Tuesday, February 28, 2023

अमनः मुझे विश्वास है कि अनम पढ़ेगी और अपने पंखों के सहारे अपनी मंजिल पाएगी

आज महमदा स्कूल में चल रहे असेसमेंट में शामिल होने गया था। सभी बच्चे टेस्ट दे रहे थे। मौखित और लिखित दोनों परीक्षाएं चल रही थी लेकिन उन सबके बीच में एक लड़की, नई-नई स्कूल ड्रेस पहने, चुपचाप, बहुत सहमी सी, टेस्ट पेपर को निहारे जा रही थी। मानो बहुत डरी हुई हो। 

मैं उसके पास जाकर बैठ गया। यूं ही इच्क्षा हुई उसके टेस्ट पेपर को देखने की। उसका टेस्ट पेपर पूरा खाली था। उसने एक भी सवाल के जवाब नहीं बनाए थे। मुझे लगा अभी-अभी पेपर मिला है। मैंने अपने मन की शांति के लिए पूछा, आपने कुछ लिखा क्यों नहीं? जवाब में सिर्फ सन्नाटा सा छाया था। वह एकदम चुप-चाप नीचे की ओर देखने लगी। मुझे कुछ समझ नहीं आया फिर मैंने उससे पूछा "कोई सवाल समझ नहीं आया क्या?" वो फिर भी एक दम चुप ही रही।

जब मुझे यकीन नहीं हुआ कि..

थोड़ी ही दूर पर बैठी निखत, ये सब देख रही थी। उसने बताया, "भैया इसे स्कूल में आए कुछ ही दिन हुए हैं। अभी कुछ नहीं जानती है। धीरे-धीरे सीख रही है।"  

मेरे मन में अनेकों सवाल उमड़ने लगे। जैसे- बच्ची की उम्र लगभग 9-12 वर्ष थी और कुछ दिन से स्कूल आ रही? मतलब क्या वो इसके पहले कभी स्कूल नहीं आई? वह कुछ नहीं जानती? लेकिन क्यों नहीं जानती? अपने मन को शांत करने के लिए मैंने फिर निखत से पूछा, "ऐसा क्यों है कि उस बच्ची को कुछ नहीं आ रहा?" 

इस पर निखत ने कहा, "भैया, आर्थिक तंगी के कारण इसके घर वालों ने अभी तक इसे स्कूल नहीं भेजा था लेकिन ये पढ़ना चाहती है। मैंने इसके बारे में अपने बड्डी से भी बात की थी फिर EG (Every Girl Child In School) द्वारा बच्ची को स्कूल लाया गया। काजल ने बहुत मदद की। उन्हीं लोगों ने इसका नामांकन करवाया। मुझे बहुत खुशी हुई कि इसका स्कूल में नामांकन हो पाया, नहीं तो इसके घर वाले इसे कभी स्कूल नहीं भेजते ही। सर ने इसे मेरे ही कक्षा में रखने को कहा है और मैं धीरे-धीरे सीखा रही हूं।" 

निखत की भावुक आंखों ने खोले राज 

ये सब बोलते-बोलते मानो निखत की आंखे भर आईं हो, जैसे वह बहुत कुछ बताना चाह रही हो। मैंने इस पर अलग से बातचीत करने के लिए कहा क्योंकि आसपास के बच्चे भी बड़े गौर से सुन रहे थे और वो खुद भी ये वाक्या सुन रही थी, जो शायद अनम को असहज कर देता। 

मैं खुद कुछ देर के लिए बहुत ही भावुक हो गया था। मैंने 'अनम' से बात की। उसमें पढ़ने की इच्क्षा जागृत होती महसूस हो रही थी। पूरी बात जानने के बाद मुझे बस एक ही बात महसूस हो रही थी कि अगर हम यह कर पा रहे हैं, तो इससे बड़ी बात कुछ हो नहीं सकती, 'Voice and Choice for every women' जैसे प्रमाणित होता प्रतीत हो रहा था। 

मैं पूरी टीम को हृदय की गहराई से आभार प्रकट करना चाहूंगा, जो आप-हम कर रहे हैं, वह भले ही किसी के लिए बहुत छोटी बात हो लेकिन यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगी कि हमारा प्रयास अतुलनीय है क्योंकि हम संविधान में मौजूद शिक्षा के अधिकार को घर-घर और जन-जन तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। भले ही राह में चुनौतियां हैं और बहुत कठिन परिस्थितियां भी हैं लेकिन हम अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं दे रहे।


Monday, February 27, 2023

आयुषः कलस्टर मीटिंग में दिखाए गए वीडियो से समझ हुई मजबूत, एक्टिविटी लाइब्रेरी का रखा गया लक्ष्य

बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुक करने एवं बच्चियों के स्कूल में नामांकन एवं उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं, जिसमें से एक माध्यम कलस्टर मीटिंग भी है। आज आयुष अपना अनुभव साझा करते हुए बता रहे हैं कि उन्होंने कलस्टर मीटिंग के जरिए क्या कुछ अनुभव प्राप्त किया। 

मेरा नाम आयुष आनंद है। मुझे आज आज़ीमगंज पंचायत गांव (इनरवाटांड़) में क्लस्टर मीटिंग में शामिल होने का सुनहरा मौका मिला। उस मीटिंग में मेरा जो अनुभव रहा, और मीटिंग में हमलोगों ने क्या-क्या सीखा, यह आप सभी के साथ साझा कर रहा हूं। 

छोटी गिलहरी ने दी सीख 

आज सबसे पहले हम लोगों ने एक वीडियो देखा, जिसमें हम लोगों को "सोचने का मौका मिला" कि  वीडियो से हमें क्या शिक्षा मिल रही है और इससे हम खुद को कैसे जोड़ पा रहे हैं। इस वीडियो में हमने देखा कि कैसे गिलहरी सब मिलकर बड़ी मेहनत से एक गाछ से अनार तोड़ने में सफल हुई थी, जिस अनार को एक गिद्ध लेकर भाग रही थी। 

इस वीडियो को देख कर यह शिक्षा मिली कि यदि हम एक साथ रहें, तो हम बड़ी -बड़ी मुश्किलों का सामना कर सकते हैं। कुछ साथियों ने बताया कि कॉलेज में या लोगों के सामने हमको डर लगता है लेकिन जब सब साथ-साथ बोलते हैं, या फिर एक साथ किसी काम को पूरा करते हैं, तो हमें हिम्मत मिलती है।

बच्चों को स्कूल से जोड़ना लक्ष्य 

उसके बाद हमलोगों ने कम्युनिटी पर भी चर्चा की। कैसे हम लोग बच्चों को स्कूल से जोड़ें कि सभी बच्चे स्कूल जाएं। मेरे क्लस्टर के साथी कुछ दिन पहले वैसे बच्चों की तलाश में भी गए थे ताकि बच्चों का नामांकन स्कूल में करवाया जा सके। घूमते -घूमते एक जगह तीन अभिभावक भी मिले और उनके बच्चे भी वहीं थे। हमारे साथी उन्हीं बच्चों के साथ गतिविधि करने लगे। 

उसी रास्ते में कई अभिभावक कचिया एवं कुल्हाड़ी लिए जंगल के रास्ते लकड़ी काटने जा रहे थे। अभिभावकों ने भी उन लोगों को देख लगभग 1 घंटे रुककर अपनी बच्चों के बारे में समस्याएं रखीं और अंत तक लगभग 17 अभिभावाक रुके और बच्चों के साथ गतिविधियों में शामिल भी हुए। उसके बाद हम लोगों ने‌ एक लक्ष्य रखा कि 31 मार्च तक 3 बार वैसे 45 बच्चों से एक्टिविटी लाइब्रेरी के माध्यम से जोड़ेंगे जो कि किसी वजह से स्कूल नहीं जाते हैं।

बढ़ते कदम और नयी सीख

हमलोगों ने बढ़ते कदम पर बात की। स्वयं के लिए लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, लक्ष्य पर विजय प्राप्त करने के लिए तो मैंने योजना भी बनाई है। अपने लिए योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए लक्ष्य थे। इस महीने के लिए लोगों के साथ साझा किया। सभी ने अपनी भागीदारी सही तरीके से निभाते हुए अपनी स्मार्ट गोल सभी साथियों ने रखा। जैसे - जीवन में निर्णय स्वयं ले पाना, हर दिन अपना कार्य को नोट कर पाना, समय का महत्व देना और अपने आपको स्वस्थ रखना इत्यादि।

कुल मिलाकर देखें तो कलस्टर मीटिंग से कई चीजें सामने आईं और संवाद का एक बेहतर माध्यम स्थापित हो पाया। अभिभावकों ने हमारी पहल को गंभीरता से लेते हुए एक्टिविटी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जो हमारी लिए काफी उत्साहित करने वाला था। 


स्मृतिः बच्चों की बोरियत का हल निकलकर आया सामने, एक्टिविटी के जरिए सुगम हुआ संवाद

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम 

एडुलीडर्स हर रोज बच्चों को सीखाने-पढ़ाने के तरीके तलाशते हैं ताकि बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षित किया जा सके। आज हमारी एक एडुलीडर ने अपना एक अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि बच्चों से इमोशनल अर्थात भावनात्मक जुड़ाव के फायदे। इसके साथ ही बच्चों द्वारा बताए गए पलों से यह निष्कर्ष सामने आया कि बच्चों को एक्टिविटी जरिए समझने में आसानी होती है।

मैं स्मृति कुमारी बैच- 9, मुंगेर जिला, बिहार की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज की कक्षा का अनुभव साझा करने जा रहीं हूं। आज मैंने बच्चों से उनके इमोशन के बारे में बातचीत की। 

बच्चों को हो रही थी बोरियत

कक्षा चार के अभिराज ने मेडिटेशेन करवाया फिर मैंने बच्चों के साथ बातचीत करने के बाद सेशन प्लान बनाया। मैंने बच्चों को LFW के किताब से पढ़ाया। उसके बच्चों को समूह में बांट कर बैठाया और बच्चों के बीच हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों अक्षरों का कार्ड दे दिया। हर समूह को अलग-अलग कार्य दिया, जैसे- बच्चों को शब्द जोड़ने, कार्ड से अन्य एक्टिविटी करने के लिए कहा। इसके द्वारा बच्चे इसे बहुत अच्छे से समझ रहे थे फिर मैंने बच्चों को होमवर्क दिया। 

इसके बाद मैंने बच्चों से संवाद द्वारा एक रिश्ता कायम करने का प्रयास किया। उनसे कक्षा कैसी रहीं जाना, कक्षा को लेकर सुझाव मांगे और उसके बाद बच्चों से उनके इमोशन के बारे में जाना-समझा। बच्चों का कहना था कि बच्चों को सुबह बोरियत महसूस हो रही थी लेकिन धीरे-धीरे एक्टिविटी द्वारा बच्चों को आनंद आने लगा। 

अंत में बच्चों ने कार्ड और खेल-खेल में बहुत कुछ जाना-समझा। इस सेशन से मुझे समझ में आया कि बच्चों को एक्टिविटी और कलात्मक तरीकों से समझाया जाए, तो बच्चे आसानी से सीख लेते हैं। 





Saturday, February 25, 2023

क्यों राहुल को महसूस हुआ कि शिक्षक बनना गर्व की बात है?

