Friday, January 14, 2022

कविता "दुनिया" : श्रवण

दुनिया

आज सुबह यूं छत पर बैठे, सुनी दूर से आती वंदना की धुन

एक बड़ी सी निजी स्कूल के अहाते, कोई तान रहा था बुन 

मन ने सोचा, क्या होता होगा? 


जब ठीक सड़क के उस पार बने दूसरे विद्यालय का कोई बच्चा इसे सुनता होगा 

तान रोज वो भी तो कोई बुनता होगा? 


क्या होता होगा जब वो सुनता होगा यह आवाजें विश्वास से भरी 

शायद सोचता होगा, सड़क के बस उस पार है एक दुनिया बड़ी 

कुछ धोखा हुआ तुमसे, जिसकी इमारतें हो चीखती खड़ी!


पूछता खुद से, क्या करूँ जो उस पार चला जाऊं 

अपने सपनों की एक नई दुनिया बसा पाऊँ 

काले जूते, बढियाँ टाई लगा मैं भी क्यूँ न इठलाऊँ!

 

वहाँ, जहाँ खाली कमरे मुझे घूरते न हो 

विद्या के नाम, बस सरस्वती की मूर्ती न हो 


जहां मैं पढ़ सकूं, बढ़ सकूं, बुलंदियों की सीढ़ी चढ़ सकूं 

खुद की नियती को बदल सकूं, 

जोर लगा जो सड़क के उसपार मैं उछल सकूं!

श्रवण, i-सक्षम संस्था के फाउन्डिंग मेम्बेर्स में से एक हैं

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