Friday, November 28, 2025

मैं i-सक्षम छोड़ना चाहती हूँ।

 “मैं i-सक्षम छोड़ना चाहती हूँ।”

यह सुनकर मैं बहुत चिंतित हो गई। मेरा नाम मोनिका कुमारी है और मैं i-Saksham में 'बडी' के रूप में काम करती हूँ। मेरे पास पूनम नाम की एक एडू-लीडर थीं, जो बहुत समर्पित और उत्साही थीं, लेकिन उनके जीवन में बड़ा संकट आ गया—उनकी दीदी का निधन हो गया।

वह एक महीने की छुट्टी के बाद लौटीं, लेकिन पुरानी वाली पूनम नहीं थीं। पूनम मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुकी थीं। आत्मविश्वास की कमी साफ़ दिखती थी। फिर एक दिन उनका फोन आया: “मैं i-सक्षम छोड़ना चाहती हूँ।”

पूनम की हालत देखकर मुझे लगा कि मेरी सामान्य समझ काम नहीं कर रही है। मुझे सिखाया गया था कि व्यक्तिगत संकट के समय किसी भी लीडर का पहला काम होता है, सही सपोर्ट सिस्टम का उपयोग करना। मैंने अपने मेंटर अमन भैया से सलाह ली और उनकी बात मानते हुए पूनम के ऊपर से काम का दबाव हटा दिया।

मैंने पूनम को एक महीने का समय और व्यक्तिगत स्पेस दिया। उनकी साथी एडू-लीडर्स ने उन्हे कल करके सिर्फ हाल चाल लेते और हौसला बढ़ाते, काम की बात नहीं करते ।

करीब 25 दिन बाद, मैंने पूनम से फिर बात की। इस बार वह सकारात्मक लगीं। सितंबर में उन्होंने फिर से i-सक्षम ज्वाइन किया। उन्हें देखकर मेरा दिल खुश हो गया।

धीरे-धीरे पूनम ने फिर से मुस्कुराना शुरू किया। अक्टूबर में जब हमने 'बडी टॉक' की, तो पूनम आत्मविश्वास से अपनी लर्निंग और एक्शन प्लान साझा कर रही थीं। उन्हें देखकर लगा कि समय और समझदारी दोनों जरूरी है घाव भरने के लिए।

उस दिन मुझे सच्चे अर्थों में "बड़ी" का मतलब समझ आया—बड़ी का मतलब सिर्फ काम की निगरानी नहीं, बल्कि साथी को मुश्किल समय में संभालना, और उसे फिर से खुद पर भरोसा दिलाना है। मेरा काम पूनम को संभालना था, और यह देखकर सुकून मिला कि हमने मिलकर यह कर दिखाया।


लेखिका परिचय:

  • नाम: मोनिका कुमारी

  • परिचय: मोनिका जिला जमुई के खैरमा गाँव की रहने वाली हैं और i-Saksham में 'बडी' के रूप में काम कर रही हैं।

  • i-Saksham से जुड़ाव: मोनिका वर्ष 2021 में i-Saksham से जुड़ीं।

  • भविष्य का सपना: मोनिका चाहती है कि वह अपने गाँव की महिलाओं के लिए आवाज़ उठाये और उन्हें उनके अधिकारों और अवसरों के लिए जागरूक करे ।

Monday, November 24, 2025

ज़िद्द से जज़्बे तक : हमारे ‘ज़िद्दियों’ की कहानी 2025

26 नवंबर, 76वां संविधान दिवस: आइए मिलें उन लोगों से, जो संविधान को केवल पढ़ते नहीं—उसे जीते हैं!

नमस्कार, i-Saksham परिवार और साथियों!

हम अक्सर संसद और अदालतों में संविधान पर बहस होते देखते हैं, पर क्या आपने कभी सोचा है कि संविधान के आदर्शों—समानता, न्याय और गरिमा—को ज़मीन पर कौन उतार रहा है?

बिहार के गांवों की हमारी बेटियां, उनके माता-पिता और उनके समर्थक!

