Saturday, October 5, 2024

क्या हम सभी 21वीं सदी में हैं या सिर्फ कुछ चुनिन्दा लोग?

नमस्ते साथियों,

मैं पायल, 17 अगस्त 2024 का फील्ड कार्य का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस दौरान मैंने किशोरियों और उनके अभिभावकों से मुलाकात की और उनके साथ संवाद स्थापित किया। इस संवाद के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए, जिन पर विचार-विमर्श करना आवश्यक है।

अनुपस्थित किशोरियों से मुलाकात:

एक विशेष सत्र के दौरान, मैंने उन 19 किशोरियों से मिलने का प्रयास किया जो सत्र में उपस्थित नहीं हो पायी थीं। जब मैंने उनसे उनकी अनुपस्थिति का कारण पूछा तो उन्होंने खुद ही बताया कि उनमें से आठ किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और इस कारण वो मंदिर के अंदर प्रवेश जा सकती थीं। जहाँ हमारा सत्र आयोजित किया गया था। 

यह सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ कि हमारे समाज में आज भी मासिक धर्म को पाप या अपवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यह धारणा न केवल रुढ़िग्रस्त है, बल्कि अत्यंत हानिकारक भी है।

19 किशोरियों में से कुछ किशोरियाँ स्कूल गयी थीं। कुछ रोपा (कृषि पद्धति) के लिए गयी थीं और कुछ मासिक धर्म के कारण सत्र में नहीं आ सकी। पहले दो कारण तो हम समझ सकते हैं, परन्तु तीसरे कारण से यह स्पष्ट होता है कि हमारे समाज में मासिक धर्म के प्रति जागरूकता की कितनी कमी है। मुझे यह देखकर फिर से बहुत निकृष्ट महसूस हुआ।


मैंने पहले भी एक सत्र में ऐसी ही स्थिति का सामना किया था। रायपुरा में 8 अगस्त को आयोजित सत्र के दौरान तीन किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और वे भी मंदिर में जाने से मना कर रही थीं। लेकिन एक किशोरी जिसका नाम राधा था, ने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया। 

उसने कहा, "दीदी, हम रोज़ शाम को देखते हैं कि मंदिर में कुछ लोग दारू पीते हैं, गांजा जैसे तरह-तरह के नशे करते हैं, गाली देते हैं, गंदी बातें करते हैं। 

तो क्या हम लोग इनसे भी बड़ा पाप कर रहे हैं जो मंदिर में नहीं जा सकते?"

यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए विचारणीय है, जो मासिक धर्म को पाप मानता है। जो मासिक धर्म को अछूत की दृष्टि से देखता है। 

ध्यान देने की बात तो यह है कि ये व्यक्ति कोई और नहीं अधिकतर महिलाएँ ही हैं।


राधा के इस सवाल ने वहाँ उपस्थित सभी किशोरियों को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद हम सभी मंदिर के अंदर गए, और इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि यदि सही तरीके से संवाद किया जाए, तो समाज की धारणाएं बदल सकती हैं।

मासिक धर्म: एक नई सोच 

मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो महिलाओं के जीवन में सामान्य है। इसे लेकर समाज में अनेक प्रकार की गलत धारणाएं और मिथक व्याप्त हैं। इन्हें तोड़ने के लिए जागरूकता की बहुत आवश्यकता है। मासिक धर्म को अपवित्र या पाप मानने की मानसिकता न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

हमारे समाज में ऐसी कई प्रथाएं हैं, जो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के अधिकारों और उनके स्वाभिमान को प्रभावित करती हैं। मंदिर में प्रवेश न कर पाना, खाना न बना पाना, या अन्य धार्मिक गतिविधियों में भाग न ले पाना, इत्यादि। ये सभी समाज की उन धारणाओं का हिस्सा हैं जो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करती हैं।

हमें इन धारणाओं को बदलने की जरूरत है। मासिक धर्म के प्रति समाज की सोच को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि मासिक धर्म न तो कोई पाप है और न ही कोई अपवित्रता। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे 21वीं सदी में सम्मान और संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।

