Wednesday, March 22, 2023

धन्यवाद केवल शब्द नहीं बल्कि एक भावना है

हमारे एडुृलीडर्स हर रोज कुछ नया करने का प्रयास करते हैं और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं। इसी कड़ी में बैच-9 की सपना ने अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि धन्यवाद देने का अनुभव कैसा हो सकता है? साथ ही उनके अनुभव को पढ़ते हुए, आप भी महसूस कर पाएंगे कि धन्यवाद केवल एक शब्द नहीं बल्कि एक अनुभव है। वे लिखती हैं-


"हेल्लो दोस्तों , आज मैं आपको आज का फील्ड वर्क का अनुभव बताना चाहती हूं। आज मुझे उन अविभावकों को धन्यवाद  बोलना था, जो अपने बच्चों को एवं आई-सक्षम  पर भरोसा करतेे हैं। सच बताऊंं तो मुझे काफी अच्छा महसूस हुआ और ये इस तरह का अनोखा अनुभव था क्योंकि सामान्यतः लोग धन्यवाद करते तो हैं, लेकिन उसे महसूस या उसके भाव को समझ नहीं पाते हैं।" 


अभिभावक करते हैं प्रोत्साहित 


"मैंने जितना हो सके, उतने अभिभावकों से मिल कर उन्हें धन्यवाद दिया। अभिभावक अकसर कहते हैं, आप इतने अच्छे से पढ़ाते हैं एवं बच्चों को अच्छे संस्कर देते हैं। आज के समय में जब शिक्षा एक व्यपार बन गया है, ऐसे में एक शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के लिए इतनी मेहनत करना वाकई सराहनीय है।" 


दिव्यांशु की मम्मी का कहना था, "आपके यहां मरा बच्चा अच्छे से पढ़ता है। पहले तो इतना बदमाशी करता था कि मैं तंग आ जाती थी लेकिन अब मेरा बेटा अच्छे से रहता है। मेरी बात भी सुनता है एवं घर के बड़े-बुजुर्गों की इज्जत भी करता है। साथ ही घर में भी किताब निकाल कर पढ़ता है। मुझे बहुत  खुशी होती है कि मेरे बच्चे में बदलाव आ रहा है।" 


बच्ची करती है आपकी नकल 


प्रियांशु की मम्मी का भी कहना था कि मेरी बेटी आपकी नकल करके, आपकी तरह पढ़ाने की कोशिश करती है कि मैडम ऐसे पढ़ाती हैं, मैडम ऐसे समझाती हैं इत्यादि। 


अब अगर किसी भी व्यक्ति को इतना सराहा जाए, तो उसका भी कर्तव्य बनता है कि वह भी अपनी तरफ से कृतज्ञता व्यक्त करे। यही कारण था कि मैं सभी अविभावकों  को धन्यवाद पत्र दिया। मेरी इस पहल से वे काफी खुश हुए। साथ ही अब हमारे बीच ऐसा रिश्ता बन गया है कि ऐसा लगता है कि मैं भी उनके परिवार की सदस्य हूं। 


किसी को प्यार और सम्मान से अगर धन्यवाद बोला जाए, तो एक ऐसे रिश्ते का निर्माण होता है, जिससे रिश्तों की डोर मजबूत हो जाती है। साथ ही मन में भी एक खुशी का भाव उतपन्न होता है, जो आपको और ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे ना  केवल दूसरों को बल्कि स्वयं को भी अच्छा महसूस हो सके।


खुशियां बड़ी या छोटी नहीं बल्कि 'खुशी' होती है

 



हेलो दोस्तों, आज मैं आपके सामने छोटी सी कहानी साझा करना चाहती हूं। आज मुझे पता चला कि अगर दृढ़ विश्वास हो, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

मेरी मुलाकात एक 15 साल के बच्चे से हुई है, जो पूर्ण रूप से दिव्यांग है। एक बार फील्ड विजिट के द्वारा उससे मुलाकात करने का मौका मिला। उसकी मम्मी ने मुझे बताया कि दीदी हम बहुत गरीब हैं। मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि एक व्हीलचेयर खरीद सकूं। 

