यह कहानी है- पीयूष कुमार की। इसका रुझान शुरुआत से ही पढ़ाई के प्रति नहीं था। कितनी खुशामद, कितना मनाना पड़ता था।
इसकी बात को समझाया ही नहीं जा सकता है। हालांकि यह विद्यालय पढ़ने जरूर जाया करता था। परंतु उस वक्त भी इसे बहुत मनाना पड़ता था।
एक दिन की बात है जब मैं थोड़ा अशांत था और मैं उसे पढ़ाने की कोशिश कर रहा था, हर दिन की तरह उस दिन भी वह पढ़ने की अवस्था में बिल्कुल नहीं था और मैं भी उस दिन अशांत सा था मैंने पढ़ाई के लिए डांट फटकार लगाना शुरू कर दिया।
मैंने उसे बोल दिया कि मुझे तुम्हें नहीं पढ़ाना है, मेरा मन पहले से ही अशांत था और उस की हरकतों की वजह से मेरी हालत बिगड़ और बिगड़ गई थी। मैंने उसे वर्ग से बाहर जाने को बोल दिया।
अगले दिन वह फिर आया और एक कोने में शांति से बैठ गया। मैंने भी उस की तरफ नहीं देखा। हम दोनों में तीन दिनों तक कोई बातचीत नहीं हुई।
वह आता था, कोने में बैठ कर कुछ लिखता तो फिर कभी किताब के पन्ने पलट कर देखता परंतु मैं उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता था। चौथे दिन वह जो कुछ भी जानता था, वह लिखकर मुझे दिखाने आया।
मैंने भी ठीक से देखा और फिर उसे आगे सिखाने लगा। समय के साथ हम दोनों के बीच दोस्ती बढ़ती गई। उसके बाद से वह ठीक से पढ़ने लगा परंतु अभी भी वह बीच-बीच में पढ़ने में नखरे करता है।
इन सब बातों में सबसे बड़ी दिलचस्प बात यह है कि उस दिन के बाद से अब तक जब भी मैं उसे डांट फटकार लगाता हूँ, वह उस पर ध्यान नहीं देता है और वह पूछते रहता है, सर जी यह वाला सवाल कैसे हल होगा?
मुझे समझ में नहीं आ रहा है। बताइए यहाँ मैं क्या और कैसे करूँ, यह पूछता है।
इस बात पर मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि वनस्पति दूसरे बच्चों की तुलना में, दूसरे बच्चे को मैंने ऐसा करते हुए नहीं देखा आज वही लड़का टिकलिंग प्रतियोगिता में भाग लिया हम दोनों ने मिलकर उसकी तैयारी की। उसने भी पूरे मन से भाग लिया और वह प्रतियोगिता में एकसेलेनंस का अवार्ड जीता। और तो और साथ में छात्रवृत्ति पर भी विजय पाई।
आज वह बोलता है कि मैं आर्मी विभाग में जाउँगा।
पीयूष कुमार एक इंट्रोवर्ट लड़का है, वह अकेला रहना पसंद करता है। वह अपनी पालतू बकरी की साथ खेलना पसंद है, उसे प्यार से गले लगाकर पियूष को बहुत अच्छा महसूस होता है।
(धरमराज, i-सक्षम फ़ेलोशिप में बैच-5 के फेल्लो हैं।)
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