नमस्ते साथियों,
मैं पायल, 17 अगस्त 2024 का फील्ड कार्य का अनुभव साझा कर रही हूँ। इस दौरान मैंने किशोरियों और उनके अभिभावकों से मुलाकात की और उनके साथ संवाद स्थापित किया। इस संवाद के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए, जिन पर विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
अनुपस्थित किशोरियों से मुलाकात:
एक विशेष सत्र के दौरान, मैंने उन 19 किशोरियों से मिलने का प्रयास किया जो सत्र में उपस्थित नहीं हो पायी थीं। जब मैंने उनसे उनकी अनुपस्थिति का कारण पूछा तो उन्होंने खुद ही बताया कि उनमें से आठ किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और इस कारण वो मंदिर के अंदर प्रवेश जा सकती थीं। जहाँ हमारा सत्र आयोजित किया गया था।
यह सुनकर मुझे बहुत दु:ख हुआ कि हमारे समाज में आज भी मासिक धर्म को पाप या अपवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यह धारणा न केवल रुढ़िग्रस्त है, बल्कि अत्यंत हानिकारक भी है।
19 किशोरियों में से कुछ किशोरियाँ स्कूल गयी थीं। कुछ रोपा (कृषि पद्धति) के लिए गयी थीं और कुछ मासिक धर्म के कारण सत्र में नहीं आ सकी। पहले दो कारण तो हम समझ सकते हैं, परन्तु तीसरे कारण से यह स्पष्ट होता है कि हमारे समाज में मासिक धर्म के प्रति जागरूकता की कितनी कमी है। मुझे यह देखकर फिर से बहुत निकृष्ट महसूस हुआ।
मैंने पहले भी एक सत्र में ऐसी ही स्थिति का सामना किया था। रायपुरा में 8 अगस्त को आयोजित सत्र के दौरान तीन किशोरियों का मासिक धर्म चल रहा था और वे भी मंदिर में जाने से मना कर रही थीं। लेकिन एक किशोरी जिसका नाम राधा था, ने एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया।
उसने कहा, "दीदी, हम रोज़ शाम को देखते हैं कि मंदिर में कुछ लोग दारू पीते हैं, गांजा जैसे तरह-तरह के नशे करते हैं, गाली देते हैं, गंदी बातें करते हैं।
तो क्या हम लोग इनसे भी बड़ा पाप कर रहे हैं जो मंदिर में नहीं जा सकते?"
यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए विचारणीय है, जो मासिक धर्म को पाप मानता है। जो मासिक धर्म को अछूत की दृष्टि से देखता है।
ध्यान देने की बात तो यह है कि ये व्यक्ति कोई और नहीं अधिकतर महिलाएँ ही हैं।
राधा के इस सवाल ने वहाँ उपस्थित सभी किशोरियों को झकझोर कर रख दिया। इसके बाद हम सभी मंदिर के अंदर गए, और इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि यदि सही तरीके से संवाद किया जाए, तो समाज की धारणाएं बदल सकती हैं।
मासिक धर्म: एक नई सोच
मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो महिलाओं के जीवन में सामान्य है। इसे लेकर समाज में अनेक प्रकार की गलत धारणाएं और मिथक व्याप्त हैं। इन्हें तोड़ने के लिए जागरूकता की बहुत आवश्यकता है। मासिक धर्म को अपवित्र या पाप मानने की मानसिकता न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।
हमारे समाज में ऐसी कई प्रथाएं हैं, जो मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के अधिकारों और उनके स्वाभिमान को प्रभावित करती हैं। मंदिर में प्रवेश न कर पाना, खाना न बना पाना, या अन्य धार्मिक गतिविधियों में भाग न ले पाना, इत्यादि। ये सभी समाज की उन धारणाओं का हिस्सा हैं जो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करती हैं।
हमें इन धारणाओं को बदलने की जरूरत है। मासिक धर्म के प्रति समाज की सोच को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। हमें यह समझना होगा कि मासिक धर्म न तो कोई पाप है और न ही कोई अपवित्रता। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसे 21वीं सदी में सम्मान और संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए।
समाज को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान किसी भी प्रकार की भेदभावपूर्ण प्रथाओं का सामना न करना पड़े। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ मासिक धर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण हो, और महिलाएँ सम्मान और स्वाभिमान के साथ अपने जीवन को जी सकें।