मेरा नाम राहुल कुमार है। मैं मुंगेर जिला (गांव- पचरुखी) से हूं। मैं आज आप सभी के सामने एक छोटा सा अनुभव साझा कर रहा हूं। मैं आज प्राथमिक विद्यालय दशरथी गया था। मैं वहां बतौर सहयोगी था, जहां बच्चे का बेसलाइन टेस्ट लिया जा रहा था और मेरे लिए सबसे खुशी की बात थी कि मैं पहली बार प्राथमिक विद्यालय गया था और एडुलीडर प्रियंका दीदी और नाजिया दीदी के सहयोग में गया था। 

जाने के बाद मुझे बहुत खुशी हो रही थी। वहां की मैम बहुत अच्छी थी। जब वहां टेस्ट शुरू हुआ तो मुझे टेस्ट कॉपी बच्चों को देने के लिए बोला गया। मैंने सभी बच्चों को कॉपियां दी। नाजिया दीदी मुझे बच्चों का मौखिक टेस्ट लेने भी बोली, उस समय मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने बच्चों का टेस्ट लिया। 

कविता सुनाने का सीखा नया तरीका 

टेस्ट लेते समय मुझे इतना मजा आ रहा था। बच्चों ने अपनी मनपसंद कविताएं सुनाई, वो भी एक्शन के साथ। यह मेरे लिए एकदम नया था। कविता सुनाने का भी एक ऐसा नया और अद्भुत तरीका हो सकता है, ये मुझे सीखने को मिला। इसमें सबसे खास बात थी कि मेरे लिए वो मेरा अनुभव था। 

कविता सुनना, बच्चों का टेस्ट लेने का अनुभव मैं पहली बार कर रहा था। मैंने महसूस किया कि वाकई शिक्षक बनना एक गर्व की बात है। अंततः सारा काम सफलता पूर्वक हुआ। सारे बच्चों ने बहुत सारा प्यार दिया। सभी ने मुझे बाय कहा। इसके बाद मैं वहां से घर चला आया। मेरी कामना है मुझे यह मौका फिर मिले। 

एक एडुलीडर की मेहनत और उनके कामों का ऐसा विशलेष्ण वाकई अच्छी बात है। हम हमेशा समाज में बदलावों की बात करते हैं लेकिन हमें अपने अंदर के बदलावों और विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। बच्चों के अंदर असीम संभावनाएं होती हैं, जिसे तराशना और निखारना स्वयं में एक हूनर है। यह हूनर एक शिक्षक के पास होता है, जो एक पौधे को सींचकर उसे फलदार बनाता है। 

कभी मां ने मना किया तो कभी हेडमास्टर नहीं हुए तैयार, दो घंटे की मेहनत के बाद हुआ अनम का नामांकन

मेरे नाम काजल है। मैं मुंगेर जिला, बिहार की रहने वाली हूं। मैं आज आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। मैं आज से कुछ महीने पहले आपने पास के ही गांव में सर्वे कर रही थी, जब मैं महमदपुर सर्वे करने के लिए पहुंची, तो मैं अनम नाम की एक लड़की के घर गई थी। 

वहां मैंने देखा कि उसकी मां पापड़ बना रही थी, जब मैंने आवाज लगाई तो उसकी भाभी बाहर आई। उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे। मैं जब उन्हें अपने बारे में बताई तो वे बोलने लगी कि मेरी एक ननद है और हम चाहते हैं कि वह भी पढ़ें लेकिन घर की हालत इतनी बिगड़ी हुई है कि हम बेबस हैं लेकिन फिर भी पढ़ाना चाहते हैं। 

यह सुनकर मैं सहम सी गई कि आज के जमाने में भी माता-पिता से भी ज्यादा सोचने बाली उनकी भाभी है। उन्होंने बताया कि पूरे घर के 13 सदस्यों में से एक वही है, जो पढ़ी है और 10th पास है लेकिन उनकी मां तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी पढ़ें। 

मां नहीं चाहती थी कि पढ़े बेटी 

मां का कहना था कि 12 साल की हो गई है, क्या पढ़ेगी लेकिन मैंने भी देखा कि वह बच्ची पढ़ना चाहती है। उस समय मैं उसकी मां को ज्यादा कुछ नहीं बता सकी लेकिन जब मैं उनके घर से बाहर निकली तो वह लड़की, उसकी भाभी और उसका भाई भी साथ में बाहर निकल आए और उन्होंने कहा कि अगर आप कुछ किजिएगा तो बताइए। हम अनम को पढ़ाना चाहते हैं। यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई, तभी हंसते हुए अनम बोली, “दीदी मेरी सारी दोस्त पढ़ती है। मैं भी पढूंगी।” मैंने भी हंसते हुए जवाब दिया और कहा, “तुम भी जरुर पढ़ोगी।” इसके बाद मैं वहां से निकल गई।

भाभी और भाई को आना पड़ा आगे 

कुछ समय बाद दोबारा नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई। मैं कुछ दिनों बाद फिर अनम के घर पहुंची। थोड़ी देर बाद ही अनम की मां बाहर निकली। वे बिल्कुल तैयार नहीं थी कि उनकी बेटी का नामांकन हो इसलिए मैंने उन्हें बहुत समझाया कि नामांकन करवा लिजिए लेकिन उसकी मां पर कोई असर नहीं हो रहा था। उसकी भाभी भी समझाई, तभी उनके भाई घर आए और वे भी समझाए और तब अनम की मां तैयार हुई। 

इसके बाद मेरे साथ और भी अलग वाकया हुआ। जब परिवार वाले नामांकन के लिए तैयार हुए तो विद्यालय में शिक्षक तैयार नहीं हुए। वहां भी बहुत कोशिशों के बाद वे तैयार हुए। इसके बाद पता चला कि हेडमास्टर ही मौजूद नहीं है, तो अब दूसरे दिन दोबारा आना होगा। दूसरे दिन जब हेडमास्टर नामांकन के लिए तैयार हुए तो अनम की मां तैयार नहीं हुई क्योंकि अनम की मां को किसी ने कह दिया कि इतने बड़ी, 12 साल की हो गई है, अब क्या जाएगी विद्यालय पढ़ने? 

मुझे हाथ लगी मायूसी 

उस दिन अनम की मां उसे पहाड़ी पर लकड़ी लाने लेकर चली गई। मैं लगभग ढाई घंटे तक उनका इंतजार किया लेकिन वे नहीं आए, तभी अनम की भाभी ने चले जाने को कहा और आगे बताया कि अब वे दोनों शाम को आएंगी फिर उस दिन भी मुझे वापस आना पड़ा। मैं बहुत परेशान थी कि किस तरह से अनम का नामांकन करवाया जाए।

इस बात को मैं साक्षी दी को बोली तब उन्होंने कुछ बताया और कुछ सलाह निखत दी से भी मिली। मैं फिर तीसरी दिन भी उनके ही घर गई। रोज की तरह आज भी वही जवाब मिला। इसके बाद मैं बहुत मायूस हो गई थी। अब लग रहा था कि घर वापस लौट आना ही सही होगा लेकिन अनम की बात भी याद आ रही थी। 

दो घंटे के बाद सुना हां शब्द 

मैंने फिर उसके भाई को बुलाया और बहुत प्रयास के बाद लगातार दो घंटे के बाद हां शब्द सुनाई दिया। मेरे लिए यह मौका गंवाना संभव नहीं था। मैं तुरंत निखत दी को कॉल की और पूछी कि हेडमास्टर सर आएं हैं या नहीं। मुझे पता चला कि वे आ चुके हैं, तब मैं तुरंत अनम और उसके भाई को साथ लेकर विद्यालय पहुंची, जब तक वे दुकान से पेपर लिए तब तक मैं हेडमास्टर से बात करके रखी। 

अनम जब विद्यालय पहुंची तो अनम बस चारों तरफ देखे जा रही थी, जब मैं पूछी तो उसके भाई बताए कि वह पहली बार विद्यालय आई है। यह सुनकर मैं रो पड़ी क्योंकि अनम कि आंखों से आंसू निकल पड़ा। 

अनम के विद्यालय जाने की स्थिति को जानने के लिए मैं कुछ दिन बाद फिर विद्यालय गई। वहां मैंने देखा कि अनम रोज विद्यालय आ रही है। यह जानकर बहुत खुशी हुई कि मेरी मेहनत रंग लाई। 


Thursday, February 23, 2023

आंचलः जब अभिभावकों ने पीटीएम में गाया बाल गीत और इंज्वॉय की एक्टिविटी

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


पीटीएम करवाना और उसके पहलूओं को अगले पीटीएम में लागू करना एक चुनौती भरा काम है। पीटीएम का अर्थ बच्चों के अभिभावकों अर्थात पैरेंट्स से बात करना है ताकि उन बिंदूओं पर चर्चा हो सके, जहां सुधार की जरुरत है और जिन हिस्सों में सुधार हुआ है, उनका वर्तमान में कैसा असर है? इस बारे में हमारी एडुलीडर आंचल ने अपना अनुभव साझा किया है- 

मैं आंचल बैच 9 (मुंगेर) की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के पीटीएम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। पिछले शनिवार को जब मैं कम्युनिटी गई थी, तभी सारे अभिभावकों को पीटीएम के लिए आमंत्रण दे दिया था लेकिन उसके बाद मेरी तबीयत खराब हो गई थी, जिसके कारण मैं पीटीएम के लिए अभिभावकों को दोबारा नहीं बुला सकी। 

पैरेंट्स थे कम उत्साहित 

जब मैं आज स्कूल जा रही थी, तो हमारे मन में बस यही चल रहा था कि आज का पीटीएम कैसा होगा? पता नहीं पेरेंट्स आएंगे भी या नहीं। बहुत सारे सवाल मन में चल रहे थे। मैंने अपनी दूविधा को अपनी एक दोस्त सरिता के साथ स्कूल जाते वक्त साझा किया। तभी राजमणि का कॉल आया कि पैरेंट्स लोग आ गए हैं। 

मैं जब स्कूल पहुंची तो देखा कि तीन पैरेंट्स ही आए थे। उन्होंने कहा कि हम जा रहे हैं जबकि मैंने 11:00 का टाइम दिया था। उसके बाद 3 पैरेंट्स जो आए थे , वे भी वापस चले गए। मुझे अच्छा नहीं लगा था। 

शिक्षिकाओं ने की मेरी मदद 

कुछ देर बाद मैं दोबारा पैरेंट्स को बुलाने गई और सबको कॉल भी किया। मेरी तबीयत थोड़ी खराब थी लेकिन विद्यालय की शिक्षिकाओं ने इस बार बहुत ही ज्यादा मदद की, जिस कारण इस बार का पीटीएम हो पाया। उन्होंने पैरेंट्स को बुलाने में बहुत ज्यादा मदद की। इसके बाद 15 पैरेंट्स आए। 

पिक्चर रीडिंग पर हमने उनका अनुभव जाना तो बहुत सारे पैरेंट्स ऐसे थे, जिन्होंने अपने घर पर बच्चों को पिक्चर रिडिंग नहीं करवाया। उनका कहना था कि हम से नहीं हो पाएगा। वहीं कुछ पैरेंट्स ने पिक्चर रिडिंग करवाया था।

