Sunday, April 21, 2024

आइये इस महिला दिवस समझते हैं- क्या है i-सक्षम संस्था की मुहिम "Voice & Choice"?

राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
प्रिय पाठकों, सीखें सीखाएं।। के पिछले अंक में आपने ‘राष्ट्रीय महिला दिवस’ के बारे में तो जाना ही होगा। राष्ट्रीय महिला दिवस, 13 फरवरी को भारत की प्रसिद्ध महिला राजनीति कार्यकर्ता सरोजिनी नायडू जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू जी एक कवियित्री भी थी उनकी कविताओं की कला और गीतात्मक गुणवत्ता के लिए उन्हें गांधी जी द्वारा ‘भारत की कोकिला’ का उपनाम भी दिया गया

साथियों, 8 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ होता है और हमारी संस्था महिलाओं के अधिकारों, अपने निजी मुद्दे, घर-परिवार के मुद्दे, समाज में परस्पर भागीदारी, Voice & Choice पर कार्य कर रही है तो आप अवश्य है न सिर्फ इस दिन को बल्कि इस माह में अलग-अलग तरीकों से जागरूकता का कार्य कर ही रहें होंगें।

इतिहास के पन्नो से
“हम महिलाओं को मताधिकार दो”। यह नारा महिला दिवस, 8 मार्च 1914 को जर्मनी में दिया गया था। कारण था कि वहाँ महिलाओं को पूर्ण नागरिक अधिकार से वंचित रखा हुआ था। वो महिलायें जिन्होंने श्रमिकों, माताओं और नागरिकों की भूमिका पूरी निष्ठा से निभायी थी एवं जिन्हें नगर पालिका के साथ-साथ राज्य के प्रति भी करों का भुगतान करना होता था। इस हक़ की माँग के साथ, सभी महिलाएँ और लडकियाँ आयीं। रविवार, 8 मार्च 1914 को, शाम 3 बजे, जर्मनी की 9वीं महिला सभा में शामिल हुई।

परन्तु साथियों, यह पहली बार नहीं था जब पश्चिमी देशों की महिलायें अपनी voice रख रही थी। इससे पहले भी 1909 में अमेरिका में इस तरह का दिवस मनाया गया था। हम कह सकते हैं कि बीसवीं सदी के शुरूआती समय में महिलाओं के लिए एक विशेष दिन हो, वैश्विक पटल पर इस प्रकार की सोच का उद्गार हुआ।

भारत की बात करें तो प्राचीन भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। हालाँकि मध्यकालीन भारत में महिलाओं की दशा बहुत अच्छी नहीं थी। इसी काल में सती, परदा, जौहर, देवदासी व बाल-विवाह का प्रचलन था। जो अंग्रेजी शासन काल के दौरान राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फ़ुले, आदि जैसे कई सुधारकों ने प्रयासों से थोड़ी बेहतर हुई।

भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। भिकाजी कामा, डॉ॰ एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुना आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख और कस्तूरबा गाँधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी।

एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं।

महिलायें और Voice & Choice

तो साथियों अब तक आप जान गए होंगें कि ये Voice & Choice का कांसेप्ट कोई नया नहीं है। यदि आप इसके बारे में i-सक्षम में जुड़ने से पहले नहीं जानते थे तो सही  जागरूकता की कमी इसका एक कारण हो सकता है। चलिए एक बार और प्रयास करते है Voice & Choice को समझने का।

जब हम Voice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है कि हम अपनी पसंद-नापसंद, जरूरतों, महत्वाकांक्षाओं, सपनों और अपने से रिलेटेड (related) विषयों में अपनी बात को रख सकें।

और इसी प्रकार जब हम अपनी choice की बात करते हैं तो हमारा अर्थ है- कि जिस भी बारे में हमने आवाज़ उठायी है, क्या उसे चुनने का, उस कड़ी में आगे बढ़ने का हक़ हमें हो।

उदाहरण के लिए-

·       जैसे आप आगे पढ़ना चाहती हैं, कम्पटीशन की तैयारी या जॉब करना चाहती हैं।
·       आप अभी विवाह करना चाहती हैं या पढ़ाई या कोई और अन्य कौशल अर्जित करना चाहती हैं।
·      आप अपने घर और गाँव से बाहर किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए ‘अकेले’ जा सकती हैं या नहीं? 

