आज कोरोना महामारी का सामना पुरे देश को करना पड़ रहा है | हम सभी के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण रहा है |
जहाँ एक और कोरोना से लोगों के स्वास्थ पर भारी असर पड़ा हैं, वहीँ दूसरी और बच्चों की शिक्षा भी बहुत प्रभावित हुई है| लॉकडाउन लगने से लेकर अब तक सभी विद्यालय व संस्थान बंद है | ऐसे मे बच्चों को शिक्षा मिल पाना बहुत मुश्किल हो गया है और यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में और भी विषम हो गयी है| माता-पिता भी अपने बच्चे के शिक्षा को लेकर बहुत चिंतित है कि इस स्थित में अपने बच्चे को कैसे शिक्षा से जोड़ा जाए | ऐसे में सराधी गाँव की एक युवती गुलमेहर इस परिस्तिथि का सामना कर अपने गाँव के बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं का निदान कर रही हैं|
गुलमेहर आई सक्षम के बैच 3rd की फेलो हैं | वे मुंगेर जिले के सराधी गांव की निवासी है | यह गांव कई टोले में बंटा हुआ है | गुलमेहर लॉकडाउन के पहले बच्चों को स्कूल में पढ़ाती थी | स्कूल गांव के मध्य में आता है जहाँ सभी बच्चे एक साथ पढने आ जाते थे| लेकिन अचानक लॉकडाउन हो जाने के कारण बच्चों का स्कूल आना बंद हो गया | लेकिन गुलमेहर ने पढ़ाना बंद नही किया| उन्होंने बच्चों को फोन के माध्यम से पढ़ाना शुरु किया | जब तक लॉकडाउन लगा रहा तब तक गुलमेहर बच्चों को फोन कॉल केे माध्यम से ही पढ़ाती रही | लॉकडाउन खत्म होने के बाद गुलमेहर ने अपने सेंटर पर अपने आस पास के कुछ बच्चों को सोशल दिस्टेंसिंग व् साफ़ सफाई का पालन कर पढ़ाना शुरु किया|
बच्चों को घर पर बुलाकर पढ़ाने में एक समस्या यह आ रही थी कि जगह की कमी के कारण सभी बच्चे पढने के लिए नही आ सकते थे| साथ ही महामारी के चलते उन्हें कम से कम बच्चों को बुलाना ही ठीक लगा| इसलिये उन्होंने बच्चो को उनके स्तर के अनुसार अलग -अलग समूह में बाँट दिया और उन्हें अलग अलग बैच में पढाना शुरू किया|
जैसे की हमने पहले भी जाना की सराधी गांव बहुत सारे टोले में बटा हुआ है, इनमें से कुछ टोले गुलमेहर के घर से काफी दूरी पर है | जिस कारण दूर के बच्चे केे गुलमेहर केे यहाँ नही पहुँच पाते थे | गुलमेहर इन दूर रह रहे बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित थी और वे किसी न किसी तरह उन बच्चों तक शिक्षा पहुचना चाहती थीं| वे जानती थी कि अगर इन बच्चों का पढाई से जुड़ाव छूट गया तो उन्हें वापस उनके शैक्षणिक स्तर पर लाने के लिए बहुत प्रयास करना होगा| उन्होंने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने केे लिए बच्चों को वर्कशीट के माध्यम से पढ़ाने के बारे में सोचा (वर्कशीट जिसमे गणित , हिन्दी, अंग्रेजी के विषय के प्रयास, प्रश्न व उतर रहते है जिसे बच्चे खुद बनाते हैं )| फिर क्या था, अगर वे बच्चे गुलमेहर तक नही पहुँच पाए, गुलमेहर उन तक जा पहुंची| उन्होंने दूर रह रहे हर बच्चे के घर जा कर वर्कशीट बांटी और साथ ही बच्चों के अभिभावकों से बात की| अभिभावकों से बातचीत के दौरान गुलमेहर ने उन्हें बच्चों को शिक्षा के प्रति उनके संभव सहयोग के बारे में बताया| साथ ही उन्होंने घर के शिक्षित सदस्य को worksheet को किस तरह से बच्चों को समझाना है, यह भी बताया|
कुछ सप्ताह बाद अभिभावकों व् बच्चों में गुलमेहर के प्रयास के प्रति ख़ुशी नज़र आई और उन्होंने गुलमेहर के प्रयासों की प्रशंसा की| जब एक दिन गुलमेहर को बच्चों के घर पहुँचने में थोड़ी देर हो गई तो बच्चे वर्कशीट के लिए गुलमेहर का इंतजार रहे थे| वे अपने घरों से बहार रोड के किनारे खड़े देख रहे थे कि गुलमेहर कब वर्कशीट लेकर आएगी| गुलमेहर द्वारा बच्चों से उनके रोड के किनारे खड़े होने का कारण जान्ने पर बच्चों ने बताया कि अगर वे पहले से रोड के किनारे पहुँचकर खड़े रहेंगे तो गुलमेहर को पैदल ज्यादा दूरी नही तय करनी पड़ेगी| बच्चों में शिक्षा के प्रति यह उत्साह व् गुलमेहर के प्रति इस स्नेह को देख गुलमेहर फूले न समाई और उन्हें खुद पर और अपने बच्चों पर बेहद गर्व हुआ| अब बच्चे हर बार गुलमेहर से पहले पहुँच जाते थे | बच्चे पूरे मन से वर्कशीट पर कार्य करते हैं और उनके अभिभावक उन्हें इसमें पूरा सहयोग करते हैं|
एक ऐसे समाज का हिस्सा होने के बावजूद जहाँ महिलाओं को बहुत अधिक गाँव से बाहर अकेले आने जाने की छूट नही है, गुलमेहर ने अपने साहस के दम पर यह कार्य कर दिखाया| यह एक अहम् और चुनौती पूर्ण कार्य था परन्तु अपने गाँव के बच्चों की शिक्षा के ऊपर गुलमेहर को उस वक़्त कुछ नही दिखा और उनकी मेहनत रंग लाई | वे इन परिस्थितियों में भी बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने में कामयाब रहीं | बच्चों का खुद चलकर आना , अभिभावकों का पूर्ण सहयोग मिलना, यह सब इन बातों को दर्शाता है की बच्चों के साथ -साथ अभिभावक में भी शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है और पिछड़े इलाकों में भी अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति चिंतित हैं| गुलमेहर ने समुदाय में अपना मजबूत रिश्ता बनाया है और समाज का विश्वास हासिल किया है|
गुलमेहर अब स्कूल खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रही है | वे वापस अपने विद्यालय के उस परिवार से मिलने के लिए इच्छुक है जिसके साथ वह रोज़ समय बिताती और उन्हें नयी नयी चीज़ें सिखाती| वहीँ दूसरी और बच्चे भी वापस कक्षा में आने का इंतज़ार कर रहे हैं| गुलमेहर का कहना है - परिस्थितियाँ जैसी भी हों, कोई बच्चा रुके ना कोई बच्चा छूटे ना!