ललिता बताती है
की ‘’मैं खुद को बहुत भाग्यवान समझती हूँ की भगवान् ने मुझे एक ऐसा जीवन दिया
जिसमें मुझे कई मौके मिले आगे बढ़ने के लिए और मैंने जीवन में कई रुकावटों के बाद
भी इन मौकों का बहुत अच्छे से प्रयोग किया और पीछे मुड़ कर नहीं देखा|”
वैसे कहा जाए
तो हर किसी के जीवन में आगे बढ़ने के लिए कई मौके आते है लेकिन यह आप पर निर्भर
करता है कि है कि आप अपने जीवन को कैसे जीना चाहते हैं? आप चाहे तो, दुःख के समुन्द्र में दुःख का रोना
रोकर उसमें डूबते चले जाते हैं , या
ख़ुशी की नाव पर सवार होकर उसे पारकर सकते हैं।
ललिता- जीविका आई-सक्षम एडू-लीडर |
ललिता बेगुसराय
जिलेके जगदीशपुर गाँव में पैदा हुईं। वे अपने माता- पिता, नौ बहनो
और एक भाई के साथ रहती थी ।पिता
रामोतार राय, परिवार के पालने
के लिए अपने घर पर ही एक छोटी सी दुकान चलाते थे | ज़ाहिर सी बात है, लम्बे परिवार होने के कारण आर्थिक तंगी रहती थी,पर ललिताके
अंदर पढ़ने का अलग ही ज़ज्बा था| यह उन दिव्यांग महिलाओं
में से हैं जिन्होंने कभी खुद को किसी से कम नही समझा और हमेशा अपने दिल की सुनते
हुए आगे बढ़ी| अपने हौसले और जज्बे को
बनाये रख उन्होंने खुद को शिक्षित करने का ज़िम्मा उठाया और कम उम्र में ही घर पर बच्चों
को पढ़ाना शुरू कर दिया | इस तरह वह अपनी पढाई
का खर्च भी निकाल लेती थी और
अपने पिताजी की मदद भी किया करती थीं |वह बताती हैं की यह उनके लिए बड़े ही गौरव की बात थी जब
उन्होंने अपनी स्नातक की डिग्री हासिल की|
जून 2014 में ललिता
का विवाह मुंगेर जिले के विजयनगर निवासी श्री जितेन्द्र मंडल से हुआ। लेकिन उनके
आगे बढ़ने और सीखने की चाहत अब भी बरक़रार
थी |कुछ समय पश्चात उन्होंने अपने ससुराल में एक बार फिर से बच्चों
को पढ़ाना शुरू कर दिया।
ललिता के जीवन में कई संघर्ष भी आए लेकिन, ललिता ककी दृढ इच्छाशक्ति
के सामने हर समस्या बौनी नजर आती। इसी
दौरान वो जीविका की CM(community
mobilizer) सेमिली जिनसे उन्हें आई-सक्षम और
जीविका के सहयोग से चलने वाले एडू-लीडर फ़ेलोशिप कार्यक्रम के बारे में पता चला। उनकी दृढता, कार्य और लगन के कारण उनका इस फ़ेलोशिप में चयन भी हो गया | फ़ेलोशिप के तहत उन्हें शिक्षण
पद्धति, सामूहिक नेतृत्व एवं अन्य
विषयों पर साप्ताहिक प्रशिक्षण के साथ-साथ अपने गाँव के किसी विद्यालय या
सामुदायिक भवन में पढ़ाना था | जिस गावं
में उन्हें पढ़ाना था, उस विद्यालय में पर्याप्त शिक्षक थे, और कोई भी सामुदायिक भवन नहीं मिल रहा
था | प्रारंभ में उन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा लेकिन वो इनसे पीछे नही हटीं जैसे –पढ़ाने
के लिए कमरों की सुविधा ना होना, बच्चों
के बैठने के लिए दरी का न होना , स्कूल के अन्य बच्चों का अनुशासनहीन व्यवहार। इन सभी समस्याओं के कारण शुरुआत में वह काफी विचलित थीं लेकिन उन्हें पूरा यक़ीन था कि वह अपने
परिश्रम , लगन और संस्था की सहायता से इसे जरुर आसान बना देंगी| वह खुद से अपने
गाँव के सरकारी विद्यालय में प्रधानाध्यापक से मिली और उन्हें इस एडू-लीडर
कार्यक्रम के बारे में बताया| प्रधानाध्यापक द्वारा ललिता को विद्यालय में पढ़ाने
के लिए कुछ समय दिया गया| चंद दिनों में ही ललिता द्वारा गतिविधि के साथ पढ़ाने के
तरीके से वहाँ के प्रधानाध्यापक और शिक्षक काफी प्रभावित हुए , और उन्हें अलग पढ़ाने के लिए कमरा मुहैया कराया | आज ललिता उसी विद्यालय में ढाई घंटा
बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का काम कर रही हैं|
कहते हैं कि आप
के हुनर व् जज्बे से अगर अन्य लोग प्रभावित होते हैं, तो आप वाकई में एक प्रतिभाशाली
व् असरदार इंसान हैं| कुछ ऐसा ही हुआ ललिता के विद्यालय में| ललिता ने कक्षा को
रोमांचक बनाने के लिए बच्चों द्वारा बनाये गए चित्र, क्राफ्ट, पोस्टर, शिक्षण
अधिगम सामग्री आदि कक्षा की दीवारों पर लगाए| कक्षा एक ऐसा बदला स्वरुप देख कर उनके
विद्यालय के प्रधानाध्यापक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने विद्यालय के अन्य कमरों
में कारीगर बुलवा कर बच्चों के सीखने के लिए रंग बिरंगी आकृतियां और अन्य प्रकार की कला दीवारों पर बनवा दी|
विद्यालय में बनवाई आकृतियों के साथ ललिता के विद्यालय के प्रधानाध्यापक |
“इनकेपढ़ाने
का तरीका मुझे काफी अच्छा लगता है, सबसे
अच्छी बात ये है की बच्चे काफी खुश रहते है “
- लड्डू
पासवान (स्कूल प्रिंसिपल मध्य विद्यालय बिजय नगर जमालपुर )
अगर आप अच्छा
कार्य करते हैं तो समय समय पर आपकी परीक्षा भी होती है| कुछ ऐसा ही ललिता के साथ
हुआ जब एक दिन उनके विद्यालय पर उनके द्वारा लगायी गयी बच्चों की सभी कला बच्चों
ने स्वयं ही फाड़ दी| इस समस्या का हल ढूँढ़ते हुए ललिता व् आई-सक्षम से उनके सहयोगी
ने शिक्षक अभिभावक बैठक के दौरान यह बात अभिभावकों के सामने रखने की सोची| पर किसे
मालूम था कि शिक्षक अभिभावक बैठक से जहाँ एक ओर इस समस्या का सुधार होगा वहीँ
दूसरी और ललिता खुद को समाज में एक महत्ववपूर्ण बिंदु की तरह देख पाएंगी| जब उनके
विद्यालय में शिक्षक अभिभावक बैठक हुई तो उन्होंने सभी अभिभावकों में उनके बच्चों की
शैक्षणिक स्तिथि की समझ बनायी| साथ ही उन्होंने सभी अभिभावकों को अपने द्वारा
ट्रेनिंग के अनुसार किये जा रहे नए प्रयोग के बारे में भी बताया| अभिभावकों के लिए
किसी का बच्चों को इस तरह से पढ़ाना और विद्यालय में खुद इस तरह बच्चों की सिक्षा
को लेकर एकत्रित होना बिलकुल नया था| मानो उनका एक विशवास सा बन उठा कि उनके बच्चे
अब एक बेहतर शिक्षा हासिल कर पायेंगे| ललिता बताती हैं की शिक्षक अभिभावक बैठक के
बाद उनकी समाज में काफी इज्ज़त की जाती है और लोग उन्हें स्नेह भरी निगाहों से
देखते हैं|
अभिभावक शिक्षक बैठक में शिक्षण अधिगम सामग्री की समझ बनाते हुए ललिता| |
आज भी ललिता की प्रेरणा बिलकुल वैसे ही बरकरार है| वह हर सप्ताह होने
वालेअपने प्रशिक्षण में हमेशा आधा घंटा पहले उपस्तिथ होती हैं और आज तक कभी अनुपस्थित
नहीं हुई हैं| वह अपने फ़ेलोशिप के समूह में कई लोगों की प्रेरणा का स्रोत हैं| इस
कार्य में एक मुख्य भूमिका ललिता के जीवन साथी भी निभा रहे हैं जो कि ललिता
को ट्रेन से प्रशिक्षण केंद्र आने में कोई समस्या न हो, इसके लिए हर प्रशिक्षण में
उनके साथ आते हैं|
ललिता कहती है – एडू-लीडर प्रोग्राम का हिस्सा होने
के कारण मेरा
सम्मान समाज में बढ़ा है , समाज के लोग मुझे हर काम में सहयोग करते हैं और मैं अपने समय को सही से प्रबंध कर पाती
हूँ | वह अपने अन्दर अब अधिक उत्साह भी पाती हैं और
उनके हौसलों को बनाए रखने के लिए आई-सक्षम परिवार सदैव उनके साथ खड़ा है| अब वह बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ सरकारी नौकरी की तैयारी भी कर रही हैं।
ललिता कहती हैं
– “ यह तो बस शुरुआत है अभी तो बहुत
कुछ करना है।अभी तो पंख लगे हैं, अभी उड़ान बाकी है| ”
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