समाज को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान किसी भी प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाओं का सामना न करना पड़े। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ मासिक धर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण हो, और महिलाएँ सम्मान और स्वाभिमान के साथ अपने जीवन को जी सकें।


अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी (APU), भोपाल Chapter 1- डर और आशंकाएँ

नमस्ते साथियों,


मैं आरती कुमारी i-सक्षम संस्था में एडु-लीडर रह चुकी हूँ। आज मैं आप सभी के साथ अपनी शुरूआती यात्रा और अनुभव को साझा करना चाहती हूँ।  


मेरी इस यात्रा में कई उतार-चढ़ाव रहे हैं, लेकिन यह एक ऐसा अनुभव साबित हुआ जिसने मेरी सोच और आत्मविश्वास को हमेशा के लिए बदल दिया। APU में आने से पहले मेरे मन में बहुत सी आशंकाएँ थीं। पहली बार अपने घर, और शहर से बाहर निकलना मेरे लिए बहुत बड़ा कदम था। 

मुझे हमेशा से यह चिंता सताती रहती थी कि क्या मैं इस नए माहौल में खुद को ढाल पाऊंगी?

क्या मैं नए लोगों के साथ तालमेल बिठा पाऊंगी? 

क्या मैं इस नई शिक्षा को समझ पाऊंगी?



जब APU में एडमिशन मिला, तो मुझे खुशी तो हुई लेकिन इसके साथ ही एक अनजाना सा डर भी मन में था। यह डर और चिंता मेरे मन में तब तक घर किये रहा, जब तक कि मैंने APU में कदम नहीं रखा। 


APU में नया माहौल और नए व्यक्तियों से मिलने के बाद मेरी सारी आशंकाएँ धीरे-धीरे दूर होने लगीं। मैंने महसूस किया कि यह एक ऐसा स्थान है, जहाँ सभी को समान रूप से देखा जाता है। चाहे उनकी जाति, भाषा, या विचारधारा कुछ भी हो। 


यहाँ के लोगों से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जिससे मेरे अंदर का डर धीरे-धीरे खत्म होने लगा। यहाँ, सहपाठियों ने भी मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। सभी छात्र यहाँ सीखने के लिए उत्सुक और खुले दिमाग (open-minded) वाले हैं। मैंने देखा कि हर किसी के पास अपनी एक कहानी और अनुभव है और वे सभी एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने को तैयार हैं। मेरी भी कोशिश रहती है कि उनसे कुछ नया सीखूं।


यहाँ के फैकल्टी मेंबर्स (faculty members) न केवल विषय के विशेषज्ञ हैं, बल्कि वे छात्रों के साथ जिस तरीके से बात करते हैं वो भी है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि वो सिर्फ हमें पढ़ाते नहीं हैं, बल्कि हमें सोचने, सवाल करने और खुद से उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके पढ़ाने का तरीका बाकी जगहों से बिल्कुल भिन्न है। 

शिक्षक हमें सिर्फ जानकारी नहीं देते, बल्कि हमें उन जानकारियों को अपने जीवन और समाज के संदर्भ में समझने और लागू करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने मुझे यह सिखाया कि शिक्षा का असली मतलब केवल किताबों तक सीमित नहीं होता बल्कि किताबें हमें जीवन और समाज के बारे में भी समझाती हैं। शिक्षकों के साथ संवाद करना भी बेहद आसान है। वो हमेशा हमारी समस्याओं को सुनने और उनके समाधान में मदद करने के लिए तैयार रहते हैं।


