24 मार्च का वो दिन ............... (कैफ़ी की कलम से)
मै भागता हुआ जमलपुर अवंतिका सिनेमा स्थित श्याम वाटिका हाल में प्रवेश किया सभी के चेहरे चमक रहे थे , कोई भाग कर सामान ला रहा था, तो कोई हॉल को सजाने में व्यस्त था | मुझ पर निगाह पड़ते ही लोगों ने एक ही साथ मुझे गुड मोर्निग कह कर मेरा अभिवादन किया, सभी नये –नये लिबास में काफी सुंदर दिख रहे थे, सभी लोग बेसब्री से उन पल का इंतज़ार कर रहे थे, जो साल में एक ही बार आता है , आप भी सोंच रहे होंगे वो कौन सा दिन था ? कोई ख़ास दिन था ? जी हाँ , वो दिन था 24 मार्च यानि आई –सक्षम का स्थापना दिवस !मै पहुँचते ही मेस वाले को कॉल किया, उनकी तैयारी के बारे में उनसे जाना , वो थोडा असमंजस में थे , की खाना कहाँ बनाऊ यहाँ या कही और, मै ने स्पष्ट शब्दों में कहा वो आप समझए, हमारी बुकिंग सिफ यहाँ हाल की हुई है , थोडा देर के बाद फिर उनका फोन आया, और उन्हों ने कह, सर खाना बनाने का सारा सामान मै यहाँ ला चूका हूँ ! और इधर हॉल के मेनेजर ने मालिक को फोन कर दिया, और मालिक ने मुझे तलब की हाल मालिक के सामने वाले कुर्सी पर मै ठाट से बैठ गया , मालिक ने पहले मुझे गुराते हुए देखा, और मैने भी पलक झपकने तक उनकी आँखों में आंखे डाल कर उन्हें भरपूर देखा, इनसे उन्हें ये आभास हो गया था, की किस लहजे में इनसे बात करना चाहिए , उन्होंने काफी सोंचने के बाद अपने मोबाइल पर उंगलिया फेरते हुए अपने निगाह को निचे करते हुए ,मुझ से कहा, “आप ने जितने में बुक किया है उसे तीन गुणा पैसा अधिक देना होगा” मै मुस्कुराता हुआ उनसे पूछा किस ख़ुशी में सर, उन्हों ने कहा, “आप से खाना बनाने की बात नही हुई थी” मेने कहा बिलकुल, आप सच कह रहे है, मै ने मेस वाले को बुलाया और कहा की आप यहाँ से अपना सामन लेकर चले जाए, या फिर आप इनसे बात करकर समस्या का समाधान कीजये! मेरे पासा जितने में बात हुई है उनसे अधिक देने में सक्षम नही हूँ, इतना बोलकर मै वहा से निकल गया !
सभी लोग प्रोग्राम कैसे जल्द से जल्द शुरू हो इनकी तैय्यारी में लगे थे और इधर जमुई की टीम भी दस्तक दे चुकी थी , सभी लोग काफी उत्साहित थे ,और कुछ लोग चिंतित भी , की हम किसी भी वजह से लेट न हो , और इनकी चिंता भी वाजिब थी क्योंकि, लोग कई किलोमीटर की सफ़र कर के आये थे, जितना आवश्यक प्रोग्राम होना था उतना ही आवश्यक सभी लोगों को समय पर घर पहुंचना भी ,
इसी बात को ध्यान में रख कर अमन जी मेरे पास आये, काफी शालीनता से मुझ से पूछा कैफ़ी जी प्रोग्राम कब शुरू होगा ? मेरे पास कोई टाइम बताने को नही था , क्योंकि जो समय हमलोगों ने निर्धारित किया था उनसे 20 मिनट लेट हो चुके थे , तभी मेरी निगाह शबनम और काजल को ढूँढने लगी , शयद अमन जी ये समझ रहे थे की हर बार की तरह मंच संचालन की ज़िम्मा मेरे पास है , पर मै इसबार काजल और शबनम को इसके लिए तैयार किया था !
