इम्पैक्ट रिपोर्ट सारांश 2021
प्रिय दोस्तों, 26 नवम्बर 2021 को संविधान दिवस की 71वीं वर्षगाठ के अवसर पर दो वर्षों में एडु-लीडर्स में आये बदलाव और बिहार राज्य के सन्दर्भ में युवा महिलाओं के लिए i-सक्षम फ़ेलोशिप की महत्ता पर गहन चर्चा हुई। रोनिता दीदी ने सभी उपस्थित लोगों का स्वागत सत्कार किया और राजमणि जो बैच-4 की एडु-लीडर हैं, ने अपने फ़ेलोशिप से पहले, फ़ेलोशिप के दौरान और अभी के अनुभव साझा किये।
स्मृति के प्रश्नों ने फ़ेलोशिप प्रोग्राम को बारीकी से समझने में मदद की और असेसमेंट का परिणाम साझा करने वाली वसुधा दीदी और अरुन्धिता दीदी ने जमीनी स्तर पर किये गए अध्ययनों के आधार पर उत्तर दिए। अरुन्धिता दीदी ने अलग-अलग संस्थानों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए अनुसंधानों पर प्रकाश डाला, जिनमें से कुछ तथ्य नीचे दिए गए हैं:
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा किये गए अनुसन्धान से पता चला है कि Foundational Literacy and Numeracy का स्तर सुधारने के लिए एक बड़े स्तर पर सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है।
Population Council संस्था के नतीजें बतातें हैं कि बिहार के 15 से 29 वर्ष की आयु-वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी 23% तक है। यह भी पाया गया कि ये युवा अप-स्किल्लिंग और नयी स्किल्स सीखने के इच्छुक हैं, जिससे कि ये अपने रोज़गार के अवसर और अधिक बढ़ा सकें। परन्तु स्थिति यह है कि हमारे देश के युवाओं की human capital का उपयोग हम नहीं कर पा रहे हैं।
महिलाओं को करियर में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है- जैसे कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता ना होना, अपने लिए निर्णय ना ले पाना, (बिहार में 43% युवा महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु पूरी होने से पहले हो जाना)। शोधों के मुताबिक यदि हम महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उनके निर्णय लेने की शक्ति पर काम करें तो हम ना केवल उन्हें सशक्त बनायेंगें बल्कि इसका प्रभाव उनके समाज पर भी होगा।
इन्हीं आयामों को ध्यान में रखते हुए i-सक्षम, दुर्गम क्षेत्रों के एडु-लीडर्स को (युवा महिलाओं को) भविष्य के लिए तैयार करती है।
अध्ययन में एडु-लीडर्स के जीवन में क्या बदलाव पाए गए
खुद के learning level में बढ़ोतरी- उनकी सीख में वृद्धि होना- जैसे नए-नए तरीकों से बच्चों को पढ़ाना, खुद की अंग्रेजी और गणित को मजबूत करना, कम्युनिकेशन स्किल्स सीखना, अपने समुदाय की चुनौतियों को समझ कर, उन पर काम करना।
अपनी पहचान को स्थापित करना- खुद को समझ पाना, आत्मविश्वासी होकर अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करना, खुद की शक्तियों को पहचानकर उन्हें अपने सुमदाय के अनुरूप लागू करना।
आगे पढने की इच्छा जागना, नए सिरे से जीवन की शुरुआत करना, अपने समुदाय को विकसित करने के लिए आगे आना।
प्रधानाध्यापकों, अध्यापकों और अभिभावकों से बातचीत के आधार पर, एडु-लीडर्स के प्रयासों की वजह से विद्यालय में आये बदलाव
प्रधानाध्यापकों एवं अध्यापकों के अनुसार एडु-लीडर्स की भूमिका विद्यालयों में सराहनीय रही।
एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग से पढ़ाने में बच्चे काफी मन लगाकर पढ़ते हैं, जिससे बच्चों के अधिगम स्तर में बढ़ोतरी देखने को मिली है।
एक नियमित समय सारणी के अनुरूप बच्चों की कक्षाएं चलती हैं।
लर्निंग लेवेल्स के हिसाब से बने समूहों का लाभ, धीमी गति से सीखनें वाले बच्चों को अधिक होता है। क्यूंकि इन समूहों में एडु-लीडर्स उनको ज्यादा समय और सपोर्ट दे पाते हैं और उनके लिए ये प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण है।
क्लासरूम बहुत वाइब्रेंट और प्रिंट रिच हो जाते हैं, अनेक विषयों को चार्ट-पेपर पर आसान भाषा में लिखकर क्लासरूम में लगाया जाता है।
इन सभी चीजों की वजह से कक्षाओं में बच्चों की उपस्थिति नियमित हो जाती है।
बाल मेला, शिक्षक- अभिभावक बैठक के दौरान हुई चर्चाओं की वजह से अभिभावकों का रुझान अपने बच्चे की शिक्षा के प्रति तथा उनका विश्वास विद्यालय के प्रति बढ़ा है। एडु-लीडर्स ना सिर्फ नियमित बैठकों बल्कि साधारण दिनों में भी बच्चों के अभिभावकों से उनकी पढाई के बारे में बात करते हैं। इस प्रकार बच्चों के अभिभावकों का जुडाव भी शिक्षा के प्रति देखने को मिलता है।
एडु-लीडर्स किस तरह के माहौल में पढ़ाते हैं?
