बात पिछले सप्ताह की है , मैं रोज की तरह विद्यालय में बच्चों के साथ गणित के सवाल हल कर रहा था। दिन के 11 बज रहे थे, तभी मेरे फ़ोन पर मेरे सीनियर शिक्षक नवीन जी का फोन आया। उन्होंने मुझे बताया कि गाँव के ही आंगनवाड़ी केंद्र पर कोरोना का दूसरा टीका दिया जा रहा है, मैं लेने आया हूँ। आप भी आ जाइये, अभी भीड़ नहीं है।
मैंने कहाँ ठीक है, आते है । मैंने अपने बैग में देखा तो पाया, मेरे पास आधार कार्ड की कोई कॉपी नहीं है। फिर मैंने बच्चो से पूछा, गाँव में कोई साइबर कैफे/कोई दुकान है, जहाँ कंप्यूटर से प्रिंट देता है?
तभी प्रभारी की बेटी ने मुझे याद दिलाया कि विद्यालय में ही कंप्यूटर और प्रिंटर है। मैं विद्यालय से अपने आधार की कॉपी निकाल कर प्रभारी की बाइक से कोविड सेंटर पर गया जो महज 500 मीटर दूर थी। जब मैं सेंटर पर गया तो पाया 20 -25 लोग आये है। मैंने अपना आधार कार्ड जमा किया और उन्होंने रजिस्टर मेन्टेन किया।
मुझे बताया गया कि मेरे आने से 10 लोग पूरे हो गए है बाकि के लोग आधार प्रिंट करवाने गए इसलिए अब 10 लोग हो गए है तो इंजेक्शन दिया जा सकता है। प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो पता चला कि जो ग्रामीण कोविड का दूसरा डोज लेने आये हैं, "उनका तो कोई रजिस्ट्रेशन ही नहीं है वेबसाइट पर"।
कंप्यूटर ओपरेटर नया था, मुझे लगा मदद कर दूँ ताकि जल्दी इंजेक्शन ले कर विद्यालय जा सकूँ। मैंने फ़ोन से ही लोगो का देखना शुरू किया तो पाया कि किसी भी ग्रामीण का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। सभी ग्रामीण गुस्से से आग–बबूला हो गए क्योंकी स्वास्थ्य विभाग की टीम एक तरफ बोल रही थी कि जिनका दूसरा डोज शो करेगा सिर्फ उसे ही हम इंजेक्शन देंगे।
ग्रामीण में से एक बुजुर्ग आदमी बोले, "अगर हमलोगों को सुई नहीं लगेगी तो किसी को भी सुई लेने नहीं देंगे यानि अब मेरा भी पत्ता कट हो गया"।
मैंने जमुई सदर फ़ोन किया तो उन्होंने बताया ऐसी स्थिति में दूसरा डोज दिया जा सकता है स्पॉट रजिस्ट्रेशन का उपयोग करके। मैंने कमरे में जा कर स्वास्थ्य विभाग की टीम को बताया तो उन्होंने बोला , सर ऐसा नहीं कर सकते क्योकि हमें इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं मिली है और अभी सोनो के सभी पदाधिकारी बैठक में है आप बाहर में किसी को मत बताइयेगा, नहीं तो मेरी नौकरी चली जाएगी।
मैंने अपने विद्यालय प्रभारी को सारी चीजे बताई और मैं पास के दूसरे सेंटर पर जा कर कोविड का दूसरा डोज ले लिया और वापस विद्यालय आ रहा था अब लगभग 40-50 लोग जमा हो चुके थे जो स्वास्थ्य विभाग के लोगो को घेरे हुए थे और समय भी 3 बज चुके थे। मुझे आता देख स्वास्थ्य विभाग का कंप्यूटर ओपरेटर मुझे रोका और बोला सर मुझ से नहीं पायेगा और ये लोग जाने नहीं देंगें, आप ही कुछ कीजिए।
मैंने पूछा ,आपने सोनो बात किया है?
तो उन्होंने बताया आप जो प्रोसेस जमुई से पूछे थे वही तरीका बताया लेकिन मुझे नहीं आता क्योकि मैं एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से हूँ। मैंने बोला, देखिये इसके बारे में मुझे कुछ आईडिया नहीं है लेकिन मैं देखता हूँ, क्या कर सकता हूँ।
मुझे नहीं पता!
लेकिन जैसे ही उन्होंने मुझे लैपटॉप दिया, ग्रामीण लोग बोलने लगे अब अमर जी बैठ गए है तो हमलोगों को टीका लग जाएगा। ऐसी बातें सुन कर मेरे अन्दर से एक आत्मविश्वास झलका, साथ ही डर शायद नहीं कर पाऊं। 10-15 मिनट मुझे उनके प्रोसेस को समझने में लगा और 10 आधार कार्ड ले कर पहला रजिस्ट्रेशन किया। जिस ग्रामीण का रजिस्ट्रेशन किया, उसके उसके मोबाइल में मेसेज आया और वो सभी बोलने लगे, आ गया मेसेज। पिछली बार तो टीका दिया और कोई मेसेज नहीं आया। अब सबका हो जायेगा सभी नंबर में लग जाओ और आधार कार्ड जमा कर दो। इस प्रकार मैं शाम के 6 बजे तक सेंटर पर ही रहा और सभी ग्रामीण का रजिस्ट्रेशन करा कर उन्हें दूसरी डोज इंजेक्शन दिलवाया।
मुझे लोगो की मदद कर एक आत्म-संतुष्टि मिली और स्वास्थ्य टीम ने सुक्रिया अदा किया और मैं फिर जमुई के लिए निकल गया । अगले दिन जिस बुजर्ग ने मुझे इंजेक्शन देने से रोका वो विद्यालय आये बोले, अमर जी मेरा कोविड का सर्टिफिकेट आ गया है, अगर आप को नहीं रोकते टीका लेने से, तो आप तो ले कर चले जाते और हमलोग फँसे रह जाते।
और मैं सिर्फ मुस्कुरा दिया।
अमर, i-सक्षम टीम के सदस्य हैं और बिहार के जमुई जिले में रहते हैं।
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