एक बार फिर आया है वेबिनार का दूसरा संस्करण, "ज़िद से जज़्बे तक 2025"। यह उन 'ज़िद्दियों' को सुनने का समय है जिन्होंने अपनी ज़िद से अपने और अपने समुदाय के जीवन को बदल दिया है। मिलिए उन 6 नायकों से जो अपनी ज़िंदगी से संविधान रच रहे हैं:


1. अन्नू 

अन्नू की कहानी संवैधानिक गरिमा को जीने की है। जब पिता की मृत्यु हुई, तो समाज ने उन्हें सिर्फ ताने दिए: "लड़की क्या ही कर लेगी, घर कैसे बनेगा?" 20 साल की अन्नू ने इन तानों के खिलाफ़ अपनी ‘ज़िद’ से क्या किया जिससे उसने अपने समाज मे सम्मान पाया।

2. रेखा

रेखा जिनको 12 साल पहले जिन पिता ने निराशा में कहा था, "मेरा बेटा नहीं रहा, तुम भी मर जाओ," आज वही पिता पंचायत में गर्व से कहते हैं: "फैसला मेरी बेटी करेगी।" क्या है 10 साल कि आयु से अपना घर समहालने वाली रेखा की कहानी । 

3. शर्मिला देवी 

15 साल की उम्र में शादी के कारण अवसरों से वंचित रही, एक माँ ने सामाजिक दबाव के खिलाफ़ जाकर अपनी बेटी के भविष्य को सुनिश्चित किया - अवसरों की समानता । 

4. रीमा भारती

जन्म लेने से पहले ही जिनको मारना निश्चित हुआ, पर वो जीवित रही और महिला सरपंच बनी। आज वो प्रयासरत है कि हर महिला का एक मंच बने जहाँ उनकी आवाज़ सुनी जाए - 'सुने जाने के अधिकार' मिले ।

5 . सुबोध कुमार साह 

वहीं, एक पिता जो लैंगिक समानता की वकालत करने से नहीं डरते। उन्होंने 'बेटे ही पढ़ाने चाहिए' की सोच को चुनौती दी। 

6. स्मृति 

और अंत मे हमारी अपनी स्मृति जो—रूढ़ियों का सामना करके और लिंग भूमिकाओं को पलट कर नए बदलाव का हिस्सा बन रही है । वे इस बदलाव की कहानी को भी आप तक पहुंचाने जा रही हैं।

यह सिर्फ एक वेबिनार नहीं, यह एक वादा है!

ये कहानियाँ हमें बताती हैं कि संविधान कोई सरकारी दस्तावेज़ नहीं है; यह एक जीने का तरीका है। आपके मार्गदर्शन से ही ये 'ज़िद्दी' लड़कियाँ और उनके परिवार इन संवैधानिक मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में उतार पा रहे हैं।

हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप इस विशेष दिन पर हमारे साथ जुड़ें। इन 'ज़िद्दियों' का हौसला बढ़ाइए और देखिए कि आपका समर्थन किस तरह बिहार के सामाजिक ताने-बाने को बदल रहा है।

वेबिनार विवरण:

  • शीर्षक: ज़िद से जज़्बे तक 2025: संविधान के आदर्शों को अपने दैनिक जीवन में जीते लोग

  • दिनांक: बुधवार, 26 नवंबर, राष्ट्रीय संविधान दिवस 

  • समय: दोपहर 3:30 बजे (IST) 

आइए, मिलकर इन 'ज़िद्दियों' को सलाम करें! 

Friday, November 21, 2025

मैं अब 7 अंक की हकदार हूँ

“पहले मैं खुद को 10 में से 3 अंक देती थी, अब 7 की हकदार हूँ।”

यह आत्मविश्वास बेगूसराय के बेगमसराय गाँव की पुष्पा का है। कुछ महीने पहले तक, मैं ऐसी नहीं थी। मैं बहुत शर्मीली और संकोची थी। किसी से बात करने में डरती थी, और मुझे हमेशा यह डर रहता था कि कहीं कुछ गलत न बोल दूँ। ज़रूरतमंद होने पर भी मैं अपनी बात कहने से कतराती थी।

यह सब तब बदला जब मैं रश्मि दीदी के सत्रों से जुड़ी। शुरू में मैं कोने में बैठती थी, पर दीदी ने मुझे बार-बार आगे बुलाया। हर बार जब मैं थोड़ा-सा बोलती, दीदी मुस्कराकर कहतीं, "बहुत अच्छा बोला आपने!" यही प्रोत्साहन मेरे भीतर विश्वास बोने लगा।

