“अगर मैं इसे डाँटूँगी, तो क्या यह कभी मुझ पर भरोसा करेगी?”
यह सवाल मेरे मन में तब आया, जब मैंने रानी को अपने सेशन में पहली बार देखा। मेरा नाम संगीता है और मैं i-Saksham की एक एडू-लीडर हूँ।
रानी एक नटखट और चंचल बच्ची थी। वह किसी की बात नहीं सुनती थी, ज़ोर-ज़ोर से हँसती और दूसरी लड़कियों को भी परेशान करती। सेशन में ध्यान लगाना उसके लिए जैसे किसी सज़ा से कम नहीं था।
मैं जानती थी कि रानी जैसी बच्चियाँ डाँट से नहीं, भरोसे से समझी जाती हैं। मेरा मकसद था कि जीवन कौशल सत्रों के ज़रिए मैं उनके भीतर आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता को मज़बूत करूँ।
मैंने रानी को डाँटने के बजाय, अगले कुछ दिनों तक उससे धीरे-धीरे बात करनी शुरू की। मैंने उसकी पसंद पूछी, छोटी-छोटी बातें सुनीं, और उसके मन की दुनिया में झाँकने लगी। यह मेरे लिए एक लीडर के तौर पर काम करने का एक नया तरीका था।
धीरे-धीरे रानी को महसूस हुआ कि कोई है जो उसे सच में सुन रहा है, बिना टोकाटाकी के। यहीं से शुरू हुई "भरोसे की डोर" की असली बुनाई।
एक महीने बाद जब अगला सेशन हुआ, तो पूरा समूह चकित रह गया। वही रानी, जो पहले किसी की बात नहीं सुनती थी—अब सबसे आगे बैठी थी, ध्यान से सुन रही थी। जब कुछ समझ में नहीं आता, तो वह हाथ उठाकर सवाल पूछती।
मैंने उसे देखा तो मेरी आँखें भर आईं। उसकी वही ऊर्जा, जो पहले शरारत में झलकती थी—अब जिज्ञासा और सीख में बदल चुकी थी।
उस दिन मैंने समझा, यह परिवर्तन अचानक नहीं आया। यह उस भरोसे और स्नेह की डोर से बुना गया था, जिसे मैंने उसे बार-बार महसूस कराया। रानी का बदलाव सिर्फ उसके व्यवहार में नहीं, उसकी सोच में था। अब वह जान चुकी थी कि उसकी आवाज़ की अहमियत है, और उसकी राय मायने रखती है।
लेखिका के बारे में:
नाम: संगीता कुमारी
परिचय: संगीता गाँव हरिपुर कृष्ण, मुजफ्फरपुर की रहने वाली हैं और i-Saksham बैच-12 की एडू-लीडर हैं।
i-Saksham से जुड़ाव: वह वर्ष 2025 में i-Saksham से जुड़ीं।
लक्ष्य: संगीता भविष्य में ANM (Auxiliary Nursing and Midwifery) करना चाहती हैं।
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