साथ ही अभी तक सरकारी योजना का लाभ तक नहीं मिला है। अगर आप कुछ कर पाए तो मेरी बहुत मदद हो जायेगी। 

और शुरू हुआ कुर्सी का संघर्ष 

यह सब देखने के बाद मैंने सोचा कि कम से कम मैं इस बच्चे को कुर्सी तो दिला कर ही रहूंगी। मैं हर जगह गई, जहां से मुझे कुर्सी मिल सकती थी या कोई संभावना बन जाती मगर ऐसा कुछ नहीं हो सका। 

इसके बाद मैंने आदित्य सर से बात की। हर लोगों से मदद मांगी मगर अंततः सर के बताए हुए मार्ग पर चल कर हमारे i-saksham के एक साथी मनोज जी की मदद से आज साथ महीनों बाद कुर्सी मिल ही गई। कुर्सी मिलने के बाद बच्चे की खुशी देखते ही बन रही थी। 

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि अपने प्रयास को सही दिशा में करना चाहिए। साथ ही हर किसी को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और जितना हो सके लोगों को जागरूक करना चाहिए। साथ ही मुझे भी बहुत सुकून मिला कि मैंने अपने तरफ से प्रयास किया और उसका फल भी मिला। 


Monday, March 20, 2023

रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता


नकारात्मक खबरें हर जगह से मिल जाती हैं लेकिन शोध बताता है कि सकारात्मक खबरों को जानने से ना केवल मनुष्य का आंतरिक विकास होता है बल्कि उसे अच्छा भी महसूस होता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता में विकास होता है। 


आज हमारे एडुलीडर जमीनी हकीकत को सामने लाते हुए एक बदलाव और सकारात्मक खबर भी साझा कर रहे हैं, जो ना केवल आपको बल्कि हर उस बच्ची के लिए मील का पत्थर साबित होगी, जिनके लिए पढ़ पाना एक चुनौती है। 


मैं धर्मराज कुमार, आप सभी के साथ अपना अनुभव साझा करना चाहता हूं। मैं जमुई जिले में स्थित लठाणे नाम के एक गांव में बच्चे के शैक्षणिक स्थिति के बारे में जांच करने गया था। उसी दौरान मेरी मुलाकात कुछ महिलाओं से हुई। जब मैंने उनसे उनके बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछताछ की तो कुछ बातें निकल कर सामने आई, जिसे सुनकर मुझे काफी आनंद आया और थोड़ी मायूसी भी हाथ लगी। बातचीत में पता चला कि उनकी एकमात्र पुत्री हैं, जिनका नाम संजना है।


उन महिला ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है। उनका घर खपरैल का है और वह भी टूटा फूटा हुआ है। जब मैंने पूछा "क्या आपकी लड़की स्कूल पढ़ने जाती है?" मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, "यह सब मत पूछिए। मेरी बेटी तो बोलती है कि अगर रविवार को भी पढ़ाई होती तो कितना मजा आता।” 


मैं स्कूल नागा नहीं करुंगी


उन्होंने आगे कहा कि आप जाकर स्कूल में सभी शिक्षक से पूछ सकते हैं कि मेरी बेटी एक भी दिन क्लास से अनुपस्थित नहीं रहती है। हालांकि मैं ही किसी-किसी दिन बोलती हूं कि आज स्कूल नहीं जा। घर में बहुत काम है। तो मेरे इतना कहने पर वह बोलती है कि “मां, मैं स्कूल से जाऊंगी। आपका सारा काम भी कर दूंगी। अगर मैं नागा कर दूंगी तो आगे फिर मुझे विषय समझने में दिक्कत होगी।”  


अपनी बेटी की ऐसी लगन देखकर मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं बोलती हूं। मैं भी सोचती हूं कि ठीक है, जब तुम्हारा मन पढ़ाई में है, तो पढ़ो। 