पैरेंट्स एक्टिविटी के वक्त खुद को ज्यादा अच्छे से जोड़ पा रहे थे। बाल गीत करवाते समय हमें अच्छा लगा कि पैरेंट्स आगे आकर खुद करवाना चाह रहे थे। हालांकि उन्हें याद नहीं लेकिन फिर भी उन्होंने आगे आकर बालगीत करवाने की कोशिश की। 

अभिभावकों ने कराया बालगीत 

मुझे यह अच्छा लग रहा है कि दो बार से धीरे-धीरे करके ही लेकिन खुद वे आगे आ रहे हैं। आज का पीटीएम बहुत ही अच्छा रहा। हालांकि शुरुआत में बहुत ज्यादा सवाल-जवाब हुए लेकिन अंत में सब अच्छा रहा।

आज के पीटीएम में अगर सारे पैरेंट्स समय पर आते, तो एक साथ अच्छे से तो और बेहतर हो पाता। इसके अलावा सब पिक्चर रिडिंग करवा कर आते तो सबका अनुभव जानकर बहुत अच्छा लगता लेकिन कुछ ही पैरेंट्स आए थे। 

कुल मिलाकर देखें तो पीटीएम का अनुभव अच्छा रहा लेकिन जो खामियां सामने निकलकर आईं, उन पर काम करना जरुरी है। अभिभावकों का उत्साह भी बनते जा रहा है लेकिन अब भी कसक है कि अन्य अभिभावकों को भी पीटीएम एवं अन्य एक्टिविटी में बेहतर तरीके से जोड़ा जाए ताकि उनकी समझ भी बन सके। 

उम्मीद है कि आगे आने वाले पीटीएम में इन बदलावों का असर दिखेगा। पहले दो पैरेंट्स वापस जाने के लिए तैयार थे, शायद उनकी इच्छा नहीं थी लेकिन बाद में उनका उत्साह देखते बना। 


अभिषेकः "जब बच्ची के नामांकन के लिए करनी पड़ी मिन्नतें"

बच्चियों को विद्यालय में नामांकन कराने के दौरान अनेक तरह की स्थिति बनती है। कभी अभिभावक तैयार नहीं होते हैं, तो कभी प्रिंसिपल द्वारा दिक्कते आती है लेकिन कभी-कभी इतनी सकारात्मक चीजें घटित हो जाती है कि मन प्रसन्न हो जाता है। बच्चियों के नामांकन की कड़ी में आज अभिषेक कुमार ने अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया है, जिसमें वे अपने साथ हुआ एक दिलचस्प वाकया साझा कर रहे हैं। 

नमस्ते साथियों मेरा नाम अभिषेक कुमार सिंह है। मैं इस हफ्ते हुई एक घटना को आपके सामने साझा करना चाहता हूं। जब मैं हलिमपुर नानकार विद्यालय में एक बच्ची का नामांकन कराने गया तो वहां के प्रधानाध्यापक पहले तो राजी नहीं हुए फिर बाद में मिन्नतें करने पर मान गए।

गांव से जुड़ा रिश्ता 

वे पहले मेरे गांव रामनगर विद्यालय में शिक्षक के रूप में थे, तब उन्होंने बताया कि रामनगर के लोगों ने उनकी काफी सहायता की है। उन्होंने मुझसे आगे पूछा, “आप रामनगर से हैं?”, तो मैंने कहा, “हां मैं रामनगर से ही हूं। मैं आई सक्षम संस्था में काम करता हूं और मेरा उद्देश्य बच्चों को स्कूल से जोड़ना है, जिन बच्चों की पढ़ाई रुक गई या जो बच्चे प्रतिदिन विद्यालय नहीं जा पाते हैं, उन्हें शिक्षा से जोड़ना ही मेरा उद्देश्य है।” 

मेरी बातों ने किया प्रभावित 

मेरे इस बात से प्रधानाध्यापक काफी प्रभावित हुए और बोले और उन्होंने कहा, आप बच्चों का नामांकन मेरे स्कूल में करवा दिजिए। प्रधानाध्यापक ने बच्ची का नामांकन अपने विद्यालय में किया और कहा कि आप हमारे विद्यालय आते रहिएगा। इसके अलावा उन्होंने मेरे काम की काफी तारीफ भी की। मैं उस समय अपने आप में गौरवान्वित महसूस कर रहा था। साथ ही आई सक्षम संस्था से जुड़कर मैं अपने आपको भाग्यशाली समझ रहा हूं कि मुझे समाज और समुदाय में काम करने का मौका मिल रहा है।


Wednesday, February 22, 2023

क्या आप कबूतर उड़ लाइब्रेरी के बारे में जानते हैं?

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


हमारे एडुलीडर्स बच्चों के लिए शिक्षा को आसान करने का हर एक तरीका तलाशते हैं, जिसमें से एक TLM  (Teaching/learning materials) भी है। पहले स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडुलीडर ने भी TLM के एक्सपीरियंस को साझा किया था। 

इस बार बैच-9 की एडुलीडर सपना ने भी क्लासरूम में TLM से जुड़ा एक वाकया साझा किया है और इसकी उपयोगिता के बारे में बताया है।

Teacher corner का इस्तेमाल:

जब सपना को कुछ पढ़ाना रहता है, तो वे अपने द्वारा बनाए गए TLM का इस्तेमाल कर बच्चों को पढ़ाती हैं। यदि बच्चे को ग्रुप एक्टिविटी करने के लिए दिया जाता है और उनको कुछ मदद चाहिए होती है, तो वे सपना द्वारा बनाए  TLM की मदद लेते हैं। साथ ही पढ़ाई पूरी होने के बाद भी किसी भी तरह की मदद चाहिए होती है, तो इसकी मदद लेते हैं।   

कैलेंडर का इस्तेमाल:

बहुत बच्चों को यह नहीं पता होता है कि आज कौन सी तारीख है, तो बच्चे कैलेंडर देखकर पता करते हैं लेकिन  TLM के जरिए भी कैलेंडर का इस्तेमाल किया जा सकता है। TLM में ही कैलेंडर की सुविधा होती है, जिसे रोज एक-एक करके हटाया जाता है और परत दर परत तारीख मिल जाती है। 

अनुज नाम का एक बच्चा क्लास में खुद से लीड करता है और रोज TLM में मौजूद कैलेंडर की तारीख बदलता है, जिससे बच्चों के अंदर लीड करने मतलब नेतृत्व करने की भावना जा रही है।

 Library का इस्तेमाल:

लाइब्रेरी का इस्तेमाल आज क्लास में नहीं हुआ लेकिन डिब्रीफ में यह निकल कर आया। फ्री समय में बच्चे खुद से आते हैं और अपने मनपसंद किताब को निकालकर पढ़ते हैं और जो पढ़ना नहीं जानते हैं, वे चित्र देखकर अपनी समझ बनाते हैं।

 जब स्टोरी करवानी रहती है, तो लाइब्रेरी की बुक का इस्तेमाल करते हैं। पुस्तकालय का नाम बच्चों के स्वभाव और उनके गतिविधि के अनुसार रखा गया है, जैसे- कभी भी ओपनहाउस में बोला जाता है कि आपको क्या करना है, तो सभी बच्चे कबूतर के जैसा उड़कर लाइब्रेरी के पास ही जाते हैं वह दृश्य बहुत ही मोहक होता है क्योंकि उनके यही एक भाग है, जहां पर उनको रंग-बिरंगे गतिविधियों एवं चित्रों के माध्यम से पढ़ने और सीखने का मौका मिलता है इसलिए लाइब्रेरी का नाम कबूतर उड़ लाइब्रेरी रखा गया है। पीटीएम मतलब Parents Teachers Meeting में भी इस लाइब्रेरी की किताब की मदद मिली है, जिससे पीटीएम को कराना आसान रहा। 

3D चार्ट का इस्तेमाल:

जब हम बच्चों को सब्जी की थीम पढ़ानी होती है, तो 3D चार्ट की मदद ली जाती है लेकिन उसे भी TLM का हिस्सा बनाने के प्रयास किया गया है।

गांव का समाचार:

पूरे 1 महीने का समाचार इकट्ठा किया जाता है और उससे एक कॉपी पर लिख कर उसे टांग दिया जाता है ताकि बच्चों को भी पता रहे कि पिछले 1 महीने में गांव में क्या-क्या गतिविधि हुई है। 

इससे कुछ नई खबरें भी मिलती हैं। साथ ही बच्चे अपनी इच्छा के अनुसार भी जो बातें साझा करते हैं, उन्हें भी लगा दिया जाता है ताकि बालमन रुठे ना। 


कुल मिलाकर देखा जाए, तो TLM का उपयोग एक तरीका है, जिससे बच्चे स्वयं को जोड़ पाते हैं और बेहतर ढंग से अपनी समझ बना पाते हैं। साथ ही एडुलीडर्स की मेहनत का ही नतीजा है कि बच्चे अब स्वयं आगे आ रहे हैं और सीखने की क्षमता विकसित कर रहे हैं। 

पलकः "मेरे पहली पीटीएम ने मुझे कैसे बनाया आत्मविश्वासी"

हमारी एडुलीडर पलक ने अपने पहले पीटीएम का अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने ना केवल बाहरी बदलाव बल्कि आंतरिक बदलावों को भी साझा करने का प्रयास किया है। वे लिखती हैं- 

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

मैं पलक बैच-9 की एडूलीडर हूं। आज मैं आप सभी के साथ अपने पीटीएम का अनुभव साझा करने जा रही हूं।पहले तो मुझे थोड़ी घबराहट हो रही थी कि पैरंट्स आएंगे या नहीं आएंगे क्योंकि उस वक्त तक बहुत कम केवल तीन पेरेंट्स ही आए थे।

मैं बार-बार खिड़की से झांक कर देख रही थी और मन ही मन सोचा रही थी कि अभिभावक आएंगे या नहीं फिर कुछ समय बाद धीरे-धीरे पेरेंट्स आने लगे। मुझे अभिभावकों को देख कर बहुत खुशी हुई क्योंकि 27 अविभावक पहुंच चुके थे। 

इसके बाद लोगों ने बातचीत शुरू की। मैं थोड़ी सी नर्वस थी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या बोलूं, कैसे बोलूं और कहां से शुरु करुं फिर जब नाजिया दी ने शुरू किया तो मुझे हिम्मत मिली। इसके बाद हम दोनों ने मिलकर पीटीएम किया। पहले तो मैंने पेरेंट्स की बातों को ध्यान सुनने की कोशिश की और स्वयं में धैर्य लाने का प्रयास किया ताकि मैं उनकी बातों को ढंग से सुन सकूं। 

मुझे अभिभवकों से जो फीडबैक मिला है, उसे भी मैं यहां शामिल कर रही हूं- 

  • बच्चों के कॉपी पर होमवर्क नहीं रहता है।
  • बच्चे स्कूल के समय में घर में रहते हैं। 

मैंने भी उनके सामने अपनी बातों को रखा और अपनी चुनौतियों के बारे में बताया। इसके बाद अविभावकों से राय ली कि बच्चों को कैसे हम और बेहतरीन तरीके से पढ़ा सकते हैं या काम करा सकते हैं। अविभावकों से क्या घर पर योगदान मिल सकता है?

