आज मैं आप लोगों के साथ लगभग 1 साल का अनुभव साझा करने जा रहा हूँ।
सबसे पहले
मैं शुरूआती दिनों की बात करता हूँ, जब हम पढ़ाना शुरू किए थे तो मेरे पास लगभग 15-20 बच्चे थे। तब मैं उनको बिना रूटीन के पढाता था, मतलब जो भी आया पढ़ा देते थे। समय लगभग
घंटे भर का होता था, लेकिन कभी-कभी समय एक घंटा से ज्यादा हो
जाता था फिर भी मैं पढ़ाता ही रहता था।
यहाँ
मैंने सीआरएलपी के माध्यम से बच्चों को गणित पढ़ाना सीखा। वर्ण समूह पद्धति से
बच्चों को अक्षर के साथ, मात्रा सिखाने के बारे में सीखा फोनिक्स
से बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए, यह भी सीखा। रीड अलाउड, पिक्चर रीडिंग से बच्चों को कैसे पढ़ा
जाए सीखा, सीवीसी वर्ड्स बच्चों को कैसे बताया जाए, यह भी सीखा।
अपने आइडेंटी के बारे में कैसे बताया जाए
यह सीखा और मैं अपने सेंटर पर भी बच्चों को उसी तरह से सिखा रहा हूँ। मुझे उम्मीद
है कि इस फेलोशिप के माध्यम से मैं एक योग्य शिक्षक बन पाऊंगा और समाज में शिक्षा
की स्थिति को और बेहतर बना सकूँगा।
अब बात है
एक साल i-सक्षम की ट्रेनिंग के बाद बच्चों के
अनुभव को साझा करने का। अब मैं बच्चों को टिक लिंक की सहायता से पढ़ाता हूँ। मुझे
उससे बहुत मदद मिलती है, मुझे आज क्या पढ़ाना है तथा आने वाले कल
में क्या पढ़ाना है, यह मुझे पहले से ही पता होता है।
अभी मेरे पास टोटल 35 बच्चे हैं, जिन्हें मैं लगभग एक घंटे में आसानी से पढ़ा पाता हूँ, समझा पाता हूँ, और बच्चे अच्छे से समझ सीख भी जाते हैं। इसके लिए मैं i-सक्षम के सभी दीदी भैया को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने हमें एक साल इतना बेहतरीन तरीका बताया है- पढ़ने और पढ़ाने का। धन्यवाद टीम i-सक्षम हमें टिक लिंक के माध्यम से बच्चों को कैसे पढ़ाते हैं, इस बात की पूरी जानकारी देने के लिए।
अभिषेक प्रताप सिंह, i-सक्षम फ़ेलोशिप के बैच-5 के फेलो हैं। ये जमालपुर, मुंगेर में रहते हैं।
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