Tuesday, November 30, 2021

i-सक्षम इम्पैक्ट रिपोर्ट सारांश 2021 : प्रियंका कौशिक

 इम्पैक्ट रिपोर्ट सारांश 2021


प्रिय दोस्तों, 26 नवम्बर 2021 को संविधान दिवस की 71वीं वर्षगाठ के अवसर पर दो वर्षों में एडु-लीडर्स में आये बदलाव और बिहार राज्य के सन्दर्भ में युवा महिलाओं के लिए i-सक्षम फ़ेलोशिप की महत्ता पर गहन चर्चा हुई। रोनिता दीदी ने सभी उपस्थित लोगों का स्वागत सत्कार किया और राजमणि जो बैच-4 की एडु-लीडर हैं, ने अपने फ़ेलोशिप से पहले, फ़ेलोशिप के दौरान और अभी के अनुभव साझा किये। 

स्मृति के प्रश्नों ने फ़ेलोशिप प्रोग्राम को बारीकी से समझने में मदद की और असेसमेंट का परिणाम साझा करने वाली वसुधा दीदी और अरुन्धिता दीदी ने जमीनी स्तर पर किये गए अध्ययनों के आधार पर उत्तर दिए। अरुन्धिता दीदी ने अलग-अलग संस्थानों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए अनुसंधानों पर प्रकाश डाला, जिनमें से कुछ तथ्य नीचे दिए गए हैं: 

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा किये गए अनुसन्धान से पता चला है कि Foundational Literacy and Numeracy का स्तर सुधारने के लिए एक बड़े स्तर पर सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता है।

  • Population Council संस्था के नतीजें बतातें हैं कि बिहार के 15 से 29 वर्ष की आयु-वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी 23% तक है। यह भी पाया गया कि ये युवा अप-स्किल्लिंग और नयी स्किल्स सीखने के इच्छुक हैं, जिससे कि ये अपने रोज़गार के अवसर और अधिक बढ़ा सकें। परन्तु स्थिति यह है कि हमारे देश के युवाओं की human capital का उपयोग हम नहीं कर पा रहे हैं।

  • महिलाओं को करियर में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है- जैसे कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता ना होना, अपने लिए निर्णय ना ले पाना, (बिहार में 43% युवा महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु पूरी होने से पहले हो जाना)। शोधों के मुताबिक यदि हम महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने और उनके निर्णय लेने की शक्ति पर काम करें तो हम ना केवल उन्हें सशक्त बनायेंगें बल्कि इसका प्रभाव उनके समाज पर भी होगा।

इन्हीं आयामों को ध्यान में रखते हुए i-सक्षम, दुर्गम क्षेत्रों के एडु-लीडर्स को (युवा महिलाओं को) भविष्य के लिए तैयार करती है।

अध्ययन में एडु-लीडर्स के जीवन में क्या बदलाव पाए गए 

  • खुद के learning level में बढ़ोतरी- उनकी सीख में वृद्धि होना- जैसे नए-नए तरीकों से बच्चों को पढ़ाना, खुद की अंग्रेजी और गणित को मजबूत करना, कम्युनिकेशन स्किल्स सीखना, अपने समुदाय की चुनौतियों को समझ कर, उन पर काम करना।

  • अपनी पहचान को स्थापित करना- खुद को समझ पाना, आत्मविश्वासी होकर अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करना, खुद की शक्तियों को पहचानकर उन्हें अपने सुमदाय के अनुरूप लागू करना।

  • आगे पढने की इच्छा जागना, नए सिरे से जीवन की शुरुआत करना, अपने समुदाय को विकसित करने के लिए आगे आना।

प्रधानाध्यापकों, अध्यापकों और अभिभावकों से बातचीत के आधार पर, एडु-लीडर्स के प्रयासों की वजह से विद्यालय में आये बदलाव

प्रधानाध्यापकों एवं अध्यापकों के अनुसार एडु-लीडर्स की भूमिका विद्यालयों में सराहनीय रही।

  • एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग से पढ़ाने में बच्चे काफी मन लगाकर पढ़ते हैं, जिससे बच्चों के अधिगम स्तर में बढ़ोतरी देखने को मिली है।

  • एक नियमित समय सारणी के अनुरूप बच्चों की कक्षाएं चलती हैं।

  • लर्निंग लेवेल्स के हिसाब से बने समूहों का लाभ, धीमी गति से सीखनें वाले बच्चों को अधिक होता है। क्यूंकि इन समूहों में एडु-लीडर्स उनको ज्यादा समय और सपोर्ट दे पाते हैं और उनके लिए ये प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण है।

  • क्लासरूम बहुत वाइब्रेंट और प्रिंट रिच हो जाते हैं, अनेक विषयों को चार्ट-पेपर पर आसान भाषा में लिखकर क्लासरूम में लगाया जाता है। 

  • इन सभी चीजों की वजह से कक्षाओं में बच्चों की उपस्थिति नियमित हो जाती है।

  • बाल मेला, शिक्षक- अभिभावक बैठक के दौरान हुई चर्चाओं की वजह से अभिभावकों का रुझान अपने बच्चे की शिक्षा के प्रति तथा उनका विश्वास विद्यालय के प्रति बढ़ा है। एडु-लीडर्स ना सिर्फ नियमित बैठकों बल्कि साधारण दिनों में भी बच्चों के अभिभावकों से उनकी पढाई के बारे में बात करते हैं। इस प्रकार बच्चों के अभिभावकों का जुडाव भी शिक्षा के प्रति देखने को मिलता है।

चार्ट 1 : व्यक्तिगत नेतृत्व पर निष्कर्ष: आकांक्षाओं की पसंद (पहली/दूसरी पसंद): आंकड़े प्रतिशत में


एडु-लीडर्स किस तरह के माहौल में पढ़ाते हैं?

आइये देखते हैं कि एडु-लीडर्स अपनी कक्षाओं में किन बच्चों को पढ़ाते हैं।

  • 78% बच्चे छोटी कक्षाओं में पढ़ते हैं 

  • >50% अक्षर और अंक नहीं पढ़ पाते हैं

  • 60% बच्चों की माताएँ अशिक्षित हैं 

  • 100% बच्चे दो या दो से अधिक कक्षाओं के बच्चे एक साथ बैठते हैं 

आगे दिए गए प्रतिशत रूप में 385 बच्चों का डेटा है जिनका वर्ष 2019 और 2021 में मूल्यांकन किया गया था। आपको बता दें कि ये वो बच्चे थे जिनकी उस समय की (2019) योग्यता स्थिति के अनुसार वे कुछ भी पढने में असक्षम थे।

2018 में शुरू होने वाले बच्चों के लिए (कोरोना महामारी से पहले सीखने में काफी समय बिताया), 2021 में 63% शब्द पढ़ सकते थे। 2019 से 2021 के बीच 30% बच्चे हिंदी में अगले स्तर तक नहीं बढ़ सके।


एडु-लीडर्स के द्वारा बच्चों को पढ़ाने के बाद “भाषा” के परिणाम 

  • 89% बच्चे कविता आसानी से पढ़ लेते हैं

  • 78% बच्चे अक्षरों को पढ़ लेते हैं 

  • 66% बच्चे सभी अक्षरों को पढ़ लेते हैं 

  • 38% बच्चे अक्षरों से शब्द बना लेते हैं 

फ़ेलोशिप के दौरान कौन सी चीजों ने एडु-लीडर्स के सहायक के रूप में भूमिका निभाई है?

