Wednesday, July 2, 2025

"सोच में बदलाव" – एक बहू, एक सास और तीन पीढ़ियों की कहानी

सुनिए  साथियों, जमाना कितना बदल रहा है ना... लेकिन असली बदलाव तब दिखता है जब घर-परिवार के लोग अपनी सोच बदलें। ऐसा ही कुछ मैंने खुद अपनी आँखों से देखा और दिल से महसूस किया।

हमलोग हाल ही में जमुई में i-सक्षम में “बडी प्रशिक्षण” में गए थे। चार दिन का प्रशिक्षण था। बहुत कुछ नया सीखने को मिला। लेकिन सबसे बड़ी सीख तो एक कहानी ने दी... एक सास, एक बहू और एक प्यारी सी पोती की।
हमारी साथी नेहा दी भी वहाँ आई थीं। लेकिन अकेली नहीं — अपनी सासू माँ और बेटी रूपम के साथ। पहले तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मन में सवाल उठा कि अरे, नेहा दी की सासू माँ भी यहाँ? वो भी ट्रेनिंग में?

क्योंकि मैं नेहा दी की कहानी पहले से जानती थी। याद है, 2024 के फाउंडेशन डे पर मैंनें उनके जीवन पर नाटक लिखा था। तब जान पाई थी कि नेहा दी की पढ़ाई एक वक्त पर रोक दी गई थी। दसवीं में थीं तब उनकी सासू माँ ने साफ कहा थे,

"दसवीं पढ़कर क्या करेगी? बकरी ही तो चराएगी!"
सोचिए, कैसी तकलीफ हुई होगी नेहा दी को। लेकिन वक़्त बदला... हालात बदले... और सबसे बड़ी बात — सोच बदली।
अब वही सासू माँ... अपनी बहू का हाथ पकड़कर जमुई ले आईं। बोलीं
"तू सीख, मैं रूपम को संभाल लूंगी।"

ये सिर्फ साथ आना नहीं था दीदी... ये था तीन पीढ़ियों का बदलाव। सासू माँ ने पूरे मन से नेहा दी का साथ दिया। पोती रूपम उनके गोद में खेलती रही और नेहा दी सारा ध्यान लगाकर ट्रेनिंग में सीखती रहीं।


ट्रेनिंग खत्म होने के बाद मैं उनके पास गई। धीरे-धीरे बातें होने लगीं। और उनकी बात सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। वो बोलीं —
"हाँ, पहले गलती हुई हमसे। सोचा था पढ़ाई से क्या होगा। पर अब समझ आई है। चाहे बेटी हो या बहू, पढ़ाई सबसे जरूरी है। आज गांव में लोग कहते हैं — देखो, आपकी बहू समाज में काम करती है, लड़कियों को समझाती है, लोगों की मदद करती है। तो मन गर्व से भर जाता है।"

नेहा की सासु माँ ने पिछले बातो को कहते-कहते उनकी आँखें भर आईं। फिर बोलीं —
"नेहा ने हमारे घर की सोच बदल दी है।"
सच कहूँ साथियों, उस दिन मैंने महसूस किया कि बदलाव सिर्फ किताबों में नहीं होता। जब हम किसी की कहानी को जीते हैं, उसे अपने आस-पास होते हुए देखते हैं, तब असली असर होता है।
ये सिर्फ नेहा दी का सफर नहीं था... ये हर उस लड़की की कहानी है जो लड़ती है, सीखती है और समाज की सोच बदल देती है।
"जब सोच बदले, तब ही असली बदलाव आता है"
स्मृति, टीम मुंगेर।

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