जब अप्रैल में लॉकडाउन खुला तो चारों तरफ खुशी की लहर दौड़ उठी; सभी बच्चे फिर से स्कूल जाने लगेI बच्चों केे अभिभावक, एडु-लीडर सभी बहुत खुश थेI लेकिन यह ख़ुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई l क्योंकि कोरोना पहले केे मामले में ज्यादा रफ़्तार से तेजी से बढ़ने लगी थी जो कि पहले से ज्यादा खतरनाक थाI इसलिए सरकार ने यह देखते हुए एक महीने केे अंदर ही फिर से लॉकडाउन लगा दियाI जिससे एक बार फिर से बच्चों की पढाई में दिक्कत आने लगीI लेकिन एडु-लीडर ने फिर भी हार नहीं मानी और बच्चों से जुड़ने का तरीका ढूंढ ही निकालाI इन परिस्थितियों में हमारी एक एडु-लीडर पूजा ने कैसे अपनी सूझबूझ से बच्चों को शिक्षा से जोड़ें रखाI
पूजा i-सक्षम बैच-5 की एडु-लीडर हैI वह केनडिह गाँव केे एक मुसहरी टोला (मांझी समुदाय के लोग) केे बच्चों को पढ़ाती है, जहाँ केे लोग शिक्षा के प्रति कम जागरूक हैI यहाँ के लोगों केे पास स्मार्ट फ़ोन की भी कमी हैI पता लगाने केे बाद पता चला कि इस टोला में मात्र एक ही स्मार्टफोन है जिससे बच्चों को पढ़ाया जा सकता है और वह फ़ोन एक बच्चे केे पिता केे पास रहता हैl पूजा ने जब उस नंबर से जुड़ने की कोशिश की तो पता चला कि उनका अधिकतर समय साटा (जो डीजे बजाता है) में चला जाता है जिससे उसे बच्चों केे साथ जुड़ने में दिक्कत होती हैl बच्चों से समय पर बात भी नहीं हो पाती है l
पूजा ने अपनी परेशानी को अपनी बडि स्मृति केे साथ साझा कियाI स्मृति और प्रिया ने उन्हें बताया कि अगर वे फ़ोन से नही जुड़ पा रहे हैं तो हम उनसे वर्कशीट और लाइब्रेरी केे माध्यम से जुड़ने की कोशिश करेंगेI
पूजा ने उसी दिन वर्कशीट और लाइब्रेरी लोगों केे घर तक पहुँचाना शुरू किया, अभिभावकों ने इसे लेने से साफ मना कर दिया क्योंकि लोग कोरोना से काफी सहमें हुए थेl बहुत कोशिश केे बाद शुरू में दो-तीन बच्चे ही इसके लिए आगे आयेl
पहले दिन की निराशा के बाद पूजा ने हार नही मानी और अगली बार वे फिर अभिभावकों के पास गयी। वह लगातार कोशिश करती रहीl इस बार उनके साथ 10 बच्चें जुड़े और धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गईI कुछ ही दिनों में वह 20-21 बच्चों तक जुड़ गयी है। बच्चे भी अब पूजा को देखकर दौड़ते हुए आ जाते है।
उसी गांव समुदाय में एक पुराना भवन है जो कई दिनों से बंद थाI उसे खोल कर पूजा ने वहाँ साफ-सफाई करवा कर बच्चों के पढ़ने लायक भी बना दिया है ताकि बच्चे वहाँ जाकर पढ़ पाएं। इसके लिए वहाँ उसने कुछ लाइब्रेरी की किताबें भी लगा दी। कुछ वर्कशीट्स रख दिये है ताकि बच्चे जाकर अपने पसन्द की किताबें पढ़ पाएं।
इसमें पूजा की मदद वहाँ के एक निवासी जयकांत मांझी ने भी की है उन्होंने कुछ लोगो से पूजा के साथ मिलकर बात की और कमरे को खुलवाया। वहाँ के समुदाय के लोगो का कहना था कि वह भवन काफी समय से बन्द था।
अच्छी बात यह है कि अब वो बच्चों के पढ़ने में उपयोग हो रहा हैI पूजा जिस तरह से बच्चों को लगन और मेहनत से पढ़ा रही हैं, उम्मीद है सभी बच्चे से फिर से वापस जुड़ जायेंगेI
स्मृति, i-सक्षम संस्था में टीम सदस्य हैंI ये जमुई, बिहार की निवासी हैंI
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