मां को है भविष्य की चिंता 


अपनी बेटी के लिए एक मां की ऐसी सोच जानकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि कहीं ना कहीं बदलाव की बयार बह रही है। हालांकि जाते-जाते मैंने उन्हें कहा, "आपकी बेटी हीरा है। इसे खूब पढ़ाइए।" मेरे इतना कहने पर उस महिला ने फिर मुझसे कहा, "मुझे दुविधा है कि पता नहीं कि मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा पाऊंगी भी या नहीं।" 


"तब मैंने उनकी आशंका को कम करते हुए कहा, "मेरा विश्ववास है कि अभी आपको मैट्रिक तक इसके पढ़ाई के खर्चे  के बारे में नहीं सोचना होगा।  स्कूल से पोशाक, किताब, छात्रवृत्ति यह सभी मिलते रहेंगे। इसके अलावा थोड़ा बहुत कॉपी-कलम की जरूरत होगी, जिसे आप जुटाने में सक्षम होंगे। साथ ही समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता है।" 


कुल मिलाकर मुझे अपनी पहल और मेहनत पर बहुत नाज हुआ कि कम से कम लोगों की सोच में बदलाव हो रहा है। हालांकि अभी भी ऐसे कई हिस्से होंगे, जहां बदलाव की दरकार है लेकिन मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर इसे भी हासिल किया जा सकता है। 


Saturday, March 18, 2023

प्रियंजलि: साप्ताहिक सेशन में हमने अपनी ऊर्जा को मापा, एडुलीडर एवं बड्डी के आशाओं पर भी हुई बातचीत

नमस्ते साथियों, 

मैं प्रियंजलि कुमारी, बैच 8 की एडु लीडर हूं। मैं आशा करती हूं कि सभी साथी स्वस्थ होंगे। 

आज मैं दिनांक 17 /3/2023 दिन शुक्रवार को सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा करने जा रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी साथी समय से पहुंचे और सही समय से सेशन की शुरुआत हुई। मैं आज के सेशन के उद्देश्य को अच्छी तरह से जान पाई और Buddy के stakeholder के बारे में भी जान पाई। 

साथ ही मैंने एडु लीडर और बड्डी की उस कड़ी को भी महसूस किया कि एक दूसरे से हमारी क्या आशा हो सकती है। इस बारे में मैं निम्नलिखित बिंदु साझा करना चाहती हूं। 

 1. बड्डी एडु लीडर के अभिभावकों से मिले।
 2. बड्डी एडू लीडर्स को प्रोत्साहित करें।
 3. व्यक्तित्व विकास पर बातचीत।

एक बड्डी की एडु लीडर्स से आशा 

1.एडू लीडर समय से कार्य करें।
2. मानसिक विकास पर बात करें।
3. अनुभव साझा करें।
   
इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों उस रंग में थे, इस पर भी बातचीत हुई जैसे कि सभी साथी ने पीले रंग में थे। जिसका अर्थ है, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद।

उसके बाद ग्रुप में बैठकर एक समूह के रूप में हमें क्या करना चाहिए इसके बारे में बातचीत हुई। आज का सेशन हमारे लिए बहुत अच्छा रहा, बहुत कुछ सीखने को मिला। 

कोमल: जब मैंने पहली बार डिब्रीफ कराया और ब्लैक बोर्ड पर लिखा

 हमारी एडु लीडर कोमल ने अपने साप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि उनकी समझ और सोच किस प्रकार विकसित हुई। इतना ही नहीं उन्होंने हमारे साथ यह भी साझा किया है कि उन्होंने जब पहली बार डिब्रीफ कराया और पहले बार ब्लैक बोर्ड पर लिखा तब उनका अनुभव कैसा था? 