कुल मिलाकर पीटीएम के जरिए मेरे अंदर भी कुछ बदलाव दिखा। मुझे पहले हिचक और घबराहट हो रही थी लेकिन मैंने धैर्यपूर्वक पीटीएम को किया। मुझे अभिभावकों की गंभीरता देखकर भी काफी अच्छा लगा कि वे अपने बच्चों की पढ़ाई को लेकर जागरुक थे और शिकायत दर्ज कर रहे थे। इससे ना केवल मेरे प्रति बल्कि दोनों और जिम्मेदारी का आगाज हुआ है। उम्मीद है कि आगे पीटीएम में अभिभावकों की संख्या बढ़ेगी और बच्चे भी शिक्षा के प्रति उत्साहित होंगे। 


Tuesday, February 21, 2023

Dance Movement Therapy सेशन में तानिया का अनुभवः कलम और मैं

हमारी बड्डी तानिया ने अपना एक अनुभव साझा करते हुए, एक बड़ी ही गहरी बात को बेहद सरल तरीके से करने का प्रयास किया है। हम अपने आसपास कलम रखी हुआ देखते हैं, उससे लिखते हैं, कई डील फइनल करते हैं या कोई भी बड़ा-छोटा काम करते हैं लेकिन उसके दूसरे पहलू को नहीं देखते। आज हम उसके दूसरे पहलू पर बात करेंगे, जो मैंने अनुभव किया है। 

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम



आज मैं DMT (Dance Movement Therapy) के दूसरे दिन के सेशन में थीं, जहां मुझे ये अनुभव हुआ कि मेरी पहचान और मेरे अस्तित्व का यथार्थ क्या है? आज की दोनों गतिविधियां मुझे बहुत अच्छी लगी। मैंने काफी इंज्वाय किया और खुद को लेकर सोचा कई बातों पर विचार भी किया। 


कलम और मेरा रिश्ता


आज मैंने एक कलम से स्वयं को जोड़कर देखा। इस दौरान मेरी समझ बनी कि कुछ पदार्थों के मिश्रण से बनी एक कलम की जरुरत हर एक व्यक्ति को होती है लेकिन जब वह खत्म हो जाता है, तो कचरे में चला जाता है। उसके बाद उसका अस्तित्व वहीं खत्म हो जाता है लेकिन उसके दूसरे पहलू को देखें तो पता चलता है कि जिन लिखावटों को हमने लिखा या जिन अक्षरों या अल्फाजों को हमने गढ़ा, वे कभी समाप्त नहीं होते। भले ही वक्त के साथ उनकी चमक कम हो जाती है लेकिन उनका अस्तित्व बना रहता है। उसकी लिखावट कभी नहीं मिटती।   


शायद मेरा जीवन भी ऐसा ही है या होगा। अगर हम जिंदगी में कुछ न करें, तो मेरा अस्तित्व मेरे मरने के बाद मिट जाएगा। इसके विपरीत अगर मैं अपनी जिंदगी में किसी के लिए कुछ करती हूं या अच्छे काम करती हूं, तो मेरी पहचान बढ़ती है और यही कारण है कि मेरा अस्तित्व कभी नहीं खत्म होगा।  


ना मिटे मेहनत की स्याही


देखा जाए, तो कलम एक निर्जीव वस्तु है लेकिन उसके अक्षर सजीव है। ठीक उसी तरह से मनुष्यों का जीवन भी है। अगर हम कुछ ना करें और अपने लक्ष्य के बारे में दृढ़ ना हो, तो हमरा अस्तित्व भी कुछ नहीं है इसलिए जीवन के कोरे पन्नों पर अपनी मेहनत की स्याही को कभी मिटने नहीं देना चाहिए। साथ ही दूसरों के जीवन पर भी अपनी छाप छोड़ना बिल्कुल उसी तरह सेजैसे कोरे पन्नों पर कलम की छाप। मेरा विश्वास करें, इन दोनों को मिटने में काफी वक्त लगेगा। 


तानिया परवीन 


              
तानिया परवीन, हमारी executive-buddy हैं। 

काजलः "जब हमें लगा नहीं हो पाएगा बच्चियों का नामांकन"

फोटो क्रेडिट- गुगल 


मेरा नाम काजल है और मैं मुंगेर की रहने वाली हूं। आज मैं आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। आज मैं इंद्रुख की बच्चियों का नामांकन करवाने गई थी। मैं और श्रृष्टि कल ही उन बच्चियों का फॉलोअप कर चुकी थी इसलिए आज मैं और अभिषेक भैया एम.एस  इंद्रुख विद्यालय पहुंचे। 

कल ही वहां की मैडम वैदेही देवी जी से बात हो चुकी थी। उन्हें हमारे कार्यक्रम के बारे में जाना और उन्हें हमारे प्रयासों के बारे में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा, “यह बहुत अच्छा काम है।” हम दोनों भी यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए। अंत में पता चला कि उन बच्चियों का नामांकन विद्यालय में पहले से ही हो चुका है।

मैडम ने किया हमें प्रोत्साहित 

आज मैं और अभिषेक भैया विद्यालय गए। मैडम को फिर से सारी बात बताई और पुनः नामांकन और एसआर नंबर देने को लिए राजी किया। मैडम ने हमारी बातों को समझा और नंबर देने के लिए राजी हुईं। इसके बाद हम लोग इंद्रमुख से हलीमपुर पहुंचे। 

लेकिन राजी नहीं हुए हेडमास्टर

वहां एम.एस हलीमपुर विद्यालय में बच्चियों का नामांकन लेने के लिए हेडमास्टर राजी नहीं हुए। हमने उन्हें बहुत समझाया  लेकिन वे बोले अब 1 अप्रैल से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। फिर हमलोग वहां से निकले और हलीमपुर के एम.एस नानकर, जमालपुर विद्यालय गए। वहां भी हेडमास्टर को तैयार करना बहुत मुश्किल होता जा रहा था, लग रहा था कि नामांकन नहीं ही होगा। 

मुश्किलों के बाद मिली सफलता 

एम.एस नानकर, जमालपुर विद्यालय के हेडमास्टर को अभिषेक भैया ने बहुत समझाया और बहुत प्रयास किया तब जाकर वहां के हेडमास्टर तैयार हुए और वहां की बच्चियों का नामांकन हो पाया। इसके बाद थोड़ा सुकून मिला। तभी अभिषेक भैया और मैं हलीमपुर से गौरीपुर गए लेकिन अभी तक वे बच्चे घर नहीं पहुंचे थे, जिनका नामांकन करवाना था, तब वहां के विद्यालय एम.एस गौरीपुर गए वहां जिन बच्चियों का नामांकन हुआ था, उनमें से कुछ बच्चियों का पूरी जानकारी मिल गई। इस तरह सफलता मिली और उम्मीद है कि आगे भी मिलती रहे।



Sunday, February 19, 2023

एडुलीडर आंचल ने समाज में बदलाव की रखी नींव

 हमारे एडुलीडर ना केवल बदलाव की नई कहानियां गढ़ रहे हैं बल्कि राह में आने वाले संघर्षों को भी कम करना सीख रहे हैं। आंचल ने हमारे साथ अपना अनुभव साझा किया है, वे लिखती हैं- 

मैं आंचल बैच 9 मुंगेर की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के क्लास रूम का अनुभव साझा करने जा रही हूं। 

मैं जब क्लास गई तो बच्चे मेडिटेशन कर रहे थे। गुड मॉर्निंग विश करने के बाद हमने क्लास स्टार्ट किया। पिछले कक्षा का रिवीजन और इतने दिनों से हमने मैथ में जो भी पढ़ा था, उन सभी का रिविजन करते हुए आगे की पढ़ाई शुरु की। बच्चों के संख्या को जानने और समझने में अच्छी समझ बन सकी। रिविजन करने के बाद अब बारी एक्टिविटी करने की थी।  

एक्टिविटी करने से बच्चों की बढ़ी समझ 

बच्चों को एक्टिविटी करके बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा था। सारे बच्चे समूह में अच्छे से कार्य कर रहे थे। उन्हें देख कर अच्छा लगा कि बच्चे समय में अच्छे से कार्य किए क्योंकि पहले बच्चे बहुत झगड़ा करते थे लेकिन अब बच्चे अच्छे से एक्टिविटी करते हैं। मैंने महसूस किया कि किसी भी चीज को अगर कलात्मक तरीके से समझाया जाए, तो वह बच्चों के लिए काफी आसान हो जाता है। 

अगले दिन के लिए हमने फूलों को पहचानने का पाठ निर्धारित किया है, और साथ ही बच्चों ने कहा कि वे ही अगले दिन मेडिटेशन कराना चाहिए। मुझे उनकी लगन देखकर काफी अच्छा लगा कि मेरी मेहनत अब रंग ला रही है। 






किरणः टीम के सहयोग और अपनी लगन के बल पर मैंने हासिल किया अपना लक्ष्य

हमारे एडुलीडर ना केवल बदलाव की नई कहानियां गढ़ रहे हैं बल्कि राह में आने वाले संघर्षों को भी कम करना सीख रहे हैं, जिसमें से एक उदाहरण- किरण कुमारी का आप सबके सामने प्रस्तुत है। वे लिखती हैं- 


मेरा नाम किरण कुमारी है। मैं महगामा पंचायत से एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। आज महगामा पंचायत की बच्चों के बारे में बातचीत कि तो कुछ ऐसे बच्चे ऐसे थे, जिसका नाम पहले से ही स्कूल में नामांकित था तो मैंने प्रिंसिपल से बातचीत कि तो उन्होंने कहा कि आप कौन हैं और कहा से आईं हैं, तो मैंने अपना परिचय देते हुए कहा कि मैं भी इसी पंचायत की रहने वाली हूं और बच्चों के नामांकन के सिलसिल में जानकारी प्राप्त करने आईं हूं। 

मेरे इतना कहने के बाद प्रिंसिपल सर ने थोड़ी-बहुत अन्य जानकारियां ली। मुझे लगा कि वे अपनी तरफ से पूरी तरह साफ होना चाहते हैं इसलिए मैंने भी धैर्यपूर्वक उन्हें सारी बातें बताईं। इसके बाद मैंने उनसे फिर नामांकन के सिलसिले में बात की, तो उन्होंने बताया कि ऐसे कई बच्चे गांव में हैं, जो स्कूल नहीं आते और कई बच्चों का नामांकन भी नहीं हुआ है। 

रजिस्टर से नोट की महत्वपूर्ण जानकारी 

इसके बाद मैंने उनसे रजिस्टर निकालने के लिए कहा ताकि वे मुझे उन बच्चियों की जानकारी दे सकें कि कितने बच्चे या बच्चियां स्कूल नहीं आते हैं।इसके बाद उन्होंने रजिस्टर से जानकारी निकाल कर मुझे दी और फिर मैंने पता और बाकी जरुरी चीजों को नोट कर लिया। 

इसके बाद मैं पंचायत में घूमने निकल गई। मेरे पास लगभग दस बच्चों के कांटेक्ट थे, जो स्कूल नहीं आ रहे थे इसलिए मैंने बारी-बारी से सबके यहां जाकर पूछा और अंततः अधिकांश अभिभावकों से बातचीत हुई और उन्होंने अपने बच्चों को स्कूल भेजने का आश्वासन दिया। इसके बाद मैंने उस दिन करीब चार बच्चियों का नामांकन भी करवाया। 

