ करदे। रूचि को विश्वास है कि उनकी दीदी भी एक दिन मान जायेंगी और उनका सहयोग करेंगीं। फिलहाल रूचि के घर में शादी को लेकर कोई दबाव नहीं हैं और रूचि मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर पा रही है।

साक्षी,

बडी, मुंगेर


फ़ेलोशिप करने के उपरांत मैं अधिक संवेदनशील, आत्मविश्वासी और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनी हूँ- भाग्यश्री

नमस्तें साथियों, 

आज मैं आपलोगों के साथ स्वयं के बारे में कुछ बातें साझा कर रही हूँ। मैं i-सक्षम संस्था में बैच दस की एडु-लीडर हूँ। मैं बेगूसराय के तेघरा ब्लॉक में रहती हूँ। i-सक्षम में जुड़ने के बाद मैंने कई सारे बदलाव महसूस किये हैं, जो इस प्रकार हैं। 


  • शुरू-शुरू में मुझे नए लोगो से बात करने में बहुत संकोच और असहजता होती थी। मैं बिना कुछ सोचे समझे बोल दिया करती थी। ऐसा कह सकते हैं कि मैं सही से बात नहीं कर पाती थी। मैंने फ़ेलोशिप के सेशंस (sessions) अटेंड (attend) करते समय पाया कि अब मैं अपनी बात दूसरों के सामने रखने लगी हूँ। मेरे बात करने के तरीके में भी बदलाव आया है। 

  • लोगो के साथ सहजता से बात करने के लिए मैंने विभिन्न तरीकों को अपनाया और अपने विचारों को स्पष्ट और संक्षिप्त तरीके से प्रस्तुत करना सीखा।

  • पहले मैं अकेले कहीं जाने से कतराती थी। अधिकतर समय मेरे घरवाले (भाई या पापा) ही मेरे साथ जाते थे। अब मेरे लिए अकेले बाहर जाना भी आनंदमय अनुभव होता है। मुझे अपने बारे में यह भी पता चला कि मुझे नयी जगहों की खोज करना स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का एहसास कराती है।

  • पहले मुझे प्रत्येक छोटी बात पर गुस्सा आता था। बढ़ते कदम में छोटे-छोटे गोल्स (goals) बनाकर, क्लस्टर मीटिंग में प्रस्तुत करने से मुझे लाभ हुआ। मेरे फेलो (fellow) साथियों के द्वारा दिए गए परामर्श, फीडबैक (feedback), योग, ध्यान और स्व-विश्लेषण की मदद से मैंने अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीखा। इससे मुझे ना सिर्फ मानसिक शांति मिली बल्कि मैंने खुद के व्यव्हार में भी सुधार किया। 


दूसरों को समझने का प्रयास करना और उनकी भावनाओं को समझना मेरे लिए अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। सहानुभूति और समझ वाला सेशन (session), मेरे व्यक्तिगत और पेशेवर रिश्तों को मजबूत करने में सहायक रहा। खुद भी अब लोगो को समझने का प्रयास करती हूँ, और सामने वालों की बातों को ध्यान से सुनती भी हूँ। 

कहते भी हैं ना कि, “किसी की बात को ध्यान से सुनना, उनके लिए सबसे से बड़ा तोहफा होता है”। 


मेरे भीतर आये सभी बदलावों और मेरी खूबियों को पहचानने में मेरी मदद करने का श्रेय मैं i-सक्षम की टीम को देना चाहती हूँ। मेरी फ़ेलोशिप यात्रा ने मुझे पहले से अधिक संवेदनशील, आत्मविश्वासी और एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में उभारा है। 

मैंने अपनी खुद की पहचान भी बनायी। मैं बच्चों, विद्यालय और समाज से भी जुड़ पायी। यह कार्य करने में मुझे मेरे फेलो साथियों और टीम मेम्बेर्स ने कभी मित्र बनकर, तो कभी भाई-बहन बनकर मेरा सहयोग किया। इसके लिए मैं आप सभी का आभार व्यक्त करती हूँ। 


भाग्य श्री,

बैच-10, बेगूसराय 


Wednesday, September 4, 2024

विद्यालय परिवार को सक्षम किशोरी कार्यक्रम से अवगत कराया- अनन्या

 

