Friday, December 27, 2024

रुकशाना खातून: एक शिक्षक की प्रेरणादायक कहानी

रुकशाना खातून: एक शिक्षक की प्रेरणादायक कहानी

यह कहानी रुकशाना खातून की है, जो बिहार के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बुधनगरा में पढ़ाती हैं। अपने छोटे-छोटे लेकिन प्रभावशाली प्रयासों से रुकशाना ने न केवल अपने समुदाय में बदलाव लाया, बल्कि पढ़ाई के प्रति एक नई सोच भी पैदा की। 


गाँव के चाचा-चाची और आई-सक्षम का परिचय

रुकशाना के लिए उनका काम सिर्फ स्कूल तक सीमित नहीं है। वे अपने गाँव के चाचा-चाचियों से जुड़कर उनके जीवन में भी शिक्षा का उजाला फैलाने का प्रयास कर रही हैं। एक दिन जब वे गाँव में गईं, तो एक चाचा ने पूछा, "रुकशाना, क्या तुम्हें सरकारी नौकरी मिल गई?"

रुकशाना मुस्कुराते हुए बोलीं, "नहीं चाचा, मैं आई-सक्षम संस्था से जुड़ी हूँ। यह संस्था हमें बच्चों और समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने का मौका देती है।" जब चाचा-चाचियों ने यह सुना, तो वे बहुत खुश हुए।

हस्ताक्षर से शुरू हुआ बदलाव

एक दिन रुकशाना ने अपने गाँव के एक चाचा से पूछा, "क्या आपको हस्ताक्षर करना आता है?" चाचा ने शर्माते हुए कहा, "थोड़ा बहुत आता है।"

रुकशाना ने तुरंत उन्हें हस्ताक्षर करना सिखाया। अगले दिन, वही चाचा उनके घर आए और बोले, "रुकशाना, क्या तुम मुझे रोज एक घंटा पढ़ा सकती हो?"

रुकशाना ने खुशी-खुशी यह प्रस्ताव स्वीकार किया। उन्होंने चाचा को अक्षर, गिनती, और पढ़ाई का पहला


10 दिन में बड़ा बदलाव

सिर्फ 10 दिनों में चाचा ने:

  • 'अ' से 'ज्ञ' तक पढ़ना और लिखना।

  • 'A' से 'Z' तक अंग्रेजी अक्षरों को समझना।

  • '1' से '100' तक की गिनती सीख ली।

रुकशाना को अब पूरा विश्वास है कि चाचा जल्द ही किताबें भी पढ़ने लगेंगे।

पढ़ाई का असर पूरे समुदाय पर

रुकशाना के इस छोटे से प्रयास ने उनके गाँव में एक नई लहर पैदा कर दी। चाचा के अलावा, तीन और गाँव के बुजुर्ग अब रुकशाना से पढ़ाई कर रहे हैं। यहाँ तक कि उनकी दादी, खतीजा खातून, जो कभी स्कूल नहीं गईं, उन्होंने भी पढ़ाई शुरू कर दी।

रुकशाना रात में सोने से पहले अपनी दादी को पढ़ाई में मदद करती हैं। अब दादी न केवल अक्षरों को पहचान रही हैं, बल्कि खुद पर गर्व महसूस करती हैं।

एक छोटे प्रयास का बड़ा प्रभाव

रुकशाना की मेहनत ने यह साबित किया कि शिक्षा की लौ जलाने के लिए केवल एक सही शुरुआत की जरूरत होती है। उन्होंने अपने समुदाय के लोगों को पढ़ाई की अहमियत समझाई और उन्हें इस सफर पर साथ ले आईं।

आज रुकशाना के गाँव में हर कोई कहता है:
"अगर हमें कुछ सीखना है, तो रुकशाना से बेहतर कोई नहीं!"

नेहा कुमारी
बडी, मुजफ्फरपुर

 

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