आइये देखते हैं कि एडु-लीडर्स अपनी कक्षाओं में किन बच्चों को पढ़ाते हैं।
78% बच्चे छोटी कक्षाओं में पढ़ते हैं
>50% अक्षर और अंक नहीं पढ़ पाते हैं
60% बच्चों की माताएँ अशिक्षित हैं
100% बच्चे दो या दो से अधिक कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठते हैं
आगे दिए गए प्रतिशत रूप में 385 बच्चों का डेटा है जिनका वर्ष 2019 और 2021 में मूल्यांकन किया गया था। आपको बता दें कि ये वो बच्चे थे जिनकी उस समय की (2019) योग्यता स्थिति के अनुसार वे कुछ भी पढने में असक्षम थे।
2018 में शुरू होने वाले बच्चों के लिए (कोरोना महामारी से पहले सीखने में काफी समय बिताया), 2021 में 63% शब्द पढ़ सकते थे। 2019 से 2021 के बीच 30% बच्चे हिंदी में अगले स्तर तक नहीं बढ़ सके।
एडु-लीडर्स के द्वारा बच्चों को पढ़ाने के बाद “भाषा” के परिणाम
89% बच्चे कविता आसानी से पढ़ लेते हैं
78% बच्चे अक्षरों को पढ़ लेते हैं
66% बच्चे सभी अक्षरों को पढ़ लेते हैं
38% बच्चे अक्षरों से शब्द बना लेते हैं
फ़ेलोशिप के दौरान कौन सी चीजों ने एडु-लीडर्स के सहायक के रूप में भूमिका निभाई है?
फेल्लो के सहयोग के लिए एक बडी सिस्टम बनाया गया। बडी ऐसे लोग हैं जो पहले एडु-लीडर्स रह चुके हैं। इन्हें हम फ़ेलोशिप के एलुमनाई भी कह सकते हैं। ये एडु-लीडर्स को मेंटर करते हैं।
एक बडी के पास 2-3 फेलोज होते हैं, जिन्हें वो उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए पूरे 2 वर्ष के लिए सहयोग करते हैं।
क्लासरूम में बच्चों को जुड़ने के साथ, एडु-लीडर्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
बहुत सारे निर्णयों के लिए एडु-लीडर्स अभी भी अपने परिवारों पर निर्भर करते हैं। जैसे- यदि उन्हें गाँव से बाहर जाना है तो उन्हें अनुमति लेना अनिवार्य है।
शादी (एडु-लीडर्स की प्रायिकताओं में ये काफी पीछे है परन्तु) के निर्णय अभी भी परिवारजन तथा माता-पिता लेते हैं।
एडु-लीडर्स के लिए फ़ेलोशिप से अलग भी बहुत सारे कार्य हैं, जिसकी वजह से वो काफी बंध जाती हैं। जैसे- उनके घर का काम, उनकी पढाई, फ़ेलोशिप की ट्रेनिंग्स और विद्यालय जाकर बच्चों को पढ़ाना। तो कई एडु-लीडर्स को इन सबके बीच टाइम-मैनेजमेंट में काफी कठिनाइयाँ आती हैं।
विद्यालय और समुदाय के लोगों से बात करने पर पता चला कि एडु-लीडर्स को अपने नार्मल रूटीन से निकलकर फ़ेलोशिप में एक फेलो की दिनचर्या जीने में शुरूआती दिनों में काफी कठिनाइयाँ आती हैं। जैसे- बच्चों को कैसे पढ़ायें, प्रधानाध्यापक से कैसे बात करें, बच्चे अधिक शोर कर रहें हैं तो उन्हें कैसे संभालें, समुदाय में अभिभावकों और पंचायत समिति के सदस्यों से जाकर कैसे बात करें आदि। इन चीजों को सुलझाने के लिए एडु-लीडर्स को थोड़ा समय चाहिए होता है, समय के साथ ये चुनौतियाँ कम होती जाती हैं।
अध्यापकों ने भी एक बात कही कि जब एक नयी एडु-लीडर आती है और पुरानी जाती है तो उस समय भी ट्रांजीशन में थोड़ा समय लगता है।
समुदाय और अभिभावकों की ओर देखें तो अभिभावकों को समझ नहीं आता है कि उन्हें अभिभावक-शिक्षक बैठकों के लिए क्यों बुलाया जा रहा है, एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग से बच्चे कैसे सीखेंगे? यहाँ शायद ढंग से पढायी नहीं हो पा रही है। समय के साथ इन सारी चीजों का जवाब एडु-लीडर्स अपनी कार्यशैली से दे देती हैं।