                        

Choice से अभिप्राय यह है कि इस तरह के निर्णय लेने की क्षमता और अधिकार आपके पास हों।

जो महिला साथी i-सक्षम के साथ जुड़ गयीं हैं, उनके बारे में एक बात तो तय है कि वो Voice & Choice के कांसेप्ट को अच्छे से जानती हैं। समय आने पर अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए, अपने समाज के लिए सही निर्णय के लिए voice उठायेंगी ही।

लेकिन साथियों उनका क्या, जो इस कांसेप्ट को जानती ही नहीं हैं? सोचिये!

जिन्होंने कभी नहीं सोचा कि पापा, भैया, पति या किसी अन्य पुरुष की बात सुनकर, अपनी बात भी रखने का अधिकार उनको है!  वो अपनी पसंद-नापसंद शेयर कर सकती हैं।

उनके लिए सोचिये और आगे बढ़िये। अभी हमें बहुत काम करना है।

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम Invest in Women: Accelerate Progress है। साथियों इस लेख के माध्यम से हम चाहते हैं कि आप लैंगिक समानता और महिलाओं द्वारा नेतृत्व किये गए आन्दोलनों के बारे में जानें। प्रत्येक क्षेत्र में सफल महिलाओं द्वारा लिखी गयी कविताओं तथा पुस्तकों को पढ़ें, उनके बारे में खोजबीन कर अपना मत बनाएं। जरुरत पड़ने पर अपनी क्लस्टर मीटिंग में अपने साथियों के साथ डिस्कस करें। संभव हो सके तो हमें लिखकर भेजें।

प्रियंका कौशिक

  टीम सदस्य

मैं सक्षम हूँ

अव्वल, अवगत, आत्मनिर्भर आधुनिक युग की नारी हूँ।

मत समझो अब अबला नारी, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।

चली गई वो कल की शाम, जहाँ जीती थी लेकर कल की आस।

कुछ न कहती, सब कुछ करती, सुनती थी मैं सबकी बात।


आज बनी मैं युगारंभ की निर्माता, हर बाधा मुझसे हारी है।

खुद घर, समाज में मैंने अपनी जगह बनाई है।


ऊंचे-नीचे पद पर बैठी, सम्मान की मैं इख़्तियार हूँ।

मत मानो अब निर्बल, विवश और लाचार आज की नारी है।


स्नेह, लगाव और करुणा की भंडार, आज की मैं नारी हूँ।

हर संग्राम पर विजय पाऊं, यह मुहिम अभी भी जारी है।


मत समझो अब अबला नारी, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।

मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ, मैं सक्षम हूँ, शक्तिशाली हूँ।


आँचल, एलुमनाई


स्कूल मैं भी जाउँगा(कविता )

स्कूल मैं भी जाऊंगा,

किताबे पढूंगा

प्रार्थना करूँगा,

अच्छा बच्चा बनूँगा

जाऊंगा मैं जाऊंगा।

स्कूल मैं भी जाऊंगा।।

डॉक्टर जैसा बनूँगा

कलेक्टर जैसा बनूँगा

डीएम जैसा बनूँगा

PM जैसा बनूँगा

जाऊंगा मैं जाऊंगा।

स्कूल मैं भी जाऊंगा।।

आलोक कुमार

बडी, मुज्ज़फ्फरपुर


 


        


 

मैं(कविता )

मुझे नहीं बनना, किसी के समान

नहीं बने रहना भैया और सैंया की मेहमान!


