Friday, May 10, 2019

एक नई पहल- खैरा (ममता कुमारी- i-Saksham फेलो)








पहुँचते ही नजरें ढूंढ रही थीं उन बच्चियों को, जिनसे मैंने कहा था कि “मैं खैरा भी आऊँगी”।किसी पर भी नज़रें नही पड़ने पर मेरे मन मे कई विचार आ रहे थे| विचलित मन से मैं वहाँ की शिक्षाका से पूछ पड़ी कि जो बच्चिया जमुई से नवि कक्षा में एडमिशन ली हैं, वो दिखाई नही दे रही हैं| उन्होंने बताया कि वो यहाँ नही बल्कि सामने वाली नयी बिल्डिंग जो की नवि से बारहवीं कक्षा के लिए बनी है, उसमे हैं| गहरी सांसों के साथ थोड़ी राहत मिली।

24-04-19 आज निकिता ,स्मृति और मैं मिनाक्षी दी कि के साथ खैरा जा रही थी| कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय जमुई के साथ अब हम लोग खैरा के कस्तूरबा विद्यालय में भी शिक्षण देना शुरू कर रहे थे, तो वहाँ की वार्डन से बात करना और उनकी सहमति भी जरूरी थी।निकिता 2015 में यहाँ आ चुकी थीं तो उससे भी कुछ बातें पूछते जा रहे थे।

विद्यालय पहुँच जाने के बाद मीनाक्षी दी ने वहाँ की शिक्षिका से बात की|उसके बाद हम लोगों ने उन्हें आई-सक्षम के बारे में बताया तथा जमुई के कस्तूरबा में अपने काम के बारे में चर्चा की|आज वहाँ की वार्डेन अनुपस्थित थी तो शिक्षिका महोदया ने उनसे फोन पर बात कराई| वे तुरंत राज़ी हो गई और बोली हम जमुई में आपके काम के बारे में जानते हैं, आप जिस दिन आना चाहे आ सकते हैं। यह पल बहुत खुशी का था की लोग हमारे काम को जान रहे हैं ।

अब आ पड़ा आज का सबसे अमुल्य लम्हा: विद्यालय की बच्चियों से मिलना ।मीनाक्षी दी ने उन्हें बताया कि ये दीदी लोग तुम लोगों को पढ़ाने आएँगी।फिर हमने सबसे बात की, खुद के बारे में बताया, बच्चियों से पूछा की उन्हें क्या -क्या करना पसंद हैं,कौन से विषय अच्छे लगते है| बच्चियों ने भी हम से खुल कर बात की।फिर सभी को एक साथ बुला कर हमने खेल पर- पकटु करवाया जो की आपस मे घुलने मिलने की प्रक्रिया में सहायक माध्यम साबित हुआ ।किसी भी खेल या गतिविधि को नियत समय में पूरा करवाना खासा मुश्किल होता हैं, परंतु आज ऐसा कुछ नही था।आज केवल मिलना ही था। हमने बच्चियों को भी मौका दिया कि आपके मन मे कुछ सवाल है तो पूछे।एक बच्ची ने पूछा भी दी आप क्या - क्या पढ़ाती हैं? हमने उन्हें बताया और वे सब ध्यान से सुन रही थीं। वहाँ पर संथाल बोलने बाली बच्चियां भी थी जिनसे बात कर बेहद खुशी हुई| सभी बच्चियां हिंदी जानती थी, यह जान कर थोड़ी राहत मिली क्योंकि मेरे मन में बार बार यही सवाल उठ रहा था कि अगर उन्हें केवल संथाल आती होगी तो कैसे पढ़ाउंगी ? हमने जाना कि अब तक वहाँ केवल हिंदी के ही शिक्षिका थी, जिस वजह से उन्हें हिंदी आती थी ।

बच्चियां इस बाद से बेहद प्रफुल्लित हुई की अब हम हर सप्ताह में दो दिन उनसे मिलेंगे| इस तरह आज हमारा दिन काफी अच्छा रहा| गर्व हो रहा था आज हमारे पास बताने के लिए कितना कुछ था। कुछ बातें गर्व करने के साथ गौर करने की भी थी ।वहाँ की व्यवस्था, आँगन की गंदगी; आज पहला दिन था तो उनसे कुछ कहने के बजाय हमने बस डस्टबीन के होने के बारे में पुछा| शिक्षिका खुद बोली कि इसका ढक्कन टूट गया हैं इसलिए डालने में गंदगी फैल जाती हैं।

उसके बाद हम नवि से बारहवी वाले कस्तूरबा में गए । देखते ही सारी बच्ची दौड़ कर हमारे पास आ गईं| उनकी खुशी हम सभी के दिलों को छू गई| शायद हमारी नज़रों की तलाश के साथ उनका इंतजार भी था। वहाँ की शिक्षिका से भी हमने बात-चीत की और उसके बाद हम वापस आ गए।