नमस्ते साथियों,

मैंने फ़ेलोशिप ख़त्म होने के कारण अपने विद्यालय- मध्य विद्यालय सोनपे में जाकर सभी शिक्षकों व प्रधानाध्यापक से मिलने का निर्णय लिया। जब मैं विद्यालय पहुंची तो सभी शिक्षक मेरा हाल-चाल पूछ रहे थे। मैं अपने विद्यालय के प्रधानाध्यापक श्री सुधांशु शेखर सिंह जी से और सारे शिक्षकों से मिली।

सभी शिक्षक आस्था (मेरे साथ की फेलो) को भी खोज रहे थे। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि जैसे ही आस्था को समय मिलेगा तो वो सभी से विद्यालय मिलने आएगी।

मैंने सभी शिक्षकों को “सक्षम किशोरी कार्यक्रम” के बारे में बताया शिक्षकों के कुछ प्रश्न भी आ रहे थे। उनके सारे प्रश्नों का उत्तर मैं दे पायी। सभी ने कार्यक्रम को सराहा और कहा कि इससे समाज की लडकियाँ आगे बढ़ेंगी।

सक्षम किशोरी कार्यक्रम- किशोरियों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से संचालित एक पहल है। इस कार्यक्रम के तहत, 11-19 वर्ष की किशोरियों का समूहीकरण करके उनके जीवन कौशल को बेहतर करने के लिए सत्र आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही उनके समुदाय में उनके समर्थन के लिए माहौल बनाना भी एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। कार्यक्रम किशोरियों को आत्मनिर्भर बनने और समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रेरित करता है

मैंने अपने आज के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रधानाध्यापक से नौवीं और दसवीं कक्षा की छात्राओं से मिलने की अनुमति माँगीं। सर ने प्रसन्नतापूर्वक उत्तर देते हुए कहा कि आपको पूछने की क्या आवश्यकता है?

आप जाइये, मिलने। 

इतने में ही मुझे मेरी कक्षा के बच्चों ने देख लिया और दीदी-दीदी बोलते हुए मेरे पास आ गए। मैं कक्षा में गई तो सारे बच्चों के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। सबके पास मुझे बताने के लिए बहुत सारी बातें थी। 

आपको बहुत मिस करते हैं, दीदी।

जानते हैं दीदी आप नहीं आ रहें थे न तो ऐसा हुआ, वैसे हुआ, इसने ये किया, उसने वो किया इत्यादि। ऐसा लग रहा था कि मानों जैसे उनकी बातें खत्म ही नहीं हो रही हैं। मैंने उनकी ढ़ेर सारी बातें सुनी और कक्षा से निकलने से पहले टीम बिल्डिंग गतिविधि (Team Building Activity) करवायी।

फिर आस्था की कक्षा के बच्चे आस्था के बारे में पूछने लगे। मैंने उनकी कक्षा में जाकर उनको समझाया कि आस्था भी समय निकालकर आप सभी से मिलने आएगी। फिर मैंने उनकी भी बातें सुनी और गतिविधि करवायी। सभी बच्चे बहुत ज्यादा खुश दिखे। 

अब मैं एक-एक करके सतवी, आठवीं, नौवीं और दसवीं कक्षा में गयी। वहाँ पर कुछ बच्चे मुझे जानते थे और कुछ बच्चे नहीं जानते थे। इन कक्षाओं में दूसरे गाँव सोनपे, गरसंडा, बालाडीह, सिकहरिया, बुकार, लठाणे, गारो नवादा के भी बच्चे पढ़ने आते हैं और वहाँ मुझे मोबिलाइजेशन (mobilization) करना बाकी है।

वर्षा के दिन होने कारण प्रत्येक कक्षा में बच्चों की संख्या बहुत कम थी। मैंने अपने परिचय से बात शुरू की। बच्चों का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित करने के लिए ? शरीर के अंग और कलम भी करायी। इससे बच्चे बहुत खुश हुए। फिर मैंने सभी बच्चों को अपने प्रोग्राम के बारे में बताया। कुछ बच्चे मुझे कक्षा में ही मिल गए, जिनकी उम्र पंद्रह वर्ष थी।

मैं उनसे पूछा कि आपके घर के आसपास 15 से 19 वर्ष की किशोरियाँ है क्या?

