कुछ दिन पहले मेरी मुलाक़ात स्वाति नाम की एक किशोरी से हुई, जिसकी उम्र लगभग 14-15 साल है। वह नया सुभानपुर, बछवाड़ा की रहने वाली है। स्वाति पहले स्कूल जाया करती थी, लेकिन अब कुछ समय से वह शांत और सहमी-सहमी सी रहने लगी थी।
जब मैंने धीरे से उससे बात की, तो उसने बताया – "दीदी, मेरी शादी तय कर दी गई है। मैं पढ़ना चाहती हूं, लेकिन मेरे घर में मेरी बात कोई नहीं सुनता।" स्वाति के गांव में ज़्यादातर लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती है। यही कारण था कि उसके माता-पिता ने भी उसकी शादी तय कर दी थी।
स्वाति ने उन्हें समझाने की कोशिश की – कि वो अभी पढ़ना चाहती है, शादी नहीं – लेकिन जवाब में यही सुना: "इतना पढ़ा दिया, अब और क्या करेगी? जहां जाएगी, वहीं के लोग पढ़ा देंगे, नहीं तो घर का काम करेगी। लड़कियों का तो यही होता है।
"जब मैंने स्वाति के माता-पिता से बात की, तो वही पुरानी सोच सामने आई – "मैंने अपनी ओर से बहुत समझाया, लेकिन नहीं समझ पा रहे थे। "तब मैंने उनसे बस एक बात कही – "क्या आपने कभी अपनी बेटी से पूछा कि वो क्या करना चाहती है? क्या वो कुछ बनना चाहती है या सिर्फ घर का काम करना?
एक बार उससे पूछकर तो देखिए।" जब सामने से स्वाति से पूछा गया, तो वो डरते-डरते बोली – "मैं पढ़ना चाहती हूं, अभी शादी नहीं करना चाहती। आप बस मुझे एक मौका दीजिए।" स्वाति की बात सुनकर मैंने भी उन लोगों को अपनी कहानी सुनाई – मेरे गांव में भी यही होता था।
जब मेरी शादी की बात चल रही थी, मैंने अपने पापा से सिर्फ इतना कहा – "क्या आप नहीं चाहते कि मैं पढ़-लिखकर कुछ बनूं?" बस, उस दिन से मेरी एक छोटी-सी कोशिश से मै आज पढ़ कर आगे बढ़ रही हूँ और आपलोग से भी मिलने आई हूँ। मेरी कहानी सुनकर उसके माता-पिता कुछ देर शांत रहे... फिर उसके पापा बोले – "अगर तू पढ़ना चाहती है तो ठीक है, अभी तेरी शादी नहीं करेंगे।" यह सुनकर स्वाति के चेहरे पर एक अलग ही चमक आ गई। उसे खुश देखकर मेरे दिल को बहुत ख़ुशी हुई।
प्रियंका, बड्डी
बेगुसराई
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