वर्ष 2021 दिसंबर के बीच में मैं वकील जी के साथ सराधी-बंगलवा में आंगनवाडी, समुदाय और विद्यालय विजिट पर गयी। जब हम आंगनवाडी केंद्र पहुँचे तो 3-4 बच्चे आंगनवाडी केंद्र में खेल रहे थे और आंगनवाडी सहायिका “सुलेखा दीदी” पीछे वाले कमरे में आराम कर रही थी। बच्चों से मैंने थोड़ी बात की, उनका नाम पूछा और बाकी बच्चे कब तक आयेंगे यह पूछा, तो एक बच्चा जिसका नाम “राजा” था वह बोला कि 10 बजे आयेंगे सब, उस समय साड़े दस बज रहे थे। मैं मुस्कुरायी और फिर मैंने बच्चों से पूछा कि आपको कुछ खाने के लिए भी मिलता है क्या यहाँ? इतने में सुलेखा दीदी बहार आ गयी थीं।
बच्चों ने तुरंत हाँ में सर हिलाया और बोला हाँ, खिचड़ी, लड्डू, हलवा.... आदि।
(आंगनवाडी केंद्र संख्या 67 की तस्वीर, ग्राम सराधी)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, 10+2 वाली स्कूली व्यवस्था को 3-18 वर्ष के सभी बच्चों के लिए पाठ्यचर्चा और शिक्षण-शास्त्रीय आधार पर
5+3+3+4 की
एक नयी व्यवस्था में पुनर्गठित करने की बात करती है। वर्तमान में 3 से 6 वर्ष की उम्र के बच्चे 10+2 वाले ढांचे में शामिल नहीं हैं क्योंकि 6 वर्ष के बच्चे को कक्षा 1 में प्रवेश दिया जाता है। नए 5+3+3+4 के ढांचे में 3 वर्ष के बच्चों को शामिल कर प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया गया है जिससे आगे चलकर बच्चों का विकास बेहतर हो, इसी बात को ध्यान में रखकर संस्था i-सक्षम ने इस वर्ष से आंगनवाडी केन्द्रों के साथ मिलकर शिक्षण कार्य करने का निर्णय लिया है।
आंगनवाडी केंद्र 15
नवम्बर, 2021 को खुल गए हैं। संस्था i-सक्षम आंगनवाडी
दीदियों का बच्चों की शिक्षा में सहयोग करने तथा उन्हें प्रेरित करने हेतु
एडु-लीडर्स (बैच-7) को विशेष प्रशिक्षण दे रही है। संस्था i-सक्षम का आंगनवाडी केंद्र के साथ कार्य करने का उद्देश्य नई शिक्षा नीति
के अनुरूप प्री-प्राइमरी शिक्षा पर ध्यान देना है। इसमें एडु-लीडर्स को प्रारंभिक साक्षरता, संवाद के लिए
प्रारंभिक भाषा और संख्यात्मकता के अलावा संज्ञानात्मक और भावात्मक क्षमताओं को
विकसित करने के लिए बीते पाँच महीनों से जरुरी अद्ययन सामग्री से परिचय कराया जा
रहा है। खेल-आधारित शिक्षा पद्धति को सीखने और बच्चों के साथ गतिविधियों के जरिये
उसे लागू करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
आंगनवाडी के सामने ही सड़क पर एक छोटा सा पुल था जिसकी बाउंड्री वाल पर बैठकर 4-5 महिलाएं धूप सेक रहीं थी और आपस में बात कर रहीं थी, ठीक वैसे ही जैसे किसी चाय की दुकान पर राजनीति की बातें होती हैं। मैं उनके पास जाकर बैठी और वकील जी कुछ देर बात करके एडु-लीडर ज्योति को बुलाने उसके घर चले गए। उनसे बात करते हुए पता चला कि आंगनवाडी सेविका “बबिता देवी” एक बजे करीब आंगनवाडी केंद्र आती हैं और 2 बजे तो केंद्र बंद ही हो जाता है।
थोड़ी देर में वकील जी के साथ ज्योति आती हुई दिखाई देती हैं और इधर-उधर खेल रहे बच्चे आंगनवाडी केंद्र की तरफ दौड़ते नज़र आते हैं। पाँच-दस मिनट के अन्तराल में ही ज्योति बच्चों को प्रार्थना कराती हैं, एक बच्चा प्रार्थना लीड भी कर रहा होता है। विद्यालयों में तो यह बात सामान्य है क्योंकि बच्चे बड़े होते हैं, यहाँ मैंने ये होते हुए देखा तो मुझे आश्चर्य भी हुआ और प्रसन्नता भी हुई। बच्चा जहाँ प्रार्थना भूल जा रहा था, ज्योति उन्हें सहयोग कर रहीं थी।
(प्रार्थना करते हुए बच्चे)
हमारे टीम सदस्य कैफ़ी जी (जो ग्राम-सराधी के ही निवासी हैं) की बेटी “अलीना” भी आंगनवाडी में खेलने-पढने आयी हुई थी। यह जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा और यह दर्शाता है कि हम i-सक्षम के सदस्य समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा की ओर अग्रसर हैं। हमें हमारे बच्चों, हमारे सगे-सम्बन्धियों के बच्चों को आंगनवाडी केंद्र और सरकारी विद्यालयों में पढने के लिए भेजने में कोई आपति नहीं होगी यदि हमारी कोई एडु-लीडर वहाँ उपस्तिथ हैं। यह विश्वास है अपनी संस्था पर, अपनी संस्था की नीतियों पर और उस से जुड़े सैकड़ों लोगों के अनगिनत प्रयासों पर।
“मैंने कैफ़ी जी ऑफिस आकर पूछा कि क्या आप तब भी अपनी बच्ची को आँगनवाड़ी केंद्र में भेजते जब हमारी एडु-लीडर ज्योति वहाँ नहीं पढ़ा रही होती?
