आज मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ| करीबन एक महीने से ऊपर हो गया है,कस्तूरबा में गर्मी की छुट्टी होने से पहले मैंने एक सेशन क्राफ्ट्स का लिया था और बच्चियों को गुड़िया बनाने सिखाया था| मैंने उन्सहें गुड़िया बनाना सिखाया तो, मगर समय कम होने के कारण मैं उसे उनकी कक्षा में लगा नहीं पायी थी और उन्होहें ये काम होमवर्क के रूप में दे दिया था की वो कर के रखे| मैं अगले सप्ताह आके देखूंगी| परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि उनलोगों की गर्मी की छुट्टी हो गयी और सेशन ले नहीं पाए|
जब भी खैरा कस्तूरबा की बात होती, मन में ये सवाल उठता था कि पता नहीं लड़की लोग करी होगी या नहीं?उसे अपनी कक्षा की दीवार पर लगायी होगी या नहीं ?मेरे दिमाग में ये सब ख्याल इसलिए आ रहे थे क्योंकि वहां की लड़कियों को अभी मैं अच्छे से जानती नहीं थी| उनसे मेरी मुलाकात एक या दो बार ही हुई थी| इसलिए वे यह काम कर लेंगी या नहीं, इस तरह के ख्यालों का आना मुझे सही लग रहा था| ऊपर से मेरी मेहनत भी लगी थी| बच्चों का साथ जब एक रिश्ता बन जाए और वो अच्छे से कामयाब हो जाए, तब ही मन को सुकून मिलता हैI
अचानक ऑफिस में बात हुई कि मैं खैरा इस बार सेशन लेने जाउंगी, मेरे अंदर ख़ुशी से यह उल्लासा जागी कि इस बार देख पाउंगी कि वो गुड़िया दीवार पर लगायी या नहीं| जैसे समय हुआ ऑफिस से निकली पूरा रास्ता मन में यही विचार चल रहे थे: कहाँ लगायी होगी? पता नहीं कैसे कर पायी होगी? लगाई भी होंगी या नहीं? सोचते सोचते मैं कस्कतूरबा पहुँच गई| वहाँ बच्चियों से मिली, उनके नीचे के क्लास रूम को देखि और मन उदास सा हो गया| फिर मैंने सोचा कि शायद वो लोग कर नहीं पायी होंगी| इतना जल्अदी शायद उनके लिए संभव ही नही हुआ होगा| यही सोच में अपने आप को सेशन की और ले चली|
आज खैरा में हिंदी का सेशन था जिसमे शुरुवात असेंबली से हुई| असेंबली में एक लोक गीत था जो की उनके भाषा का था| समझ में हमे तो कुछ नहीं आ रहा था लेकिन लय और आवाज काफी प्यारा लग रही थी जिसकी वजह से में भी बच्चियों के साथ साथ उसकी धुन में खो गई| जब कविता और शुशीला लोक गीत गा रही थी तो मुझे ऐसा लग रहा था की ये पंक्तियाँ तो अब बाकि लड़की बोल नहीं पायेगी लेकिन उनके बोलने के बाद सारी लडकियां भी अच्छे लय से गा पायी और पूरा कस्तूरबा मानो गूँज उठा| मेरे लिए नामुमकिन था इसलिए मुझे ऐसा लग रहा था,फिर प्रिया (मेरी साथी) उन्हें कर्रेंट न्यूज़ (Current News) बताई और दो लड़कियों से उनका दिन कैसा रहा ये जान पाए| सीनू ने बताया कि "आज आप लोग बहुत दिन बाद आये ये मुझे अच्छा लगा और आज बारिश हो गयी ये भी बहुत अच्छा लग रहा है", तो दूसरी ओर पार्वती ने बताया कि दीदी एक्शन वर्ड सिखा के गयी और हम लोग उसका इस्तेमाल कर रहे हैं, ये हमे बहुत अच्छा लग रहा है| फिर बंदना के द्वारा मैडिटेशन हुआ जो कि काफी अच्छा रहा| थोड़ी बारिश और थोड़ी हवा भी थी, फिर भी जब उन्हें पूछा गया आप को क्या क्या आवाजें सुनाई दे रही थी तो एक ने कहा "दीदी मुझे तो टिक-टिक की आवाज सुनाई दी"| बहुत अच्छी बात है की थोड़े आवाज में भी वह एक छोटी सी धुन पर अपने को खींच पायी| सब ने उनके लिए छोटी ताली(चुटकी )भी बजायी|
