जब मैं पहले दिन विद्यालय पहुँची तो मैं थोड़ी सहमी हुई थी। लेकिन अन्दर ही अन्दर ख़ुशी की एक अलग ही भावना थी मेरे मन में, मानो कि खुशी के गुब्बारे फूट रहे होंl मैं अपनी भावनाओं को समझ नहीं पा रही थी कि मैं कैसा महसूस कर रही हूँ। शायद मुझे सिर्फ शब्दों में लिखना कठिन होगाl
मेरे शिक्षक वही थे, विद्यालय की रूप रेखा भी वही थी, बस बदला हुआ था तो सिर्फ कुछ बच्चे जो मेरे साथी थे। वह अब उस विद्यालय में नहीं थे, क्योंकि वो भी मेरे साथ विद्यालय छोड़ चुकी थी। आज मैं विद्यालय पहुंची लेकिन एक विधार्थी के रूप में कम ...मैं एक शिक्षिका के रूप में।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस विधालय से मैं पढ़कर बाहर निकली हूँ, मुझे उसी विधालय में पढ़ाने का मौका मिलेगा। मेरे सपने कुछ और थे, मुझे जिस तरह से प्रशिक्षण मिल रहा था और जिस तरह से पढ़ने का मौका मिल रहा था, उस तरह की शिक्षा शायद मेरी नियति में नहीं थी।
मैं नहीं चाहती थी कि मेरे बच्चे मेरे ही तरह सीखें, मैं चाहती थी वो सीखें तो सही, लेकिन सीखने का तरीका अलग हो। कुछ पल के लिए तो मेरे कदम रुक गए, मेरे मन में इस चीज का विचार चल रहा था कि मैं सर से किस तरह से बात करूंगी।
एक समय था जब सर विधालय पहुँचते थे, तो हम डर के मारे उकडू–मुकड़ू बैठ जाते थे। जब कुछ समझ में नहीं आता था, तो बहुत हिम्मत के बाद एक सवाल पूछा करते थे। जब दोबारा में भी समझ में नहीं आता था तो फिर पूछना मेरे बस की बात नहीं थी, और भी कोई बच्चा ऐसी हिम्मत नहीं करता था। आज उसी शिक्षक के पास विद्यालय में बदलाव को लेकर सवाल करना था। क्या मेरे लिए यह संभव था, यही सवाल मैं बार-बार खुद से पूछ रही थी।
मैंने चुनौतियों को समझा और उसे पहचाना
मेरे लिए पहली चुनौती बच्चों में बदलाव लाना थी, बच्चे समय पर विधालय नही आते थे। साफ़ सुथरे बनकर नहीं आते थे। बाल बिखरे हुए, नाख़ून बढे हुए, मानो जैसे दिनभर खेला हो और उसी तरह विधालय पहुँच गया हो। बच्चे आपस में बातचीत भी अलग ही ढंग से करते थे, मुझे बच्चों की यह व्यवहार थोड़ा अजीब लग रहा था।
मैं बच्चों को बहुत दिनों तक लगातार समझाया कि वे साफ़ सुथरा होकर आएं, उसके नुक्सान के बारे में बताया। एक दिन हुआ यूँ की एक बच्चा बहुत गंदे कपड़े पहन कर विधालय आ गया। मैंने उसे तुरंत घर वापस भेज दिया की वह नहाकर आये। वह बच्चा घर गया और उधर से वह बच्चा अपनी मम्मी के साथ आया।
उसकी मम्मी ने हमें कहा – दीदी आपने इसको वापस क्यों भेज दिया?
मैंने कहा- इसे नहाकर आने को कहा।
आप इसे नहला कर विद्यालय भेज दीजिये।
इस तरह से अगर बच्चा गन्दा रहेगा तो इसके स्वास्थ पर बुरा असर पड़ेगा। वह मेरी बात को समझी और उन्होंने अपने बच्चे को नहाकर फिर से विद्यालय भेजा। इससे हमारे कक्षा में मौजूद सभी बच्चों पर बहुत अच्छा असर पड़ा और वह अगले दिन से साफ –सुथरा होकर आने लगे। इसी तरह कक्षा में बहुत तरह का बदलाव हुआ बच्चों का व्यवहार में अंतर आया बोलने के तरीके में भी बहुत बदलाव आया।
विधालय के शिक्षकों का रहा बहुत सहयोग
विधालय में पढ़ाने से पहले मेरे मन में बहुत सारे सवाल आया करते थे कि क्या होगा? क्या नही होगा? लेकिन मुझे उम्मीद से ज्यादा मिल रहा था। वहाँ के शिक्षक हमें हर चीज में शामिल कर रहे थे, खाने के समय भी हमे बुलाते थे। वे कहते थे जैसे सब हैं वैसे आप भी है अलका, जो भी हो खुलकर बाते रखिये। हमें तो लग ही नही रहा था कि मैं उनकी विधार्थी हूँ।
मैंने वहाँ एक और चीज देखी, जो हमें लगा उसपर बात करनी चाहिए। दीवार खुरदरी थी, जो देखने में अजीब लगती थी। मैंने मैम से बात की और उस दीवार को पेंट करवाने को बोला तो उन्होंने तुरंत इसे ठीक करवा दिया।
“आज मैं खुद एक उदहारण थी। मेरे विधालय के शिक्षक मुझे बच्चों से परिचित कराकर उसे प्रेरित किया करते थे, कि देखो अलका इसी विद्यालय से पढ़ कर निकली है ये भी बहुत नटखट थी अगर तुमलोग भी अच्छे से पढोगे तो इस तरह सम्मान मिलेगा। यह सुन, मैं मन ही मन बहुत गौरवान्वित महसूस करती थी।”
शिक्षकों के साथ मिलकर हमने PTM बैठक की योजना बनाई कि अभिभावक विधालय में आकर पूछे की उनके बच्चे कैसे पढ़ रहे रहे हैं?
