जब मैं मध्य विद्यालय सराधी पहुँची तो वहाँ एस. एम. सी. मीटिंग चल रही थी। मैं उस विद्यालय के प्रधानाध्यापक से मिली और मैंने उनसे इस मीटिंग में सम्मिलित होने की अनुमति ली। उन्होंने तुरंत हाँ कर दिया और यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। वैसे मैंने पहले भी कई बार इस विद्यालय के शिक्षक तथा अभिभावकों के साथ बैठक में भाग लिया है, पर आज की एस. एम. सी. मीटिंग में जो चर्चा हुई उसे भी सुनकर बहुत अच्छा लगा, कुछ नया लगा।
बैठक में विद्यालय के शिक्षक, एच. एम., सी. आर. सी. के सदस्य, गांव की 25 महिलाएं और अन्य सहायक गण मौजूद थें।
बात यहाँ से शुरू हुई कि विद्यालय की स्थिति अभी कैसी है?
यह किसकी जिम्मेवारी है?
इसे कैसे सुधारा जा सकता है?
बैठक में ज्यादातर ग्रामीण महिलाएँ ही मौजूद थीं , वो सभी चुपचाप सुन रहीं थी । कई बार मेरा मन किया कि मैं भी कुछ बोलूँ पर शिक्षक लगातार बोल रहे तो मुझे बीच में टोकना उचित नहीं लगा । मैं थोड़ा रुकी और इन सारी बातों को ध्यान से सुना। फिर बात शुरू हुई कि अब इस विद्यालय को व्यवस्थित रूप से चलाये जाने के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी जिसकी सदस्य वो महिलाएं होंगी जिनके बच्चे इस विद्यालय में पढ़ रहें हैं।
कमेटी के सदस्यों की सूचि इस प्रकार है:
- पिछड़े वर्ग से - सोगरा खातून
- अत्यंत पिछड़े वर्ग से - सरोजनी देवी और पिंकी देवी
- अनुसूचित/अनु-जनजाति से - सुगिया देवी और सुलेखा देवी
- निःशक्त से - गुड़िया खातून
- जीविका से जुड़ी महिलाओं से - रूबी देवी और सुलेखा देवी
इतनी बात हो जाने के बाद फिर मुद्दा उठा कि इस बार विद्यालय के सचिव कौन बनेंगे? फिर इस बात को लेकर महिलाओं के बीच चर्चा होनी शुरू हो गयी। इतने में प्रधानाध्यापक ने समझाया कि सचिव बनने से बहुत सारी जिम्मेवारी भी आती है। विद्यालय के हर छोटे-बड़े काम में उनका हस्क्षेप होगा, चाहे वो बिजली पानी की हो या बच्चों के लिए दरी बेंच की व्यवस्था की।
हेडमास्टर, बिना सचिव की सहमति के और बिना हस्ताक्षर लिए यह कार्य नहीं कर सकेंगे। काफी देर तक बातचीत के बाद अंतिम फैसला मीणा देवी के पक्ष में लिया गया। वो अध्यक्ष बनेंगी और एस. एम. सी. सदस्यों में से एक महिला सुगिया देवी को चुना गया और दोनों ने अपने हस्ताक्षर किये। इन सब के बीच मुझे लगा महिलाएं कम्युनिटी की सदस्य तो बन गयी है लेकिन अब भी उनके मन में ये सवाल चल रहा था के उनको करना क्या है तो मैंने फिर अपनी बात रखी कि उनका कार्य या जिम्मेवारी क्या-क्या होगी? मैंने उन्हें इसकी जानकारी दी और इसे प्रधानाध्यापक नें भी समापन में जिक्र किया कि वो हर 15 दिन में या कभी भी आ कर देख सकते है कि विद्यालय में क्या हो रहा है, बच्चे पढ़ रहें हैं या नहीं , मध्याह्न भोजन को लेकर कुछ दिक्कत तो नहीं आ रही , विद्यालय में किसी चीज की जरूरत तो नहीं , विद्यालय के शिक्षक समय आते-जाते है या नहीं, आप जिस टोले में रह रहे है क्या वहाँ के हर बच्चे विद्यालय रोज आ रहें है ये ध्यान देना और उनके अभिभावकों को समझाना।
जब मैं बाहर आई तो एक महिला जो मीटिंग में थीं वो फिर मुझे अलग से बोलीं भी के हमको आपकी बात समझ आ गयी कि ये कमेटी किसलिए बनायीं जा रही है, ये सब तो होना ही चहिये। आज मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है क्योंकि मैं इस विद्यालय के हर एक सदस्य को जान पाई और आगे के लिए मेरा और एडु-लीडर का प्लान होगा कि जब भी किसी समुदाय में हमें मिलना होगा तो पहले उस टोले के एस. एम. सी. सदस्य से जरूर मिलेंगे जिससे वो भी लीड करना शुरू कर सकें और उनको भी चीज़ों की जानकारी हो।
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