  • फेल्लो के सहयोग के लिए एक बडी सिस्टम बनाया गया। बडी ऐसे लोग हैं जो पहले एडु-लीडर्स रह चुके हैं। इन्हें हम फ़ेलोशिप के एलुमनाई भी कह सकते हैं। ये एडु-लीडर्स को मेंटर करते हैं।

  • एक बडी के पास 2-3 फेलोज होते हैं, जिन्हें वो उनकी पर्सनल और प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए पूरे 2 वर्ष के लिए सहयोग करते हैं। 

क्लासरूम में बच्चों को जुड़ने के साथ, एडु-लीडर्स को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • बहुत सारे निर्णयों के लिए एडु-लीडर्स अभी भी अपने परिवारों पर निर्भर करते हैं। जैसे- यदि उन्हें गाँव से बाहर जाना है तो उन्हें अनुमति लेना अनिवार्य है।

  • शादी (एडु-लीडर्स की प्रायिकताओं में ये काफी पीछे है परन्तु) के निर्णय अभी भी परिवारजन तथा माता-पिता लेते हैं।

  • एडु-लीडर्स के लिए फ़ेलोशिप से अलग भी बहुत सारे कार्य हैं, जिसकी वजह से वो काफी बंध जाती हैं। जैसे- उनके घर का काम, उनकी पढाई, फ़ेलोशिप की ट्रेनिंग्स और विद्यालय जाकर बच्चों को पढ़ाना। तो कई एडु-लीडर्स को इन सबके बीच टाइम-मैनेजमेंट में काफी कठिनाइयाँ आती हैं।

  • विद्यालय और समुदाय के लोगों से बात करने पर पता चला कि एडु-लीडर्स को अपने नार्मल रूटीन से निकलकर फ़ेलोशिप में एक फेलो की दिनचर्या जीने में शुरूआती दिनों में काफी कठिनाइयाँ आती हैं। जैसे- बच्चों को कैसे पढ़ायें, प्रधानाध्यापक से कैसे बात करें, बच्चे अधिक शोर कर रहें हैं तो उन्हें कैसे संभालें, समुदाय में अभिभावकों और पंचायत समिति के सदस्यों से जाकर कैसे बात करें आदि। इन चीजों को सुलझाने के लिए एडु-लीडर्स को थोड़ा समय चाहिए होता है, समय के साथ ये चुनौतियाँ कम होती जाती हैं।

  • अध्यापकों ने भी एक बात कही कि जब एक नयी एडु-लीडर आती है और पुरानी जाती है तो उस समय भी ट्रांजीशन में थोड़ा समय लगता है। 

  • समुदाय और अभिभावकों की ओर देखें तो अभिभावकों को समझ नहीं आता है कि उन्हें अभिभावक-शिक्षक बैठकों के लिए क्यों बुलाया जा रहा है, एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग से बच्चे कैसे सीखेंगे? यहाँ शायद ढंग से पढायी नहीं हो पा रही है। समय के साथ इन सारी चीजों का जवाब एडु-लीडर्स अपनी कार्यशैली से दे देती हैं।

श्री विजय महाजन जी ने अपनी बात संविधान की महत्ता और संविधान दिवस मनाने का उद्देश्य से शुरू की। उन्होंने बताया कि संविधान दिवस के अवसर पर हमें न सिर्फ स्वतंत्र भारत का नागरिक होने की अहसास होता है बल्कि संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों से हमें अपना अधिकार मिलता है और साथ ही लिखित मूल कर्तव्यों से हमें नागरिक के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों की भी याद दिलाता है। 

i-सक्षम संस्था के एडु-लीडर्स होना भी एक जिम्मेदार नागरिक होने का पर्यायवाची है। एडु-लीडर्स की पहचान बन रही है जैसे- ये एक शिक्षक भी हैं और समुदाय में भी भागीदारी निभाते हैं। इनका आत्मविश्वास बढ़ा है और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी है। 

फिर महाजन जी ने संविधान की प्रस्तावना में से चार प्रमुख शब्द न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यही चार शब्द एक तरह से हमारे संविधान की बुनियाद हैं। उन्होंने समाज के लिए न्याय, जाति-प्रथा तथा अन्य कुरीतियों पर भी सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण पर बात की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार Constituent Assembly में उपस्थित विद्वानों ने प्रत्येक शब्द पर जरुरी बहस की। उनके पास बताने को बहुत कुछ था पर समय की सीमा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संविधान को समझने की सलाह दी।