एक दिन, मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय करने की बात कही। सबने कहा, “लड़की की ज़िंदगी तो शादी के बाद ही सँवरती है।” मेरे पास दो रास्ते थे—या तो चुप रह जाऊँ, या अपने हक के लिए लड़ूँ। मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और साहस के साथ कहा, "अभी नहीं... मैं पढ़ना चाहती हूँ, अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ।" 

उस दिन मैंने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए आवाज़ उठाई जो चुप रहती हैं।

आज मैं पूरी तरह बदल चुकी हूँ। अब मैं अपना हर काम खुद करती हूँ। मैंने सकारात्मक सोच और योजना के साथ काम करना सीखा है। अब मैं अपने आस-पड़ोस में होने वाले झगड़ों को भी समझती हूँ और आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखकर समाधान करने की कोशिश करती हूँ।

अब मैं सत्र की सबसे सक्रिय किशोरी हूँ। मैं न केवल समय पर सत्र में आती हूँ, बल्कि दूसरी किशोरियों को भी प्रेरित करती हूँ। पहले मुझे लगता था कि "मुझे कुछ नहीं आता," लेकिन अब मुझे एहसास है कि मुझमें भी बहुत क्षमताएं हैं।

आज जब कोई मुझसे पूछता है, तो मैं गर्व से कहती हूँ कि "पहले मैं खुद को 10 में से 3 अंक देती थी, लेकिन अब आत्मविश्वास से कहती हूँ कि 7 अंक की हकदार हूँ—क्योंकि अब मुझमें ज्ञान और आत्मविश्वास दोनों बढ़े हैं।"


लेखिका परिचय:

यह अनुभ रश्मि दीदी के सत्रों से जुड़ी किशोरी पुष्पा के अनुभव पर आधारित है।

  • नाम: निधि कुमारी

  • परिचय: निधि कुमारी मुंगेर के फरदा - बॉक टोला, जमालपुर की रहने वाली हैं।

  • i-Saksham से जुड़ाव: वह वर्ष 2021 में i-Saksham के बैच-7 की एडू-लीडर रह चुकी हैं।

  • लक्ष्य: निधि का सपना है कि वह एक शिक्षक बनें।

Monday, November 17, 2025

“दीदी, ये बच्ची तो किसी की नहीं सुनती!”

“अगर मैं इसे डाँटूँगी, तो क्या यह कभी मुझ पर भरोसा करेगी?”

यह सवाल मेरे मन में तब आया, जब मैंने रानी को अपने सेशन में पहली बार देखा। मेरा नाम संगीता है और मैं i-Saksham की एक एडू-लीडर हूँ।


रानी एक नटखट और चंचल बच्ची थी। वह किसी की बात नहीं सुनती थी, ज़ोर-ज़ोर से हँसती और दूसरी लड़कियों को भी परेशान करती। सेशन में ध्यान लगाना उसके लिए जैसे किसी सज़ा से कम नहीं था।

मैं जानती थी कि रानी जैसी बच्चियाँ डाँट से नहीं, भरोसे से समझी जाती हैं। मेरा मकसद था कि जीवन कौशल सत्रों के ज़रिए मैं उनके भीतर आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को मज़बूत करूँ।

मैंने रानी को डाँटने के बजाय, अगले कुछ दिनों तक उससे धीरे-धीरे बात करनी शुरू की। मैंने उसकी पसंद पूछी, छोटी-छोटी बातें सुनीं, और उसके मन की दुनिया में झाँकने लगी। यह मेरे लिए एक लीडर के तौर पर काम करने का एक नया तरीका था।

धीरे-धीरे रानी को महसूस हुआ कि कोई है जो उसे सच में सुन रहा है, बिना टोकाटाकी के। यहीं से शुरू हुई "भरोसे की डोर" की असली बुनाई।

एक महीने बाद जब अगला सेशन हुआ, तो पूरा समूह चकित रह गया। वही रानी, जो पहले किसी की बात नहीं सुनती थी—अब सबसे आगे बैठी थी, ध्यान से सुन रही थी। जब कुछ समझ में नहीं आता, तो वह हाथ उठाकर सवाल पूछती।