पहले मुझे थोड़ा डर लग रहा था लेकिन प्रिंसिपल सर के अच्छे व्यवहार और टीम के सहयोग से मैंने अपना काम अच्छे से किया। 

Thursday, February 16, 2023

स्कूल में शादी-ब्याह के कारण फाड़ दिया जाता था tlm लेकिन एडुलीडर ने निकाली तरकीब

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम


हमारे एडुलीडर ना केवल बदलाव की नई कहानियां गढ़ रहे हैं बल्कि राह में आने वाले संघर्षों को भी कम करना सीख रहे हैं, जिसमें से एक उदाहरण आप सबके सामने प्रस्तुत है। 

मैं स्मृति कुमारी बैच-9 मुंगेर की एडुलीडर हूं। मैं आज आपसे अपने कक्षा के बारे में कुछ साझा करने जा रही हूं। मैंने कक्षा को प्रिंट रिच बनाने के लिए जो tlm लगाए हैं, वो एक रस्सी की मदद से टांगने वाला लगाया है। ऐसे tlm  को बनाने के बहुत फायदे हैं। ऐसे tlm लगाने से आप बच्चों के समूह में tlm रख के बैठ कर समझा सकते हैं। आप जब जो पढ़ा रही हो तो उस थीम के tlm को ब्लैक बोर्ड के सामने टांग के पढ़ा सकते हैं फिर उसको उसके जगह पर रख सकते हैं। 

पहले फाड़ दिया जाता था tlm

जैसे कि गांव के स्कूल में अगर कोई कार्यक्रम होता है, जैसे- शादी-विवाह में बारात का रूकना और कोई अन्य कार्य  अगर स्कूल में होते हैं, तो कक्षा में लगे tlm को फाड़ देते हैं या फेंक देते हैं, तो मैंने सोचा कि अगर ऐसा tlm लगाया जाए, जो हम कार्यक्रम के पहले उतार के उसको सुरक्षित रख सकें फिर मैंने ये tlm बनाया। 

मैंने खुद सारा tlm कक्षा से हटा कर ऑफिस में सुरक्षित रख दिया क्योंकि आज स्कूल में बारात रुकने वाली है। ऐसे tlm बनाने का एक ये भी कारण था कि मेरे पहले जो एडुलीर्डस थीं, वहां उनको कक्षा में पढ़ाने के लिए कभी नीचे वाली कक्षा में तो कभी ऊपर वाले कक्षा में दिया जाता था, जिससे नीचे कक्षा में चिपका tlm वहां ही रह जाता था और बाकी बच्चे इससे सीखने से वंचित रह जाते थे इसलिए मैंने ऐसा tlm बनाने का सोचा। अगर कक्षा बदला भी जाए तो मैंने ये tlm दूसरी कक्षा में आसानी से ले जा सकूं।

 मेरे द्वारा बनाए गए ऐसे tlm यह ही जो मैं आप लोग के साथ साझा कर रहीं हूं। आप अगर ऐसे tlm बना कर लगाएं तो ये ज्यादा वक्त तक रह सकेगा। साथ ही अगर कोई कार्यक्रम स्कूल में होता है, तो tlm फाड़ दिया जाता हैं फिर दोबारा हमें बनाना पड़ता है, तो अब वे चीजें ऐसे शायद ठीक हो सकती हैं।  




प्रियंकाः जब बच्चे ने मुझसे कहा, "आप बहुत अच्छा पढ़ाती हैं"

एडुलीडर्स के अनुभवों की कड़ी में आज पढ़िए प्रियंका का अनुभव, जिसमें उन्होंने बताया है कि किस प्रकार एक बच्चे के जवाब ने उन्हें किया प्रोत्साहित.. 

मैं प्रियंका कुमारी बैच 9 की एडुलीडर हूं और मुंगेर की रहने वाली हूं। आज मैं अपना अनुभव साझा कर रही हूं। आज जब कक्षा मे गई तो देखी कि सभी बच्चे बहुत खुश थे। सभी बच्चे अपने काम को कर रहे थे। यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि सभी बच्चे अपने काम कर रहे हैं लेकिन एक बच्चा बिल्कुल चुप चाप बैठा था। सारे बच्चे उसे बार बार देख रहे थे और मैं भी सोच रही थी कि आखिर क्या हो गया? हमेशा बोलते रहने बाले बच्चा एकदम शांत है लेकिन ऐसा क्यों?  

जब मैंने उससे उसका हाल-चाल पूछने के लिए उसे अपने पास बुलाया फिर मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ दिलखुश, तुम इतने चुपचाप क्यों बैठे हो? इस पर उस बच्चे ने बताया कि उसकी तबीयत खराब है इसलिए वह चुपचाप बैठा है। 

बच्चे का जवाब सुनकर हुआ अचंभा 

मैंने उससे कहा कि अगर तबीयत सही नहीं लग रही है, तो मैं दवा मंगा देती हूं लेकिन उसने कहा कि उसने दवा ली है, फिर मैंने कहा कि आज आराम कर लेते बच्चे लेकिन उसने जो कहा उसके बाद मैं कुछ देर तक स्तब्ध रह गई। उसने कहा, “दीदी, मुझे पढ़ना है और आप बहुत अच्छा पढ़ाती हो इसलिए मैं पढ़कर ही घर जाऊंगा।”

सच बताऊं तो आज ऐसा लगा मानों मेरी मेहनत सफल हो गई हो क्योंकि एक बच्चे की पढ़ने के प्रति ऐसी जिज्ञासा और लगन बहुत बड़ी बात है। मुझे विश्वास है कि वह बच्चा अपने जीवन में जरुर अच्छा मुकाम हासिल कर सकेगा। 

किरणः "मेरे आने तक बच्चों ने किया इंतजार"

फोटो क्रेडिट- आई सक्षम 


एडुलीडर्स हर दिन एक नई ऊर्जा के साथ निकलते हैं लेकिन कभी-कभी कोई दिन चुनौतियों से भरा होता है, तो कभी दिन थोड़ा आसान होता है मगर चुनौतियां हर रोज होती है। इसी कड़ी में हमारी एडुलीडर श्रृष्टि कुमारी ने अपना एक अनुभव साझा किया है। वे लिखती हैं- 

“हैलो दोस्तों मैं बैच 7 की एडुलीडर किरण कुमारी हूं। मैं एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। आज जब मैं सेंटर पर गई, तो देखा कि सेंटर बंद था। इसके बाद मैंने बच्चों को चाभी लाने के लिए सहायिका दीदी के घर भेजा। बच्चे चाभी लेकर जब वापस आए, तब मैंने क्लास रुम खोला और उसे साफ किया।”

बच्चे ने शांति से किया इंतजार 

उसके बाद सहायिका दीदी आई और उन्होंने बाहर साफ सफाई की और उसके बाद वे चली गई क्योंकि उनके अनुसार उनका कोई जरुरी काम था इसलिए उनका जाना जरुरी था। इसके मैंने क्लास शुरू किया फिर सेविका दीदी आई कहा कि आज बच्चे शांत हैं। इससे पहले तो सभी बच्चे शोर करते रहते हैं लेकिन आज सारे बच्चे ध्यान से बातें सुन रहे हैं। उन्हें बहुत अचंभा लगा लेकिन बच्चों ने मेरी बातों को ध्यान से सुना और अच्छे से पढ़ाई की मगर मुझे थोड़ा बुरा लगा कि बच्चे ऐसे ही बाहर खड़े थे। हालांकि फिर वे अंदर चले गए।

उनके इस अनुभव से एक बात साफ झलकती है कि अब एडुलीडर्स के अंदर आत्मविश्वास भर रहा है कि वे अब ना केवल अपनी बात रख रहे हैं बल्कि अपने कार्यों के प्रति भी आत्मविश्वासी हो रहे हैं। 



 

Wednesday, February 15, 2023

तस्वीरें बोलती हैं, हमारे एडुलीडर द्वारा बदलाव की तस्वीरें

आप सब जानते हैं कि संवाद का एक बेहतर तरीका बिना बोले भी हो सकता है। जैसे- केवल किसी की आंखों को पढ़ना या तस्वीर के माध्यम से अपनी बातें रखना। 

यहां हम आपके साथ कुछ तस्वीरें साझा करने जा रहे हैं, जिसमें केवल एक वाक्य ही होगा लेकिन वे तस्वीरें स्वयं आपसे संवाद करेंगी। इन सारे तस्वीरों के अधिकार आई-सक्षम के पास सुरक्षित हैं। 


1. 

चित्र के माध्यम से ग्रुप मे पढ़ते हुए बच्चे
2. 
सब्जी का नाम पढ़ाते हुई बच्ची
3. 
समूह बनाकर पढ़ते हुए बच्चे 
4. 
खेलते हुए बच्चे 

5. 
मेडिटेशन करते हुए बच्चे 

इन तस्वीरों से आप एक बात का अंदाजा तो लगा सकते हैं कि हमारे एडुलीडर की मेहनत और धैर्य का ही परिणाम है कि क्लासरुम की सूरत बदल पाई है और बच्चे पूरे उत्साह के साथ पढ़ रहे हैं। 

एक दूसरे से सीखने और सीखाने के भाव का सुंदर अनुभव है आंचल की कहानी







एडुलीडर आंंचल ने अपना एक बेहतर और बेहद सकारात्मक अनुभव साझा किया है, जिसमें वे बता रही हैं कि किस प्रकार उन्होंने बच्चों से सीखा और बच्चों ने भी उनसे सीखा। परस्पर सीखने और सीखाने के भाव के बहुत सुंदर चित्रण है।  

मैं आंचल बैच 9 (मुंगेर) की एडुलीडर हूं। मैं आप लोगों के साथ आज के क्लास रूम का  अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं जैसे ही क्लास गई, तो देखा कि दो बच्चे खुद से मेडिटेशन करवा रहे थे। इन दो बच्चों को मैंने नहीं था कि वे मेडिटेशन करवाएं लेकिन वे बड़े ही उत्साह के साथ मेडिटेशन करा रहे थे। 

मैं आपको बताऊं कि इससे पहले मैंं जब भी पूछती थी कि कौन मेडिटेशन कराएगा, तो सारे बच्चे हम करेंगे- हम करेंगे पहले करके शोर करने लगते थे और कभी-कभी तो आपस में झगड़ा भी करने लगते थे। 

मुझे आज का दृश्य देखकर बहुत हैरानी हुई कि आज ऐसा कैसे हुआ? मैंने महसूस किया कि रोज-रोज बच्चों के साथ बातचीत करने और उन्हें प्यार एवं धैर्य के साथ समझाने का फायदा हुआ कि वे आज क्लास में हल्ला भी नहीं कर रहे थे और शांति से अपने जगह बैठकर मेडिटेशन कर रहे थे। साथ ही दो बच्चे अच्छे से मेडिटेशन करवा रहे थे। 