वो अपनी बात राजमणि की शेयरिंग और चार्ट-1 को रेफेर करते हुए कहते हैं कि उन्हें अच्छा लगा कि बिहार की युवा महिलाएं लोगों की मदद करना चाहती हैं, शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए उत्सुक हैं और शादी को अंतिम पायदान पर रखा है। फिर उन्होंने एक्टिव सिटीजनशिप का उदाहरण देते हुए राजमणि के छोटे-छोटे क़दमों को सराहा और एडु-लीडर्स के आगे के जीवन के लिए अपनी शुभकामनायें दी।

आपको बता दें कि श्री विजय महाजन जी एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्ञात भारतीय ग्रामीण विकास पेशेवर, सामाजिक उद्यमी और एक नीति विश्लेषक हैं। वह प्रदान एनजीओ और बेसिक्स सोशल एंटरप्राइज ग्रुप जैसे प्रतिष्ठित संगठनों के संस्थापक हैं।

वीडियो का लिंक: https://www.youtube.com/watch?v=yZaPnaDl_l8


सोचने योग्य:

साथियों एक बार आप स्वयं को “राजमणि” की जगह रख कर सोचिये कि आपकी दो वर्ष की फ़ेलोशिप यात्रा में आपने क्या-क्या सीखा, कैसे सीखा और वो कौन से लोग (विद्यार्थी, शिक्षक, जीविका दीदी, समुदाय के व्यक्ति या कोई अन्य) थे जिनकी सहायता आप अपनी इस यात्रा में कर पाए। आप चाहें तो नीचे लिखें प्रश्नों की मदद कर ले सकते हैं।

  • I-सक्षम से जुड़ने से पहले आप क्या करती थीं, आपकी दिनचर्या किस प्रकार रहती थी?

  • आपको अपने विद्यालय से कैसे और किन-किन क्षेत्रों में सहयोग मिला और आपने किस प्रकार अपने विद्यालय और अपने समुदाय को सहयोग किया?

  • क्या आप अपने विद्यालय परिवेश में किसी प्रकार का बदलाव ला पायी हैं? यदि हाँ तो उसके बारे में सोचिये कि आपके प्रयासों ने विद्यालयों के शिक्षकों व हेडमास्टर को किस प्रकार प्रभावित किया है?

  • I-सक्षम से जुड़ने के बाद आपने स्वयं में क्या-क्या बदलाव देखा है? क्या कोई ऐसा बदलाव भी है जो जीवन पर्यंत (फ़ेलोशिप के बाद भी) आपके साथ रहेगा।

अब यह सोचिये कि आप यदि इस वीडियो में राजमणि की जगह होते तो कौन-कौन से बिंदु साझा करते। 

*****


Friday, November 26, 2021

पावरफुल प्रश्न : आँचल और स्मृति

a) पैशन और जीवन के बारे में प्रश्न

जो मुझसे एक बार पूछा गया और मुझे लगता है कि ये पावरफुल प्रश्न है।

1. आपने इतने कम उम्र में पढ़ाना क्यों शुरू किया? क्या इसके कोई विशेष कारण है

मुझे ये पावरफुल इसलिए लगा क्योंकि इसका कोई एक विशेष कारण नहीं था। बहुत ही अलग परिस्थितियों में ये हुआ था और मैं इसका कोई सटीक जवाब भी नहीं दे पाती हूँ। कभी-कभी मुझे ये सवाल ओपन-एंडेड भी लगता है।

2. मैं एक व्यक्ति से मिली। उन्हें फोटो खींचना बहुत पसंद था। मैंने उनसे एक पावरफुल सवाल पूछा। मुझे यह जानने की उत्सुकता थी कि,“क्या ये उनका पैशन है?”

वो आगे जीवन मे क्या करना चाहते है?

मुझे लगता है ये एक पावरफुल सवाल था जो उन्हें उनके जीवन मे क्या करना चाहते है और क्या उनका पैशन फोटोग्राफी बनेगा को लेकर वो सोच और बता पायें। 

ऐसे सवाल मुझे लगता है खुद को लेकर सोचने का मौका देतें है।

b) समानता के अधिकार पर सवाल

मैंने किसी से सवाल पूछा था कि आपके संस्था में लड़को की तुलना में लड़कियों की संख्या अधिक क्यों है?” 