आज की सप्ताहिक सेशन का अनुभव साझा कर रही हूं। हर बार की तरह आज भी हम सभी समय से पहुंच गए तथा आज के सेशन के उद्देश्य को जाने। साथ ही पिछले सेशन पर बातचीत हुई। जैसे- स्टेकहोल्डर पर और अच्छे से समझ बना पाए तथा ग्रुप में भी स्टेकहोल्डर मैट्रिक बनाएं, जिससे काफी अच्छे समझ बन पाई।

उसके बाद इमोशन मीटर को देखकर पिछले सप्ताह किस रंग में थे और क्यों थे, इसपर बातचीत हुई जिसमें मैं पीले रंग में थी। इस पीले रंग का अर्थ हुआ, ज्यादा ऊर्जा और ज्यादा आनंद। 

उसके बाद फिर से हम सब ग्रुप में बैठे और एक बड्डी को एडु लीडर से क्या आशा है तथा एक एडु लीडर को बड्डी से क्या आशा है, इसके बारे में समझ बनाने का प्रयास किया गया। 
 
आज के सेशन की सबसे अच्छी बात यह रही कि मुझे डिब्रीफ करने का मौका मिला और बोर्ड पर भी लिखने का मौका मिला यह पहली बार था जब मैं बोर्ड पर लिख रही थी। ब्लैक बोर्ड पर लिखने के दौरान मैं थोड़ी सी नर्वस और डरी हुई थी लेकिन सब के उत्साहवर्धन के कारण मैंने इससे भी बखूबी किया। साथ ही डिब्रीफ कराने के दौरान मैंने भी अपने अंदर कुछ सकारात्मकता को महसूस किया और इससे मेरी संवाद करने की स्थिति में भी सुधार हुआ।

मात्र 9 साल की शिक्षिका जो पढ़ाने के नहीं लेती है पैसे, पूछने पर देती है ये जवाब


हम आए दिन कई खबरें देखते हैं, लेकिन उनमें सकारात्मक और प्रेरणा बहुत कम दिखाई पड़ती है। यहां तक कि आज भी कई खबरें या चीज़ें लोगों के सामने नहीं आ पाती। 

कुछ इसी तरह का उदाहरण आप यहां पढ़ सकते हैं। एक बच्ची जो खुद मात्र 9 साल की है, और उसके खुद के अभी पढ़ने की उम्र है, वह बच्ची अपने गांव के अन्य बच्चों को भी पढ़ा रही है। पूछने पर बड़ी शालीनता से जवाब भी देती है। इसे हमारी बड्डी राजमणि ने साझा किया है। 

आइए अब आपकी जिज्ञासा को कम करते हैं और राजमणि की कलम से जानते हैं, कुछ करने की जब लगन हो, तब बदलाव को लाया जा सकता है। 

दोस्तों, मैं आप सभी के साथ सपना बैच -9 के क्लासरूम की एक प्यारी सी बच्ची प्रियांशु कुमारी के बारे में कुछ साझा करना चाहती हूं। 

प्रियांशु चौथी कक्षा में पढ़ती है और वह मात्र 9 साल की है, जगदंबापुर फरदा की रहने वाली है। 

प्रियांशु के अंदर बहुत सारी आशाएं हैं। इस बच्ची को सपना सुबह में 6:30 से 8:30 बजे तक पढ़ाती है। इसके बाद प्रियांशु स्कूल चली जाती है और 3:00 बजे स्कूल से पढ़कर वापस घर आती है। 

घर आकर खाना खाती है और अपने आसपास के बच्चे को घर जाकर बुलाने जाती है। आप सोच रहे 
होंगे कि यह बच्ची सबको खेलने के लिए बुलाती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बच्चे आसपास के बच्चों को पढ़ाने के लिए बुलाती है। 

इसके बाद जब 5 से 6 बच्चे इकट्ठा हो जाते हैं, तो यह प्रतिदिन उन बच्चों को 4:00 बजे से पढ़ाती है। यह सिलसिला हर रोज चलता है।

बच्चों के साथ जमीन पर बैठना 

प्रियांशु के पढ़ाने का तरीका बिल्कुल उसकी शिक्षिका
सपना के जैसा है। साथ ही वह बच्ची बच्चों के साथ जमीन पर बैठती है। 