मैंने उसे देखा तो मेरी आँखें भर आईं। उसकी वही ऊर्जा, जो पहले शरारत में झलकती थी—अब जिज्ञासा और सीख में बदल चुकी थी।

उस दिन मैंने समझा, यह परिवर्तन अचानक नहीं आया। यह उस भरोसे और स्नेह की डोर से बुना गया था, जिसे मैंने उसे बार-बार महसूस कराया। रानी का बदलाव सिर्फ उसके व्यवहार में नहीं, उसकी सोच में था। अब वह जान चुकी थी कि उसकी आवाज़ की अहमियत है, और उसकी राय मायने रखती है।


लेखिका के बारे में:

  • नाम: संगीता कुमारी

  • परिचय: संगीता गाँव हरिपुर कृष्ण, मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं और i-Saksham बैच-12 की एडू-लीडर हैं।

  • i-Saksham से जुड़ाव: वह वर्ष 2025 में i-Saksham से जुड़ीं।

  • लक्ष्य: संगीता भविष्य में ANM (Auxiliary Nursing and Midwifery) करना चाहती हैं।

Monday, November 10, 2025

साफ-सफाई या कुछ और?

“दीदी, वो साफ-सफाई से नहीं आती है, इसलिए हम उससे अलग रहते हैं।”

यह जवाब मुझे क्लास के बच्चों ने तब दिया, जब मैंने एक कोने में अकेली बैठी बच्ची के बारे में पूछा। मेरा नाम डॉली है और मैं i-Saksham में 'बडी' के रूप में काम करती हूँ। उस दिन जब मैं मनीषा दीदी के स्कूल में गई, तो देखा कि सभी बच्चे बहुत एक्टिव थे, पर एक कोने में सन्नाटा था। बच्चे नीलू से दूर रहते थे क्योंकि वह ठीक से बोल नहीं पाती थी और साफ़-सफाई से नहीं आती थी।

मैंने तय किया कि मुझे इस बच्चे की मदद करनी है।

मैंने उससे बातचीत करना शुरू किया, ठीक वैसे ही जैसे मैंने फेलोशिप में कोचिंग स्किल्स में सीखा था। मैंने उसके पास बैठकर उससे इशारों में बात की। उसने अपनी कॉपी मेरी तरफ बढ़ाई। वह लिखना चाहती थी, पर उसके हाथ काँप रहे थे। मैंने उसे एक अक्षर लिखकर दिया, लेकिन जब उसने लिखने की कोशिश की, तो पन्ना फट गया। यह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ।

मेरा मुख्य प्रयास उसका भरोसा जीतना था जिससे मै उसकी ज्यादा से ज्यादा मदद कर सकु । मैंने हर दिन कुछ मिनट उसी के साथ बिताए। मैंने उसकी छोटी-छोटी सफलताओं पर ध्यान दिया, उसकी कोशिशों को सराहा और उसे लिखने में मदद की।

धीरे-धीरे, वह मुस्कुराने लगी। मैंने मज़ाक में उसके बालों की बात की, और उसने रबर देकर मुझे बाल बाँधने को कहा। यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि उसने मुझ पर भरोसा दिखाया था। धीरे-धीरे, बच्चों ने भी नोटिस करना शुरू किया कि वह बदल रही है, और वे सब भी उसके साथ जुड़ने लगे। यह किसी नियम से नहीं, बल्कि संवेदना से हुआ बदलाव था।

कुछ हफ्तों बाद जब मैं दोबारा कक्षा में गई, तो वही बच्ची सबसे पहले खड़ी हुई और बोली—“दीदी, देखिए, मैंने खुद लिखा!”

उसकी मुस्कान में वो भरोसा था जो कभी उसके काँपते हाथों में नहीं था। मैंने सीखा कि बदलाव लाने के लिए बस हिम्मत करना है - हाथ बढ़ाना है । 


लेखिका के बारे में:

  • नाम: डॉली कुमारी

  • परिचय: डॉली गाँव बुधनगरा राधा, मुशहरी, मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं और i-Saksham में एक 'बडी' के रूप में कार्यरत हैं।

  • i-Saksham से जुड़ाव: वह वर्ष 2022 में i-Saksham से जुड़ीं।

  • लक्ष्य: वह भविष्य में एक मेक-अप आर्टिस्ट बनना चाहती हैं।