जवाब-मुझे लगता है लड़कियां ज्यादा जिम्मेदार होती हैं। हमारे संस्था में मुख्यतः लड़कियाँ ही लीड ले रही हैं, इसलिए तो इतने कम समय में हमलोग इतना काम कर पायें हैं ।” [मुस्कुराते हुए]

मेरा सवाल- तो क्या आपके संस्था में लड़के और लड़कियों के वेतन में कोई अंतर नहीं है?

जवाब मिला- अंतर है । एक ही जैसे काम के लिए भी हमें कभी-कभी लड़कियों की तुलना में लड़को को ज्यादा वेतन देना पड़ता है ।

मुझे लगता है यह एक पावरफुल सवाल है क्योंकि बहुत बार हम समानता की बात स्वीकार करते हैं और इसे बढ़ावा देने की बात भी करते हैं पर वास्तविक जीवन में अमल करना अभी के समाज के लिए मुश्किल है।

C) स्वयं और जीवन से जुड़े सवाल

पहला सवाल वो जो मुझसे पूछा गया था और मुझे लगा था कि यह एक पावरफुल क्वेश्चन है।

आप अपने लाइफ में खुद के लिए क्या करना चाहते है और क्यों?

मुझे ये पावरफुल इसलिए लगा क्योंकि ऐसे कई सारे सवाल होते है जिनका जवाब मैं जवाब तुरंत नही दे पाती हूँ। जब भी मैं अपने लाइफ में क्या करना चाहती हूँ, तो देखती हूँ कि खुद के लिए कम हो जाता है।

और कहीं न कहीं मैं ये सोचने पे भी मजबूर हो जाती हूँ।

दूसरा पावरफुल क्वेश्चन जो मैंने किसी से पूछा थावह यह था कि आप अपने पूरे समय में खुद के लिए क्या-क्या करते हैं?

ये मुझे पावरफुल इसलिए लगता है क्योंकि इसका जवाब मुझे तुरंत नहीं मिला था और कहीं न कहीं ये सवाल अगर मैं खुद पे भी इंप्लीमेट करूं तो खुद में यह एक बहुत बड़ा सवाल है। क्योंकि मैं अधिकतर अपने कामों को दूसरों के बेनिफिट्स से जोड़ती हूँ या अगर मैं खुद के लिए भी करती हूँ तो इस काम को भविष्य में दूसरों के बेनिफिट्स से जोड़ती हूँ।

Wednesday, November 24, 2021

प्रियांशु के सीखने-समझने की कहानी : आँचल

ये कहानी है एक ऐसे बालक की जो समूह में सीखने से घबराता है और अलग से ध्यान देने पर आगे बढ़ता जाता हैI

उद्देश्य :

किसी एक खास बच्चे को अवलोकन कर उसकी सकारात्मक और नकारात्मक बातों को समझना व उसकी स्थिति को समझ कर योजना बनानाI


भूमिका :

हम सभी सीखते हैं पर हम सभी के सीखने का, व्यवहार करने का अभिव्यक्त करने का तरीका बिल्कुल अलग होता है । आनंद तब मिलता है जब आप इस सीखने के क्रम को देख पायें और अपनी समझ बना पायें। मैंने भी अपने सीखने के लिए एक बच्चे का चयन किया जो कक्षा में मुझे थोड़ा अलग लगा। मैंने आपके एडू-लीडर के सेण्टर पर एक बच्चे को देखा और मुझे लगा कि मुझे इस बच्चे के बारे में और समझ बनाने की जरुरत है। मैं उस बच्चे के सीखने और सिखाने के मौहाल का अवलोकन किया, बातचीत की और उसके सीखने के क्रम में उन्नति की आशा के साथ मैंने सफ़र शुरू किया।

मेरी जिज्ञासा :