APU में आए हुए मुझे एक महीने से अधिक समय हो चुका है, लेकिन यह समय इतनी जल्दी बीत गया कि मुझे इसका अहसास भी नहीं हुआ। इस एक महीने में मैंने न केवल अपने विषयों के बारे में बहुत कुछ सीखा है बल्कि खुद के बारे में भी मैंने कुछ बातें जानी हैं। मैंने यहाँ सीखा कि असली शिक्षा केवल किताबों में नहीं होती, बल्कि हमारे आस-पास के लोगों, हमारे अनुभवों और हमारे विचारों में भी होती है। APU ने मुझे यह सिखाया है कि शिक्षा का मतलब केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि उस ज्ञान को समझना और उसका सही उपयोग करना भी है।


इस यात्रा को संभव बनाने के लिए मैं i-सक्षम के सभी सदस्यों की आभारी हूँ। जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुँचाने में सहायता की। आपके समर्थन और मार्गदर्शन के बिना यह संभव नहीं हो पाता। आप सभी का सहृदय धन्यवाद।


आरती कुमारी

बैच-10 (बी), बेगूसराय 

 

एडु-लीडर ने विद्यालय में बदलाव, प्रधानाध्यापक को किया प्रभावित

“रौशनी के विद्यालय में आने से बच्चों की उपस्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है”। प्रधानाध्यापक उमेश सर ने रौशनी के कार्यों की काफी सराहना की। उन्होंने बताया कि जब भी रौशनी को किसी प्रकार की दिक्कत होती है, तो वह हमेशा उनके साथ रहते हैं। रौशनी ने विद्यालय में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं, जैसे:

  • बच्चों को समूह में पढ़ने के लिए प्रेरित करना।

  • गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को सीखने से जोड़ना।

  • बच्चों को यूनिफॉर्म में आने के लिए प्रेरित करना।

  • जो बच्चे अनुपस्थित रहते थे, उन्हें स्कूल में वापस लाना।

प्रधानाध्यापक उमेश सर ने यह भी कहा कि रौशनी की नियमितता और अनुशासन का बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जो बच्चे पहले कक्षा में बोलते नहीं थे, अब वे अधिक आत्मविश्वास से बोलने लगे हैं। कक्षा का माहौल अब अधिक उत्साही है, और बच्चे पढ़ाई में रुचि दिखाने लगे हैं, जो विद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

रौशनी ने बच्चों में साफ-सफाई की आदतें भी विकसित की हैं, जैसे खाना खाने से पहले और वाशरूम से आने के बाद हाथ धोना। यह देख प्रधानाध्यापक काफी खुश हैं। रौशनी समय पर विद्यालय आती हैं और अपने अनुशासन से एक मिसाल कायम कर रही हैं। उमेश सर ने कहा कि रौशनी के इन प्रयासों को देखना उन्हें बेहद खुशी देता है।

राधा कुमारी
बडी, मुजफ्फरपुर


पहली बार प्राइम बुक का उपयोग किया

मेरे क्लस्टर का नाम “हौसलों की उड़ान” है। मुझे जब मेरे क्लस्टर से प्राइम बुक मिलने वाली थी तब मैं बहुत खुश थी, बहुत उत्सुक भी थी। साथ ही साथ थोड़े असमंजस में भी थी क्योंकि मुझे पता नहीं था कि इसमें क्या करना है? इसका उपयोग कैसे होगा

इसकी समझ बनाने के लिए मैंने अपनी बडी (राधा दीदी) से मदद ली। उन्होंने मुझे बताया कि मैं इसमें अपना परिचय, टूल्स में से रंग भरना, चित्र बनाना, कहानी इत्यादि चीजों के बारे में जान सकती हूँ।


दस-बारह दिन लगातार उपयोग करने के बाद मैंने प्राइम बुक में अपना परिचय लिखना सीख लिया है। शब्दों को बोल्ड, इटैलिक, हैडिंग देना, फ़ॉन्ट्स में रंग भरना, टेक्स्ट को कॉपी-पेस्ट करना, फॉन्ट्स की भाषा और साइज़ छोटा-बड़ा करना भी सीखा है। 


मुझे नहीं लगा था कि मैं इतना जल्दी प्राइम बुक का उपयोग करना सीख जाउंगी और मुझे यह भी पता चला कि प्राइम बुक एक छोटा सा कंप्यूटर टाइप ही है।



