Friday, July 3, 2020

प्रयासों की तरंग- आँचल, बच्चे व् अभिभावक



मेरा नाम आंचल है और मैं i-Saksham में एक edu-leader हूं। संस्था में बाकी edu-leaders की तरह मैं भी बच्चों की शिक्षा पर कार्य करती हूं। इस महामारी के चलते बच्चों की शिक्षा पर बड़ा प्रभाव पड़ा। लॉक डाउन होने की वजह से गांव में सभी विद्यालय बंद हो गए जिस कारण बच्चों की शिक्षा रुक सी गई। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए हमारी टीम ने बच्चों को घर बैठे फोन से पढ़ाने का निर्णय लिया। इस निर्णय को निष्पादित करने में बच्चों के अभिभावकों का पूर्ण सहयोग रहा है, परन्तु बच्चों के अनोखे प्रयास तारीफ के काबिल हैं।

मैंने जब कक्षा-८ के बच्चों को घर बैठे फोन के माध्यम से पढ़ाना शुरू किया था तब शुरुआत में बच्चियों की संख्या थोड़ी ज्यादा थी| मुझे पहले तो संदेह हुआ कि मैं फ़ोन पर 10-11 बच्चियों को कैसे पढ़ा पाउंगी पर कुछ  दिनों तक पढ़ाते रहने के बाद यह समस्या भी सामान्य हो गई और मैं लगभग कुछ14 बच्चियों से जुड़ पाई। काफी दिनों तक यूं ही सेशन चलते रहे। परन्तु जून के माह में मैंने देखा कि सेशन में बच्चियों की संख्या कम होती जा रही है। मैं चिंतित थी कि ऐसा क्या हुआ होगा कि बच्चियां पढ़ाई के समय गायब रहती हैं या उन्हें ऐसे फोन द्वारा पढ़ने में कोई समस्या हो रही है? इसीलिए मैंने बच्चों के माता - पिता से इस विषय पर बात की तो कई तरह की समस्याएं निकल कर आईं जैसे - बच्चों के अभिभावकों ने आस-पास में काम करना शुरू कर दिया था जिस कारण घर पर फोन का ना होना, फोन में रिचार्ज ना होने की वजह से कॉल ना लगना, बच्चियों का भी अपने माता-पिता की काम में मदद करना आदि।' इन सभी समस्याओं  को ध्यान में रखते हुए मैंने बच्चियों को सुबह के समय पढ़ाने का निर्णय लिया क्योंकि तब सभी बच्चों के माता-पिता भी घर पर होते हैं और बच्चियों से बात भी हो जाएगी। इस में बच्चियों की सहभागिता अच्छी रहती है। साथ ही बच्चियों के अभिभावकों द्वारा अनोखे प्रयास मेरे दिल को छू गये हैं| 
जब मैं करिश्मा(छात्रा) को कॉल करती हूँ  तो उनके पापा या भाई कॉल उठाते हैं| मैं उन्हें नमस्ते करने के बाद बच्चियों को फोन देने कहती हूँ तो वह बड़े आदर के तौर पर वह बोलते हैं -"दीदी का कॉल आया है चलो पढ़ने आओ”| मुझे भी काफी खुशी होती है यह चीज सुनकर और बच्चों के परिश्रम को देख बड़ा आश्चर्य होता है। संगीता(छात्रा) के घर पर फोन नहीं है जिससे वो हमारे साथ सेशन में जुड़ पाए। परन्तु संगीता की पढ़ाई ना रुके इसलिए उसके पिता ने उसे उसकी नानी के घर पहुंचा दिया। अब वह वहां रहकर अपनी मौसी के फोन से मेरे साथ सेशन में जुड़ती है और पढ़ाई करती है। बच्चों के अभिभावकों का इस तरह का सहयोग हमें बच्चियों तक पहुँचने में काफी मदद कर रहा है| साथ ही मुझे इस बात की ख़ुशी है कि अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक हैं|
ज्यादातर बच्चों के पास छोटा जिओ फोन ही होता है, इसके बावजूद भी वे कोशिश करते हैं कि अपने होमवर्क का वो फोटो लेकर व्हाट्सएप ग्रुप में सभी के साथ साझा करें। जब बच्चे ग्रुप पर फोटो भेजते हैं तो वह फोटो थोड़ी धुंधली होती हैं जिस कारण मुझे कुछ ठीक से समझ नहीं आता है| पर वे निराश न हो इसलिए में उनके प्रयासों की तारीफ कर देती हूं, ताकि उनका मनोबल ना गिरे और वे ऐसे ही मन लगा के अच्छे से पढ़ाई करें।
हमें खुशी है कि लॉक डाउन के समय में भी हम बच्चों को पढ़ा पा रहे हैं, और हमारे और हमारे सभी साथियों के प्रयास भी रंग ला रहे हैं। किसी दिन कोई कारणवश अगर मैं समय पर सेशन नहीं ले पाती हूं तो मैं शाम के समय बच्चों से फ़ॉलो अप कर लेती हूं कि उन्होंने आज क्या पढ़ाई की और क्या सीखा। 

सही में बच्चों के साथ सेशन ले कर एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और दिन के अंत में मैं अपने कार्य से संतुष्ट हो पाती हूँ| साथ ही इन दो महीनों में बच्चों व् अभिभावकों के प्रयासों से मैं यह समझ पायी हूँ कि जब सभी लोग आपस में मिल कर छोटे-छोटे कदम उठाते हैं, तभी बड़े प्रयास संभव हो पाते हैं| 

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