मैं, अमीषा और सुप्रिया हम तीनों डोमनपुरा गाँव में नए एडु-लीडर्स के मोबिलाइजेशन के लिए गए। हमारे क्लस्टर के अन्य साथी आज किसी कारण नहीं जा पाये थे। हमें जिस गाँव में जाना था हमने वहाँ की एडु-लीडर खुशबु भारती से कॉल करके वहाँ की लड़कियों के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि वो अपना एग्जाम देने गयी हैं। इस कारण उनसे बात नहीं हो पायी।
हम तीनों सवा नौ बजे दोमनपुर मोड़ पर पहुंचे। गाँव करीब डेढ़ किलोमीटर अन्दर है। बहुत धूप हो रही थी और हमारा पूरा समूह भी साथ नहीं था तो थोड़ी घबराहट भी हो रही थी कि सब कैसे होगा? इसी तरह बातचीत करते हुए हम गाँव पहुँच गए।
शुरुआत में हमें कोई फ़ेलोशिप करने की इच्छुक लड़कियां नहीं मिली। जो मिली उनकी योग्यता कम थी। फिर हमें एक भैया बाइक साइड करते हुए दिखे, हम उन्हीं के पास गए। हमने उन्हें फ़ेलोशिप के बारे में बताया और उनसे पूछा कि क्या आपकी नज़र में ऐसी कोई लड़की है?
उनकी मम्मी ने हमारे लिए कुर्सियां निकाल कर दी। हमने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा कि हमें फ़ेलोशिप करने की इच्छुक लड़कियों की तलाश है। उन्होंने हमें अपने घर के पास की दो लड़कियों और दो महिलाओं से मिलवाया। हमने उन्हें फ़ेलोशिप के बारे में बताया और आगे चल दिए।
तेज धूप के कारण गलियों में कोई व्यक्ति नहीं मिल रहे थे और घरों के दरवाज़े भी बंद थे। कुछ दरवाज़े खटखटाने के बाद हमें कोई रेस्पोंस ही नहीं मिला। कुछ दरवाज़ा खोलते तो यह कह देते कि अभी हमारी लड़की पढ़ ही रही है। हमें चार ही लड़कियां अब तक मिली थी जबकि हमें दस लड़कियों की तलाश थी।
फिर एक दुकान आई तो हमने आम का जूस खरीद कर पिया और गर्मी से थोड़ी राहत पायी। वहां भी हमने फ़ेलोशिप के बारे में बात की परन्तु कोई लड़की नहीं मिली। जब हम गाँव के दो चक्कर लगा कर, निराश और हताश होकर लौट ही रहे थे कि एक अंकल ने हमें पीछे से आवाज़ लगायी।
और उन्होंने पूछा कि क्या है ये i-सक्षम? कितना पैसा मिलेगा? क्या काम करना होगा?
हमने उन्हें समझाया कि यह कोई जॉब नहीं है। यह एक फ़ेलोशिप है। लड़कियों और महिलाओं की स्किल्स और पर्सनल ग्रोथ का एक अवसर है। हम सहयोग राशि के बारे में बताते ही कि अंकल के प्रश्नों की एक बाढ़ सी आ गयी। इतने प्रश्न तो आज तक किसी ने नहीं किये।
दो और अंकल और दो भैया वहां बैठे हुए थे। उन्हें भी हमने फ़ेलोशिप के बारे में बताया। वहाँ कि एडु-लीडर के बारे में भी बताया। अधिकतर लोग उन्हें जान भी रहे थे।
उन्होंने हमसे हमारा परिचय और गाँव का नाम वगैरह भी पूछा।
एक अंकल तो यह भी बोले कि क्या मिलता है आपको? जो आप इतनी धूप में घूम रहे हैं?
हमने उनके सभी प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्हें यह भी समझाया कि अब हमारी फ़ेलोशिप समाप्त हो रही है और अब हम नए बैच के लिए लड़कियों को खोज रहे हैं।
उन्होंने हमसे फिर से प्रश्न किया कि दो साल बाद क्या? कभी अमीषा उमके सवालों के जवाब देती, कभी सुप्रिया तो कभी मैं।
हमने उन्हें उत्तर दिया कि इस फ़ेलोशिप के दौरान जो लड़कियां आगे पढ़ना चाहती हैं उन्हें सपोर्ट किया जाता है। उन्हें गणित, अंग्रेजी और कम्युनिकेशन स्किल्स जैसे विषय सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है।
फिर उनका एक सवाल आता है।
2700 रूपये में रेगुलर समय देना। और दो साल बाद लड़कियों का घर और खेत के काम में मन नहीं लगेगा। वो आखिरकार घर ही बैठ जायेगी। ना घर की रहेगी ना घाट की!
जब तक पैसा मिल रहा है काम करेगी। उसके बाद क्या...?
फिर हमने उत्तर दिया कि यह एक फ़ेलोशिप प्रोग्राम है। यदि आपको सीखना है तो ही आप ज्वाइन करेंगें। पैसे कमाने के और भी विकल्प हैं, आप वहां काम कर सकते हैं। हमने उन्हें वीमेन लीडरशिप के बारे में भी बताया।
अंकल का एक और सवाल आता है कि तुम तीनों इतना दूर क्यों आई हो? क्या जरुरत है इसकी?
हमने उत्त्तर दिया क्योंकि हमें सीखना है और कुछ करना है। इसलिए गाँव से बहार तो निकलना पड़ेगा ना!
तब कहीं जाकर अंकल माने, और हमारी जान में जान आयी।
अंकल ने बोला कि अब तुमने मेरे प्रश्न का जवाब अच्छे से दिया है कि “तुम्हें कुछ करना है”।
फिर सुप्रिया ने अंकल को बोला कि हम लोग भी फ़ेलोशिप से पहले अपने ही गाँव के लोगो से बात नहीं कर पाते थे। अब देखिये, दूसरे गाँव आकर चार आदमी के बीच बात कर रहें हैं न, अंकल!
दूसरे अंकल बोले कि वाकई में, लड़के भी दुसरे गाँव में जाकर किसी के घर का पता पूछने में संकोच करते हैं। आपने तो लड़कियां होकर हमारे इतने प्रश्नों का उत्तर दे दिया।
अंकल की बातें सुनकर हमें बहुत मनोबल मिला और खुद पर प्राउड महसूस हुआ। उनके सवाल भी खत्म हुए और उन्होंने हमें अपने घर जाने का रास्ता भी बताया। ताकि हम उनकी भांजी से मिल सकें।
हम उनके घर पहुंचे और उनकी भांजी से हमें पता चला कि उसने पिछले वर्ष भी फ़ेलोशिप का एंट्रेंस एग्जाम दिया था। इसी लड़की ने हमें चार और लड़कियों से मिलवाया। पतली-पतली संकरी सी गलियों में घर थे। हमने इन्हें फ़ेलोशिप के बारे में बताया और वहां से चल दिए।
वापस आते समय एक महिला को भी फ़ेलोशिप के बारे में जानकारी दी। उनका बच्चा अभी छोटा है तो वो शायद अगले वर्ष ज्वाइन करें।
इस तरह हमने नौ लड़कियों का डेटा कलेक्ट किया। जो हमारे आज के लक्ष्य के काफी करीब था।
खुशबू
बैच- 9, जमुई