कैफ़ी जी ने तुरंत उत्तर दिया, नहीं तब कैसे!
पढाई तो होती ही नहीं थी ना वहाँ”।
कैफ़ी जी बताते हैं कि हम यदि अपने बच्चों को आंगनवाडी केंद्र में नहीं भेजेंगे तो आसपास के लोग कैसे अपने बच्चों को भेजेंगे! हमें देखकर भेजतें हैं।
मुझे मेरा जवाब मिल गया था।
फिर बच्चों ने बाल-गीत और कविता पाठ किया। इस समय तक 25 बच्चे आंगनवाडी में उपस्थित थे। बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी बाल-गीत कर रहे थे और आंगनवाडी में बच्चों के बैठने, खेलने-कूदने तथा गतिविधि करने के लिए प्रयाप्त जगह थी। ज्योति से पूछा तो पता चला कि इस केंद्र में 26 बच्चों का नामांकन है और जबसे ज्योति पढ़ा रही हैं (15 नवम्बर 2021), तबसे उपस्तिथि अच्छी ही रहती है।
इसके बाद वकील जी ने भी एक बालगीत कराया, एक कहानी सुनाई। जिसे बच्चों ने खूब पसंद किया और हाँ, आंगनवाडी के दरवाजे पर 6-7 महिलाएं एकत्रित होकर यह सब देख रहीं थी। फिर हमने बच्चों का नाम बच्चों से पूछा तो बच्चे बता रहे थे, इतने छोटे बच्चे अपना नाम किसी नए व्यक्ति को बता रहें है, मैं समझती हूँ कि यह साधारण बात नहीं है। एक बच्चे का नाम सैमसंग भी था। हाँ जी, सही में उसका नाम सैमसंग था। वो मात्र 3 या 4 वर्ष का होगा, मैंने उससे उसकी उम्र पूछी तो बोला कि 17 साल का हूँ मैं। हम सभी को हंसीं आ गयी, कितने मासूम होते हैं बच्चे कुछ भी बोलते हैं।
फिर हमने बच्चों के साथ पक्षियों और जानवरों की आवाज़े पहचानने वाली गतिविधि की और आवाजों पर थोड़ा विचार-विमर्श भी हुआ। इन आवाजों में शेर, बिल्ली, कुत्ता, चूहा, घोड़ा, बाघ, गाय, भेंस, बकरी, तोता, गधा, सांप, मछली, चिड़िया की आवाजें थी।
मेरे लिए आश्चर्य की बात यहाँ यह थी कि यहाँ के बच्चों ने सांप की आवाज़ को एक साथ बहुत ही सुन्दर तरीके से बोल कर बताया, जैसे कि यह उनके लिए सामान्य आवाज़ हो। जबकि गधे की आवाज़ के बारे में उन्हें नहीं पता था।
इस गतिविधि के बाद मैंने उनसे कुछ प्रश्न और किये, कि सांप किस-किस ने देखा है?