बच्चों ने सुनाया पिछला पाठ

मेडिटेशन के बाद जैसे ही उन्होंने मुझे देखा हमने देखा उन्होंने तुरंत मुझे गुड मॉर्निंग विश किया। वहीं दूसरा बच्चा पीछे जाकर चप्पलों को व्यवस्थित करने करने लगा। साथ ही बाकी बच्चे क्लासरुम को व्यवस्थित करने में लगे हुए थे। मुझे ये बदलाव देख कर अच्छा लगा कि सारे बच्चे अपना काम भी कर रहे थे। 


फोटो क्रेडिट- आई सक्षम

इसके बाद उन्होंने खुद से कहा, दीदी आपने हमें फ्लावर के बारे में बताया था ना। हम सबको सब याद है। आज आप हम सबसे पूछिए। इसके बाद मैंने बच्चों से पिछले पाठ के बारे में पूछा और मुझे बताते हुए खुशी हो रही है कि उन्होंने बिल्कुल सटीक और सही-सही जवाब दिए। इसके बाद मैंने उस दिन का पाठ पढ़ाया और बच्चों ने भी मुझे कुछ-कुछ नयी चीजें सिखाई, जैसे- कागज से चिड़िया बनाना इत्यादि। 

छुट्टी होने के बाद मैं वापस आ गई लेकिन अब मुझे अगले दिन का बेसब्री से इंतजार है कि मैं जल्द बच्चों से ममिलने जाऊं और उनके साथ समय बिताऊं क्योंकि देखा जाए, तो हम दोनों एक दूसरे से सीख रहे हैं। मेरे लिए बच्चों के अंदर तरक्की देखना बहुत सूकुन दायक है क्योंकि उन्होंने मेरे अंदर भी ऊर्जा का स्तर बढ़ा दिया है कि मैं भी रोज उनसे पिछला पाठ पूछूं। 

उम्मीद है कि बच्चे इसी तरह आगे बढ़ते रहेंगे और क्लासरुम की सीख को अपने जीवन में भी अपनाएंगे। 


श्रृष्टिः अभिभावकों के संवाद और मैडम के सहयोग से आसान हुआ काम

एडुलीडर्स हर दिन एक नई ऊर्जा के साथ निकलते हैं लेकिन कभी-कभी कोई दिन चुनौतियों से भरा होता है, तो कभी दिन थोड़ा आसान होता है मगर चुनौतियां हर रोज होती है। इसी कड़ी में हमारी एडुलीडर श्रृष्टि कुमारी ने अपना एक अनुभव साझा किया है।

मेरा नाम श्रृष्टि कुमारी हैं और मैं मुंगेर की रहने वाली हूं। आज मैं आप सबके साथ एक छोटा सा अनुभव साझा कर रही हूं। आज मैं इंद्रुख की बच्चियों के बारे में फॉलोअप लेने गई थी इसलिए मैंने सबसे पहले स्कूल जाकर देखने का सोचा।  

मैं सबसे पहले गांव के स्कूल गई और सोचा कि पहले मैं प्रधानाध्याप से बात कर लेती हूं और मेरी मुलाकात उस विद्यालय की प्रधानाध्यापिका से हुई और मैंने उन्हें अपने आने का पूरा कारण बताया। 

मुझे मिला मैडम का सहयोग 

मैंने उनसे कहा, "मैडम, मैं यहां बच्चियों की जानकारी लेने आई हूं।" मेरे इतना कहने पर वे झट से तैयार हो गई और मैंने सबसे पहले उन बच्चियों का फॉलोअप लिया कि वे स्कूल आ तो रही हैं ना इस पर मुझे पता चला कि वे नियम से रोज स्कूल आ रही हैं। इसके बाद मैंने मैडम से अन्य बच्चियों के नामांकन के लिए बातें की। मुझे बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि मैडम ने मुझे बहुत अच्छे से सुना और समझा भी और इस तरह से मुझे उनसे बहुत बड़ी मदद मिल गई क्योंकि वे भी काफी उत्साहित नजर आ रही थीं। 

मैडम ने खुद ही बताना शुरु किया कि किन-किन बच्चों का नामांकन विद्यालय में है और किन बच्चों का नामांकन कराने की जरुरत है। देखा जाए, तो उनकी इस जानकारी से मुझे काफी सहयोग मिला और मेरा काम थोड़ा आसान हो गया।

अभिभावकों के साथ संवाद स्थापित 

इसके बाद मैंने बच्चों और उनके अभिभावकों के साथ समय बिताया और उनके बीच बैठकर उनकी समस्याओं को सुना ताकि एक बेहतर संवाद की कड़ी स्थापित हो सके। बातचीत में पता चला कि वे अपनी कुछ बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते लेकिन मैंने उन्हें समझाया और मैडम के बारे में भी बतायास तब उन्होंने हामी भरी और अगले दिन से अपनी बच्चियों और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए राजी हो गए। 

इन सब बातों को देखा जाए, तो मेरा दिन काफी अच्छा बीता क्योंकि एक ओर फॉलोअप का रिस्पांस भी मुझे अच्छा मिला और अभिभावकों से बात करने के दौरान भी कई चीजें सामने निकलकर आईं। 


Tuesday, February 14, 2023

उषाः "जब अभिभावकों ने कहा कि आज आप नहीं पढ़ा पाइएगा"

एडुलीडर्स हर दिन एक नई ऊर्जा के साथ निकलते हैं लेकिन कभी-कभी कोई दिन चुनौतियों से भरा होता है, तो कभी दिन थोड़ा आसान होता है मगर चुनौतियां हर रोज होती है। इसी कड़ी में हमारी एडुलीडर उषा ने अपना एक अनुभव साझा किया है।
मैं उषा, बैच -7 की एडुलीडर हूं। आज मैं आप सभी के साथ एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं, जिसमें मैंने अपने राहों में आने वाली कुछ चुनौतियों को लिखा है। आज जब मैं अपने सेंटर पर पढ़ाने गई तो मैंने देखा कि वहां डीजे बज रहा था। डीजे की आवाज बहुत तेज थी, जिस कारण आसपास की आवाज भी अच्छे से नहीं आ रही थी। डीजे की आवाज से कुछ दूरी बनाने के बाद मैंने बच्चों को बुलाया और उनसे पूछा कि यहां पर डीजे क्यों बजाया जा रहा है, मेरे इस सवाल पर उन बच्चों ने बताया कि वहां श्राद्ध का भोज है, जिस कारण डीजे बजाया जा रहा है। हालांकि यह सुनने के बाद मुझे थोड़ा अचंभा लगा लेकिन फिर मैं अपने काम में लग गई और बच्चों को पढ़ने के लिए कहा। लोग शराब के नशे में थे मैंने बच्चों को पढ़ने के लिए बुलाया लेकिन एक भी बच्चे नहीं आए। वहीं बड़े-बुर्जुग लोगों ने भी शराब पी रखी थी इसलिए वे नाच रहे थे। कुल मिलाकर वहां की स्थिति बिल्कुल सामान्य नहीं थी और शायद संभलने वाली भी नहीं थी। वहीं दूसरी ओर आंगनबाड़ी के बच्चों को भी अभिभावक पढ़ने के लिए बोल रहे थे और मैं भी अपने तरफ से बार-बार बोल रही थी लेकिन बच्चे ना अभिभावक की बात नहीं मान रहे थे और ना मेरी बात सुन रहे थे। मैं आपको बता दूं कि मैं उस वक्त पिछड़े इलाके में थे। कुछ समय बाद अभिभावकों ने कहा, “आज आप नहीं पढ़ा पाइएगा इसलिए घर चले जाइए।” उनकी बातों से सहमति रखते हुए मैं घर चली गई लेकिन मेरे लिए ये एक चुनौती थी। हमने अक्सर अच्छी बातों को साझा किया है लेकिन हमारी इस बार की ट्रेनिंग में हमें बताया गया था कि आप सिर्फ अच्छी बातें ही नहीं बल्कि अपने चैलेंज को भी शेयर कर सकती हैं इसलिए मैंने अपनी चुनौती को आपके साथ साझा किया।

जमुई के एडुलीडर द्वारा साझा किए गए बदलाव की दो तस्वीरें

हमारे एडुलीडर हर रोज अपने कर्तव्यों की ओर अग्रसर हैं, जहां वे अपनी हर कोशिश कर रहे हैं ताकि बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने में आसानी हो और वे बिल्कुल भी बोर ना हो। साथ ही देखा जाए, तो ये एक चुनौती ही है कि हर रोज कुछ नया लेकर आना, कुछ नयी तरकीब लेकर आना ताकि बच्चों का मन पढ़ाई में लगा रहे और वे नया सीख सकें। 

इस कड़ी में हम आपके साथ जमुई, बिहार से दो तस्वीरें साझा करना चाहते हैं, जो आपको हमारे एडुलीडर के बढ़ते कदम और उससे हो रहे बदलावों से अवगत कराएगी। 


 पहली तस्वीर सत्यम स्वाती (जमुई) बैच- 9 की एडुलीडर द्वारा साझा की गई है, जिसमें वे लिखती हैं, 



“आज मैं आपने क्लास रूम में हुई गतिविधि को साझा कर रही हूं। आज हमने कुछ बच्चों को TLM की मदद से कुछ शब्द बनाने के लिए दिए। उन अक्षरों से बच्चों ने कुछ इस तरह से शब्द बनाने की कोशिश की है।” 

वहीं दूसरी तस्वीर मिसा भारती (जमुई) बैच 9 की एडुलीडर द्वारा साझा की गई है। वे लिखती हैं,




“आज मैं आप लोगों के साथ अपने क्लासरुम का एक अनुभव साझा करने जा रही हूं। जब आज मैं स्कूल गई तो सबसे पहले सब बच्चों ने गुड मॉर्निंग बोला। उसके बाद एक बच्चे ने स्वयं आगे आकर कहा कि दीदी आज का मेडिटेशन हम खुद करवाएंगे। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा और महसूस हुआ कि मेरी मेहनत रंग ला रही है।” 

 इन तस्वीरों और इनके पीछे की कहानियों को साझा करने का मकसद केवल इतना है कि एडुलीडर के प्रयासों का बच्चों के मन और मस्तिष्क पर पड़ रहे सकारात्मक भावों को दर्शाना। साथ ही चुनौतियों को अपने अनुरुप मोड़कर उनसे लड़ते हुए आगे बढ़ना भी शामिल है।

फोटो क्रेडिट्स- आई-सक्षम

Monday, February 13, 2023

भारत की पहली स्वर कोकिलाः सरोजनी नायडु के जन्मदिन पर विशेष


फोटो क्रेडिट- गुगल 


प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू की जन्मदिन पर मनाया जाता है। सरोजिनी नायडू से राष्ट्रीय महिला दिवस का गहरा नाता है। वे भारत की प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी व कवयित्री हैं। उन्हें भारत कोकिला यानी नाइटिंगेल ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। इतना ही नहीं वे आजाद भारत की पहली महिला राज्यपाल भी रही हैं। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देश को आजादी दिलाने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। वे हर महिला के लिए प्रेरणापुंज हैं। 