मैं लगभग 2 महीनों से कोमल(एडू लीडर) के सेंटर पर जा रही थी और मैंने देखा था कि एक बच्चा (प्रियांशु) है जो कि समूह में कार्य को नहीं करता है। वह समूह में रहकर भी अकेला ही रहता है।  पर उसे अकेले कुछ दिया जाता तो वह उसे आसानी से करता है। एडू-लीडर के बोलने पर भी वह कोई प्रतिक्रिया न देता।

मैंने इस विषय में कोमल (एडू लीडर) से बात की। उन्होंने बताया किये ऐसा ही है। अकेले काम कर लेगा पर किसी के साथ काम करने में उसको बहुत दिक्कत होती है।मेरे मन में उत्साह आया कि आखिर कोई बच्चा समूह में काम क्यों नहीं करना चाहता होगा? उसके मन में क्या चलता होगा? उसकी क्या भावनाएं रहती होंगी? हमलोग बोलते तो हैं कि बच्चों को समूह में काम करने बोले पर और ये हमें आसान भी लगता है पर इससे किसी बच्चे को दिक्कत भी हो सकती है यह शायद ही हमलोग सोचते होंगे। इस विषय में मैंने कार्य और अवलोकन करना शुरू किया।

परिचय:

इस कहानी का नायक प्रियांशु है। एक बालक जो समूह में कार्य करना पसंद नहीं करता।जब भी मैं कोमल के सेण्टर पर जाती तो मुझे प्रियांशु सब से अलग-थलग ही मिलता था। और यही बात मुझे उसके बारे में और जानने के लिए खींचती चली गयी।

प्रियांशु का घर कोमल (एडु लीडर) के घर के चार घर बाद है। कोमल, प्रियांशु के माता पिता से विद्यालय जाने-आने के दरम्यान मिलती रहती है और प्रियांशु की पढाई-लिखाई के बारे में चर्चा करती है। प्रियांशु के पिता समाज में सज्जनों के साथ बैठकर बातचीत करते हैं और पढाई-लिखाई के मामले में भी हमेशा प्रियांशु के पीछे खड़े रहते हैं। इसी वजह से प्रियांशु के पिता को लोग शिक्षा के मामले में अग्रसर देखते हैं।

प्रियांशु के घर में कुल 6 सदस्य हैं- प्रियांशु के दादा-दादी, मम्मी-पापा और छोटा भाई और प्रियांशु। प्रियांशु की पिता दिल्ली-मुम्बई में निजी कंपनी में कार्य करते है और खेती के समय अपने गावं में आकर खेती करते है।प्रियांशु अपने छोटे भाई को लाड-प्यार से रखता और अपने भाई से हर कामों में उससे मुकाबला करता है।भाई के साथ उसकी खूब बनती है।

अवलोकन :

मैने इसके लिए सबसे पहले कोमल के कक्षा में महीने में दो बार बच्चों का अवलोकन किया, कक्षा के गतिविधि के अनुसार कोमल से लगातार बातचीत की और हो रहे कार्यों के साथ-साथ परिवर्तन पर भी चर्चा की।

और बेहतर से समझ बनाने के लिए मैंने प्रियांशु के दोस्तों से बात, उसके घरवालों से भी बातचीत की और जब भी मौका मिले प्रियांशु से भी उनकी राय जानने की कोशिश की।

प्रियांशु:

प्रियांशु 8 साल का एक चंचल बच्चा है, एकदम मस्त मौला। अगर आप मुझसे ये सवाल पूछे कि प्रियांशु पढाई में कैसा है तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि पढाई में प्रियांशु उतना ही अच्छा जितना की शरारतों में

भावनात्मक गुण:

प्रियांशु के अंदर सभी भावनात्मक गुण विद्यमान हैं वह सभी के साथ प्रेम व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करता है।वह सभी दोस्तों का भी सिखाने के प्रति उत्सुक रखता है कि अगर मैं जनता हूँ तो मैं अपने सहपाठी को भी बताउं पर जहाँ बात आई कि उसे रूककर कुछ करना है या अपने दोस्तों से सीखना है तो वह धैर्य खो देता है। वह हर सामाजिक त्योहारों के प्रति उमंग के साथ उसे करता है और अपने भाव के साथ-साथ अपने परिवार के लोगों को भावनात्मकओं का भी ख्याल रखता है।

