आज मैं आप सभी के साथ अपने समुदाय के काम (हलीमपुर) के अनुभव को साझा करना चाहती हूँ, जहाँ मैं एडु लीडर रश्मि (बैच 10A) के साथ गई थी।
जैसे ही हम उस गाँव में पहुँचे, वहाँ की कई चीज़ों ने मेरा मन मोह लिया—मिट्टी के घरों पर बनी सुंदर पेंटिंग, पुराने जमाने में उपयोग होने वाली चीज़ें, खेतों के बीच से गुजरती कच्ची-पक्की सड़कें, और हर ओर फैली हरियाली। गाँव का यह सरल, पर मनमोहक दृश्य मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था।
जैसे ही हम उस गाँव में पहुँचे, वहाँ की कई चीज़ों ने मेरा मन मोह लिया—मिट्टी के घरों पर बनी सुंदर पेंटिंग, पुराने जमाने में उपयोग होने वाली चीज़ें, खेतों के बीच से गुजरती कच्ची-पक्की सड़कें, और हर ओर फैली हरियाली। गाँव का यह सरल, पर मनमोहक दृश्य मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था।
शिवम के परिवार से मुलाकात:- आज के समुदाय में काम के दौरान, हमें एडु लीडर द्वारा पढ़ाए जाने वाले एक छात्र, शिवम, के अभिभावकों से मिलने का अवसर मिला। सबसे पहले, हमें शिवम के दादा जी मिले, जिन्होंने बड़े ही स्नेह से हमें घर के अंदर बुलाया और बैठने के लिए कहा। कुछ देर बाद, शिवम की माँ और दादी भी आ गईं।
एडु लीडर, शिवम की माँ से उनकी पढ़ाई को लेकर बात कर रही थीं। उसी दौरान, उनकी दादी, कमला देवी जी, मुझसे बहुत आत्मीयता से बातचीत करने लगीं। उन्होंने मुझसे पूछा—
"बेटी, तुम कहाँ से आई हो?" "तुम्हारा नाम क्या है?" "तुम क्या करती हो, क्या पढ़ाई कर रही हो?"
उनका बात करने का आत्मीय अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा। बातचीत के दौरान, उन्होंने अपने पोते की पढ़ाई को लेकर अपनी इच्छाएँ और विचार साझा किए, जिससे उनकी शिक्षा के प्रति जागरूकता स्पष्ट झलक रही थी।
एडु लीडर, शिवम की माँ से उनकी पढ़ाई को लेकर बात कर रही थीं। उसी दौरान, उनकी दादी, कमला देवी जी, मुझसे बहुत आत्मीयता से बातचीत करने लगीं। उन्होंने मुझसे पूछा—
"बेटी, तुम कहाँ से आई हो?" "तुम्हारा नाम क्या है?" "तुम क्या करती हो, क्या पढ़ाई कर रही हो?"
उनका बात करने का आत्मीय अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगा। बातचीत के दौरान, उन्होंने अपने पोते की पढ़ाई को लेकर अपनी इच्छाएँ और विचार साझा किए, जिससे उनकी शिक्षा के प्रति जागरूकता स्पष्ट झलक रही थी।
बातचीत के दौरान, कमला देवी जी ने अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण अनुभव साझा किए, जो मुझे बहुत प्रेरणादायक लगे। उन्होंने बताया कि उनकी शादी 1968 में हो गई थी, लेकिन उससे पहले वे 7वीं कक्षा में फर्स्ट डिवीजन से पास हुई थीं। इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति (scholarship) भी मिली थी, जिससे उन्होंने अपने लिए एक नोज़ पिन खरीदी थी, जिसे वे आज भी पहनती हैं।
उन्होंने आगे बताया कि उनका सरकारी शिक्षिका के पद पर चयन भी हो गया था, लेकिन उनके पति ने उन्हें नौकरी करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उस समय घर की बहूओं का बाहर जाकर काम करना समाज में स्वीकार्य नहीं था। हालाँकि, उन्होंने अपने बच्चों और बहू की पढ़ाई को हमेशा प्राथमिकता दी।
उनकी बहू ने शादी के बाद स्नातक पूरा किया और बिहार पुलिस तथा एसएससी की परीक्षाओं के लिए आवेदन भी किया, लेकिन सफल नहीं हो सकीं। इसके बाद, पारिवारिक जिम्मेदारियों में व्यस्त होने के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई।
शिक्षा के प्रति जागरूकता और आत्मनिर्भरता
कमला देवी जी की बातचीत में कई अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग सुनकर मैं हैरान रह गई, जैसे अंडरलाइन, सब्जेक्ट आदि। जब मैंने जिज्ञासावश पूछा, तो उन्होंने बताया कि 1980 में जब एक साक्षरता कार्यक्रम आया था, तो वे भी उसमें शामिल हुई थीं। वे गाँव की महिलाओं को घर बुलाकर पढ़ाती थीं, जिससे उन्हें बहुत खुशी मिलती थी।
उनकी सोच, शिक्षा के प्रति जागरूकता, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास ने मुझे बहुत प्रभावित किया। बातचीत के अंत में, उन्होंने मुझसे कहा—
उनकी सोच, शिक्षा के प्रति जागरूकता, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास ने मुझे बहुत प्रभावित किया। बातचीत के अंत में, उन्होंने मुझसे कहा—
"बहुत दिनों बाद मैंने खुलकर अपने मन की बात की,"
जो सुनकर मेरे मन में उनके प्रति और भी सम्मान बढ़ गया।
जो सुनकर मेरे मन में उनके प्रति और भी सम्मान बढ़ गया।
जब हम वहाँ से जाने लगे, तो उन्होंने प्यार भरे शब्दों में कहा—
"बेटी, फिर जरूर आइएगा,"
जिससे मुझे बहुत अपनापन और आत्मीयता का एहसास हुआ, जैसे कोई हमारे दोबारा लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहा हो। इस पूरे अनुभव ने मुझे शिक्षा के महत्व और उसके प्रभाव को गहराई से समझने का अवसर दिया। कमला देवी जी जैसी प्रेरणादायक महिलाओं से मिलकर मुझे महसूस हुआ कि सच्ची शिक्षा केवल डिग्रियों में नहीं, बल्कि सोच और जागरूकता में होती है।
स्मृति कुमारी
बड़ी इंटर्न, मुंगेर
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