प्रियांशु सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाती है। बाल गीत या कोई गतिविधि करवाती है। बच्चे को अलग-अलग ग्रुप में बैठा कर उनको क्लास के अनुसार पढ़ाने की कोशिश करती है। साथ में t.l.m. का इस्तेमाल भी करती है। 
चूंकि प्रियांशु के पास चार्ट पेपर और कलर नहीं है इसलिए वह कॉपी के कागज को फाड़ कर उसका t.l.m. बनाती है और घर के दीवार में अलग-अलग जगह लगा देती है। 

प्रियांशु केवल उन्हीं बच्चों को पढ़ाती है, जिसका स्तर उनके स्तर से नीचे हो ताकि उनको पढ़ाने में बहुत आसानी लगे। 

मां को दिया धन्यवाद पत्र

यह जानकारी मुझे उनकी मम्मी से पता चली, जब मैं शनिवार को कमेटी में गई थी। मैंने प्रियांशु की मम्मी को धन्यवाद पत्र भी दिया क्योंकि कहीं न कहीं उन्होंने भी अपनी बेटी की पहचान गढ़ने में भूमिका निभाई है।

इसके बाद मैंने प्रियांशु से भी मुलाकात की और कुछ सवाल पूछे, "प्रियांशु, आप बच्चों को क्यों पढ़ाती हैं? कैसे पढ़ाती हैं?" इस पर प्रियांशु ने कहा, "दीदी, मैं आपके यहां से जो पढ़ कर आती हूं और जो सीखती हूं उसी को मैं अपने घर के आस-पास के छोटे बच्चे को पढ़ाती हूं।"

"जो मुझे समझ में नहीं आता है, तो मैं आपके पास पढ़ने के लिए जाती हूं। वहां क्लास रूम में बहुत सारे चित्र बने हुए हैं और क्लास में जो भी t.l.m लगा हुआ है, उसको मैं अपने कॉपी में बना लेती हूं। उसके बाद मैं घर आकर उसको अच्छे पेज में फिर से बनाकर अपने घर की दीवार में लगा देती हूं।" 

बच्चों से नहीं लेती पैसे

इसके बाद मैंने प्रियांशु से फिर पूछा कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ पैसे भी लेती हैं? तो इस पर प्रियांशु ने कहा, "मैं बच्चों से पैसा नहीं लेती हूं। मैं जहां पढ़ती हूं, वहां मुझसे पैसे नहीं लिए जाते इसलिए मैं भी किसी से पैसे नहीं लेती हूं। मुझे पढ़ना और पढ़ाना पसंद है इसलिए मैं यह करती हूं।"

जब मैं यह कहानी सपना के द्वारा सुनी तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था। मैंने उनको बोला कि वह जब पढ़ाती है, तो किसी दिन आप उनके घर जाओ और आप बैठ कर देखो फिर वह कैसे पढ़ाती है। हो सके तो आप उसका वीडियो या फोटो भी ले सकते हैं। 

मेरे इतना कहने के बाद सपना उनके घर गई। वह बिल्कुल एक शिक्षिका की तरह पढ़ा रही थी, जिसमें मेरे भी कुछ अंश सम्मलित थे। यह मेरी अब तक की सबसे प्यारी तस्वीर है और हां, अनुभव भी। यह जानकारी मुझे सपना से मिली है, जिसे मैंने कलमबद्ध किया है। 

अमूमन इस उम्र के बच्चे खेल कूद पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उन्हें पढ़ने के लिए बोलना पड़ता है। यहां तक कि कई माता पिता इतने जागरूक भी नहीं होते कि वे अपनी बच्ची को पढ़ाए लेकिन यहां की तस्वीर बदलाव और उम्मीदों से भरपूर तस्वीर थी। 
         