श्री विजय महाजन जी ने अपनी बात संविधान की महत्ता और संविधान दिवस मनाने का उद्देश्य से शुरू की। उन्होंने बताया कि संविधान दिवस के अवसर पर हमें न सिर्फ स्वतंत्र भारत का नागरिक होने की अहसास होता है बल्कि संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों से हमें अपना अधिकार मिलता है और साथ ही लिखित मूल कर्तव्यों से हमें नागरिक के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है।
i-सक्षम संस्था के एडु-लीडर्स होना भी एक जिम्मेदार नागरिक होने का पर्यायवाची है। एडु-लीडर्स की पहचान बन रही है जैसे- ये एक शिक्षक भी हैं और समुदाय में भी भागीदारी निभाते हैं। इनका आत्मविश्वास बढ़ा है और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी है।
फिर महाजन जी ने संविधान की प्रस्तावना में से चार प्रमुख शब्द न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यही चार शब्द एक तरह से हमारे संविधान की बुनियाद हैं। उन्होंने समाज के लिए न्याय, जाति-प्रथा तथा अन्य कुरीतियों पर भी सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर बात की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार Constituent Assembly में उपस्थित विद्वानों ने प्रत्येक शब्द पर जरुरी बहस की। उनके पास बताने को बहुत कुछ था पर समय की सीमा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संविधान को समझने की सलाह दी।
वो अपनी बात राजमणि की शेयरिंग और चार्ट-1 को रेफेर करते हुए कहते हैं कि उन्हें अच्छा लगा कि बिहार की युवा महिलाएं लोगों की मदद करना चाहती हैं, शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए उत्सुक हैं और शादी को अंतिम पायदान पर रखा है। फिर उन्होंने एक्टिव सिटीजनशिप का उदाहरण देते हुए राजमणि के छोटे-छोटे क़दमों को सराहा और एडु-लीडर्स के आगे के जीवन के लिए अपनी शुभकामनायें दी।
आपको बता दें कि श्री विजय महाजन जी एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात भारतीय ग्रामीण विकास पेशेवर, सामाजिक उद्यमी और एक नीति विश्लेषक हैं। वह प्रदान एनजीओ और बेसिक्स सोशल एंटरप्राइज ग्रुप जैसे प्रतिष्ठित संगठनों के संस्थापक हैं।
वीडियो का लिंक: https://www.youtube.com/watch?v=yZaPnaDl_l8
सोचने योग्य:
साथियों एक बार आप स्वयं को “राजमणि” की जगह रख कर सोचिये कि आपकी दो वर्ष की फ़ेलोशिप यात्रा में आपने क्या-क्या सीखा, कैसे सीखा और वो कौन से लोग (विद्यार्थी, शिक्षक, जीविका दीदी, समुदाय के व्यक्ति या कोई अन्य) थे जिनकी सहायता आप अपनी इस यात्रा में कर पाए। आप चाहें तो नीचे लिखें प्रश्नों की मदद कर ले सकते हैं।
I-सक्षम से जुड़ने से पहले आप क्या करती थीं, आपकी दिनचर्या किस प्रकार रहती थी?
आपको अपने विद्यालय से कैसे और किन-किन क्षेत्रों में सहयोग मिला और आपने किस प्रकार अपने विद्यालय और अपने समुदाय को सहयोग किया?
क्या आप अपने विद्यालय परिवेश में किसी प्रकार का बदलाव ला पायी हैं? यदि हाँ तो उसके बारे में सोचिये कि आपके प्रयासों ने विद्यालयों के शिक्षकों व हेडमास्टर को किस प्रकार प्रभावित किया है?
I-सक्षम से जुड़ने के बाद आपने स्वयं में क्या-क्या बदलाव देखा है? क्या कोई ऐसा बदलाव भी है जो जीवन पर्यंत (फ़ेलोशिप के बाद भी) आपके साथ रहेगा।
अब यह सोचिये कि आप यदि इस वीडियो में राजमणि की जगह होते तो कौन-कौन से बिंदु साझा करते।
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