Thursday, September 9, 2021

मैं आत्म निर्भर महसूस करती हूँ: काजल गोस्वामी

प्रिय दोस्तों मेरी i-सक्षम में फ़ेलोशिप का एक वर्ष पूरा होने वाला है। इस एक वर्ष के अन्दर मैंने बहुत सारा अनुभव किया जो मैं आप सभी के साथ साझा करने जा रही हूँ। जब मैं i-सक्षम से जुडी थी एक साल पहले तो हमें बताया गया था की हम लोगों को ढाई घंटे तक विधालय में पढ़ाना है। सप्ताह में एक बार ऑफिस आना है सेशन के लिए। तब यह पता नहीं था कि मैं बच्चों को कैसे पढ़ाउंगी और सप्ताह में एक बार कैसे समय निकाल कर ऑफिस आऊँगी।

लेकिन फिर भी मैने हाँ कहकर आगे बढ़ने का निर्णय लिया। जब पढ़ाना शुरू किया तो उस समय सभी विधालय बंद थे और मुझे बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने ही घर में सेंटर बनाना पड़ा। आगे मैंने अपने ही गाँव में जाकर बच्चों के माता–पिता से बात की। मैंने उन्हें बताया कि i-सक्षम से जुड़कर मैं आपके बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाउंगी। सभी अभिवावक राजी हो गए और मैंने पढ़ाना भी शुरू कर दिया। 

धीरे-धीरे बच्चे भी मेरे साथ खुलने शुरू हो गए और फिर हमे ऑफिस के तरफ से बताया गया कि अब मुझे भी विद्यालय जाकर बच्चों को पढ़ाना है।

मुझे यह सुन कर थोड़ी सी घबराहट हुई कि मैं सरकारी विद्यालय में सर और मैडम के साथ मलकर कैसे पढ़ाउंगी?

क्या वह मुझे विद्यालय में पढ़ाने की इजाजत देंगे?

अगर नहीं देंगे तो क्या होगा फिर?

कैसे पढ़ाउंगी मैं?

यह सब सोच मन ही मन घबरा रही थी । फिर i-सक्षम के तरफ से मुझे एक पत्र मिला, जिसमे हमें विद्यालय में पढ़ने की इजाजत थी। यह देख मुझे बहुत राहत मिली। 

जब मैंने विधालय जाना शुरू किया, तब मेरा जो विद्यालय था वह बिल्कुल अलग था। मेरा विधालय मेरे ही गाँव में एक पीपल के पेड़ के नीचे चलाया जाने वाला था, जिसमे न कोई कमरा था, न कोई पंखा था, न ब्लैकबोर्ड, न दरी, कुछ भी मूलभूत सुविधा नहीं थी।

क्या आप किसी पेड़ को विधालय कहेंगे?

नहीं ना। 

यह देखकर मुझे लगा कि इन परिस्थियों में शायद मैं नहीं पढ़ा सकती और मैं मन ही मन रोते हुए घर चली आई। फिर मैंने सोचा अगर मैं ही ऐसा सोचूंगी तो उन बच्चों का क्या होगा, जिनका भविष्य मैं अच्छे से संवार सकती हूँ।

फिर मैंने विद्यालय के प्रधानाध्यापक से बात की मैंने उनसे कहा – सर यहाँ तो कुछ भी नही है!

हम इन हालातों में बच्चों को शिक्षा कैसे देंगे? मैंने सर से कहा- सर क्या हम कोई कमरा या घर में विधालय नही चला सकते हैं? मैंने सर को सोचने पर मजबूर कर दिया यह बच्चों के शिक्षा के लिए सही नहीं है। 

मैंने पहला कदम विद्यालय में परिवर्तन को लेकर उठाया i-सक्षम के भाइयों और दीदियों ने मेरी बहुत मदद की, जिससे मुझे हिम्मत मिली। मेरे बोलने से यह परिवर्तन आया की सर ने बच्चों को पढ़ाने के लिए एक अच्छी जगह और रूम की व्यवस्था की, यह पहले से बहुत बेहतर था। अब मैं खुले आसमान में पेड़ के नीचे  नहीं एक पक्की छत के नीचे पढ़ा रही हूँ।