जन्म 

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को वर्तमान तेलंगाना राज्य के हैदराबाद शहर में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय थे जो एक बंगाली ब्राह्मण थे। चट्टोपाध्याय हैदराबाद कॉलेज के प्रिंसिपल भी थे। नायडू की माता वरदा सुन्दरी देवी थी जो बंगाली भाषा में कविताएँ लिखती थी। वे बचपन से बुद्धिमान थीं। नायडू अपने आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। उनके दो छोटे भाई वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय तथा हरिंद्रनाथ थे। विरेंद्रनाथ एक क्रांतिकारी थे जबकि हरिंद्रनाथ एक कवि व अभिनेता थे।

शिक्षा

साल 1891 में 12 वर्ष की आयु में सरोजनी नायडू ने दसवीं पास किया। साल 1895 में वे उच्चत्तर शिक्षा के लिए इंग्लैंड गई। इंग्लैंड में पढ़ने के लिए उन्हें एग्जाम चैरिटेबल ट्रस्ट के द्वारा स्कॉलरशिप दी गई। इंग्लैंड में पहले किंग्स कॉलेज और उसके बाद गिर्टन कॉलेज में दाखिल हुई। इंग्लैंड में 3 साल पढ़ाई करने के बाद वे साल 1898 में वापस भारत आ गई। 

वैवाहिक जीवन 


फोटो क्रेडिट- गुगल

साल 1898 में सरोजनी नायडू हैदराबाद वापस लौट आई और उसी साल उन्होंने गोविंदाराजुलू नायडू से शादी कर ली। गोविंदाराजुलू एक भौतिक विद थे जो नायडू परिवार से आते थे और सरोजिनी चट्टोपाध्याय परिवार से आती थी। उन दोनों की इंटर-कास्ट मतलब अंतर-जातिय शादी हुई थी। उस समय में अंतर-जातिय विवाह होना बहुत बड़ी बात थी। तत्कालीन समय के रीति-रिवाजों के मुताबिक ऐसे विवाह संभव नहीं हुआ करते थे।

राजनीतिक जीवन

वर्ष 1904 की शुरुआत में सरोजनी नायडू ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी ली। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों एवं शिक्षा के प्रति लोगों को उजागर किया। वर्ष 1914 में वे महात्मा गांधी से मिली, जिनको नायडू ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के सशक्तिकरण के लिए श्रेय दिया।

फोटो क्रेडिट- गुगल


वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दूसरी महिला प्रेसिडेंट बनी। साल 1917 में उन्होंने मुथुलक्ष्मी रेड्डी के साथ मिलकर भारतीय महिला संगठन की स्थापना की। उन्होंने लखनऊ पैक्ट का समर्थन किया। 

लेखन कार्य 

12 साल की आयु में ही सरोजनी नायडू ने लेखन का कार्य शुरू किया। उनकी कविताएं इंग्लिश भाषा में लिखी गई हैं। साल 1905 में उनकी पहली पुस्तक द गोल्डन थ्रेसोल्ड को लंदन में प्रकाशित किया गया था। उनकी दूसरी कविताओं की पुस्तक द बर्ड ऑफ़ टाइम को 1912 में प्रकाशित किया गया था। 

उनकी कविताओं की तीसरी पुस्तक साल 1917 में प्रकाशित की गई थी। इस पुस्तक का नाम द ब्रोकन विंग था जो मोहम्मद अली जिन्ना को समर्पित थी। 

महिलाओं को जागृत करने के लिए उन्होंने साल 1915 में अवैक कविता की रचना की। वहीं साल 1928 में उनकी कविताओं को न्यूयॉर्क में प्रकाशित किया गया। 

सर्वप्रथम साल 1918 में, उसके बाद साल 1919 में और उसके बाद साल 1925 में उनके भाषण को पुनः प्रकाशित करवाया गया।

निधन 

2 मार्च 1949 को लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस में सरोजिनी नायडू की हृदय-आघात (Heart-attack) के कारण मृत्यु हो गई। उस समय में वह उत्तर प्रदेश राज्य की राज्यपाल थी।


सीमाः बच्चों के नामांकन में प्रिंसिपल एवं शिक्षकों ने भी किया सहयोग





मैं सीमा, गया जिले की रहने वाली हूं और आज मैं आप सबके साथ अपने फिल्ड विजिट का एक अनुभव साझा करने जा रही हूं। मैं आमस प्रखंड के गांव बड़की सांव में नामांकन के लिए गई थी। जहां सबसे पहले तो मैंने अभिभावक एवं बच्चों से मिलने की कोशिश की लेकिन अफसोस मेरी मुलाकात किसी से ना हो सकती। वहीं कुछ अभिभावक मिले लेकिन उनके बच्चे पहले से ही स्कूल में नामित थे। हालांकि मेरे लिए ये एक खुशी की बात थी कि अभिभावकों ने बच्चों का नामांकन स्कूल में कराया हुआ है और बच्चे स्कूल जाते हैं। 

इसके बाद मैंने सोचा कि क्यों न स्कूल में पता कर इन सारे बच्चों का सीरियल नंबर ले लूं ताकि जो बच्चे कम आते हैं, नहीं आते हैं आदि सारी जानकारियां प्रिंसिपल सर से मिल जाएगी। मैं जल्दी से स्कूल गई तो वहां प्रिंसिपल सर से बातचीत के दौरान मैंने अपने आने का कारण बताया कि जिन बच्चों का नामांकन है, उन बच्चों का सीरियल नंबर लेना है और जिन बच्चों का नामांकन नहीं है, उन बच्चों का नामांकन करवाना है। 


प्रिंसिपल और शिक्षकों का मिला सहयोग 

इस पर प्रिंसिपल सर ने हामी भरी। इसके बाद सर ने कम से कम सात आठ रजिस्टर निकाले और बताते गए फिर मैं लिखतीं गई। यहां तक कि सर ने भी मुझे ढूंढ़ने के लिए कहा तो मैं खुद से ढूंढकर लिखीं और जो बच्चे का नामांकन नहीं था, उस बच्चे का नामांकन करवाई।

इस प्रकार से सांव कला में दो बच्चे का नामांकन कराया गया। उन दो बच्चों के नाम इस प्रकार हैं- एक का नाम मधु कुमारी है, जिनका 8वीं क्लास में नामांकन हुआ है और दूसरे बच्चे का नाम शनी कुमारी है, जिनका 6ठीं क्लास में नामांकन हुआ है।

साथ ही स्कूल में मौजूद शिक्षकों ने भी मुझसे काफी अच्छे से बातचीत की और यहां तक की प्रिंसिपल सर ने मुझे भोजन के लिए भी पूछा लेकिन मैंने उनसे कहा, आपने मेरे लिए इतना कीमती वक्त निकाला, इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और इसके बाद मैं आगे अपने दूसरे गंतव्य की ओर निकल पड़ी। 




सीमा, गया बिहार की रहने वाली हैं और इगनु से अपनी स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। 


अंजनाः प्रत्येक बच्ची को शिक्षा का अधिकार दिलाना है लक्ष्य



मैं अंजना वर्मा, गया जिले की रहने वाली हूं। मेरा कार्य फिल्ड पर जाना और शिक्षा से विहीन बच्चों को स्कूल तक पहुंचाना है और अभिभावकों को शिक्षा के प्रति जागरुक करने का है। हालांकि फिल्ड पर कार्य करने के दौरान कई सारी ऐसी चीजें घटित होती हैं, जो सबके सामने आना जरुरी है। जैसे- फिल्ड में काम करते वक्त चुनौतियों का आना, अभिभावकों से बातचीत करना और उनके साथ तालमेल बिठाना, बच्चों को हमेशा प्रोत्साहित करते रहना ताकि शिक्षा की लौ जलती रहे। आज मैं आप सबके सामने अपना एक और अनुभव लेकर उपस्थित हूं। 

बच्चों के नामांकन के सिलसिले में मैं आमस प्रखंड के सावकाला गांव गई थी लेकिन वहां मुझे एक भी अभिभावक नहीं मिले। हालांकि कुछ अभिभावक मौजूद थे, जिनसे मैंने बातचीत करने की कोशिश की और नामांकन के बारे में पूछा। इस बीच कुछ अभिभावकों ने बताया कि वे अपने बेटियों को स्कूल भेज रहे हैं और उनकी बातों से सहमत होकर मैं अपने गंतव्य की ओर बढ़ गई। 

प्रिंसिपल सर ने किया काफी सहयोग 

अब मेरा गंतव्य स्कूल था, जहां मुझे प्रिंसिपल से बात करके यह सुनिश्चित करना था कि क्या वाकई मैं क्लास में बच्चों की उपस्थिति रहती है या नहीं। वहां पहुंचने पर प्रिंसिपल सर ने बताया कि कक्षा में कई बच्चे नामांकित हैं लेकिन फिर भी उपस्थिति नहीं रहती है और अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। 

इसके बाद मैंने उनसे सारी बातों को समझा और विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की और उसके बाद उन बच्चों का पूरा पता आदि नोट किया ताकि मैं उन बच्चों से मिल सकूं और अभिभावकों से भी बातचीत कर सकूं। प्रिंसिपल सर ने भी इसमें मेरा काफी सहयोग किया सारी जानकारियां मुझे तुरंत रजिस्टर से निकाल कर दे दी। इसके बाद मैंने उक्त पते पर जाकर सारे अभिभावकों से मिली और उन्हें बच्चे को स्कूल भेजने के लिए जागरुक किया। 

इतना ही नहीं बल्कि ऐसे कई बच्चों के बारे में भी जानकारी मिली, जो अभी तक नामांकित भी नहीं हुई थे फिर मैंने अभिभावकों को समझाया और बच्चों को शिक्षा की अहमियत के बारे में बताया, फिर वे सभी स्कूल जाने और नामांकन कराने के लिए तैयार हो गए। देखा जाए, तो इस कार्य में चुनौतियां तो हैं, मगर एक सुकून भी है कि मेरी मेहनत रंग ला रही है और बच्चे शिक्षित हो रहे हैं। उम्मीद है कि जब अगली बार उन सबसे मिलने जाऊं, तो वे मुझे स्कूल में ही दिखाई दें।




        



      

Friday, February 10, 2023

सीमाः साप्ताहिक सेशन के जरिए मैंने पहचानी अपनी ताकत



आशा करती हूं कि आप सभी कुशल होंगे। मुझे दिनांक 9/2/2023 दिन गुरुवार को समय 10 बजे से साप्ताहिक आठवां सेशन करने का मौका मिला। उस सेशन को मैंने बहुत इंज्वाय किया और वहां से बहुत कुछ सीखने का मौका भी मिला, जिसका कुछ अंश मैं आपके साथ साझा करने जा रही हूं।



मैं सामाजिक, भावनात्मक, बुद्धि के बारे में एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। इस सेशन की शुरुआत एक माइंडफुल मेडिटेशन के साथ की गई। जिसमें Rainbow walk की पहचान बनीं। जैसे कि जो वस्तु के बारे में बताया जा रहा था, उसका रंग आसानी से पहचान पा रहे थे। उस वस्तु का नाम इस प्रकार से साबित किया गया है। जैसे -  पेड़, केला, अनार, तोता, कबूतर इत्यादि। 


अन्य महिलाओं की आवाज बनना भी जरूरी 


इसके बाद (voice and choice for women ) अर्थात् मैं स्वयं एवं दूसरे महिलाओं के पसंद की आवाज उठाने के लिए कितना इस्तेमाल कर पा रही हूं। साथ ही इमोशन मीटर की भी अच्छी समझ बन पाई। जैसे -पिछले सप्ताह हम किस इमोशन मीटर पर थे इसके बारे में सभी साथियों के साथ शेयर कर मुझे काफी अच्छा लगा।



