Monday, September 2, 2024

जब अभिभावक ही बोलने लगे कि PTM करवाओ

गया जिले के छोटे से गाँव सिमरी में, जब सुबह की पहली किरणें आकाश में बिखरती हैं, तब बच्चों के चेहरों पर एक नई चमक दिखाई देती है। यह वही बच्चे हैं, जो कभी स्कूल जाने से कतराते थे। पर आज ये खुशी-खुशी तैयार होकर स्कूल के लिए निकल पड़ते हैं। इस बदलाव की कहानी तब शुरू हुई जब मैंने i-सक्षम के माध्यम से उनके जीवन में कदम रखा।

आमस (बारा) गाँव में आज (24 जुलाई, 2024 को) हमारी बारहवीं अभिभावक शिक्षक बैठक (PTM) थी। मेरे साथ मेरी बडी (buddy) स्वाति दीदी भी थी। जो हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहती हैं। जैसे ही हम गाँव पहुंचे, वहाँ के लोगों की उत्सुकता देखकर मन प्रसन्न हो गया। इस गाँव में पहले कभी ऐसा आयोजन नहीं हुआ था। वहाँ के अभिभावक को बच्चो में बदलाव होने से अभिभावक बहुत खुश थे। अभिभावकों ने PTM करवाने के लिए दो-तीन बार बच्चों के द्वारा मुझ तक खबर भेजी थी कि रूमाना दीदी को अपना गाँव में PTM करवाने के लिए बोलना। 


मेरे विद्यालय “प्राथमिक विद्यालय सिमरी” में कुछ बच्चे दूसरे गाँव से भी पढ़ने आते हैं। मैं हमेशा विद्यालय या फिर कभी अपने ही समुदाय में PTM करवा देती हूँ। पर मैं जब स्कूल में PTM करवाती हूँ तो आस-पास के सभी अभिभावक आ जाते हैं। लेकिन अक्सर दूसरे गाँव (बारा,बडकी पुल) के एक-दो ही अभिभावक आते हैं, अधिक दूरी की वजह से। अभिभावकों ने मुझे बच्चों के द्वारा बुलवाया था। 


PTM को शुरू करते हुए हम सभी ने अभिभावकों का अभिवादन किया और i-सक्षम के बारे में इंट्रोडक्शन भी दिया।


PTM की शुरुआत माइंडफुलनेस (mindfulness) से हुई। अभिभावक धीरे-धीरे अपनी सोच साझा करने लगे। एक-एक करके वो बताने लगे कि उनके बच्चों में कैसे सकारात्मक बदलाव आयें हैं। 


तेतरी की माँ, हंसते हुए बताने लगीं कि कैसे उनकी बेटी बालगीत गाते-गाते रूम (room) में खुद को बंद कर लेती है। यह देखकर उनके चेहरे पर खुशी का भाव था। 


अभिभावकों ने यह भी बताया कि पहले बच्चे स्कूल जाने के लिए बहुत बहाने बनाया करते थे और ना ही घर आकर पढ़ने को बैठते थे। अब ख़ुशी से बच्चे खुद ही स्कूल चले जाते हैं, हमें बोलना नहीं पड़ता। सुबह उठकर, नहाते भी हैं, नाश्ता भी करते हैं और स्कूल से वापस आकर, दिनचर्या भी साझा करते हैं।


एक अभिभावक बता रहे थे कि पहले मेरा बच्चा अक्षर भी नहीं पहचानता था। लेकिन अब वह शब्द पढ़ने और लिखने लगा है। यह आपके प्रयासों का ही परिणाम है। ये सब सुन कर ख़ुशी महसूस हो रही थी। मुझे यह भी लग रहा था कि मैं भी कुछ समाज में कर रही हूँ।


अभिभावकों की बातों से पता चल रहा था कि उनका हमारे प्रति, हमारी संस्था के प्रति आदर-सम्मान बढ़ा है। मुझे अपने मन में मेरी मेहनत सफल होते देख बहुत ख़ुशी महसूस हो रही थी।



मैंने अभिभावकों को एक बाल-गीत भी कराया। शुरुआत में तो महिलाएँ थोड़ी हिचक रही थी। लेकिन कुछ देर बाद वो एक्शन के साथ बाल-गीत करने में सहज हो गयी। बाल-गीत के बाद मैंने उन्हें समझाया कि आप सभी को इतना मज़ा आ रहा ही तो सोचिये कि गतिविधि आधारित शिक्षा पाकर, बच्चे कितना ख़ुशी से सीखते होंगे? 


इस PTM में दो ऐसे अभिभावक भी थे जिनके बच्चे स्कूल नही जाते थे। बालगीत में भाग लेकर उन्होंने भी बोला कि अब हम अपने बच्चों को रोज़ स्कूल भेजेंगे। 


इस PTM ने मुझे यह एहसास दिलाया कि हमारा प्रयास सही दिशा में है। अभिभावकों की खुशी ने हमें और मेहनत करने की प्रेरणा दी। हम अपने छोटे-छोटे कदमों से बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने की ओर अग्रसर हैं। इस सफर में मुझे i-सक्षम की टीम का साथ और मेरी बडी (buddy) स्वाति दीदी की मेंटोर्शिप (mentorship) मिलने पर गर्व है।



PTM में क्या अच्छा रहा: 

  • सभी अभिभावक अपनी बातों को स्वयं से बता रहे थे। 

  • सभी अभिभावक हस्ताक्षर कर पाए और साथ ही अक्षर को पहचान सके। 

  • बालगीत और अक्षर कार्ड एक्टिविटी कर पाए। 

  • माइंडफुलनेस (mindfulness) कर पाए। 

  • बच्चो के अंदर के बदलाव को अभिभावक से जान सके, अभिभावकों से मिलने का मौका मिल सका। 

  • मेरी बडी स्वाति दीदी PTM में शामिल हो सकी

  • दूसरे गाँव जाने का मौका मिल सका।


रूमाना प्रवीण 

बैच 10, गया 


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