उसकी माँ का कहना है, “मेरा बेटा अपने काम में ही मगन रहता है। खेलना और शरारत करने में बहुत माहिर है। पर इन सब के साथ हमारी बात भी मानता है।

व्यक्तिगत आदतें:

प्रियांशु सभी से काफी हंस बोल के रहता है और अपने से बड़े का कहना मानता हैI वह अपने दादा-दादी के बातों को सुनता है क्योंकि उन्हें  वह रात में कहानियां सुनाती है।वह सभी के साथ संयुक्त होकर रहता है और सिखाता है।

बालक के प्रति माता-पिता के विचार:

प्रियांश की माँ कहती हैं कि

प्रियांशु हमेशा सीखने के प्रति आगे रहता है और वह कभी स्कूल नहीं जाने का कारण नहीं ढूंढता है। वह हमेशा स्कूल जाता है और जहां मैं उन्हें ट्यूशन देती हूं वहां भी वह हमेशा जाता है, वहां के कार्यों को वह सदैव करता है। एक तरह से कहूं तो प्रियांशु अपने कार्य के प्रति बहुत ही लगनशील और मेहनती है । पर जहाँ बात आई की उसको स्थिर होकर कुछ करना है तो वह काम उससे नहीं होगा।

 

पड़ोसियों व आसपास के लोगों का विचार:

आसपास के लोगों का कहना है कि प्रियांशु के पापा जिस तरह से मेहनती और शिक्षा के प्रति अपने कदम को बढ़ाये हुए रखते हैं उसी तरह उनके बेटे भी आगे बढ़कर शिक्षा को एक अच्छा नाम देगा।

सुमित्रा चाची ने प्रियांशु के प्रति एक अलग भाव को देखती है उनका कहना है किये बांकि लोगों से अलग है और सभी के साथ समाज में रहकर भी एक साथ नहीं खेलता है। पर बच्चा बुरा नहीं है। उसका यही स्वाभाव है।                                  

शिक्षिका के साथ मिलकर बनाई योजना:

जुलाई महीने में मैं दो बार प्रियांशु से मिली और बातचीत की। बातचीत के दौरान मैंने कक्षा से जुड़ी एक साधारण सवाल की प्रियांशु अपनी बातों को मेरे साथ साझा करने में झिझक रहा था।जब मैंने बात ही बात में कुछ नहीं बताने का कारण पूछी तो वह अपनी कारणों को नहीं बता रहा था।मैंने जब कक्षा के डिब्रिफ में कोमल से बात की तो मैंने उनके बारे में कुछ बातों को पूछा कोमल ने कहा कि हां उसे लोगों से सीखना पसंद नहीं है लेकिन वह लोगों को सिखाता है। हर काम को आगे आकर करता है। अंत में हम लोगों ने मिलकर प्रियांशु के लिए एक योजना बनाई जिसमें प्रियांशु प्रारंभिक स्तर के बच्चों के साथ बैठकर समूह में बांकि बच्चों को सिखाए और बताए। 

मैंने जब सितंबर में कक्षा का अवलोकन करने के लिए गई थी तो मैं प्रियांशु को देखी कि वह समूह में कार्य कर रहा था समूह में काम करने से मेरा अर्थ है कि वह अपने से कम स्तर के बच्चों को समूह में काम करने में मदद कर रहा था। मैंने पाया कि वह बच्चों को समय देता था ताकि छोटे बच्चे गतिविधि कर पायें। इस दौरान मुझे वह एक जिम्मेदार विद्यार्थी के साथ-साथ शिक्षिका के सहयोगी के रूप में भी दिखाई दे रहा था।

 गतिविधि जो प्रियांशु लोगों के साथ सीखता है और सिखाता है:-

1.प्रारंभिक स्तर वाले बच्चों के साथ बैठकर वह अक्षर कार्ड्स के माध्यम से बाकी बच्चों को कार्ड दिखाता है और उससे पूछता है और प्रियांशु  कार्ड के माध्यम से शब्द लिखता है।