हमारे अंदर कितनी उर्जा और कितना आनंद था, इसके बारे में मुझे एहसास हुआ कि मैं किस समय कितनी उर्जा और किस समय कितना आनंद महसूस कर सकती हूं। इसके बारे में जानकर मुझे काफी खुशी मिली। इसके बाद एक बहुत मजेदार एक्टिविटी की गई। उस एक्टिविटी को सभी साथियों ने मिलकर काफी एनर्जी के साथ कर सके। इसके बाद कुछ समय खान अकादमी और डुओलिंगो पर भी अभ्यास कराया गया, जिससे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला।



इससे स्पष्ट यह होता है कि सभी साथियों ने पूरे सेशन को काफी अच्छे तरीके से अपने एनर्जी लेवल के साथ सीखने के लिए अपने ध्यान केंद्रित कर पाए इसलिए मैं सभी साथियों को समय से सेशन में शामिल होकर अपनी-अपनी भूमिका निभाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद बोलना चाहूंगी।





जहां अभिभावकों के लिए बच्चियां हैं घरेलू काम करवाने का साधन लेकिन मेरी पहल से हुआ बदलाव


आज मैं (संजू कुमारी) एक छोटा सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आज मैं नामांकन के लिए हरिदासपुर, गया जिला के आमस प्रखंड के कलवन पंचायत गयी थी। जब मैं वहां गयी तो देखा कि वहां के लोग सभी ईंट-भट्टा का काम करते हैं और यही उनकी जीविका का साधन है। संभवत वहां के अधिकांश लोग असंगठित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी आय कभी निश्चित नहीं होती। हालांकि मैंने सोचा था कि बच्चे कम से कम पढ़ रहे होंगे लेकिन वहां देखा कि हकीकत बिल्कुल विपरीत थी। मैं जब वहां के बच्चों से मिली, तो मेरी उत्सुकता यह जानना थी कि वे लोग पढ़ाई को लेकर कितने उत्साहित हैं? जब उन बच्चों से बात हुई, तब सामने आया कि वे पढ़ना चाहते हैं। उन्होंने मुझसे कहा, "हां हम सब पढ़ने के लिए तैयार हैं मगर मम्मी पापा से बात किजिगा तब ही।" इसके बाद मैंने कहा, "ठीक है। मैं बात करूंगी।" इसके बाद मैंने पूछा कि आप लोग के मम्मी-पापा कब घर पर रहते हैं? मेरे इस सवाल पर उन बच्चों ने बताया, सोमवार को हफ्ता उठता है और उस दिन सब घर पर रहते हैं। यही कारण था कि अधिकांश लोग अपने घरों पर नहीं थे इसलिए मैंने उस दिन ही इंतजार करने का सोचा कि सबसे मिलकर ही जाउंगी। कोमल कंधों पर घर की जिम्मेदारी शाम को जब वे वापस आए, तो मैंने उनसे उनकी बच्चियों के नामांकन और पढ़ाई संबंधित सवाल किए और बातचीत करने की कोशिश की। जब मैंने उनसे कहा कि आप क्यों अपनी बेटियों का नामांकन नहीं कराते, तो मेरे इस सवाल पर उन्होंने कहा, “अगर ये घर पर नहीं रहेगी, तो घर का काम कौन करेगा और अगर पढ़ने जाएगी, तो घर कौन देखेगा?” इसके बाद मैंने उन्हें सुझाव दिया कि खाना तो सवेरे 8 बजे ही बनता है ना, तो बच्चियों को स्कूल भेजने में क्या दिक्कत है और बात खाना बनाने की है, तो ये बेटियां सुबह खाना बना दिया करेंगी। मेरे इस सुझाव पर उन्होंने कुछ देर विचार-विमर्श किया और अंत में तैयार हो गए फिर मैंने उन बच्चियों का नामांकन पास के स्कूल में कराया। जहां मुझे पता चला कि नामांकन की स्थिति बहुत दयनीय है क्योंकि अभिभावकों जागरुक नहीं हैं और वे बच्चों से घर की रखवाली और घर का काम करवाते हैं। हालांकि मैंने अपना कर्तव्य पूरा करते हुए बच्चियों को नामांकन और पढ़ाई के लिए प्रेरित किया और उम्मीद है कि वे अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी। 



Thursday, February 9, 2023

नामांकन कराने जाने पर विद्यालय प्रबंधक ने लगाए हम पर इल्जाम

 

नामांकन कराते बच्चे




आज मैं (संजू कुमारी) आप सभी के साथ एक छोटा-सा अनुभव साझा करने जा रही हूं। आमस प्रखंड के महुआवां गांव में आज मैं कुछ बच्चे का नामांकन करवाने के लिए गई, जिसमें से कुछ बच्चों का नामांकन पहले ही हो गया था। इस कारण बाकी दो बच्चों का नामांकन किया गया। नामांकन को लेकर हमें हर रोज नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है लेकिन हम अपने कर्तव्य पथ पर अडिग हैं और रुकेंगे नहीं क्योंकि हर बच्ची को शिक्षित कराना हमारा कर्तव्य है।


जब मैं विद्यालय में नामांकन के लिए पहुंचे, तो वहां भी चुनौतियां मेरी राहें देख रही थी। वहां पहुंचे तो बताया गया कि आज शिक्षक के अभाव के कारण एस. आर नंबर नहीं दे पाएंगे। साथ ही हमें कहा गया कि आप सभी ऐसे बीच-बीच में आते रहिएगा तब अब एक भी बच्चे का नामांकन नहीं लेंगे। सिर्फ आज भर ले रहे हैं क्योंकि जब लिखकर दे दिए हैं कि अब हमारे पास एक भी अनामांकित एवं ड्राप आउट बच्चे नहीं हैं, तो आप कहां से ऐसे अनामांकित एवं ड्राप आउट बच्चे ढूंढकर ला रहे हैं? और इसके पैसे कौन देता है? मुझसे जब ऐसे सवाल पूछे गए, तब मुझे बहुत बुरा तो लगा लेकिन मैं अपने निश्चिय को लेकर दृढ़ थी।  


मैंने चुप रहना जरूरी समझा 


मैंने इस विषय पर ज्यादा कुछ बोलने से परहेज किया क्योंकि मुझे ज्यादा उलझनें कि जरूरत ही नहीं है। मुझे तो अपना काम करना है। मुझे पता है कि ऐसी कितने चुनौतियां हमारे साथ आते रहेंगी। इस प्रकार से मुझे तो हर चुनौतियों का पार करते हुए अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए विशेष रूप तैयार रहना है और ध्यान भी रखना है ताकि एक भी बच्चे अनामांकित एवं ड्राप आउट न रह जाएं। 


इसके बाद मैं हमजापुर में जाकर अभिभावकों को नामांकन के लिए प्रेरित की। इस पर अभिभावकों ने कहा, क्या आप सभी नामांकन करवाइएगा तभी मेरे बच्चे का नामांकन होगा? हम खुद से नामांकन कराएंगे?  हमें अभी भी अनेकों प्रकार की परेशानियां का सामना करना पड़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि आप क्यों इतना नामांकन के लिए प्रेरित कर रहे हैं? आपको क्या लगता है कि हम खुद नामांकन नहीं करवा पाएंगे? 

 

मेरा मानना है कि हर किसी को अपनी मेहनत पर ध्यान देना चाहिए और चुनौतियों का सामना करना चाहिए-

क्योंकि चौंक जाएंगे मेरी उड़ान देखकर, 

ऐसे मैं अपना जरिया बदल दूंगी,

जो मुझे नाकारा समझते हैं एक दिन,

मैं उन सब का नजरिया बदल दूंगी।


बच्चियों की शिक्षा के लिए अभिभावक हैं तैयार लेकिन रस्ता रोके खड़ा है पहाड़

विद्यालय जाती लड़कियां



आज मैं आमस प्रखंड में मनझौलियां गांव के टोला धूपनगर में नामांकन के लिए गई थी लेकिन वहां मुझे अद्भुत दृश्य देखने को मिला क्योंकि मैंने गांव का परिदृश्य नहीं देखा था इसलिए गंवई अंदाज से अपरिचित थी। जैसे- वहां के लोग अपना जीवनयापन किस प्रकार करते हैं? 


हालांकि गांव की स्थिति देखकर मुझे अफसोस हुआ क्योंकि वहां की स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, जैसा हम तस्वीरों में देखा करते हैं। सच बताऊं तो वहां जाने के बाद मुझे हकीकत का अंदाजा हुआ। जैसे- वहां कोई यातायात का साधन उपलब्ध नहीं था। चुंकि मुझे धूपनगर गांव तक पहुंचना था इसलिए मुझे बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ा। साथ ही उस गांव की दूरी भी बहुत है और दूरी के साथ- साथ उस धूपनगर गांव में जाने के लिए तीन पहाड़, भयानक जंगल पार करना पड़ता है। 


पहाड़ और जंगलों ने रोका रास्ता 


इस कारण उस गांव तक पहुंचने के लिए पहाड़ पर कैसे गाड़ी चढ़ सकतीं हैं, इसलिए हमलोगों ने 13 किलोमीटर की यात्रा पैदल ही पूरी की, जिसमें पहाड़ और जंगल पार करके हम धूपनगर गांव पहुंचे। यह यात्रा काफी थका देने वाली थी लेकिन अपने निर्णय और अपनी प्रतिज्ञा के प्रति हम अडिग थे इसलिए पहुंचते ही हमने अभिभावकों से बातचीत करने का सिलसिला शुरू कर दिया और अभिभावकों को प्रेरित करने की कोशिश की कि वे अपने बच्चों को विद्यालय जरूर भेजें। 


हमारे लिए ये बहुत खुशी की बात थी कि वे सारे अभिभावक तैयार हो गए कि वे अपने बच्चियों को पढ़ाएंगे लेकिन वे सभी पहाड़ी इलाका और घना जंगल होने के कारण बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। 


बच्चियों की सुरक्षा अभिभावकों की चिंता 


साथ ही वहां विद्यालय तो है लेकिन पांचवीं कक्षा तक ही सीमित है इसलिए वहां के सभी बच्चे पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ पाते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि वे अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते या बच्चे पढ़ना नहीं चाहते मगर बुनियादी सुविधाएं ही नहीं है, जिस कारण चाहकर भी पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती। 


अभिभावकों का कहना है कि अगर आप लोग नामांकन करवाना ही चाहते हैं, तो यहां जितनी भी पांच से सात बच्चियां हैं, उन सभी का नामांकन एक साथ कस्तूरबा में करवा दीजिए। ऐसे तो कोई नहीं विद्यालय जा सकती है। 


मेरा मानना है कि इस स्थिति को देखते हुए विचार-विमर्श करने के बाद ही निर्णय लेने की जरुरत है इसलिए मैं किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। हालांकि विद्यालयों का होना बेहद जरुरी है क्योंकि शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षित होना हर बच्चे का अधिकार है इसलिए कुछ कदम बढ़ाने की जरुरत है ताकि बच्चियां शिक्षित हो सकें।