हम अभिभावकों के घर जाकर, उनसे मिले, उन्हें प्रेरित किया। जिसका अच्छा प्रभाव रहा जो अभिभावक बच्चे से खबर तक नहीं पूछते थे कि उनका बच्चा कैसे पढ़ रहा है, वह अब विधालय आकर पूछ रहे है। सभी बैठक में शामिल हो रहे थे। रोहित भैया (एक अभिभावक) उनके घर से 5 बच्चे पढ़ने आते थे। किसी भी दिन उनके बच्चे विधालय में अनुपस्थित रहते थे तो हमे कॉल करके पूछते थे।
कैसे, मैं अपने विधालय में बेहतर कर पाई?
मैंने जिस तरह से वहाँ के बच्चों को पढाया, मैं बहुत संतुष्ट हूँ। हमें अपने अनुसार लगता है कि मैं इसमें 90% अच्छा कर पाई जो 10% बचता है मैं यह बदलाव करना चाहती थी कि जो बच्चे अनुपस्थित है उन्हें भी कुछ सिखा पाती।
कचरे का डिब्बा बना पाती, इसमें काफी हद तक सुधार हुआ है। लेकिन मुझे इसमें और कार्य करने की जरुरत थी। लेकिन मैं अभी उन्हें सहयोग कर रही हूँ, जो मेरी जगह नई एडु-लीडर आयी है। मुझे उम्मीद है की वह और भी बेहतर करेगी।
मेरे बडी धर्मवीर भईया ने मुझे बहुत सहयोग प्रदान किया
मैं धर्मवीर भैया को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगी, जो मुझे अपनी छोटी बहन की तरह समझाते थे। मुझे हर कदम में सहयोग करते थे और करते हैं। कुछ भी पूछना होता था तो वह मुझे मना नहीं करते थे। हम उन्हें कभी गुस्सा होते हुए, देखे ही नहीं है भैया हमेशा हँस कर ही बात किया करते थे। अगर बच्चे की उपस्थिति, जब मैं समय पर नहीं बना पाती थी तो वह मुझे सहयोग करते थे। वे कभी परेशान नहीं हुए। उन्होंने मुझे अपने अनुभवों को लिखने के लिए भी प्रेरित किया, जिससे मैं धीरे-धीरे इसमें बेहतर होती गई। कुछ-कुछ सहयोग मुझे बबलू भैया ने भी किया है उनसे भी कुछ पूछना रहता तो वे हमेशा बताने के लिए तैयार रहते थे।
जीविका दीदी ने कम्युनिटी में मेरी मदद की।
मेरे गांव की जीविका की CM राजकुमारी दीदी ने भी मेरी अच्छी-खासी मदद की। जब मुझे कहीं बैठक में जाना होता था तो वह पहले ही वहाँ सूचना दे देती थी कि अलका इस दिन बैठक करने आएगी आपलोग तैयार रहिएगा। कई बार वह खुद मेरे साथ बैठक में शामिल रही। जब मैं उन्हें किसी बैठक में बुलाती थी, वह जरुर समय निकाल कर पहुंचती थी।
देखते-देखते बहुत कुछ बदल गया
जिस तरह से मैं वहाँ बच्चों को कविता करवाती थी, सेशन प्लान के अनुसार बच्चों को पढ़ाती थी, बाकी बच्चे भी झांकने आ जाते थे और कहते थे दीदी हम भी कविता करना चाहते है। सर और मैम को हमारे पढ़ाने का तरीका बहुत अच्छा लगा और उन्होंने भी धीरे-धीरे इस तरह से पढ़ाना शुरु किया। एक दिन मैंने एक कविता (जो मैं कराती हूँ) मैम को सुनाते देखा तो मुझे यह देख बहुत ख़ुशी मिली ।
मुझे जो इज्जत और प्यार वहाँ से मिल रहा था वह शायद ही कभी मैंने सोचा होगा। उस विधालय में मेरी एक छवि बन गई और बीते दो वर्षों में, मैं अपने सामाज में एक अलग पहचान बना पायी। पढ़ाते-पढ़ाते दो साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। मैंने इन दो वर्षों में लोगों के साथ बहुत जुड़ाव बना पायी। पहले मैं और खुशबू उस विधालय में पढ़ाती थी। अब उस विधालय में बैच-7 की प्रेरणा दीदी और रीना दीदी पढ़ा रहीं है। हम अभी भी उनके साथ विधालय जाकर सहयोग कर रहे हैं। वे बेहतर ढंग से पढ़ाती है हमे उम्मीद है कि वो और भी बेहतर करेगी।
अलका बैच-4 की एडु-लीडर हैं जो i-सक्षम में फ़ेलोशिप के दौरान प्राथमिक विद्यालय सर्वोदय टोला फरदा (मुंगेर) में पढ़ाती थी।
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