बच्चे भी पहले से बहुत ज्यादा खुश है, अब विद्यालय में पढ़कर।  मेरी इस समस्या को हल करने में विद्यालय के शिक्षकों ने भी मेरा पूरा सहयोग किया। अभिभावकों से बात करके अच्छे माहौल और जगह का चुनाव करके बच्चों को पढ़ाने के अच्छी जगह का प्रबंध किया और मुझे ऐसा लगता है कि मैं इस समस्या को हल करने में अपना शत प्रतिशत योगदान दे पाई । जिसके कारण बच्चे अच्छे माहौल में पढ़ पा रहे हैं। अगर मैं पहले ही हार मान जाती तो शायद आज के बच्चे खुले आसमान के नीचे, धूप, बारिश और हवा में पढ़ते। छोटे बच्चे तो पढ़ ही नहीं पाते। जब मैंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, तब बच्चे विद्यालय नहीं आते थे। कोई मन लगाकर नही पढ़ता था। सर और मैडम बच्चों को ध्यान से नहीं पढ़ाते थे। जिससे सभी बच्चे पढ़ने लिखने में कमज़ोर थे।

फिर मैंने अपने स्तर के बच्चों को बेहतर करना शुरू कर दिया। जिसमें सभी बच्चों को विद्यालय जाने को कहा। घर-घर जाकर माता पिता से बात करके विद्यालय भेजने को कहा और उन्हें विश्वाश दिलाया कि आपके बच्चे को बहुत अच्छे से पढ़ाएंगे, आप उसे विधालय जरुर भेजिए। उन्होंने मेरी बात मानकर बच्चों को विधालय भेजना शुरू कर दिया। 

i-सक्षम की पूरी टीम ने बहुत सहयोग किया। लेकिन दो लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने हमें बहुत ही ज्यादा सहयोग किया- स्मृति दीदी और बिपिन भैया। जब शुरू में जब मुझे कुछ नहीं आता था तो भैया मेरे सेंटर पर आकर बच्चों का असर टेस्ट लेते थे। i-सक्षम संस्था के बारे में मेरे परिवारजनों को बताते थे। मेरे सेंटर पर आने वाली समस्याओं में, उन्हें हल करने का रास्ता बताते थे। स्मृती दीदी ने मुझे बताया कि मैं अलग-अलग स्तर के बच्चों को, बिल्कुल आसानी से कैसे पढ़ा सकती हूँ?

मैं अपनी फ़ेलोशिप के दौरान बहुत खुश हूँ। मैं आत्मनिर्भर महसूस करती हूँ। अब मुझे लोगों के सामने बोलने में हिचकिचाहट नही होती। मेरे बच्चों बच्चों में बहुत परिवर्तन हुए है। बच्चे अब रोज पढ़ने आते हैं, साफ़-सफाई से आते हैं, खेलने के समय खेलते है और ध्यान लगाकर पढ़ते हैं। अभिभावक भी अब पहले से ज्यादा बच्चों पर ध्यान देते है। अभिभावक अब अपने बच्चे से पूछते भी हैं कि आज काजल दीदी ने क्या सिखाया? अभिभावक पढ़ाई को लेकर इतना नही सोचते थे। मेरे पढ़ाने के तरीके और मेहनत को देखकर शिक्षक अब मुझपर विश्वास करते हैं।

जो बच्चे कुछ नही जानते हैं वे काजल दीदी के पास जाइये। ऐसा शिक्षक कई बार बोलते हैं, जिसे सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है और खुद पर गर्व महसू होता है । उन लोगों की प्रशंसा से मेरा मनोबल बढ़ता है और बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ाने का इच्छा शक्ति जागती है। 

इन सब चीजों में मेरी माँ ने भी मेरा बहुत सहयोग किया उनका कहना था की तुम पढ़ाओ बच्चों को मैं घर संभालती हूँ। 

इन सब में मेरे परिवार और i-सक्षम का पूरा सहयोग रहा। मैं आज विद्यालय के परिवर्तनों को देखकर बहुत खुश हूँ और मुझे खुद पर विश्वास है की आगे आने वाले इस एक वर्ष में, मैं और भी बहुत सारे बेहतर बदलाव लाने का प्रयास करुँगी।


(काजल गोस्वामी, i-सक्षम फ़ेलोशिप की बैच-5 की एडु-लीडर हैं।)

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