Friday, March 17, 2023

स्मृतिः सुझावों को सकारात्मकता से स्वीकारना आपके व्यक्तित्व को निखारता है

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

स्मृति कुमारी ने अपनी कक्षा का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने महसूस किया है कि बच्चों को सही दिशा दी जाए तो वे जरुर अच्छा करते हैं। इतना ही नहीं स्मृति का अनुभव पढ़ कर आप जानेंगे कि सुझावों को किस प्रकार सकारात्मकता से लिया जा सकता है क्योंकि कई बार लोगों को सुझाव लेना पसंद नहीं आता मगर सुझावों को सहर्ष स्वीकारना स्मृति बता रही हैं, क्योंकि उनका मानना है कि सुझाव आपको बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वे लिखती हैं-


मैं स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडु-लीडर हूं। मैं आज आप सबके साथ आज के सेशन का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज साक्षी दी मेरे स्कूल में आई हुई थीं इसलिए मेरा अनुभव एक ओर जहां उत्साह से भरा है, वहीं दूसरी ओर मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा भी दे रहा है।


नियमानुसार मैंने सबसे पहले बच्चों को मेडिटेशन करवाया फिर कल जो हमने पढ़ा था, उसकी पुनरावृत्ति की फिर उसके बाद आज के पाठ्य की चर्चा की। मैंने आज बच्चों को गणित पढ़ाया और गणित में पहले बढ़ते क्रम और घटते क्रम को बच्चों को सिखाया। साथ ही गणित की बेहतर समझ बनाने के लिए हम सबने एक एक्टिविटी भी किया। 


इसके बाद मैंने बच्चों से विषय से जुड़े सवाल करने को कहा, जिसमें बच्चों ने प्रश्न पूछे और अपनी समझ को बेहतर किया। उसके बाद साक्षी दी ने पूछा, “क्या मैं बच्चों को किताब पढ़ाऊं?” फिर उन्होंने बच्चों को किताब पढ़ाया और जब दी ने किताब पढ़ाने से पहले यह पूछा, बच्चों, कुछ पन्नों को पढ़कर मैं शुरुआत करूंगी लेकिन मेरे बाद सबको बारी-बारी से पढ़ना होगा।" इतना सुनते ही बच्चों का उत्साह दोगुना हो गया।


सभी बच्चे हाथ ऊपर करके अपनी बारी का इंतजार करने लगे। इसके बाद साक्षी दी ने बच्चों को पढ़ाया। साथ ही वे बच्चों की उत्सुकता और उनके सवालों के जवाब भी देती रही। बच्चों के बीच काफी उत्साह था और सीखने की जिज्ञासा भी झलक रही थी, जो उनके बेहतर कल के लिए वरदान साबित हो सकती है।

  

सुझावों का दिल से स्वागत 


कक्षा के अंत में साक्षी दी ने मुझे कुछ सुझाव भी दिए, जैसे- मैं अपनी कक्षा को और बेहतर कैसे बना सकती हूं, इत्यादि। मुझे दी द्वारा जो फिडबैक मिला है, मैं उस पर जरुर काम करूंगी और अपनी कक्षा को और बेहतर करूंगी। 


आज मैं लंच टाइम तक स्कूल में ही रूकी थी, तो एक चीज जो मुझे बहुत ही अच्छी लगी वो थी कि बच्चे एक दूसरे की मदद कर रहे थे। वे एक-दूसरे को TLM द्वारा समझा रहे थे। साथ ही बच्चे लाइब्रेरी का भी प्रयोग कर रहे थे और किताबों को उनकी जगह पर रख रहे थे। मुझे ये सब अपनी कक्षा में देख कर बहुत अच्छा लगा और प्रेरणा भी मिली कि अगर सकारात्मक भाव से पहल की जाए, तो अनुशासन द्वारा बहुत कुछ बदला जा सकता है। 


साथ ही मैंने अनुभव किया कि बच्चों के अंदर असीमित ऊर्जा है, क्योंकि जिस प्रकार वे हाथ को खड़ा करके पढञने की ललक दिखा रहे थे, उससे एक बात साफ है कि उन्हें अगर सही मार्गदर्शन दिया जाए, तो वे जरुर अच्छा प्रदर्शन करेंगे। मेरी पूरी कोशिश होगी कि मैं अपनी ओर से कोई कमी ना रहने दूं।