Monday, November 15, 2021

“I see, I think and I wonder” बच्चों के साथ : आँचल

मैं कोमल (एडु-लीडर) के सेंटर का अनुभव आप लोगो के साथ शेयर करने जा रही हूँ। जहाँ मैंने बच्चों के साथ I see, I think and I wonder पर एक तस्वीर को लेकर बातचीत की। कुछ ऐसी चीजें थी जो सच में वंडर करने जैसी थी। इसलिए मैं एक छोटा सा अनुभव आप सभी के साथ साझा कर रही हूँ।

मैंने बच्चों के किताब से ही एक तस्वीर निकाली जिसमें कि पूरा पन्ने में तस्वीर बनी हुई थी। उससे पहले कक्षा में कोमल ने बच्चों के साथ पाँच ज्ञानेंद्रियों के बारे में बातचीत की थी तो मुझे I see को जोड़ने में यहाँ से बन रहा था, क्योंकि मैं भी ज्ञान इंद्रियों को ही जोड़ते हुए I see - कि हमारी आँख क्या करती है? को देखकर सबसे पहले मैंने बच्चों से इस तस्वीर में क्या दिख रहा है इस पर बातचीत की। यह तो बच्चों के लिए पूरा क्लियर था कि बच्चे को जो दिख रहा है वही बच्चे बोल रहे थे।

फिर मैंने बच्चे को कहा इसमें हो क्या रहा है और यह क्यों हो रहा है पर बातचीत की मैंने बच्चों को उसके लिए सोचने का मौका दिया। बच्चे सोच-सोच कर के कुछ देर बाद बच्चों ने इसका जवाब दिया।

१. बंदर पेड़ पर चढ़ा रहा है क्योंकि बंदर पेड़ पर रहता है।

२. आदमी झोली लिया हुआ है क्योंकि वह काम करता है।

३. आदमी जमीन पर सोया है क्योंकि वह नींद ले रहा है।

४. आदमी भाग रहा है क्योंकि उसको बंदर दौड़ा रहा है।

५. सब एक साथ है क्योंकि सब खेल रहे हैं।

बातचीत के आधार पर इस तरह के कई सवाल आए थे जहाँ पर बच्चे क्या हो रहा है को बहुत ही क्लियर बता पा रहे थे। बच्चे को जहाँ दिक्कतें आ रही थी वह है बच्चाक्यों से जोड़ नहीं पा रहा था कि वह क्यों कह रहे है बच्चे के खुद के वाक्य खुद की कहानियाँ या सवाल भी नहीं हो पा रहे थे।

बातचीत के दौरान फिर मैंने बच्चों को उस कहानी के बारे में थोड़ी सी जानकारी दी और फिर हमने बच्चों से इस कहानी में बच्चे और क्या जानना चाहेंगे के बारे में पूछा। बहुत सोचने के बाद 16 में से 7 बच्चों ने वंडर वाले को खुद से जोड़ पाये।

अच्छी चीजें यह रही थी कि बच्चे क्या दिख रहा है को काफी अच्छी तरीके से बता पा रहे थे। क्या लगता है कि, क्या हो रहा होगा? यह भी क्लियर था बच्चे को समझाने के बाद वह सोच पा रहे थे लेकिन बच्चे क्या को क्योंकि से जोड़ नहीं पा रहे थे जहाँ पर बच्चे को सोचने में दिक्कतें आ रही थी बच्चे सोच नहीं पा रहा लेकिन बच्चे कोशिश कर रहे थे।

अगर मैं “I see,I think and I wonder” कांसेप्ट की बात करूं तो यह सिखाना काफी मजेदार था। बच्चे सोच पा रहे थे, मुझे तो लगता है कि बार-बार इस तरह के सेशन करने से बच्चे और अधिक सीख पाएंगे।

आँचल, i-सक्षम संस्था में टीम सदस्य हैं

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