मीडिया की दुनिया में पहला कदम: डर और हिम्मत की जंग
आज मैं आप लोगों से सोशल मीडिया और कम्युनिकेशन टीम के साथ जुड़े अपने अनुभवों को साझा करना चाहती हूं। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें डर, संघर्ष, लगातार प्रयास और अंततः सफलता का संगम है।
शुरुआत: जब मिली बड़ी चुनौती
लगभग चार महीने पहले की बात है, एक मीटिंग के दौरान मुझे एक जिम्मेदारी सौंपी गई। मुझे अपने जिले की न्यूज़ को स्थानीय अखबारों में प्रकाशित करवाने और i-सक्षम से जुड़ी लाइव न्यूज़ दिखाने का लक्ष्य दिया गया। सुनने में तो यह काम आसान लग सकता था, लेकिन मेरे लिए यह किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा था।
क्योंकि मैं ना किसी मीडिया पर्सन को जानती थी, ना कभी किसी रिपोर्टर से बात की थी। मेरे पास उनका कोई नंबर नहीं था। मुझे बस अखबार के ऑफिसों के नाम और उनके जानकारी मालूम थे—दैनिक जागरण, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर और हिंदुस्तान। लेकिन यह सब जानकारी तब तक बेकार थी, जब तक मैं कोई ठोस कदम नहीं उठाती।
डर के आगे जीत है
मैंने तय किया कि डर से भागने के बजाय इसे हराने की कोशिश करूंगी। सबसे पहले मैं दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के ऑफिस गई। वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकती, जब मैं पहली बार दैनिक जागरण के संपादक से मिलने गई। दिल तेजी से धड़क रहा था, मन में बहुत सारा सवाल चल रहा था और डर लग रहा था कि क्या मैं अपनी बात सही तरीके से रख पाऊंगी?
लेकिन मैं तैयार थी। मैंने i-सक्षम के बारे में PPT बनाकर ले गई थी और लैपटॉप भी साथ में ले कर गई, ताकि मैं उन्हें अपनी बात बेहतर तरीके से समझा सकूं। यह मेरी पहली जीत थी—मैंने डर पर काबू पाया और खुद को एक नई दिशा में धकेल दिया।
लगातार प्रयास: सुबह 9 से रात 9 की दौड़
अगले दो-ढाई महीने तक मेरा यही रूटीन बन गया। कभी सुबह नौ बजे तो कभी शाम छह बजे, जब भी संपादक या रिपोर्टर से मिलने का समय मिला, मैं तुरंत पहुंच जाती। कई बार पांच-दस मिनट की देरी से मिलने का मौका छूट जाता। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।
मैंने धीरे-धीरे उन्हें i-सक्षम से जुड़ी सफलताओं, मैसेज, वीडियो और तस्वीरें भेजनी शुरू कीं। इस दौरान, दैनिक भास्कर के एक रिपोर्टर से मुलाकात हुई। मैंने प्रियंका दी और प्रिंस सर को दिखाया और रूपल दी बात कर के न्यूज़ तैयार की और उसे जमा कर दिया।
पहली सफलता: पहला न्यूज़ प्रकाशित हुआ
जब मेरा पहला न्यूज़ प्रकाशित हुआ, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। यह मेरे लिए सिर्फ एक खबर नहीं थी, यह मेरे प्रयासों का पहला ठोस परिणाम था। मैंने महसूस किया कि मेहनत और धैर्य के साथ कुछ भी संभव है।
इसके बाद मैंने दैनिक जागरण के ऑफिस को और विकसित करना शुरू किया। मेरी मेहनत रंग लाई और एक दिन वहां के रिपोर्टर का नंबर मिल गया। मैंने उन्हें कॉल करके i-सक्षम के बारे में बताया। वह बहुत खुश हुए और उन्होंने मेरी खबर को प्रकाशित करने का वादा किया।
यह मेरी दूसरी बड़ी जीत थी। यह एहसास हुआ कि जब आप प्रयास करते हैं, तो चीजें अपने आप आपके पक्ष में आने लगती हैं।
यह मेरी दूसरी बड़ी जीत थी। यह एहसास हुआ कि जब आप प्रयास करते हैं, तो चीजें अपने आप आपके पक्ष में आने लगती हैं।
उसके बाद,
अब मेरा अगला लक्ष्य था i-सक्षम का लाइव न्यूज़ दिखाना। मुझे अपनी टीम के साथ मिलकर एक वीडियो तैयार करना था। जब मेरे सभी साथी अपने-अपने क्लस्टर को सेलिब्रेट कर रहे थे, मैंने भी अपनी टीम के साथ इस अवसर का उपयोग किया।
हमने वीडियो बनाया और मुजफ्फरपुर वाव के संस्थापक सर को भेजा। उन्होंने इसे बहुत पसंद किया और मुझे एक रिपोर्टर का नंबर दिया। मैंने उनसे बात की और i-सक्षम का विजुअल न्यूज़ (Visual News) भी प्रकाशित हो गया।
साझा सफलता और धन्यवाद,
यह सबकुछ संभव हो पाया क्योंकि मेरी टीम, एडु लीडर, मेंटर और कम्युनिकेशन टीम ने मुझे हर कदम पर प्रेरित किया। मैंने सीखा कि डर को जीतने का सबसे अच्छा तरीका है, उसे सीधे चुनौती देना।
मैं अपने प्रयासों और सफलता की इस यात्रा को सभी के साथ साझा करके बहुत खुश हूं। आशा है कि मेरी कहानी आपको भी अपने सपनों की ओर बढ़ने की प्रेरणा देगी।
आप सभी का सहयोग और विश्वास के लिए दिल से धन्यवाद।
आप सभी का सहयोग और विश्वास के लिए दिल से धन्यवाद।
राधा
बडी
मुजफ्फरपुर
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