Wednesday, October 21, 2020

जज्बा जो छिपाए न छुपे!

हमारे कार्यों के दौरान कई बार ऐसे पल आते हैं जो हमे हमारी ज़िम्मेदारी का अहसास कराने के साथ साथ हमारे दिल के हमेशा करीब रहे जाते हैं| कई बार दूसरों के जीवन की कहानी से हम इतना प्रभावित हो उठते हैं कि हम अपने कर्तव्यों के और नज़दीक हो जाते हैं| कुछ ऐसा ही हुआ इस बार आई-सक्षम फ़ेलोशिप के लिए हो रहे महिलाओं के साक्षात्कार में| आई-सक्षम परिवार से एकता अपने अनुभव को साझा करते हुए कहती हैं: 


मैं बहुत संक्षिप्त में उन बातों को साझा करना चाहूंगी जिसने मुझे प्रभावित किया है और इंटरव्यू के लिए आई महिलाओं ने मुझे सीखने का मौका दिया है | आज हमलोगों ने जमुई में 24-25 महिलाओं का इंटरव्यू लिया | जिसमें से मेरे समूह व् मुझे 13 महिलाओं से बात करने का मौका मिला | इनमें से ज्यादातर महिलाएं शादीशुदा हैं | इंटरव्यू से पहले हमलोग आपस में यही बात कर रहे थे कि "अधिकांश महिलाएं शादीशुदा है | पता नहीं वो परिवार की जिम्मेदारियों के साथ किस तरह हमारे फ़ेलोशिप से सक्रिय रूप से जुड़ी रह पाएंगी ?" अगर मैं अपनी बात कहूँ तो मेरे मन में एक ही सवाल आ रहा था कि "क्या इनमें उतनी उर्जा होगी?"

 

पर जब मैंने इन महिलाओं से बात की तो मैं दंग रह गयी | इनमें से अधिकांशतः महिलाओं की शादी को 8 से 10 साल हो गए थे पर आज भी उनके अन्दर उनके सपनो को लेकर वही जज्बा है जो उनमे शादी से पहले रहा होगा| आज भी उनके मन में खुद के लिए कुछ करने का उतना ही जूनून है जितना शायद उन सपनो को देखने की शुरुआत में रहा होगा|

एक बात जो 5 महिलाओं ने कही वह यह है कि "हमें यहाँ आ कर बहुत अच्छा लग रहा है | हमसे लोग अक्सर हमारे परिवार के बारे में पूछते हैं | बहुत कम ऐसा होता है कि हमें खुद के बारे में बात करने का मौका मिलता है | आपलोग आज इतना धैर्य से मेरे बारे में सुन रहे हैं; हमको बताकर अच्छा लग रहा है | हम तो अपने जीवन में कुछ करना चाहते थे पर कभी इस तरह का मौका नहीं मिला |" जब उनसे यह पूछा गया कि "क्या आप सप्ताह में एक दिन अपने गाँव से ट्रेनिंग के लिए यहाँ जमुई ऑफिस आ पाएंगी? एक महिला ने बहुत प्यार से जवाब दिया, "क्यों नहीं! कम से कम एक दिन तो अपने मन से आने जाने का मौका मिलेगा | फिर यहाँ नए दोस्त भी तो बनेंगे ”| 

इंटरव्यू के दौरान महिलाओं के द्वारा समाज के अनेकों परिवेश को जान्ने का मौका मिला| जहाँ कुछ महिलाओं ने अपने घर से बाहर काम न कर पाने का कारण अपने ससुराल की जिम्मेदारियां बताई तो वहीँ एक महिला ने बताया कि उनकी सास उनके साथ यहाँ इंटरव्यू दिलवाने के लिए आई हैं | वे चाहती हैं कि उनकी बहु आगे बढ़े | 


एक महिला से जब यह पूछा कि “आपके अनुसार आपके गाँव में शिक्षा की स्थिति कैसी है” तो इसका जवाब देते-देते वे भावुक हो गई | उन्होंने बताया कि उनके गाँव में स्कूल नहीं था | किसी तरह से गाँव वालों ने छोटे से जगह में सरकार को अर्जी देकर स्कूल बनवाया था पर फिर भी शिक्षा की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है | उनको इस बात की चिंता है कि अगर उनके बच्चे नहीं पढेंगे तो क्या होगा | पूरा गाँव पिछड़ा ही रह जायेगा साथ-साथ उनका बेटा भी | 


इन महिलाओं से बात करने के बाद मेरा सवाल, सवाल नहीं रहा | मुझे लगता है सपना देखने और उसके पीछे भागने की कोई उम्र नहीं होती| फर्क बस इतना है किसी को सहयोग मिलता है और कोई इसके आभाव में पीछे रह जाता है| परंतु इन महिलाओं में अपने सपनो को जीने का जज्बा आज भी है और उनकी निरंतर कोशिश आज भी ज़ारी है| 


आई-सक्षम टीम के सदस्यों का ऐसा अनुभव हमे समक्ष इस बात को उजागर करता है की हमारे समाज में महिलाओं में अनेकों हुनर छिपे हुए हैं| वे परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ अपने देश व् समाज की बेहतरी की ज़िम्मेदारी भी बखूबी निभा सकती हैं| पिछले 5 साल के सफ़र में लगभग 150 ऐसी ही महिलाओं ने आई-सक्षम फ़ेलोशिप से जुड़ कर अपने समाज की शिक्षा की बेहतरी के लिए कार्य किया है और आज भी शिक्षा से जुडी हुई हैं| यह महिलाएं हमारे लिए एक प्रेरणा हैं और इनका जज़्बा हमारी ताकत| 


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