मैंने खुद में अपना एक अलग अस्तित्व पाया है,

जैसे अपनी आजादी का झंडा अपनी चुनरी से लहराया है।


हाँ! बिंदिया, कंगना और यूं सजना-संवरना मुझे भाया है,

पर वक्त आने पर आतिश, बंदूक और तलवारें भी मैंने उठाया है।

मेरी आवाज़ मीठी जरूर है लेकिन,

अपनी चीख से खुद के अधिकार और सम्मान को भी बचाया है।

तारीख गवाह है,  हमारी ताकत से

मौत के मुंह में जाकर तुम्हें इस दुनिया में लाने का जज्बा,  एक नारी ने ही तो दिखाया है।


हमनें खुद भूखे रहकर, तुम्हें अपना खून पिलाया है।

इसलिए मैं कहती हूँ, मैंने खुद में अपना एक अस्तित्व पाया है।


तानिया, एलुमनाई

 


अजी वाह वाह!(कविता )

एक बिल्ली हमारी,

कैसी बैठी बेचारी,

अजी वाह वाह!

 

लगे हमको वो प्यारी

अजी वाह वाह!

 

छुपके छुपके वो जाती

चूहा झट से पकड़ती

वो तो कुत्ते से डरती

अजी वाह वाह!

 

कुत्ता हमारा कैसे बैठा?

बेचारा लगे हमको प्यारा

अजी वाह वाह!

 

छुपके छुपके वो जाता,

बिल्ली झट से पकड़ता,

अजी वाह वाह!

 

वो तो डंडे से डरता,

अजी वाह वाह!

अजी वाह वाह!! 

  

कुमारी सोनम

बैच- 10 (a), मुंगेर


 


 


 

मुंबई यात्रा से समझ आया कि “अंग्रेजी सीखना है कितना महत्वपूर्ण”!

नमस्ते साथियों,

मैं आप सभी के साथ जमुई से मुंबई के एक लर्निंगफुल सफर साझा कर रही हूँ। इस सफर में मैं, आदित्य सर, रवि सर और रनिता दीदी साथ थे।
 
मैं और आदित्य सर पहले कोलकाता गए। हमारी फ्लाइट में कुछ समय था तो हमने विक्टोरिया मेमोरियल और साइन सिटी घूमने का प्लान बनाया। यहाँ मुझे बहुत सी बातें ऐसी पता चली, जो इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी। मेरे अन्दर और इतिहास को जानने की लालसा जगी।
 
घूमने के बाद हम दोनों सीधे एयरपोर्ट के लिए निकले। मुझे थोड़ा-थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि मैं पहली बार फ्लाइट पर बैठने वाली थी। परन्तु मेरे साथ आदित्य सर थे तो मुझे हिम्मत मिली। और मज़े की बात ये हुई कि जब फ्लाइट टेकऑफ कर रही थी तब मेरा डर गायब हो गया और मैं आराम से इस उड़ान के मज़े लेने लगी। मुझे ख़ुशी भी हो रही थी कि अब मैं मुंबई पहुँचने वाली हूँ।
 
जब मैं मुंबई पहुंची तो वहाँ का नजारा कुछ अलग ही दिखा।

जमुई से बहुत ही अलग और रिच दिखा लोगों के बात करने का तरीका, पहनावा और मौसम सब बहुत अलग था।
 
फिर 26 फरवरी से The NUDGE की तरफ से चार दिन का सेशन शुरू हुआ। जिसमें मैं बहुत सारी आर्गेनाईजेशन के लोगों से मिली, उनके काम के बारे मे जाना। इन संस्थाओं ने अपनी सफलताएं और चुनौतियाँ साझा की।

मुझे इस सेशन को समझने में एक बड़ी चुनौती भी आ रही थी कि पूरा सेशन इंग्लिश में था और मुझे कुछ बातें समझ आ रही थी और कुछ ऊपर से जा रही थी
। रवि सर ने मुझसे कहा कि कोई बात नहीं, हम लोग बाद में डीब्रीफ कर लेंगें। आदित्य सर ने भाषिनी ऐप के बारे में बताया, जिससे मेरी दुविधा थोड़ी आसान हुई।
इस सब के बीच मैं 4 ऐसी मीटिंग्स में भी हिस्सा बनी, जो i-सक्षम के साथ पार्टनरशिप करने के बारे में सोच रहीं थी। रवि सर ने अपने कार्यों को उनके साथ साझा किया और मैं भी अपना अनुभव साझा कर पायी। इस शेयरिंग को होने वाले पार्टनर्स ने काफी सराहा भी।
 