नुसरत खातून 

बैच-10, मुज़फ्फरपुर


नीतू की कोशिशों को शिक्षिका ने सराहा

जब मैं मनिका मुर्रा विद्यालय में गई, तो मेरी मुलाकात संजना मैडम से हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि पहले नीतू अपने कक्षा में बच्चों से गतिविधियों के माध्यम से कम जुड़ पाती थीं। लेकिन अब नीतू बच्चों को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से जोड़ रही हैं। गतिविधियों में कुछ बालगीत अहम हैं, जैसे "बारिश आई छम-छम," "हाथी राजा बहुत बड़े," "मम्मी मुझसे प्यार करती, कितना गहरा" जैसी कविताओं के माध्यम से बच्चों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं।

नीतू अब गणित के पाठ को और अधिक रोचक बनाने के लिए जमीन पर डिब्बे बनाकर बच्चों को गिनती सिखाने का प्रयास करती हैं। संजना मैडम ने बताया कि नीतू अब पहले से कहीं अधिक उत्साहित रहती हैं और उनका जुड़ाव बच्चों से गहरा हुआ है। साथ ही, नीतू और संजना मैडम के बीच भी बेहतर तालमेल बन गया है, जिससे नीतू के प्रयास और अधिक प्रभावशाली हो गए हैं।

स्वाति
बडी, मुजफ्फरपुर 


Thursday, October 3, 2024

"मेरी गांधी फेलोशिप यात्रा"

मेरा नाम अनन्या है और मैं गांधी फेलोशिप की एक छात्रा हूँ। मैं अपने गांव की पहली लड़की हूँ जो मध्यमवर्गीय परिवार से होकर गांव में रहकर ही गांधी फेलोशिप करने के लिए दूसरे राज्य में गई हूँ। मेरे लिए यह रास्ता चुनना आसान नहीं था, लेकिन मैंने हिम्मत की और आज मैं छत्तीसगढ़ में एक गांधी फेलो हूँ।

मैंने गांधी फेलोशिप का फॉर्म भरा और ऑनलाइन इंटरव्यू दिया। मुझे फाइनल राउंड इंटरव्यू के लिए पटना जाना था, जो मेरे लिए थोड़ा मुश्किल लग रहा था। लेकिन मैंने हिम्मत की और इंटरव्यू दिया। कुछ समय बीतने के बाद, मुझे पता चला कि मेरा सिलेक्शन हो गया है और मुझे छत्तीसगढ़ राज्य मिला है।

मैं घर गई और अपने माता-पिता को बताई, लेकिन मेरी मम्मी ने साफ मना कर दिया कि उतना दूर नहीं जाना है। मैं बहुत उदास हो गई, लेकिन मैंने हिम्मत की और अपने पापा को समझाया। पापा तो मान गए, लेकिन मेरे लिए मम्मी को मनाना बहुत मुश्किल हो रहा था। लेकिन आखिरकार, मम्मी भी मान गईं।


मैं श्रवण सर से बात की और उनसे अपने सारे सवालों का जवाब मिल गया। श्रवण सर ने मुझे बहुत हिम्मत दी और कहा कि अगर मन नहीं लगा तो वापस i-सक्षम चली आना। तुम i-सक्षम की सदस्य हो, तुम लिए i-सक्षम हमेशा रहेगा।


अब मुझे इंडक्शन सेशन के लिए राजस्थान जाना था। मैंने i-सक्षम में जो भी चीजें सीखी हैं, उससे मुझे गांधी फेलोशिप के सेशन को समझने में बहुत आसानी हो रही थी। मैं राजस्थान में असेंबली के दौरान 120 लोगों को चेतना गीत और एक्टिविटी करवाई। मुझे एक बात याद आ गई कि जब मैं जमुई में अपने बैच में एक बार मैत्री वाले एडु लीडर  को फैलोशिप के बारे में बताने के लिए सेशन में खड़ी हुई थी, तो तब मेरे हाथ पैर बहुत काप रहे थे और अब मैं 120 लोगों के बीच भी आत्मविश्वास के साथ बोल भी लेती हूँ, एक्टिविटी भी करवा लेती हूँ। मेरे जीवन में यह सारे बदलाव i-सक्षम की वजह से आया हैं। मैं i-सक्षम को दिल से बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी।