आज हमारे लिए बहुत ही गर्व का दिन था| हम 200 बच्चियों से मिले थे| वहाँ की वार्डेन तथा शिक्षिका के सहमति के साथ अनुमति काफी प्रशंसनीय थी।

Sunday, May 5, 2019

तानिया परवीन- बीते दो साल और मैं|



मैं आज आप लोगों के साथ i-Saksham के साथ 2 साल के अनुभव को साझा करने जा रही हूँ| वैसे तो अगर सही में बोला जाए तो, इतने लंबे समय के अनुभव को साझा करना थोड़ा कठिन है| इसलिए मैं अपने कम लफ़्ज़ों में ही बताना चाहूँगी । 

सबसे पहले मैं ये बताना चाहूँगी कि मैं i-saksham से मिलने से पहले कैसी थी । मैं बच्चों को उस समय भी पढ़ाती थी लेकिन उस समय मैं उसी तरीके से पढ़ाती थी जैसे मैं पढ़ी हूँ या फिर जैसे मेरे आस पास के कुछ शिक्षक पढ़ाते थे । मुझे गुस्सा बहुत आता था| जब बच्चे कुछ समझते नही थे, मैं उन को पीटती भी थी । मैं बाहर के लोगो से बहुत कम मिलती थी,मुझे बहुत डर लगता था और उन से बात करने में बहुत झिझकती थी कि कही मैं कुछ गलत न बोल दूँ । मुझे singing and teaching हमेशा से पसंद था और मैं पहले से ही एक अच्छी शिक्षक बनना चाहती थी लेकिन इस के लिए मैं क्या करूँ मुझे पता नही था 

i-Saksham के मिलने के बाद मुझ मे बहुत बदलाव आए मेरी बहुत सी आदतें बदली जैसे - मैं अब बच्चों को सही तरीके से पढ़ाती हूँ, उनको पिटती नही हूँ और मुझे अब भी कई चीज़ों पर गुस्सा आता है लेकिन अब मैं उस गुस्से पर नियंत्रण रखना जानती हूँ और मैं ये समझने की कोशिश करती हूं कि मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण है । मेरा पहले सिर्फ एक लक्ष्य निश्चित था लेकिन रास्ता नही, अब मैं ये कही न कही जानती हूं कि मुझे अपने लक्ष्य को पाने के लिए किस किस मार्ग से गुजरना है और कैसे क्या करना है और मैं ये जान पाई हूँ कि मुझे अगर शिक्षा के मार्ग से ही जुड़े रहना है तो मैं शिक्षक बनने के अलावा ओर भी अलग अलग चीज़ें कर सकती हूं । 
अपनी कक्षा में बच्चों से सवाल-जवाब करती तानिया|


2 साल गुज़र गए है इसके बाद मैं ये चाहती हूं कि मैं एक अच्छे कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करूँ और जिस तरह मैं i-Saksham से सीखी हूँ या मेरा जो अनुभव रहा है जिस जिस तरह से मेरी मदद की गई थी या की जा रही है मैं भी सब की मदद करूँ जैसे - बच्चों को पढ़ाने में और उनके खुद के पढ़ने को लेकर समस्याओं में इत्यादि ।

i-Saksham के साथ मेरा 2 साल गुज़र चुका है| मेरे लिए सबसे यादगार पल या मजेदार पल, इस साल का और पिछले साल का i-Saksham का foundation day रहा है| ये पल मेरे लिए वो पल है जिसमे मैं अपने जीवन मे सबसे ज्यादा खुश हुई थी| मुझे या हम लोगों के साथ जितने भी साथी थे उनको इतनी इज़्ज़त दी जा रही थी कि जितना बयाँ करूँ उतना कम है| इतने बड़े बड़े लोग, जो इतने पढ़े लिखे है वो मुझे इतने सम्मान दे रहे थे की मुझे यकीन नहीं हो रहा था| दूसरा यादगार पल तब का है जब फ़ेलोशिप लॉन्च हुआ था|उसमें मैंने स्टेज पर गीत गाया था और भाषण भी दी थी| उस समय मुझे बहुत अच्छा लग रहा था कि मैं इतने सारे लोगो के सामने कुछ बोल रही हूं और लोग मेरी बात सुन रहे थे और उन्हें अच्छा भी लग रहा था । तीसरी यादगार पल मेरी सारी ट्रेनिंग है जो मैंने i -Saksham से लिया कोई भी ट्रेनिंग में मुझे ऐसा नही लगा कि जिसमे मैं बोर हुई या फिर मुझे अच्छा नही लगा सभी में मुझे बहुत अच्छा लगा था बहुत enjoy भी मैंने किया l 

मैं आज i-Saksham के उन सभी लोगो को तहे दिल से धन्यवाद कहना चाहूँगी जिन्होंने मुझे इतने सारी चीज़ों को सिखाया मुझे इतनी खुशी दी और मेरी हमेशा मदद की और जो आज भी कर रहे है और शायद आगे करेंगे भी । 😊