सारी मीटिंग्स के बाद, हम सभी लोग फिर से घूमने गए। मैं हाजी अली दरगाह और गेटवे ओफ इण्डिया गयी। मैंने बहुत सारी तस्वीरें ली और समुन्दर को बिलकुल पास से देखा।



डिनर पर हमारी मुलाकात तीनो सर के मेंटर से हुई। उनसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मेरे अनुभव को सुना और अपनी बातें भी खुलकर साझा की।



फिर मैं मुंबई से जमुई अकेले ही आयी। इस बार की यात्रा से मैं अपने अकेले कहीं जाने में लगने वाले डर को खत्म कर पायी। मुझे बहुत कॉंफिडेंट भी फील हुआ। मैं, संस्था को इस विजिट के लिए, इस मौके के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ।
 
और अंत में मेरी एक सीख जो मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहती हूँ वो यह है कि हम सभी के लिए अंग्रेजी भाषा सीखना बहुत जरुरी है।
 
मैं कोशिश करुँगी कि मैं दैनिक जीवन में अधिक से अधिक अंग्रेजी भाषा के शब्दों का चयन कर सकूँ। मैं इस काम को सीरियसली एक्शन प्लान बनाकर, बिना समय गवाए, टॉप प्रायोरिटी पर रखकर शुरू करना चाहती हूँ। अब लग रहा है कि जितने महत्वपूर्ण अन्य काम हैं, उतना ही अंग्रेजी सीखना भी है।

 नर्गिस 
 वयं सदस्य

Saturday, April 20, 2024

स्टाइपेंड के पैसों से स्कूटी खरीदना चाहती हैं, तन्नु प्रिया

बेगूसराय के तेघरा ब्लॉक के एक छोटे से गाँव नौनपुर की तन्नु प्रिया ने i-सक्षम के बारे में जब सुना कि यह महिलाओं की Voice & Choice पर काम करने वाली संस्था है। महिलाएँ, युवतियाँ कुछ सीखें और अपने गाँव के विद्यालय और समाज को सहयोग देनें के उद्देश्य से जुड़े, उनके लिए i-सक्षम का फॉर्म भरने के लिए इतना ही जानना काफी था।

जब उन्हें पता चला कि इस कार्य के लिए उन्हें स्टाइपेंड भी मिलेगा तो उनकी ख़ुशी की सीमा नहीं थी। उन्होंने न सिर्फ अपना फॉर्म भरा, उन्होंने अपने आस-पास की तीन अन्य महिलाओं का फॉर्म भरवाया।

तन्नु प्रिया के पिता जी पेशे से किसान हैं और माता जी घर के कामों में व्यस्त रहती हैं। तन्नु प्रिया वर्तमान में बेगूसराय के जी.डी. कॉलेज से अग्रेज़ी (होनर्स) में मास्टर्स कर रही हैं। उन्हें i-सक्षम से जुड़े हुए मात्र एक वर्ष हुआ है और उन्होंने अपने अभी तक के अनुभवों के कारण आगे सामाजिक क्षेत्र में ही अपना करियर बनाने का मन बनाया है।

कुछ दिन विद्यालय में एक तरफ शिक्षक और एक तरफ एडु-लीडर तन्नु प्रिया को थोड़ा असहज जरुर महसूस हुआ परन्तु समय और तन्नु के बच्चों को पढ़ाने के लिए किए गये प्रयासों के साथ शिक्षकों और तन्नु के बीच एक पुल जरुर बना है। 

हमेशा अनजान लोगों से बात करने में डरने वाली तन्नु अब बेहिचक फील्ड-वर्क पर निकलती है
। अभिभावक शिक्षक बैठक हो या विलेज मैपिंग (village mapping) वो कहीं पीछे नहीं रहती।

स्टाइपेंड से मिले पैसो को वो बैंक से नहीं निकलती, क्योंकि तन्नु प्रिया अपने रुपयों से स्कूटी खरीदना चाहती है।

प्रियंका कौशिक 
 टीम सदस्य, बेगूसराय