सारे बच्चों ने सांप देखा हुआ था। उनके पास हाल में ही हुई घटनाओं की कहानियाँ भी थी।
फिर मैंने घोड़े के बारे में पूछा, एक ही बच्ची ने देखा घोड़ा देखा हुआ था।
फिर गधा, जो किसी ने नहीं देखा हुआ था।
मुंगेर जिले
का
ग्राम
सराधी
आदिवासी
क्षेत्र
के
अंतर्गत
आता
है,
इस
गाँव
में
45 से
50 परिवार
रहते
हैं।
आजीविका
का
मुख्य
साधन
कृषि
के
अलावा
जंगल
और
पहाड़
से
लकड़ियाँ
बीन
कर
उनकी
टोकरी
बनाना
तथा
उन्हें
बेचना
है।
इस
समय
धान
की
कटाई
पूरी
हो
चुकी
है,
इसलिए
अधिकतर
लोग
हमें
गाँव
में
ही
मिले।
यह जानकारी मुझे समुदाय के लोगों ने ही दी। जानवरों की आवाज वाली गतिविधि के बाद हम समुदाय में घर-घर जाकर लोगों से मिले। वकील जी ने आंगनवाडी और विद्यालय में बच्चों को भेजने के लिए प्रेरित किया। कुछ अभिभावकों और बच्चों का ईट के भट्टे पर काम करने के लिए जाना, विद्यालय में पढाई ना होना, आंगनवाडी सेविका का आंगनवाडी केंद्र में ना आना और छात्रवृति का पैसा बच्चों के अकाउंट में ना आना- इस तरह की समस्याएं साझा की। वकील जी ने अपने तरीके से अभिभावकों को जवाब दिया और बच्चों को विद्यालय भेजने की सलाह दी।
समुदाय विजिट के बाद हम फिर से आंगनवाडी केंद्र गए और अब तक आंगनवाडी दीदी “बबिता देवी” आ चुकी थी। ज्योति और दीदी से थोड़ी बात करके हम अपनी अगली विजिट की ओर चल पडे।
अभिभावक: आबिद की मम्मी बताती है कि पहले अभी कुछ दिनों से आंगनवाडी समय पर खुल रहा है, बच्चे जातें हैं। सभी बच्चे एक-दूसरे को देखकर जाते हैं। दीदी पढ़ाती भी है। पर आंगनवाडी सेविका कब आती हैं, कब जाती हैं यह हमें नहीं पता। हम तो चाहेंगे ही ना कि हमारा बच्चा अच्छा पढ़े, खाए और रोज आंगनवाडी जाए। आप लोग भी आते रहा कीजिये, इन सब चीजों से भी असर पड़ता है।
सुलेखा दीदी: मेरा
काम आंगनवाडी केंद्र को खोलना साफ़-सफाई करना और बच्चों के लिए पौष्टिक आहार बनाना है। मैं पढ़ना लिखना तो नहीं जानती पर ज्योति के आने से बच्चों का मन लगा रहता है। खेलने के साथ-साथ पढाई भी होती है।
तानिया (बडी): इनके लिए आंगनवाडी के बच्चों को पढ़ाना बहुत ही नया अनुभव है, ये कोशिश करती हैं कि मैं अपने बच्चों को कक्षा के प्लान के अनुसार ही पढ़ाऊँ। बच्चों के साथ जब भी रहती हैं तो बातचीत ज्यादा करती और बड़े बच्चों को सिखाने में तत्पर रहती हैं। बच्चे भी उनसे काफी हिल-मिल गए है।
हाँ लेकिन अभी उनके लिए नया अनुभव है और 2-3 महीने ही हुए हैं तो काफी चुनौती भी रहती है, ये अपनी पढ़ाई में कुछ कम समय दे पाती हैं।
घर और फ़ेलोशिप दोनों के सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश कर रही हैं।
ज्योति कुमारी (एडु-लीडर): मुझे आंगनवाडी में बच्चों को पढ़ा कर बहुत अच्छा लग रहा है। पहले कोई बच्चा आंगनवाडी नहीं जाता था, अब बच्चे भी आते हैं और अभिभावक भी आकर बच्चों को देख कर जाते हैं। साप्ताहिक प्रशिक्षण सत्र में सीखीं गयी गतिविधियों का प्रैक्टिकल करके अच्छा लगता है। मैं भी सीख रही हूँ और बच्चे भी सीख रहे हैं।
ई.सी.सी.ई.
शायद, समता स्थापित करने में सबसे शक्तिशाली माध्यम हो सकता है। प्रारंभिक बाल्यावस्था
विकास, देखभाल के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सार्वभौमिक प्रावधान को जल्द से जल्द
निश्चय ही वर्ष 2030 से पूर्व उपलब्ध किया जाना चाहिए। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके
कि पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाले बच्चे स्कूली शिक्षा के लिए तैयार हों।
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