पहुँचते ही नजरें ढूंढ रही थीं उन बच्चियों को, जिनसे मैंने कहा था कि “मैं खैरा भी आऊँगी”।किसी पर भी नज़रें नही पड़ने पर मेरे मन मे कई विचार आ रहे थे| विचलित मन से मैं वहाँ की शिक्षाका से पूछ पड़ी कि जो बच्चिया जमुई से नवि कक्षा में एडमिशन ली हैं, वो दिखाई नही दे रही हैं| उन्होंने बताया कि वो यहाँ नही बल्कि सामने वाली नयी बिल्डिंग जो की नवि से बारहवीं कक्षा के लिए बनी है, उसमे हैं| गहरी सांसों के साथ थोड़ी राहत मिली।
24-04-19 आज निकिता ,स्मृति और मैं मिनाक्षी दी कि के साथ खैरा जा रही थी| कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय जमुई के साथ अब हम लोग खैरा के कस्तूरबा विद्यालय में भी शिक्षण देना शुरू कर रहे थे, तो वहाँ की वार्डन से बात करना और उनकी सहमति भी जरूरी थी।निकिता 2015 में यहाँ आ चुकी थीं तो उससे भी कुछ बातें पूछते जा रहे थे।
विद्यालय पहुँच जाने के बाद मीनाक्षी दी ने वहाँ की शिक्षिका से बात की|उसके बाद हम लोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में बताया तथा जमुई के कस्तूरबा में अपने काम के बारे में चर्चा की|आज वहाँ की वार्डेन अनुपस्थित थी तो शिक्षिका महोदया ने उनसे फोन पर बात कराई| वे तुरंत राज़ी हो गई और बोली हम जमुई में आपके काम के बारे में जानते हैं, आप जिस दिन आना चाहे आ सकते हैं। यह पल बहुत खुशी का था की लोग हमारे काम को जान रहे हैं ।
अब आ पड़ा आज का सबसे अमुल्य लम्हा: विद्यालय की बच्चियों से मिलना ।मीनाक्षी दी ने उन्हें बताया कि ये दीदी लोग तुम लोगों को पढ़ाने आएँगी।फिर हमने सबसे बात की, खुद के बारे में बताया, बच्चियों से पूछा की उन्हें क्या -क्या करना पसंद हैं,कौन से विषय अच्छे लगते है| बच्चियों ने भी हम से खुल कर बात की।फिर सभी को एक साथ बुला कर हमने खेल पर- पकटु करवाया जो की आपस मे घुलने मिलने की प्रक्रिया में सहायक माध्यम साबित हुआ ।किसी भी खेल या गतिविधि को नियत समय में पूरा करवाना खासा मुश्किल होता हैं, परंतु आज ऐसा कुछ नही था।आज केवल मिलना ही था। हमने बच्चियों को भी मौका दिया कि आपके मन मे कुछ सवाल है तो पूछे।एक बच्ची ने पूछा भी दी आप क्या - क्या पढ़ाती हैं? हमने उन्हें बताया और वे सब ध्यान से सुन रही थीं। वहाँ पर संथाल बोलने बाली बच्चियां भी थी जिनसे बात कर बेहद खुशी हुई| सभी बच्चियां हिंदी जानती थी, यह जान कर थोड़ी राहत मिली क्योंकि मेरे मन में बार बार यही सवाल उठ रहा था कि अगर उन्हें केवल संथाल आती होगी तो कैसे पढ़ाउंगी ? हमने जाना कि अब तक वहाँ केवल हिंदी के ही शिक्षिका थी, जिस वजह से उन्हें हिंदी आती थी ।
बच्चियां इस बाद से बेहद प्रफुल्लित हुई की अब हम हर सप्ताह में दो दिन उनसे मिलेंगे| इस तरह आज हमारा दिन काफी अच्छा रहा| गर्व हो रहा था आज हमारे पास बताने के लिए कितना कुछ था। कुछ बातें गर्व करने के साथ गौर करने की भी थी ।वहाँ की व्यवस्था, आँगन की गंदगी; आज पहला दिन था तो उनसे कुछ कहने के बजाय हमने बस डस्टबीन के होने के बारे में पुछा| शिक्षिका खुद बोली कि इसका ढक्कन टूट गया हैं इसलिए डालने में गंदगी फैल जाती हैं।
उसके बाद हम नवि से बारहवी वाले कस्तूरबा में गए । देखते ही सारी बच्ची दौड़ कर हमारे पास आ गईं| उनकी खुशी हम सभी के दिलों को छू गई| शायद हमारी नज़रों की तलाश के साथ उनका इंतजार भी था। वहाँ की शिक्षिका से भी हमने बात-चीत की और उसके बाद हम वापस आ गए।
आज हमारे लिए बहुत ही गर्व का दिन था| हम 200 बच्चियों से मिले थे| वहाँ की वार्डेन तथा शिक्षिका के सहमति के साथ अनुमति काफी प्रशंसनीय थी।