यह कहानी एक ऐसे edu leader की है जिनके अंदर कुछ सीखने व करने का जज्बा है| जब आप को किसी को गहराई से जान्ने का मौका मिलता है और आप उनके जज़्बे की समझ बना पाते हैं तो एक अलग ही प्रेरणा मन में जग उठती है| यह कहानी एक ऐसी ही edu-लीडर हीना की है|
आई-सक्षम में हर edu-लीडर को उनके 2 साल की फ़ेलोशिप के दौरान आई-सक्षम टीम से एक बडी (दोस्त) मिलता है| यह बडी फेल्लो को हर तरह का सहयोग प्रदान करता है,जैसे- प्रशिक्षण के दौरान फेलो की समझ को जानना, फेलो के पढ़ाने के तरीके को समझना व् उपयुक्त सुधार के तरीके बताना, फेलो के शेक्षणिक विकास में सहयोग देना व् फ़ेलोशिप में हर उतार चढ़ाव के दौरान उनके साथ खड़े रहना| सभी बडी अपने फेलो के साथ हर माह 2-3 बडी टॉक करते हैं, जिसमे वे फेलो के कार्यों, अनुभव व् उनके प्रदर्शन के ऊपर बात करते हैं व् उन्हें आगे बेहतर करने के सुझाव देते हैं| मैं उन्ही बडी में से एक हूँ और आज अपनी एक फेलो हीना के साथ हुई बडी टॉक के अनुभव को साझा कर रही हूँ|
पहले पहल जब मैंने हिना दीदी से बडी टॉक कि थी तो उनके और उनके घर - परिवार व बच्चे के बारे में जानने को मिला था।मैं कभी-कभी दीदी से बीच में फॉलो -अप कर लेती थी लेकिन उनके अंदर के कारणों को नहीं समझ पाती थी या फिर नहीं जान पाती थी।लेकिन शुरुआत में एक बार दीदी ने बडी टॉक के दौरान मुझे एक समस्या के के बारे में बताया था कि -“ जब वह अपनी कक्षा में पढ़ाती है तो उन्हें बच्चों को बुलाने उनके घर जाना पड़ता है क्योंकि बच्चे आंगनवाड़ी के हैं और बहुत छोटे हैं| वे पढने नहीं आना चाहते|
हमने पहले भी इस विषय पर बात की थी और समझ बनायीं थी कि बच्चों के अभिभावक व् उनके दोस्तों का सहयोग ले कर बच्चों को पढने बुलाया जाए| परन्तु अभिभावकों की और भी दुसरे ज़रूरी कामों में व्यस्तता के कारण बात कुछ बन नहीं पायी| आज बडी टॉक में फिर वही समस्या सामने आई| दीदी को आज भी बच्चों को पढने बुलाने के लिए उनके घर जाना पड़ता है|
दीदी गर्भ से हैं और यह उनका अपने समाज के बच्चों को शिक्षित करने का जज्बा ही है कि वे इस स्तिथि में भी बच्चों को घर जाकर बुलाती हैं और फिर उन्हें पढ़ाती हैं। भले ही उन्हें इस कार्य में थोड़ी तकलीफ होती होगी परन्तु वे कहती हैं कि बच्चों का पढना बहुत जरूरी हैं| मैंने जब इन बातों को दीदी के मुह से सुना तो मैं दंग रह गई कि इतनी ताकत हमारे समाज की महिलाओं में कैसे देखने को मिल जाती है| वे घर का काम करती हैं, बच्चे व परिवार को देखती है और खुद बच्चों को घर जाकर पढने के लिए बुलाती हैं और फिर उन्हें पढाती भी हैं| फिर भी वही समाज के कुछ लोग कह रहे है कि महिला कुछ नहीं करती या कर नहीं सकती है।
परन्तु धीरे धीरे समाज में कुछ लोग महिलाओं के इन प्रयासों व् जज़्बे से सीखने और समझने का प्रयत्न कर रहे हैं| वे इसी समाज में रह कर उनके लिए बदलाव कि छवि देखने का प्रयास कर रहे है। इसी सोच के साथ कि एक ना एक दिन बदलाव आएगा। और सभी को समान दर्जा दिया जाएगा| इसी से हमारी आने वाली पीढ़ी भी महिलाओं के सामन दर्जे की समझ बनाएगी|
इन दीदियों में काफी कम समय में एक अच्छे बदलाव और एक अच्छी सोच की छवि मुझे नजर आई है।इसी तरह की सोच को लेकर अगर हमारे समाज के लोग आगे बढें तो एक साकारात्मक बदलाव दूर नही|
कोशिश कर, हल निकलेगा,
आज नहीं तो, कल निकलेगा।
कोशिशें जारी रख कुछ कर गुजरने की,
जो है आज थमा-थमा सा, चल निकलेगा।
मैं दीदी के प्रयासों से उन्हें बहुत-बहुत आभार देती हूं कि उन्होंने इन चीजों को किया और आज भी उनके कथक प्रयास जारी है| वह समाज को बेहतर करने में एक अहम भूमिका निभा रही हैं|
No comments:
Post a Comment