फिर स्नेहा ने देखा कि कक्षा 3 का एक बच्चा, रंजन, शांत बैठा हुआ था। स्नेहा ने उससे पूछा, "रंजन, तुम्हें गुस्सा कब आता है?"
रंजन ने धीरे-धीरे जवाब दिया, "दीदी, मुझे गुस्सा तब आता है जब पापा शराब पीकर आते हैं। वे मम्मी से झगड़ा करते हैं और उन्हें मारते भी हैं।"
सन्नाटा और सहानुभूति
कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया। सभी बच्चे रंजन की बात सुनकर शांत हो गए। स्नेहा ने देखा कि रंजन की आंखों में दर्द था। उसने महसूस किया कि यह बात केवल रंजन की नहीं, बल्कि कई बच्चों की हो सकती है।
समाधान की ओर
स्नेहा ने बच्चों से पूछा, "अगर आप रंजन की जगह होते, तो क्या करते?" बच्चों ने गंभीरता से जवाब दिए।
"हम किसी बड़े से मदद मांगते।"
"हम बाहर जाकर हल्ला करते और लोगों को बुलाते।"
"हम पापा को नींबू पानी देते ताकि उनका नशा कम हो जाए।"
"जब पापा शांत होते, तो उनसे बात करते।"
बच्चों के जवाब ने स्नेहा को भावुक कर दिया। वह खुश थीं कि बच्चे न केवल समस्या को समझ रहे थे, बल्कि समाधान की दिशा में सोच भी रहे थे।
होमवर्क और एक नई शुरुआत
स्नेहा ने बच्चों को होमवर्क दिया। उन्होंने कहा, "घर में दो लोगों से बात करो और उनसे पूछो कि रंजन अपनी मम्मी की मदद कैसे कर सकता है। कल इस पर चर्चा करेंगे।"
बच्चों ने यह जिम्मेदारी बड़े उत्साह से ली। स्नेहा ने देखा कि इस गतिविधि ने बच्चों में सहानुभूति और दूसरों की भावनाओं को समझने का गुण विकसित किया।
पिंकी और स्नेहा का समर्पण
स्नेहा ने पिंकी की ओर देखा, जो यह सब देखकर मुस्कुरा रही थीं। स्नेहा को लगा कि पिंकी की उदासी थोड़ी कम हुई थी। इस स्कूल में स्नेहा और पिंकी ने न केवल पढ़ाई, बल्कि बच्चों के दिल और दिमाग में नई सोच पैदा करने का बीड़ा उठाया था।
जमुई
No comments:
Post a Comment