Monday, November 10, 2025

साफ-सफाई या कुछ और?

“दीदी, वो साफ-सफाई से नहीं आती है, इसलिए हम उससे अलग रहते हैं।”

यह जवाब मुझे क्लास के बच्चों ने तब दिया, जब मैंने एक कोने में अकेली बैठी बच्ची के बारे में पूछा। मेरा नाम डॉली है और मैं i-Saksham में 'बडी' के रूप में काम करती हूँ। उस दिन जब मैं मनीषा दीदी के स्कूल में गई, तो देखा कि सभी बच्चे बहुत एक्टिव थे, पर एक कोने में सन्नाटा था। बच्चे नीलू से दूर रहते थे क्योंकि वह ठीक से बोल नहीं पाती थी और साफ़-सफाई से नहीं आती थी।

मैंने तय किया कि मुझे इस बच्चे की मदद करनी है।

मैंने उससे बातचीत करना शुरू किया, ठीक वैसे ही जैसे मैंने फेलोशिप में कोचिंग स्किल्स में सीखा था। मैंने उसके पास बैठकर उससे इशारों में बात की। उसने अपनी कॉपी मेरी तरफ बढ़ाई। वह लिखना चाहती थी, पर उसके हाथ काँप रहे थे। मैंने उसे एक अक्षर लिखकर दिया, लेकिन जब उसने लिखने की कोशिश की, तो पन्ना फट गया। यह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ।

मेरा मुख्य प्रयास उसका भरोसा जीतना था जिससे मै उसकी ज्यादा से ज्यादा मदद कर सकु । मैंने हर दिन कुछ मिनट उसी के साथ बिताए। मैंने उसकी छोटी-छोटी सफलताओं पर ध्यान दिया, उसकी कोशिशों को सराहा और उसे लिखने में मदद की।

धीरे-धीरे, वह मुस्कुराने लगी। मैंने मज़ाक में उसके बालों की बात की, और उसने रबर देकर मुझे बाल बाँधने को कहा। यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि उसने मुझ पर भरोसा दिखाया था। धीरे-धीरे, बच्चों ने भी नोटिस करना शुरू किया कि वह बदल रही है, और वे सब भी उसके साथ जुड़ने लगे। यह किसी नियम से नहीं, बल्कि संवेदना से हुआ बदलाव था।

कुछ हफ्तों बाद जब मैं दोबारा कक्षा में गई, तो वही बच्ची सबसे पहले खड़ी हुई और बोली—“दीदी, देखिए, मैंने खुद लिखा!”

उसकी मुस्कान में वो भरोसा था जो कभी उसके काँपते हाथों में नहीं था। मैंने सीखा कि बदलाव लाने के लिए बस हिम्मत करना है - हाथ बढ़ाना है । 


लेखिका के बारे में:

  • नाम: डॉली कुमारी

  • परिचय: डॉली गाँव बुधनगरा राधा, मुशहरी, मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं और i-Saksham में एक 'बडी' के रूप में कार्यरत हैं।

  • i-Saksham से जुड़ाव: वह वर्ष 2022 में i-Saksham से जुड़ीं।

  • लक्ष्य: वह भविष्य में एक मेक-अप आर्टिस्ट बनना चाहती हैं।

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