तैय्यारी के समय ये दोनों थोडा घबराई हुई थी , और ये घबराहट स्वाभाविक है और ये सबको होता है, आप कोई भी नया काम करते हो और वो नया काम मंच संचालन से सम्बंधित हो तो, घबराहट का आलम क्या हो उसका अंदाज़ा आप लगा सकते है , कई लोग पुरे प्रोग्राम में इस चिंता में रहते है की एंकर कही मुझे मंच पर न बोला ले, मंच संचल को लेकार मेरा अनुभव ये है की लोगों के सामने बोलने के लिए आपको आत्मविश्वाश प्राप्त करना होगा, और ये कोई किताब पढ़ कर या कोई विडियो देख कर नही आयेगा, आपको इसके लिए सतत पर्यास करना होगा, ये ज़रूर हो सकता है, पहली बार आप ये काम कर रहे हो तो, शायद लोगों को अच्छा न लगे पर , इसमे किसी को निराश नही होना चाहिए , क्यों की इसे हम सीखने का क्रम मान सकते है, और इस गलतियों से सीख कर आगे और बेहतर किया जा सकता है, इसे को ध्यान में रख कर मै ने नये लोगों से एंकरिंग करवाई थी , प्रोग्राम के समय कई लोगों ने मुझ आकर कहा की कैफ़ी जी माइक आप थामये , अगर मै उसकी बात मान लिया होता तो आज जितना शबनम में आत्मविश्वाश आ पाया है शयद ये नही आ पता , क्योंकि लोग कुछ कर के ही सीखते है,
हर चीजों को दो पहलु होता है , सकरात्मक और नकारात्मक दोनों हमारे लिये काम की है, नकारात्मक से सीख कर हम अपने गलतियों को कम कर सकते है और सकरात्मक चीज़े हमारे आत्मविश्व को बढ़ाएगा , उसी निगाह से इस पुरे प्रोग्राम को देखें तो , आप अनुभव कर पायें होंगे जब जमुई से आये लोगों के साथ मुंगेर के लोग मिल रहे थे, और एक दुसरे को जान रहे थे, जिसे पहले फेलो ग्रुप में नाम से जानते थे आज उसे साक्षात् देख पा रहे थे अब जब भी उनका नाम आयेगा तो , उनकी तस्वीर भी दिमाग में बनेगी , हम कह सकते है इस प्रोग्राम के वजह से दोनों टीम के संबंधों में मजबूती आई होगी ,
इसमें कुछ हमारे रेमेडिअल बैच के लोग थे, वे लोग सभी से मिल कर आई-सक्षम को बेहतर तरीके से जान पाए होंगे, सोनम भारती शबनम और वे सभीलोग जिन्हों ने कार्यक्रम में भाग लिया तथा मंच पर चढ़ कर कुछ बोल पाई हम ये कह सकते है उस दिन के बाद से उनका आत्मविश्वाश बढ़ा होगा , सोनम भारती , तानिया , शबनम ये सब ऐसा नाम है! जब हमलोग फेलोशिप की शुरुआत कर रहे थे, तो इनके अभिभावक को समझाने नको चने चबाना पड़ा, अंग्रेजी एक एक वाक्य first connect then convince हमलोग को जो दिक्कत आ रही थी वो यही वजह थी, की हमलोग उनके परिवार से अच्छे से सम्बन्ध स्थापित नही कर पाए थे, जिस कारन उसे हमारी बातों को समझने में उसे कठिनाई हो रही थी, और ये ज़िन्दगी का अनुभव भी है, आप चाहे कितनी भी अच्छी बात क्यों ना समझाए आगर आप से उनका संबंध अच्छा नही है, वो आप की बात नही मानेगा,
आज वही लोग कुछ कर के दिखाते है, या अपनी सोंच को लिख या बोल कर अभिव्यक्त कर पाते है, जो पहले अपनी अत्म्विश्याश की कमी के वजह से उसे लज्जा की घूंट समझ कर पी लिया करती थी, हम कह सकते है की धीरे –धीरे ही सही परिवर्तन आ रहा है, मै अपनी बातों को इकबाल की इस शायरी से ख़त्म करना चाहूँगा !
मंजिल से आगे बढाकर मंजिल तलाश कर ,
मिल जाय तुझको दरया तो समंदर तलाश कर !
(Kaifee is a member of i-Saksham team)