2. हर सप्ताह कक्षा में हर बड़े बच्चे एक रोचक कविता मोबाइल या दादी-नानी से सुनकर आते हैं और वह कक्षा में सुनाते हैं प्रियांशु इसके माध्यम से लोगों से सीखता है।

पर जहाँ बात करूँ प्रियांशु के उसके स्तर के बच्चों के साथ मिलकर काम करने की तो उसमें अभी भी कुछ खास सुधार नहीं आया। पर हाँ अब प्रियांशु समूह कार्य का मतलब समझता है। अब शिक्षिका के बोलने पर प्रियांशु ने अपने समूह में थोड़ा-बहुत काम करना शुरू किया है।

मेरी समझ से समूह शिक्षा / ग्रहण ना कर पाने का कारण:

प्रियांशु समूह शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता है इसके मुख्य तीन कारण हो सकते हैं- 

1.   प्रियांशु द्वारा एक समय में एक से अधिक कामों को करना, जिस वजह से वह किसी ऐसे कार्य के प्रति एक समय में खुद एकाग्र नहीं कर पाता है I

2.   बालक को वह माहौल कम मिला जहाँ वह समूह में मिलकर कोई कार्य कर सके और एक-दूसरे से सीखे।


निष्कर्ष एवं सुझाव:

प्रियांशु ने समूह के साथ काम करने में अपनी तरफ से कदम बढाया है पर अभी यह शुरुआत है।

अभी तो शिक्षिका ने शुरुआत की है और धीरे-धीरे इसके आगे और समझ विकसित होती रहेगी। इसके लिए बच्चे को एक सुरक्षित माहौल देना आवशयक है जिसमें वह खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें और दूसरों की बात को सहजता से ले सके।

इसके लिए शिक्षिका को यह समझ बनाना आवशयक है कि वह किस तरह की भावनाओं को महसूस करता है जब उसे सामूहिक गतिविधि में भागीदारी लेने के लिए कहा जाता है। इसके साथ-साथ अभिभावकों को भी बहुत सहजता से इसकी सहयोग देनी आवशयक है ताकि वह भी बच्चे मदद कर सकें। 

मेरे (आँचल) अनुभव:

मैं लगातार दो महिना से इस विषय पर अध्यन कर रही हूँ जो मैंने अच्छी चीजें इस अध्यन से आई है वह है:लगातार अविभावक से बात-चित करना।एक खास बच्चे को ध्यान देना और उसपर लगातार काम कर पाना,सोच पाना।एडू-लीडर (शिक्षिका) से बातचीत करके एक खास बच्चे के बारे में समझ बना पाई और यह बातचीत लगातार जारी रखा ताकि मैं उसके क्रियाकलापों और शिक्षिका के प्रयासों से अवगत हो सकूँ।

अलग-अलग स्थिति से लोगों और उनके कामों को समझ पायी।एडू-लीडर के पढ़ाने के समय बच्चों के प्रति मानसिकता को समझ पाना।इसके-साथ साथ एक बड़ी चुनौती यह थी कि इस अवलोकन और चर्चा को एक निर्धारित समयावधि में कर पाना।आशा करती हूँ इस तरह से खास बच्चों के प्रति सोचना और योजना बनाने का कार्य में एडू-लीडर, प्रियांशु के परिवार भी हमारा साथ देते रहेंगेI

साथ ही मैं यह भी सवाल छोड़ना चाहूंगी कि जो बच्चा समूह के साथ कार्य नहीं कर पाता आप उसके लिए किस-किस तरह की गतिविधि करना चाहेंगे ताकि बच्चे को समूह में कार्य कर एक-दूसरे से सीखने का मौका मिले?

 

बच्चे का परिचय: 

नाम: प्रियांशु कुमार            उम्र: 8साल

पिता: विद्यानंद सिंह           माता: सावित्री देवी

पता: पूर्णा खैरा