बच्चे स्वभाव से चंचल ही होते हैं। चंचलता के बिना बचपन भी क्या बचपन रह जाता और उनमें यह गुण प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है।
इसलिए कहा भी जाता है कि बच्चे मन के सच्चे। यही कारण भी है कि सबको बच्चों की चंचलता लुभाती भी है और वे सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते हैं। एक शिक्षक के लिए कितना खुबसूरत पल होता है जब बच्चे सक्रिय होकर कक्षा में भाग लेता है। कक्षा का माहौल ही बदल जाता है। परन्तु कभी- कभी उनकी यही चंचलता एक शिक्षक के लिए परेशानी का सबब बन जाती है और उसके लिए सिखाने में बाधा भी। क्यूँकि इसी चंचलता के कारण बच्चे कक्षा में अपनी ध्यान स्थिर नहीं कर पाते है। अनेकों शिक्षक कई बार उनके ध्यान को स्थिर करने के लिए भय और दण्ड का सहारा लेते है।
इस तरह से वह कक्षा में शान्ति का माहौल बनाने में तो कामयाब हो जाते है परन्तु इस तरह से बच्चे अपना ध्यान पढ़ाई में केन्द्रित करने और पढ़े हुए की समझ बनाने में कितना सफल हो पाते हैं, यह शायद ही कोई पूरे विश्वास के साथ कह सकता है। यह अनुभव है बैच-7 की पूजा रॉय ईकेरिया के सेंटर का जब मैं और बिपिन जी उनके सेंटर पर गए जब मैं पूजा दी की कक्षा में पहुँचा तो देखा कि सभी बच्चे प्रसन्न मुद्रा में बैठे थे। पूजा दी ने जैसे ही मुझे देखा, वो बोली, भैया! आप यहाँ, फिर तो अब मैं नही पढ़ा पाऊँगी।
मैने बोला क्यों क्या बात है? बस आप जैसे बच्चे को पढ़ा रही है, आपको वैसे ही पढ़ाते रहना है। आपको डरना नही है। आप कैसे पढ़ाती हैं, इस बात की परख करने मैं यहाँ नही आया हूँ। बस यूँ ही देखने चला आया। फिर पूजा दी ने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा... बोर्ड पर तिथि लिखी हुई थी।
पूजा दी बोर्ड पर अ-आ की समझ बच्चों को बता रही थी। अ-आ से कौन-कौन सी वस्तुओँ का नाम होता है? पूजा दी चित्र के माध्यम से बच्चों को परिचित कराने की यथा संभव प्रयास कर रही थी। पूजा दी जब पूछती तो बच्चे जोर-जोर बोलने लगते। पूजा दी ने बच्चे को बोर्ड के पास बुलाकर चित्र पहचाने /अक्षर लिखने के लिए बोला तो पायल नाम की एक बच्ची बोर्ड पर नही पहुँच रही थी।
तभी वह पूजा दी से बोली, मैं कैसे बताऊँ मुझे गोद मे उठाइये और पूजा दी ने उसे उठाकर इस गतिविधि में शामिल किया। उसके बाद पूजा दी ने सभी बच्चो को बालगीत करने के लिए प्रेरित किया। जिसमे फिर से पायल बालगीत करने की जिद्द करने लगी। पूजा दी ने उसे बहुत समझाया परन्तु वह तो बैठने के लिए तैयार ही नही हो रही थी। किसी और बच्चे की बारी आये इससे पहले ही पायल झट से बालगीत करने लगी। उसकी तीखी आवाज सारी कक्षा में गूँजने लगी। पूजा दी बार-बार उसको बिठाती वह झट से खड़े होकर बालगीत करने लगती। मैंने देखा कि पूजा दी मन ही मन गुस्सा कर रही थी। कभी पायल के हाथों को पकड़कर बिठाती , तो कभी पास में जाकर मना भी करती कि पायल किसी और को बोलने का मौका क्यो नही दे रही हो तो तुम? देखिये सर ये मेरी बात नहीं मान रही है।
अंततः पायल नही मानी और अपनी जिद्द पर अड़ी रही। फिर पूजा दी ने से ही बालगीत कराने दिया और अच्छे से सब बच्चो ने बालगीत सक्रियता के साथ किया।
आप लोग सोच कर यह बताइये कि-
1.पायल की चंचलता को एडु-लीडर कैसे दिशा दें?
2.सोचिए यदि आप उस कक्षा में होते तो क्या करते?
शिवदानी, i-सक्षम संस्था में टीम सदस्य हैंI ये जमुई, बिहार के निवासी हैंI
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