26 नवंबर, 76वां संविधान दिवस: आइए मिलें उन लोगों से, जो संविधान को केवल पढ़ते नहीं—उसे जीते हैं!
नमस्कार, i-Saksham परिवार और साथियों!
हम अक्सर संसद और अदालतों में संविधान पर बहस होते देखते हैं, पर क्या आपने कभी सोचा है कि संविधान के आदर्शों—समानता, न्याय और गरिमा—को ज़मीन पर कौन उतार रहा है?
बिहार के गांवों की हमारी बेटियां, उनके माता-पिता और उनके समर्थक!
एक बार फिर आया है वेबिनार का दूसरा संस्करण, "ज़िद से जज़्बे तक 2025"। यह उन 'ज़िद्दियों' को सुनने का समय है जिन्होंने अपनी ज़िद से अपने और अपने समुदाय के जीवन को बदल दिया है। मिलिए उन 6 नायकों से जो अपनी ज़िंदगी से संविधान रच रहे हैं:
1. अन्नू
अन्नू की कहानी संवैधानिक गरिमा को जीने की है। जब पिता की मृत्यु हुई, तो समाज ने उन्हें सिर्फ ताने दिए: "लड़की क्या ही कर लेगी, घर कैसे बनेगा?" 20 साल की अन्नू ने इन तानों के खिलाफ़ अपनी ‘ज़िद’ से क्या किया जिससे उसने अपने समाज मे सम्मान पाया।
2. रेखा
रेखा जिनको 12 साल पहले जिन पिता ने निराशा में कहा था, "मेरा बेटा नहीं रहा, तुम भी मर जाओ," आज वही पिता पंचायत में गर्व से कहते हैं: "फैसला मेरी बेटी करेगी।" क्या है 10 साल कि आयु से अपना घर समहालने वाली रेखा की कहानी ।
3. शर्मिला देवी
15 साल की उम्र में शादी के कारण अवसरों से वंचित रही, एक माँ ने सामाजिक दबाव के खिलाफ़ जाकर अपनी बेटी के भविष्य को सुनिश्चित किया - अवसरों की समानता ।
4. रीमा भारती
जन्म लेने से पहले ही जिनको मारना निश्चित हुआ, पर वो जीवित रही और महिला सरपंच बनी। आज वो प्रयासरत है कि हर महिला का एक मंच बने जहाँ उनकी आवाज़ सुनी जाए - 'सुने जाने के अधिकार' मिले ।
5 . सुबोध कुमार साह
वहीं, एक पिता जो लैंगिक समानता की वकालत करने से नहीं डरते। उन्होंने 'बेटे ही पढ़ाने चाहिए' की सोच को चुनौती दी।
6. स्मृति
और अंत मे हमारी अपनी स्मृति जो—रूढ़ियों का सामना करके और लिंग भूमिकाओं को पलट कर नए बदलाव का हिस्सा बन रही है । वे इस बदलाव की कहानी को भी आप तक पहुंचाने जा रही हैं।
यह सिर्फ एक वेबिनार नहीं, यह एक वादा है!
ये कहानियाँ हमें बताती हैं कि संविधान कोई सरकारी दस्तावेज़ नहीं है; यह एक जीने का तरीका है। आपके मार्गदर्शन से ही ये 'ज़िद्दी' लड़कियाँ और उनके परिवार इन संवैधानिक मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में उतार पा रहे हैं।
हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप इस विशेष दिन पर हमारे साथ जुड़ें। इन 'ज़िद्दियों' का हौसला बढ़ाइए और देखिए कि आपका समर्थन किस तरह बिहार के सामाजिक ताने-बाने को बदल रहा है।
वेबिनार विवरण:
शीर्षक: ज़िद से जज़्बे तक 2025: संविधान के आदर्शों को अपने दैनिक जीवन में जीते लोग
दिनांक: बुधवार, 26 नवंबर, राष्ट्रीय संविधान दिवस
समय: दोपहर 3:30 बजे (IST)
आइए, मिलकर इन 'ज़िद्दियों' को सलाम करें!
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