सीता नवादा गाँव (कोइरी टोला) के एक ऐसी लड़की थी, जो आत्मविश्वास की कमी के कारण अपनी बात ठीक से नहीं रख पाती थी। उसके पापा उसे घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं देते थे, जिससे उसकी स्वतंत्रता सीमित थी।
एक दिन, उसने सुना कि आई-सक्षम के लिए फॉर्म भरा जा सकता है, जिससे उसे एक नया अवसर मिल सकता था। यह उसके लिए पहली चुनौती थी—क्या वह बिना पापा की अनुमति लिए खुद के लिए कोई निर्णय ले सकती है?
शुरुआत में, उसे डर लगा कि पापा मना कर देंगे या नाराज़ होंगे। उसे लगा कि शायद वह यह कदम नहीं उठा पाएगी। किसी भरोसेमंद व्यक्ति (शिक्षक/मित्र) ने उसे प्रेरित किया कि उसे अपने जीवन के फैसले खुद लेने चाहिए। इसने उसमें आत्मविश्वास जगाया।
उसने हिम्मत जुटाकर बिना पापा से पूछे आई-सक्षम का फॉर्म भर दिया और परीक्षा दी। यह उसकी पहली बड़ी परीक्षा थी। परीक्षा पास करने के बाद भी, सबसे बड़ी चुनौती थी—क्या पापा उसे वहां काम करने देंगे? यह उसकी यात्रा की सबसे कठिन बाधा थी।
पापा ने उसकी मेहनत और आत्मनिर्भरता को देखते हुए उसे आई-सक्षम में काम करने की अनुमति दे दी। यह उसकी पहली बड़ी जीत थी। अब सीता न केवल अपनी राय खुलकर रख पाती थी बल्कि अपने पसंद को भी परिवार, समुदाय और विद्यालय में आत्मविश्वास से प्रस्तुत कर सकती थी।
उसने न केवल अपने आत्मविश्वास में बल्कि अपने लक्ष्य में भी स्पष्टता पाई। अब वह B.Ed करके शिक्षिका बनने का सपना देख रही थी, ताकि वह दूसरों को भी सशक्त बना सके।
सीता की यह यात्रा न केवल उसके लिए बल्कि उन सभी लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई, जो आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान की राह पर बढ़ना चाहती थीं। अब सीता अपनी पहचान खुद बना चुकी थी। वह अपने विचारों को मजबूती से व्यक्त कर सकती थी और अपने भविष्य के लिए खुद फैसले लेने में सक्षम थी।
सीता कुमारी,एडू लीडर
मुजफ्फरपुर
No comments:
Post a Comment