आज की कहानी का शीर्फिषक था "सालाना बाल कटाई दिवस"| हमने अपने खुले हुए बालों से उसे कहानी के प्री रीडिंग की और उनसे कई सवाल किये| बताओ किसको- किसको छोटा बाल पसंद है?किसको -किसको बढ़ा बाल पसंद है?सब ने अपनी बात बताई तो मैं अपने बाल दिखा कर बोली मुझे तो छोटे बल पसंद है,और मेरे बढे बाल होते भी नहीं है,तो किसी ने बोला - दीदी ये तेल लगाओ शिकाकाई, इंदु-लेखा, बाल बड़े हो जायेंगेI इसी तरह थोड़ी कुछ सवाल जवाब से मैंने रीड अलाउड शुरू किया (सालाना बाल कटाई दिवस ) थोड़ी एक्शन के साथ करवा पायीI सब को मैंने पूछा कैसा लगा तो सब ने कहा अच्छा लगा| फिर निशु दी ने कुछ और कहानी सम्बंधित प्रश्न पूछे| सब ने काफी अछे से प्रश्नों के जवाब दिए| फिर मैंने वर्ड एसोसिएशन (word association) बतलाया और फिर उन्हें एक एक्साम्प्ले में एक कर के दिखाया और फिर उन्ही से शब्द भी पूछे| सब बता पा रही थी और फिर पांच के समूह में उन्हें यही कार्य करने दिया| सब काफी सारे वर्ड लिख पाएऔर समूह में अपनी भागीदारी भी निभा पाए| कहीं-कहीं उन्हें दिक्क्त हो रही थी तो वो पूछभी रही थी| मैं,प्रिया ,बन्दना ,निशु दी और अदिति दी देख रहे थे कि कौन कर पा रही है, कौन नहीं|उनके लिए word association ka ये खेल नया था, तो काफी मजा आ रहा था| समय काफी हो रहा था तो मैंने उसे होमवर्क में यही कार्य करने दे दिया और पूरे पचास शब्द लिखने को कहा| फिर वंदना से श्रूतलेख हुआ जिसमे लड़कियों ने काफी अच्छा किया|
सभी गतिविधि समाप्त होने के बाद reflection करने पर, सभी ने आज के गेम (वर्ड एसोसिएशन,रीड अलाउड ) करने में बिताये पलों को आनंदमयी बताया| हम होमवर्होक पर चर्चा कर रहे थे कि डायरी लिखने की आदत क्यों अच्छी है, जिस पर काफी लड़कियों ने कहा "हाँ दीदी लिखूंगी पर डायरी .... ??? फिर मैंने उनसे बोला: एक कॉपी को ही हम डायरी बना कर लिखेंगे| सब ने हामी भरी और सेशन समाप्त हुआ|.....
समय जैसे ही ख़त्म हुआ तो मेरा मन किया की एक बार इनसे पूछों कि क्या उन्होंने गुड़िया बनाकर दीवार पर लगाया? पूछते ही सब ने एक आवाज़ मीन कहा: yesssssss दी....!! ख़ुशी की मानो एक लहर सी उठ पड़ी और उन्हें देखने सब बच्केचियों के साथ मैं, उनके ऊपर के क्लास रूम में गयी| वहां मैंने देखा कि दीवार पर बड़े ही खूबसूरत तरीके से सभी ने गुड़िया बनाकर लटकाई हुई थी|
मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और सीढ़ी से उतरते हुए मैंने कुछ बच्चियों को कस्बतूरबा आते समय मेरे मन में चल रहे विचारों के बारे में बताया तो उनमे से एक बोली: "दीदी हम लोगों ने तो कब का यह काम कर दिया था| मैंने उन्हें भी Thank -you कहा और सब को bye bye कह कर कस्तूरबा से बाहर निकली| वहां से वापस घर पहुँचने तक वह दीवार का सुन्दर चित्र मेरे मन में मानो बस सा गया था और बार बार अंदर से एक ख़ुशी का एहसास दे रहा था|
कितना अच्छा लगता है जब सोचा हुआ काम हो जाए!
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