चलती सड़क पूछती है मुझसे कभी,
जब मैं ठहर कर उन्हें देख रहा होता हूँ
तुम ठहर क्यों गए...??
मैं चुप रहता हूँ, बिना कुछ कहे
सड़कों पर तेज रफ्तार में दौड़ती
गाड़ियों को देखते हुए....
फिर कानों में एक के बाद एक
हॉर्न के बजने की आवाज सुनकर
सोचता हूँ कि इन सड़कों को
जरूर इन आवाजों की
इन मुसाफिरों की,
इन गाड़ियों की कभी आदत लग चुकी है।
वह चाहकर भी अपने लिए थोड़ी
सी भी शांति नहीं ढूंढ पाती
जो सड़कें शांति ढूंढने में सफल
रहती है उन्हें सुनसान करार दे दिया
जाता है,
इस प्रकार उनके अस्तित्व का कोई
महत्व रह ही नहीं पाता
इसलिए उनका व्यस्त रहना ही उचित है।
पर मैं सड़कों से कहना चाहता हूं कि
मैं थक गया हूँ
इसलिए नहीं रुका हूँ
बल्कि थोड़ी देर के लिए
ठहरा हूँ क्योंकि
दुगुने रफ्तार से और आगे
बहुत आगे निकल सकूँ
जिंदगी के सफर पर
जहाँ की राह व्यस्त है
या यूँ कहें की व्यस्तम हैII
- आयूष
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