i-Saksham के बैच-7 की एडूलीडर बुलबुल कुमारी ने i-Saksham के साथ अपना अनुभव साझा किया है, जिसमें उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन किया है कि किस तरह से उन्होंने संघर्ष किया और एक बार उम्मीद टूटने के बाद i-Saksham के सहयोग से कैसे उन्होंने अपने आत्मविश्वास को पहचाना और अपने पैरों पर उठ खड़ी हुईं।
बुलबुल ने i-Saksham को बताया कि उनकी शादी साल 2003 में ही हो गई थी और उस साल वे 12वीं कक्षा में थीं। उनकी शादी एक ऐसे परिवार में हुई, जहां शिक्षा को लेकर लोगों का रवैया उदासीनता से भरा था। साथ ही गांव-समाज के लोगों में भी शिक्षा का बहुत आभाव था।
उनके परिवार में कोई भी शिक्षित व्यक्ति नहीं था, जिनसे वे अपने मन की व्यथा बोल पाती और समझा पातीं कि उन्हें पढ़ने की इच्छा है। यही कारण रहा कि उनकी पढ़ाई रुक गई। साथ ही पारिवारिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने भी अपने अरमानों को दबा दिया और चेहरे पर मुस्कान बिखेर कर रहने लगी।
आसपास के बच्चों को पढ़ाया
इसके बाद घर की जिम्मेदारी बढ़ी और वे घर-गृहस्थी में इस कदर उलझी कि उन्हें पढ़ाई या पढ़ने के बारे में ख्याल ही नहीं आया। उनके अन्दर पढ़ने की ललक खत्म होते चली गई लेकिन पढ़ाने का एक शौक था इसलिए उन्होंने कुछ सालों बाद आसपास के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।
i-Saksham से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि साल 2006 में उन्हें एक निजी विद्यालय में पढ़ने का मौका मिला, जिसमें वे केवल एक साल पढ़ सकीं क्योंकि उसी साल उनकी मां का देहांत हो गया, जिस कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
एक लंबे अंतराल के बाद साल 2011 में उन्हें एक आवासीय विद्यालय में पढ़ने का मौका मिला, जो पहाड़ के किनारे पर स्थित था, जिसे आम बोलचाल की भाषा में संथाली इलाका भी कहा जाता है। यह विद्यालय भी केवल 11 महीने ही चला फिर बंद हो गया। राह में आने वाली इन रुकावटों ने कहीं ना कहीं उनके पढ़ने की ललक को तोड़ने का काम किया और उन्हें लगने लगा कि अब वे नहीं पढ़ पाएंगी।
i-Saksham टीम से मुलाकात
एक दिन उन्हें उस स्कूल के शिक्षक का कॉल आया, जिसमें वे शुरुआती दिनों में पढ़ाया करती थी। शिक्षक ने कॉल करके कहा, अगर अभी आप कुछ नहीं कर रहे हैं, तो मेरे विद्यालय में आकर पढ़ाइए। इसके बाद मैंने साल 2017 से पढ़ाना शुरू किया और लगातार 3 सालों तक पढ़ाया।
उन्होंने आगे बताया कि एक रोज जीवन में एक बड़ा बदलाव आया, जब सबकुछ ठहर सा गया। यह साल 2020 की बात है, जब i-Saksham के टीम के दो सदस्य ‘संजय भैया’ और ‘धरमवीर सर’ उनके घर आए और यही वक्त था, जब वे i-Saksham से जुड़ी। इस वाकये के बारे में उन्होंने कहा, मेरे लिए वो पल शायद मेरी जिंदगी का एक एतिहासिक पल रहा क्योंकि एक ओर मुझे कई बार रुकावटों का सामना करना पड़ा तो वहीं दूसरी ओर मैं अब नया मुकाम हासिल करने की दिशा में बढ़ने वाली थी।”
पति ने भी किया सहयोग
कुछ महीनों के बाद ही उन्हें अपने अन्दर एक बदलाव महसूस हुआ। i-Saksham के तत्वधान में उन्हें कई तरह के प्रशिक्षण हासिल हुए, जिससे उन्होंने ना केवल शिक्षा बल्कि अन्य हिस्सों पर भी अमल किया। एक रोज i-Saksham के एक सेशन के दौरान उन्हें IGNOU के बारे में पता चला और उनके अन्दर से इक आवाज़ आई कि हां, मैं भी पढ़ सकती हूं लेकिन उन्हें डर भी था क्योंकि पढ़ाई छोड़े हुए उन्हें 18 साल हो गए थे।
उनके मन में कई सवाल थे कि अब मैं कैसे पढूंगी, मुझे कुछ समझ में भी नहीं आएगा लेकिन जीवन के इस पड़ाव पर उनके पति ने भी उनका सहयोग किया और उनका ढ़ांढस बढ़ाते हुए कहा कि तुम पढ़ो और अपना नामांकन करवा लो। साथ ही इस सफर में i-Saksham के बड्डी ने भी उनका साथ दिया।
आज बुलबुल बीए बार्ट-2 की विद्यार्थी हैं और i-Saksham के साथ बतौर एडूलीडर कार्य भी कर रही हैं, जिसका उद्देश्य लड़कियों को समाज में पहचान दिलाया और हर एक लड़की को VOICE AND CHOICE से जोड़ना भी है ताकि लड़कियां अपनी जिंदगी के निर्णय स्वयं ले सकें और अपनी आवाज़ उठा सकें।
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