साझा अभियान
लगभग डेढ़ साल बीत गए बच्चों को विद्यालय गए हुए । शायद कुछ बच्चों ने अभी विद्यालय जाना ही शुरू किया होगा और कुछ अपने भाईयों-बहनों को विद्यालय जाते देख आने वाले वर्षों में खुद भी विद्यालय जाने की बात सोचा करते होंगे। पर परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि सभी बच्चे विद्यालय से वंचित हो गए।
यह परिस्थिति तब और भी बुरी हो जाती है जब माँ-बाप यह सोचकर विचलित हो जाते हैं कि अब उनके लाड़ले-लाडली को कौन पढाये?
खुद पढ़े-लिखे नहीं है ना, कहीं बच्चे की पढाई छूट न जाये!
इन सभी उधेडबुन के बीच एडु-लीडर लगातार अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। अलग-अलग जरिया ढूंड रहे थे। उन्होंने अपने समुदाय में तब भी अपनी मौजूदगी बनाये रखी जब समुदाय लॉक डाउन की मार झेल रहा था।
16 अगस्त, 2021 को जब दोबारा विद्यालय खुला तो शायद यह सवाल या आशंका सभी के मन में थी कि पता नहीं कब तक मेरे बच्चे विद्यालय जा पाएंगे। कहीं मार्च महीने की तरह इस बार भी विद्यालय फिर से बंद होने के बाद, खुलें ही ना!
विद्यालय खुला और बच्चों ने विद्यालय जाना शुरू किया पर बच्चों की उपस्थिति कम थी । एक तो कारण है कि सरकार के निर्देशनुसार केवल 50% उपस्थिति के साथ ही विद्यालय संचालित हो और अन्य कारण पाठक भी अनुमान लगा ही चुके होंगे कि क्या हो सकता है? बच्चों की उपस्थिति क्यों कम रहती होगी?
इन सब के बीच अब यह आवश्यक हो चला था कि समुदाय बच्चों की शिक्षा में अपनी सक्रिय भूमिका निभाए । इसके लिए i-सक्षम ने नयी तो नहीं, पर एक जरुरी पहल शुरू की । i-सक्षम ने अपने टीम और एडु-लीडर की मदद से समाज को आगे बढ़कर बच्चों की शिक्षा का जिम्मा अपने कंधे पर लेने के लिए प्रेरित करने का दायित्व लिया है । इसके लिए हमने अगस्त महीने से जमुई और मुंगेर जिला के चयनित ब्लाक में V.O. और C.L.F. बैठक में भागीदारी लेना शुरू किया है। ये बैठकें आम होते हुए भी बहुत खास हैं क्योंकि इन बैठकों में ग्रामीण स्तर के लोग प्रतिनिधित्व करते हैं और इसका सञ्चालन करते हैं ।
गाँधी जी ने भी कहा था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। भारत की उन्नति तब होगी जब गाँव विकसित होगा और गाँव तब विकसित होगा, जब गाँव की जनता इसकी बागडोर संभालेगी।
अगस्त महीने में जब i-सक्षम के टीम और एडु-लीडर ने VO और CLF में बैठक शुरू की थी। बैठक से पहले हमारा उद्देश यह था कि अभिभावकों को भी आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान/कौशल से जोड़ा जाये ताकि वे अपने बच्चों को घर पर भी पढ़ने-लिखने में मदद कर पाए । इसके लिए अभिभावकों का पढ़ा-लिखा होना आवश्यक नहीं है। बस कुछ आधारभूत जानकारी कौशल के साथ वे अपने बच्चों की पढाई-लिखाई में सहयोग कर पायें। जैसे- बालगीत या कहानी सुनना/सुनाना, कंकर-पत्थर की मदद से जोड़ना या घटना, रुपया की समझ आदि।
पर जब हमने पहली बैठक की थी तब इस V.O. की महिलाओं ने जहाँ विद्यालय खुलने की ख़ुशी जताई वहीँ बच्चों के विद्यालय न जाने को लेकर भी चिंता दिखाई। इनमें से एक महिला ने अपने बच्चों के साथ उनका अनुभव साझा किया, “इतने दिन बाद विद्यालय खुला है कि मेरा बेटा तो विद्यालय ही नहीं जाना चाहता है । विद्यालय जाने के समय से पहले कहीं खेलने भाग जाता है और दोपहर बाद आता है । घर पर थोड़ा-बहुत पढ़ ले वही काफी है ।”
उस महिला की बातों को सुनकर बैठक में आयी, अन्य महिलाओं ने सहमती जतायी। जब हमलोग अगले 1-2 अन्य V.O. बैठक में भी शामिल हुए तो महिलाओं ने यह बात कही कि इतने दिन के बाद अब बच्चे विद्यालय नहीं जाना चाहते।
जब हमने इस समस्या पर अपने टीम में चर्चा की तब यह विचार आया कि क्यों न इसे एक मुहीम का रूप दिया जाये? क्यों न हम बच्चों के अभिभावकों/माताओं के साथ मिलकर एक अभियान चलाये।
अभियान होगा “हर बच्चा स्कूल जाये”।
हमने अपने पहले उद्देश्य (अभिभावकों को भी आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान/कौशल से जोड़ा जाये ताकि वे अपने बच्चों को घर पर भी पढ़ने-लिखने में मदद कर पाए) के साथ ही इस अभियान (हर बच्चा स्कूल जाये) को भी सम्मिलित कर लिया है ।
हमने अगली अन्य बैठकों में भी जब इसपर चर्चा की तो महिलाएं काफी उत्साहित हुई और उन्होंने संकल्प लिया है उनकी पूरी कोशिश होगी कि हर बच्चा स्कूल जाये। इसके लिए उन्हें साथ में मिलकर जो भी जरुरी कदम उठाने की जरुरत होगी वे जरुर उठाएंगे। अपने गाँव जाकर भी अभिभावकों को प्रेरित करेंगी कि वे अपने बच्चों को रोज विद्यालय भेजें। इसके साथ ही मौका मिलेगा तो हमलोग विद्यालय भी जाकर देखेंगे कि बच्चा पढ़ रहा है या नहीं । इस पर लवली दीदी ने कहा, “हाँ, क्यों नहीं । जब बच्चा प्राइवेट विद्यालय में पढता है, तो कैसे सब अभिवावक विद्यालय जाते हैं और शिक्षक से बात करते हैं । हम लोग सरकारी विद्यालय में क्यों नहीं जा सकते! आखिर अपने गाँव का ज्यादातर बच्चा तो सरकारी विद्यालय में ही पढता है”।
V.O. की सक्रिय महिलाओं को सुनकर i-सक्षम टीम और एडु-लीडर की उत्साह का कोई ठिकाना नहीं है । उत्साह इतना है कि हमने 1 महीने से भी कम की अवधि में 22 V.O. और 2 C.L.F. में अपने अभियान का बिगुल बजा दिया है और उत्साह के साथ-साथ मिलकर काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
एकता, i-सक्षम संस्था में टीम सदस्य हैंI ये जमुई, बिहार की निवासी हैंI
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