मुझे बच्चे बता रहे थे कि दीदी इस टोले में इतनी किशोरियाँ मिल जायेंगीं। उस टोले में इतनी मिल जायेंगीं।

बच्चों ने मुझे बहुत अच्छा आईडिया (idea) दे दिया। अब जब मैं उस गाँव में मोबिलाइजेशन करने जाऊंगी तो मुझे थोड़ी आसानी होगी।  

मैं आज अपने स्कूल में एक से दस कक्षा के सभी बच्चों से मिल ली और मुझे सबसे मिलकर बहुत ज्यादा खुशी मिली। जब मैं स्कूल से वापस आ रही थी तो सर मुझे बोल रहे थे कि इसी तरह आते रहना, अच्छा लगेगा।

उनकी यह बात सुनकर चेहरे पर मुस्कान आ गयी। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने सर को उत्तर दिया कि बिल्कुल सर, आती रहूंगी।

विद्यालय के बाद मैं रजक टोला गयी। यहाँ मुझे ज्यादा किशोरियाँ नहीं मिली। पर जितनी भी मिली मैंने सबको इस कार्यक्रम के बारे में समझाया। सभी इस प्रोग्राम (program) से जुड़ने के लिए भी तैयार हो गई। आज का दिन मेरे लिए बहुत प्यारा और खुशनुमा था।

अनन्या

बडी इंटर्न, जमुई

Monday, September 2, 2024

संघर्ष से सफलता की ओर- संजू

जब मैं 12-13 साल की थी तभी मेरे पापा का देहांत हो गया। उस समय मुझे ऐसा लगा कि अब मेरी पढ़ाई रुक जाएगी और मन में कई तरह के सवाल उठने लगे। मैंने छठी से आठवीं कक्षा तक कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में पढ़ाई की और साथ ही अलग-अलग प्रखंडों में जाकर जूडो-कराटे का प्रशिक्षण भी दिया। हालांकि, इस दौरान मेरी पढ़ाई कई बार बाधित हुई। कभी-कभी प्रतियोगिता होती थी तो कभी जिला और प्रखंड स्तरीय फाइट्स में भाग लेना पड़ता था। इन सबके बीच मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।

घर में किसी की तबीयत खराब होने पर उनकी देखभाल भी करनी पड़ती थी। जब मैंने आठवीं की पढ़ाई पूरी की, तब आसपास के लोग मेरी माँ को मेरी शादी करने के लिए उकसाने लगे। वो कहते थे कि "ये लड़की होकर कराटे करती है और साइकिल चलाती है, इसे शादी करके घर में क्यों नहीं बिठाने का प्रबंध करते हो।" माँ ने मुझे कसम दे दी और बहुत कुछ कहा, जिससे मैंने जूडो-कराटे जाना छोड़ दिया और घर आ गई।


इसके बाद मेरे बड़े पापा ने मेरा नौवीं कक्षा में कन्या उच्च विद्यालय, शेरघाटी में नामांकन करा दिया। स्कूल पाँच किलोमीटर दूर था और मुझे रोज़ पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था। स्कूल से आने के बाद मैं गाँव (अहुरी) की भाभी के पास सिलाई सीखने जाती थी और काज-बटन का काम करती थी। जो भी पैसा मिलता, उससे कॉपी-पेन खरीदती थी। किसी तरह मैंने इंटर पास किया और फिर मेरी शादी हो गई।


शादी के बाद, मेरा जीवन बहुत आसान नहीं था। मेरे पति मेरे समस्याओं में मेरा साथ नहीं देते थे। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और बालबाड़ी में काम करना शुरू किया। इसके बाद मैं जीविका से जुड़ी और कोविड के समय i-सक्षम संस्था के साथ काम किया। 

इस संगठन ने मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका दिया, जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। मैंने मैत्री प्रोजेक्ट में डोर-टु-डोर सर्वे (door-to-door survey) किया और अनामांकित या ड्रॉपआउट बच्चों का नामांकन स्कूल में करवाया। नामांकन के दौरान अनेकों तरह की चुनौतियाँ आईं, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। यह यात्रा मेरे लिए संघर्षों से भरी रही। लेकिन इसने मुझे एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला बना दिया। i-सक्षम के साथ जुड़कर मुझे अपने सपनों को पंख देने का मौका मिला। 


मेरा यह अनुभव सिखाता है कि कैसे मैंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी पढ़ाई ज़ारी रखी और करियर को आगे बढ़ाया। 


समस्याएँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में होती हैं, या यूँ कहा जाए कि समस्याओं का नाम ही जीवन है! लेकिन आप उनसे कैसे उभरेंगे, कैसे खुद को संभालने के साथ-साथ समाज के अन्य लोगो के लिए भी प्रेरणा के स्त्रोत बनेंगे यह हम सभी को सीखना होगा।


संजू

बड़ी, गया