अनन्या 

बडी इन्टर्न 


Friday, September 6, 2024

अपने परिवार और भविष्य के लिए मेरी योजना- निशा

नमस्ते साथियों, 

मैं, पिछले एक वर्ष से क्या कर रही हूँ और आने वाले तीन-चार वर्षों में अपने आप को कहाँ देखना चाहूँगी- इन विषयों पर अपनी वर्तमान की योजना और मनोभाव साझा कर रही हूँ।

साथियों, मैं एक मिडिल क्लास (middle class) परिवार से हूँ। घर में मेरे माता-पिता के अलावा मेरे दो छोटे भाई और अंकल हैं, कुल मिलाकर घर में 10 लोग हैं। कमाने वाले सिर्फ मेरे पापा ही हैं। दोनों भाई अभी पढ़ाई कर रहे हैं। पापा, जम्मू-कश्मीर में एक गैर-सरकारी जॉब में कार्यरत हैं। अंकल की तबियत खराब रहने से वो कोई जॉब नहीं करते हैं। मैं करीब एक वर्ष से ज्यादा समय से i-सक्षम के साथ जुड़ी हूँ। 

मुझे i-सक्षम के सहयोग से कुछ आर्थिक मदद भी मिलती है और बहुत सारे ऐसे कौशल भी सीखने को मिलते हैं जो मेरे लिए सीखना बहुत आवश्यक है। यहाँ पर सिखाई जाने वाली चीजें मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं। जैसे- आत्मनिर्भर बनना, बेझिझक किसी से प्रश्न करना, स्वयं के साथ कुछ गलत हो उससे पहले आवाज़ उठाना आदि। मैंने अपने मम्मी-पापा को भी इतना विश्वास दिला दिया है कि अकेले घर से बाहर आने-जाने पर भी उनके मन में मेरे लिए कोई नकारात्मक विचार ना आये और ना ही कोई उन्हें मेरे विरुद्ध भड़का सके।

मुझे विश्वास है कि जैसे ही मेरे अंकल की तबियत ठीक हो जायेगी तो हमारी आर्थिक दशा थोड़ी सुधरेगी। अभी तो बहुत सारा रुपया उनकी दवाइयों में ही लग जाता है। मैं आगे आने वाले तीन-चार वर्षों में खुद को परिवार में एक अहम भूमिका के रूप में देख रही हूँ। अपने कार्यक्षेत्र में भी मुझे अपनी पहचान बनानी है। मैं सरकारी, गैर-सरकारी किसी भी क्षेत्र में अपनी सेवा देने के लिए तैयार हूँ। मैंने घर में ही बहुत स्ट्रगल (struggle) देखा है। मैं अपनी कम्युनिटी की लड़कियों के लिए एक रोल-मॉडल बनना चाहती हूँ, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहती हूँ। मैं उन सभी लड़कियों को बताना चाहती हूँ कि आपको यदि कुछ आगे बढ़ा सकता है तो वो है सिर्फ और सिर्फ मेहनत और कड़ी मेहनत! बिना मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है। आप जितना मेहनत करेंगे उतना ही आगे बढ़ेंगे।


एक चेतना गीत की पंक्तियाँ भी हैं: 

कड़ी मेहनत से ही इन्सान का चेहरा चमकता है, 

कि सोना आग में तप कर ही कुंदन सा दमकता है 

करें वैसे हीं मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...


कि जैसे चाँद आकर चाँदनी के फूल बरसाता,

के जैसे मेघ आ करके घड़ों में नीर भर जाता

करें वैसे हीं हम मेहनत....

सवाँरे रूप भारत का...

निशा कुमारी 

बैच 10, गया